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Showing posts from June, 2016

यात्रा पुस्तक चर्चा

पिछले दिनों कुछ यात्रा पुस्तकें पढने को मिलीं। इनके बारे में संक्षेप में लिख रहा हूं: 1. कर विजय हर शिखर (प्रथम संस्करण, 2016) लेखिका: प्रेमलता अग्रवाल प्रकाशक: प्रभात पेपरबैक्स ISBN: 978-93-5186-574-2 दार्जीलिंग में मारवाडी परिवार में जन्मीं प्रेमलता अग्रवाल का विवाह जमशेदपुर में हुआ। संयुक्त परिवार था और उन्हें पारिवारिक दायित्वों का कडाई से पालन करना होता था। कभी घुमक्कडी या पर्वतारोहण जैसी इच्छा मन में पनपी ही नहीं। समय का चक्र चलता रहा और दो बेटियां भी हो गईं। इसके आगे प्रेमलता जी लिखती हैं:

वडोदरा-कठाणा और भादरण-नडियाद रेल यात्रा

14 मार्च 2016, सोमवार गुजरात मेल सुबह पांच बजे वडोदरा पहुंच गई और मैं यहीं उतर गया। वैसे इस ट्रेन में मेरा आरक्षण आणंद तक था। आणंद तक आरक्षण कराने का मकसद इतना था ताकि वहां डोरमेट्री में बिस्तर बुक कर सकूं। ऑनलाइन बुकिंग कराते समय पीएनआर नम्बर की आवश्यकता जो पडती है। आज मुझे रात को आणंद रुकना है। सुबह पांच बजे वडोदरा पहुंच गया और विमलेश जी का फोन आ गया। मेरी इस आठ-दिनी यात्रा को वे भावनगर में होते हुए भी सोते और जगते लगातार देख रहे थे। सारा कार्यक्रम उन्हें मालूम था और वे मेरे परेशान होने से पहले ही सूचित कर देते थे कि अब मुझे क्या करना है। अब उन्होंने कहा कि अधिकारी विश्राम गृह में जाओ। वहां उन्होंने केयर-टेकर से पहले ही पता कर रखा था कि एक कमरा खाली है और उसे यह भी बता रखा था कि सवा चार बजे मेरी ट्रेन वडोदरा आ जायेगी। बेचारा केयर-टेकर सुबह चार बजे से ही जगा हुआ था। ट्रेन वडोदरा पौन घण्टा विलम्ब से पहुंची, केयर-टेकर मेरा इंतजार करते-करते सोता भी रहा और सोते-सोते इंतजार भी करता रहा। यह एक घण्टा उसके लिये बडा मुश्किल कटा होगा। नींद की चरम अवस्था होती है इस समय। लेकिन विमलेश जी की न

मुम्बई लोकल ट्रेन यात्रा

13 मार्च 2016 आज रविवार था। मुझे मुम्बई लोकल के अधिकतम स्टेशन बोर्डों के फोटो लेने थे। यह काम आसान तो नहीं है लेकिन रविवार को भीड अपेक्षाकृत कम होने के कारण सुविधा रहती है। सुबह चार बजे ही देहरादून एक्सप्रेस बान्द्रा टर्मिनस पहुंच गई। पहला फोटो बान्द्रा टर्मिनस के बोर्ड का ले लिया। यह स्टेशन मेन लाइन से थोडा हटकर है। कोई लोकल भी इस स्टेशन पर नहीं आती, ठीक लोकमान्य टर्मिनस की तरह। इस स्टेशन का फोटो लेने के बाद अब मेन लाइन का ही काम बच गया। नहा-धोकर एक किलोमीटर दूर मेन लाइन वाले बान्द्रा स्टेशन पहुंचा और विरार वाली लोकल पकड ली। साढे पांच बजे थे और अभी उजाला भी नहीं हुआ था। इसलिये डेढ घण्टा विरार में ही बैठे रहना पडा। सात बजे मोर्चा सम्भाल लिया और अन्धेरी तक जाने वाली एक धीमी लोकल पकड ली। मुम्बई में दो रेलवे जोन की लाइनें हैं- पश्चिम रेलवे और मध्य रेलवे। पश्चिम रेलवे की लाइन चर्चगेट से मुम्बई सेंट्रल होते हुए विरार तक जाती है। यही लाइन आगे सूरत, वडोदरा और अहमदाबाद भी जाती है। इसे वेस्टर्न लाइन भी कहते हैं। इसमें कोई ब्रांच लाइन नहीं है। समुद्र के साथ साथ है और कोई ब्रांच लाइन न होने के का

मियागाम करजन - डभोई - चांदोद - छोटा उदेपुर - वडोदरा

12 मार्च 2016 अगर मुझे चांदोद न जाना होता, तो मैं आराम से सात बजे के बाद उठता और 07:40 बजे डभोई जाने वाली ट्रेन पकडता। लेकिन चांदोद केवल एक ही ट्रेन जाती है और यह ट्रेन मियागाम से सुबह 06:20 बजे चल देती है। मुझे साढे पांच बजे उठना पडा। रनिंग रूम में बराबर वाले बेड पर इसी ट्रेन का एक ड्राइवर सो रहा था। दूसरा ड्राइवर और गार्ड दूसरे कमरे में थे। मियागाम के रनिंग रूम में केवल नैरोगेज के गार्ड-ड्राइवर ही विश्राम करते हैं। मेन लाइन के गार्ड-ड्राइवरों के लिये यहां का रनिंग रूम किसी काम का नहीं। या तो मेन लाइन की ट्रेनें यहां रुकती नहीं, और रुकती भी हैं तो एक-दो मिनट के लिये ही। 1855 में यानी भारत में पहली यात्री गाडी चलने के दो साल बाद बी.बी.एण्ड सी.आई. यानी बॉम्बे, बरोडा और सेण्ट्रल इण्डिया नामक रेलवे कम्पनी का गठन हुआ। इसने भरूच के दक्षिण में अंकलेश्वर से सूरत तक 1860 तक रेलवे लाइन बना दी। उधर 1861 में बरोडा स्टेशन बना और इधर 1862 में देश की और एशिया की भी पहली नैरोगेज लाइन मियागाम करजन से डभोई के बीच शुरू हो गई। यानी पहली ट्रेन चलने के 9 साल के अन्दर। इसका सारा श्रेय महाराजा बरोडा को जात