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Showing posts from June, 2017

बाइक यात्रा: पुरोला से खरसाली

इस यात्रा-वृत्तांत को आरंभ से पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक करें । 20 मई 2017 पुरोला से सुबह साढ़े आठ बजे चल दिये। बाज़ार में चहल-पहल थी। देहरादून की बस भी खड़ी थी। कुछ ही आगे नौगाँव है। यमुना किनारे बसा हुआ। यमुना नदी पार करते ही हम नौगाँव में थे। नौगाँव समुद्र तल से लगभग 1100 मीटर ऊपर है, इसलिये खूब गर्मी थी। नहाने का मन था, लेकिन नहीं नहाये। नौगाँव पार करते ही एक रेस्टॉरेंट पर रुक गये। “क्या खाओगे भाई जी?”

बाइक यात्रा: कुमारहट्टी से जानकीचट्टी - भाग चार (हनोल से पुरोला)

इस यात्रा-वृत्तांत को आरंभ से पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक करें । 19 मई 2017 हनोल से निकलते ही चीड़ का जंगल आरंभ हो गया और बगल में टोंस नदी। आनंदमय कर देने वाला वातावरण। पाँच-छह किलोमीटर आगे एक स्थान है - चीड़ समाधि। पता नहीं यह एशिया का सबसे ऊँचा पेड़ था या दुनिया का, लेकिन बहुत ऊँचा था। 60 मीटर से भी ज्यादा ऊँचा। 2007 में तूफ़ान के कारण यह टूटकर गिर पड़ा। इसकी आयु लगभग 220 वर्ष थी। पर्यावरण और वन मंत्रालय ने इसे ‘महावृक्ष’ घोषित किया हुआ था। अब जब यह टूट गया तो इसकी समाधि बना दी गयी। इसे जमीन में तो नहीं दफ़नाया, लेकिन इसे काटकर इसके सभी टुकड़ों को यहाँ संग्रहीत करके और सुरक्षित करके रखा हुआ है। चीड़ की एक कमी होती है कि यह किसी दूसरी वनस्पति को नहीं पनपने देता, लेकिन इसकी यही कमी इसकी खूबी भी होती है। सीधे खड़े ऊँचे-ऊँचे चीड़ के पेड़ एक अलग ही दृश्य उपस्थित करते हैं। हम ऐसे ही जंगल में थे। आनंदमग्न।

बाइक यात्रा: कुमारहट्टी से जानकीचट्टी - भाग तीन (त्यूणी और हनोल)

इस यात्रा-वृत्तांत को आरंभ से पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक करें । 19 मई 2017 तो हम उठे आराम से। बड़े आराम से। रात बारिश हुई थी तो मौसम सुहावना हो गया था, अन्यथा त्यूणी 900 मीटर की ऊँचाई पर बसा है, खूब गर्म रहता है। मानसून और सर्दियों में आने लायक जगह है त्यूणी। रणविजय ने कहा - “गुरूदेव, त्यूणी मुझे पसंद आ गया। गर्मी छोड़कर यहाँ कभी भी आया जा सकता है। 300 रुपये का शानदार कमरा और स्वादिष्ट भोजन और दो नदियों का संगम... इंसान को और क्या चाहिये ज़िंदगी में? बच्चों को लेकर आऊँगा अगली बार।” इंसान ‘अगली बार’ कह तो देता है, लेकिन ‘अगली बार’ आसानी से आता नहीं। तो अब हमारे सामने प्रश्न था - आगे कहाँ जाएँ? अभी हमारे हाथ में तीन दिन और थे। एक ने कहा - “ चकराता चलो।” मैंने ऑब्जेक्शन किया - “तीन दिन चकराता में? अभी तो टाइगर फाल में भी पानी रो-रो कर आ रहा होगा।”

बाइक यात्रा: कुमारहट्टी से जानकीचट्टी - भाग दो

इस यात्रा-वृत्तांत को आरंभ से पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक करें । 18 मई 2017 हम सुबह ही उठ गये। मतलब इतनी सुबह भी नहीं। फ्रेश होने गये तो एहसास होने लगा कि 500 रुपये का कमरा लेकर ठगे गये। चार-पाँच कमरों का एक साझा टॉयलेट ही था। उसमें भी इतनी गंदगी कि मामला नीचे उतरने की बजाय वापस ऊपर चढ़ गया। होटल मालिक हालाँकि अब नशे में तो नहीं था, लेकिन आँखें टुल्ल ही थीं। वह पूरे दिन शायद पीता ही रहता हो। सैंज समुद्र तल से लगभग 1400 मीटर की ऊँचाई पर है। जब छैला तिराहे पर पहुँचा तो मैं आगे था। मुझसे आगे एक बस थी, जिसे ठियोग की तरफ़ जाना था। तिराहे पर वह एक ही फेरे में नहीं मुड़ सकी तो ड्राइवर उसे बैक करके दोबारा मोड़ने लगा। इतने में रणविजय और नरेंद्र तेजी से पीछे से आये और ठियोग की तरफ़ मुड़कर चल दिये। मैं जोर से चीखा - “ओये।” लेकिन दोनों में से किसी पर कुछ भी असर नहीं हुआ। फोन किया - “वापस आओ।” आज्ञाकारी शिष्यों की तरह दोनों लौट आये।

बाइक यात्रा: कुमारहट्टी से जानकीचट्टी

इस यात्रा को क्या नाम दूँ? समझ नहीं पा रहा। निकले तो चांशल पास के लिये थे, लेकिन नहीं जा सके, इसलिये चांशल यात्रा भी कहना ठीक नहीं। फिर दिशा बदलकर उत्तराखंड़ में चले गये, फिर भी उत्तराखंड़ यात्रा कहना ठीक नहीं। तो काफ़ी मशक्कत के बाद इसे यह नाम दिया है - कुमारहट्टी से जानकीचट्टी की यात्रा। उत्तरकाशी यात्रा में मेरे सहयात्री थे रणविजय सिंह। यह हमारी एक साथ पहली यात्रा थी। बहुत अच्छी बनी हम दोनों में। इसी से प्रेरित होकर अगली यात्रा के लिये भी सबसे पहले रणविजय को ही टोका - “एक आसान ट्रैक पर चलते हैं 16 से 20 मई, बाइक लेकर।” रणविजय - “भई वाह, बस बजट का थोड़ा-सा अंदाज़ा और बता दो।” “हम खर्चा करते ही नहीं। बाइक का तेल और 2000 और जोड़ लो। 1000-1200 किलोमीटर बाइक चलेगी।” रणविजय - “फ़िर तो ठीक है। चलेंगे।” ... कुछ दिन बाद... मैं - “एक मित्र पीछे बैठकर जाना चाहते हैं। मैं तो बैठाऊँगा नहीं। क्या तुम बैठा लोगे?”