यह एक दुखांत यात्रा रही और इसने मुझे इतना विचलित किया है कि मैं अपना सामाजिक दायरा समेटने के बारे में विचार करने लगा हूँ। कई बार मन में आता कि इस यात्रा के बारे में बिलकुल भी नहीं लिखूँगा, लेकिन फिर मन बदल जाता - अपने शुभचिंतकों और भावी यात्रियों के लिये अपने इस अनुभव को लिखना चाहिये। यात्रा का आरंभ हमेशा की तरह इस यात्रा का आरंभ भी फेसबुक से हुआ। मैं अपनी प्रत्येक यात्रा-योजना को फेसबुक पर अपडेट कर दिया करता था। इस यात्रा को भी फेसबुक इवेंट बनाकर 24 जुलाई को अपडेट कर दिया। इसमें हमें 4800 मीटर ऊँचा जोतनू दर्रा पार करना था। हिमालय में इतनी ऊँचाई के सभी दर्रे खतरनाक होते हैं, इसलिये इस दर्रे का अनुभव न होने के बावज़ूद भी मुझे अंदाज़ा था कि इसे पार करना आसान नहीं होगा। लेकिन चूँकि यह मणिमहेश परिक्रमा मार्ग पर स्थित था और आजकल मणिमहेश की सालाना यात्रा आरंभ हो चुकी थी, तो उम्मीद थी कि आते-जाते यात्री भी मिलेंगे और रास्ते में खाने-रुकने के लिये दुकानें भी। दुकान मिलने का पक्का भरोसा नहीं था, इसलिये अपने साथ टैंट और स्लीपिंग बैग भी ले जाने का निश्चय कर लिया। यही सब फेसबुक पर भी
नीरज मुसाफिर का यात्रा ब्लॉग