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डायरी के पन्ने- 28

ध्यान दें: डायरी के पन्ने यात्रा-वृत्तान्त नहीं हैं।

1. पता है कुछ ही दिन पहले तक इस पोस्ट का शीर्षक क्या था? इसका शीर्षक था- डायरी के पन्ने- आखिरी भाग। इसमें कुछ नहीं लिखा था, बस जो बचे-खुचे फोटो थे, मित्रों ने भेज रखे थे चर्चा के लिये, उन्हें ज्यों का त्यों लगा दिया था बिना किसी कैप्शन के, बिना किसी चर्चा के। फिर अब ख्याल आया कि महीने में दो बार डायरी के पन्ने छपते हैं, यानी सालभर में चौबीस पोस्ट ऐसे ही हो जाती हैं बिना किसी यात्रा के। अब तो फोटो-चर्चा भी शुरू कर रहा हूं।
असल में डायरी के पन्ने लिखने में समय बहुत कम लगता है और फोटो चर्चा में तो और भी कम। किसी यात्रा-वृत्तान्त के मुकाबले बहुत ही कम। और इन्हें पसन्द भी किया जाता है। यात्रा-वृत्तान्त में पहले यात्रा करो, फिर वापस आकर थकान उतारो और फिर लिखना शुरू करो। फोटो का चुनाव करो, उन्हें एडिट करो। डायरी में ऐसा कुछ नहीं है। पन्द्रह दिन में दो घण्टे लगते हैं और एक अच्छी-खासी डायरी तैयार। और फोटो चर्चा में? मित्र लोग फोटो भेज देते हैं। न उनका चुनाव करने का झंझट, न एडिटिंग का झंझट; बस फोटो अपलोड करके चार लाइनें लिख दो, किसी की वाहवाही कर दो, किसी में कमी निकाल दो, किसी को सुझाव दे दो और काम खत्म।
इसका नतीजा? लगातार इनकी मांग बढती जा रही है। फोटो-चर्चा जब शुरू की थी, तो अन्दाजा भी नहीं था कि इतना अच्छा नतीजा निकलेगा। लगातार फोटो आ रहे हैं। और सभी अच्छे ही फोटो हैं। सभी मित्र पहले अपने संग्रह में से अच्छे फोटो का चुनाव करते हैं, उनका साइज कम करते हैं और तब एक साथ भेज देते हैं। लेकिन एक मित्र ऐसा है जो इन बातों का ध्यान नहीं रखता। वो है सचिन जांगडा। वो मोबाइल से फोटो लेता है, मोबाइल से नेट चलाता है और लगातार भेजता ही रहता है। भले ही किसी फोटो का कोई मतलब हो या न हो। ऐसे भेजता है जैसे मैं उसका फोटो एलबम हूं। ... तो अब उसके भेजे फोटो पर ध्यान देना बन्द कर दिया है। हालांकि मेरी और सचिन की बहुत अच्छी बनती है। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि तुम अपने फोटो में से स्वयं चुनाव न करो, साइज कम न करो। मैंने अधिकतम 250 केबी तक के फोटो ही मांगे हैं, वो बिना सोचे-समझे एक-एक एमबी तक के फोटो भेज देता है।

2. थोडी सी व्यक्तिगत बात। मैंने सोच रखा था कि व्यक्तिगत बातें साझा नहीं करूंगा लेकिन अभी फिलहाल मन है एक बात बताने का। पिछले साल मैंने लिखा था कि एक लडकी है जिसे मैं पसन्द करता हूं, वो भी मुझे पसन्द करती है। अपनी बिरादरी की है, अच्छी पढी-लिखी है, रूप-रंग भी अच्छा है। दोनों के घरवाले इस बात को जानते हैं। अब इससे आगे की बात...
कहां से शुरू करूं समझ में नहीं आ रहा? हमारे घरवाले तो सहमत हैं इस बात से। उसके घरवालों का पता नहीं। इसकी टोह लेने के लिये मैंने उससे ही कहा। वह झिझक रही थी इस बारे में अपने घर पर बात करने में। मैंने फार्मूला दिया कि घर में थोडी हवा सी चला। इस तरीके से बात करना कि हवा चलने लगे, तूफान मत खडा कर देना। टोह लेनी है बस। खैर, उसने बात की अपने घर पर। पता चला कि उसके पिताजी तो कुछ-कुछ राजी हैं लेकिन उसकी माताजी राजी नहीं हैं। यह भी बात गौरतलब है कि उनका घर नारी-सत्ताधीन है। मेरे बारे में उनका परिवार अच्छी तरह जानता है। लेकिन वे नहीं चाहते कि उनकी लडकी की शादी एक आवारा और गैर-जिम्मेदार लडके से हो। मुझे यह भी सुनने में आया है कि वे चाहते हैं कि अगर मैं घुमक्कडी बन्द करके पूर्ण रूप से गृहस्थ धर्म का पालन करने की प्रतिज्ञा करूं तो वे इस बारे में शायद सोच सकते हैं।
मन में आया कि पिताजी को उनके यहां ‘आधिकारिक’ बातचीत करने के लिये भेजूं। लेकिन चूंकि वे राजी ही नहीं हैं, इसलिये भेजने से क्या होगा? हम बाप-बेटों में किसी भी बात का कोई पर्दा नहीं है। हम घर पर बैठकर अक्सर चर्चा करते कि क्या किया जाये। एक दिन पिताजी ने लडकी के पिता से फोन पर बात की। इसका नतीजा निकला कि उसके पिता अगले शनिचर को हमारे यहां आयेंगे। खैर, शुक्रवार को हम तीनों बाप-बेटों में गहन मंथन चला कि उनके लिये क्या बनाया जाये। इधर तो हमीं तय करने वाले हैं और हमीं बनाने-खाने वाले। मटर-पनीर बनाने की तय हो गई और हमेशा खाली रहने वाला फ्रिज उस दिन तरह तरह के फलों और अन्य आहार से कई महीनों बाद पूरा भरा नजर आया।
शनिचर को तीनों सूरज उगने से पहले ही उठ गये, नहीं तो ग्यारह बजे के बाद उठते हैं। झाडू लगे भी सप्ताह भर हो चुका था लेकिन उस दिन हमने न केवल झाडू लगाई बल्कि सर्फ-साबुन के साथ पोछा भी लगाया। इतनी साफ-सफाई हमने अपने यहां कभी नहीं देखी थी। अपने ही घर में चप्पल पहनकर भी चलने में झिझक हो रही थी कि कहीं से गन्दा न हो जाये। जो गन्दे कपडे थे, उन्हें छुपा दिया ताकि उन्हें कहीं भी गन्दगी न दिखे।
लेकिन दोपहर हो गई, वे नहीं आये और न ही उनका कोई सन्देश। आखिरकार दो बजे हमने ही पूछा। पता चला कि वे नहीं आ रहे। हम तीनों को उस समय बडा भीषण गुस्सा आया- अरे नहीं आना था तो कल बता देते। हम क्यों सुबह-सुबह उठते?
कुछ दिन बाद पिताजी ने फिर उन्हें फोन किया लेकिन उन्होंने उठाया नहीं। दिनभर कोशिश करते रहे, घण्टी बजती रही लेकिन उन्होंने न तो उठाया और न ही बाद में कॉल बैक की। हम तीनों झुंझला उठे। मैंने लडकी को फोन करके कहा कि अपने पिताजी से पूछ कि क्या इरादा है? अगर इरादा नहीं है तो मना कर दें, हम कहीं और बात करेंगे। उसने पूछा तो जवाब आया- अभी मना मत कर। इसके बाद फिर कुछ दिन और बीत गये। उधर से कोई सुगबुगाहट नहीं। हम रोज ही उधर फोन करते, वे नहीं उठाते। आखिरकार हमने उनके घर जाने का निश्चय कर लिया। वे तो पहल नहीं करेंगे, हमें ही कुछ करना पडेगा। और इसकी सूचना लडकी को दे दी। लडकी ने अपने घर पर बताया होगा तभी तो अगले ही दिन उन्होंने फोन उठा लिया और शनिचर को हमारे यहां आने को कहा।
इस बार वैसा उत्साह नहीं था। न हम सुबह-सवेरे सोकर उठे और न ही हमने साफ-सफाई की और न ही मटर-पनीर बनाने की सोची। साढे ग्यारह बजे उनका फोन आया कि वे शास्त्री पार्क मेट्रो स्टेशन पर पहुंच चुके हैं और पूछ रहे थे कि अब कैसे आना है? तुरन्त पिताजी ने हम दोनों को उठाया- ओये कुम्भकर्णों! वो आ रहा है, उठो। तुरत-फुरत में उठे, ढंग से हगना-मूतना भी नहीं हुआ था कि वे आ गये।
आलू-सोयाबीन की सब्जी बनाई। मैं सोयाबीन बनाते समय पहले कुछ देर गर्म पानी में भिगो देता हूं लेकिन उस दिन नहीं भिगोई। इससे ये कच्ची सी ही रहीं। फिर बेतरतीब पडा बिस्तर और गन्दे कपडे भी बता रहे थे कि घर में जनानी की सख्त आवश्यकता है। पता नहीं यह सन्देश उन्होंने समझा या नहीं।
खैर, फिर कई दिन बीत गये। हमने फोन किया, फिर से उठाना बन्द। हम फिर से क्रोधित हो गये। पिताजी ने मुझसे कहा कि उनका इरादा शादी करने का नहीं है; अगर लडकी भी राजी हो, तो तुम कोर्ट मैरिज कर लो। मैंने लडकी से पूछा, उसने कहा- काल करे सो आज कर। लेकिन कोर्ट मैरिज करने का सबसे बडा नुकसान है कि लडकी के परिजन और नाते-रिश्तेदार तुरन्त हमारे यहां चढ आयेंगे और हमारे हाड-गोड तोडकर रख देंगे। अभी हम सामाजिक तरीके से काम निकालना चाह रहे हैं तो वे बात तक नहीं कर रहे। फिर अगर ‘गैर-सामाजिक’ तरीका अपना लिया तो उन्हें घर की इज्जत याद आ जायेगी।
ये सब जोशी जी की करामात है- उमेश जोशी की। डेढ साल पहले वे हमारे यहां आये थे। उस समय मेरा दूर-दूर तक भी शादी का इरादा नहीं था। मैं सबसे शर्त लगाता था कि शादी नहीं करने वाला। जोशी जी आये। पण्डित आदमी हैं, बता दिया कि बेटा, तू तो टंगेगा जरूर। मैं भगवान से कहूंगा कि नीरज की शादी का इंतजाम करे। अब जबकि इंतजाम हो गया है, चूंकि भगवान का हाथ है इसमें तो शादी रुकेगी तो कतई नहीं, इतना विश्वास है। तो पण्डित जी, करो भाई फिर से भगवान से बात ताकि ये अडचनें भी जल्द से जल्द खत्म हों।

3. कुछ दिन पहले मनोज जी का फोन आया। उन्होंने कहा कि तुम्हारा ब्लॉग इतना अच्छा प्रदर्शन कर रहा है, इस पर विज्ञापन क्यों नहीं लगाते? उनका इशारा टाइम टेबल वाले ब्लॉग की तरफ था। मैंने कहा कि एक बार गूगल एडसेंस के लिये कोशिश की थी, तो उन्होंने मना कर दिया कि तुम्हारे ब्लॉग में पैराग्राफ होने चाहिये। बोले कि मेरे पास एडसेंस कोड है, मैं आपको भेज दूंगा, आप उसे लगा लेना। जो भी आमदनी होगी, बराबर-बराबर बांट लेंगे।
मेरी आंखें खुलीं। अब जब गूगल ने हिन्दी ब्लॉग के लिये विज्ञापन सुविधा देनी शुरू कर दी है तो क्यों किसी का कोड लगाऊं? अपना यह हिन्दी ब्लॉग कब काम आयेगा? तुरन्त एप्लाई कर दिया। पता नहीं गूगल वाले खाली ही बैठे थे क्या, हाथोंहाथ पास हो गया। कोड ब्लॉग पर लगाया, विज्ञापन दिखने लगा। प्रतिज्ञा कर रखी थी कि ब्लॉग पर कोई विज्ञापन नहीं लगाऊंगा, अब सब प्रतिज्ञायें हवा हो गईं। और यह प्रदर्शन भी बहुत अच्छा कर रहा है। पहले लग रहा था कि रोज पैसों में आमदनी होगी- दो पैसे, चार पैसे, दस पैसे। गूगल वाले आमदनी का चेक तब भेजते हैं जब हमारे खाते में सौ अमेरिकन डॉलर एकत्र हो जायें। लग रहा था कि इतनी रकम तो कई सालों में जुडेगी। लेकिन अब लग रहा है कि दो महीने में ही पहला चेक आ जायेगा।

4. ब्लॉग का टैम्पलेट बदल दिया। टैम्पलेट यानी थीम। पुराना टैम्पलेट छह साल पहले का है। जब से ब्लॉग बनाया, तब से कभी बदला ही नहीं। पुराना होने के कारण इसमें कई चीजें नहीं चलती थीं। टैम्पलेट बदलने के बाद सबसे पहला काम किया इसका आवरण पहले जैसा करना। बडी देर लगी। हालांकि काफी हद तक पहले जैसा कर तो दिया लेकिन इसे कभी भी पूरी तरह पहले जैसा नहीं किया जा सकता। अब यह धुला-धुला सा लग रहा है। कई मित्रों ने इसकी तारीफ भी की। लेकिन टैम्पलेट बदलने से ब्लॉग में आन्तरिक रूप से कई बदलाव भी होते हैं। मैंने सबकी सैटिंग अपने लैपटॉप में देखकर की। हो सकता है कि दूसरे लैपटॉप या कम्प्यूटर में यह कुछ और दिख रहा हो। हो सकता है कि फोटो साइडबार पर चढ गये हों। या कुछ और भी हो सकता है। इसीलिये मैंने टिप्पणी बक्से के पास सन्देश भी लिख दिया कि अगर ब्लॉग देखने में कोई समस्या आ रही हो तो सूचित करें। एक मित्र ने बताया कि ब्लॉग से नकारात्मक ऊर्जा निकल रही है। ये तो मुझे नहीं पता कि कौन सी चीज नकारात्मक प्रभाव पैदा कर रही है क्योंकि सबकुछ पहले जैसा ही रखने की कोशिश की है। तो मैं उन मित्र से पूछना चाहूंगा कि कौन सी चीज ऐसा प्रभाव पैदा कर रही है। कृपया बतायें, मैं उसे जरूर सुधारूंगा। पूरे ब्लॉग का चप्पा-चप्पा मैंने खुद अपने हाथों से डिजाइन किया है, एक एक रंग स्वयं लगाया है; इसलिये अब मैं उस नकारात्मक प्रभाव को नहीं पहचान पाऊंगा। आपको ही बताना पडेगा।

5. 12 जनवरी से 21 जनवरी तक मोटरसाइकिल से कच्छ यात्रा प्रस्तावित है। अभी जब मैं गूगल मैप पर अपनी यात्रा का पथ बना रहा था तो पता चला कि लगभग 3000 किलोमीटर बाइक चलानी होगी। अर्थात 300 किलोमीटर रोजाना का औसत। हालांकि सबकुछ ठीक रहा तो शुरू के दो दिनों में ही 800-900 किलोमीटर बाइक चल जायेगी तो आगे कच्छ में दूरी तय करने का दबाव कम हो जायेगा।
इससे पहले एक बार योजना बनी थी कि जामनगर तक ट्रेन से जाऊं और वहां से अपने सदाबहार मित्र उमेश जोशी के साथ बाइक से कच्छ भ्रमण करूं। बाद में जामनगर से ही वापस लौट आऊं। फिर ख्याल आया कि जामनगर तक अपनी बाइक को ट्रेन में ही ले जाऊंगा। और अब योजना है कि दिल्ली से ही बाइक से जाऊंगा। यात्रा का प्रस्तावित पथ नीचे लगा रखा है।
सोच रहा हूं कि स्लीपिंग बैग भी ले लूं। दिल्ली में इतनी ठण्ड है तो लगता है कि पूरे देश में इतनी ही ठण्ड होगी लेकिन कच्छ में रात को भी तापमान 20 डिग्री के आसपास ही रहता है तो स्लीपिंग बैग की आवश्यकता नहीं है। हां, अगर कोई और मित्र भी चलता है तो टैंट लिया जा सकता है। हिमालय में ट्रैकिंग कर रहे हों, तो अकेले कहीं भी टैंट लगा लो, लेकिन हिमालय से बाहर अकेले टैंट लगाने की हिम्मत नहीं होती।



6. एक पुस्तक पढी- वन लाइफ टू राइड- ए मोटरसाइकिल जर्नी टू द हाई हिमालयाज। अजित हरिसिंघानी द्वारा अंग्रेजी में लिखी यह पुस्तक प्रोमिला एण्ड कं पब्लिशर्स ने प्रकाशित की है। पेपरबैक का प्रिंट मूल्य 295 रुपये है, अमेजन से ऑनलाइन मंगाने पर 275 की पडी।
इसमें अजित साहब की पुणे से लद्दाख की मोटरसाइकिल यात्रा का विवरण है। लद्दाख जाने से पहले वे गोवा जाते हैं और लद्दाख जाने की हिम्मत जुटाते हैं। लेखन-शैली लाजवाब है। हालांकि अंग्रेजी के कठिन शब्दों का बहुत प्रयोग किया है लेकिन अगर आपके सामने मेरी तरह भी गूगल ट्रांसलेट खुला है तो कोई दिक्कत नहीं आयेगी।
लेकिन जैसे ही कीरतपुर से आगे बढते हैं, हिमाचल में प्रवेश करते हैं तो लेखन-शैली एकदम बदल जाती है। अब यह ‘मैंने यह खाया’, ‘यह पीया’, ‘यह किया’ वाली हो जाती है। इनके कुछ इंटरनेट के मित्र भी थे जो इन्हें दिल्ली में मिलने वाले थे और सभी साथ ही लद्दाख जाने वाले थे। अजित साहब कई दिन पहले ही दिल्ली आ गये लेकिन यहां की भयंकर गर्मी ने इनकी हालत खराब कर दी और ये कसोल चले गये। कुछ समय कसोल में रुके, कुछ समय मनाली में। आखिरकार एक दिन दिल्ली वाले भी सभी मित्र मनाली में इनके साथ हो लेते हैं। मनाली से निकलते की इनकी एनफील्ड में कोई ऐसी समस्या आ जाती है कि इन्हें मनाली लौटने का फैसला करना पडा। लेकिन साथियों ने वहीं मोटरसाइकिल ठीक कर दी। अब ठीक क्या कर दी, ये तो हवा हो गये। कोकसर में खाना खाकर ‘दारचा में मिलेंगे’ ऐसा कहकर ये आगे बढ गये और शाम तक दारचा पहुंच गये। इन्हें कुछ नहीं पता कि इनके वे मित्र कहां है जिनके बल पर ये लद्दाख आये थे?
सुबह हो गई। कोई भी मित्र दारचा नहीं पहुंचा। इन्हें फिर भी होश नहीं आया कि मित्रों की भी खबर लेनी चाहिये। बल्कि ये होटल वाले के यहां मित्रों के लिये सन्देश छोड गये कि आज की रात पांग रुकना है। उस दिन शाम तक ये पांग पहुंचे। मित्र तो अब तक इनकी याददाश्त से गायब ही हो चुके थे। इसके बाद ये लेह भी गये, नुब्रा भी गये, लेकिन मित्रों का कोई जिक्र नहीं आया। एक बार जिक्र आया जब ये द्रास में थे। वे मित्र भी देर रात द्रास पहुंचे थे और स्थानाभाव के कारण सभी एक ही कमरे में रुके थे। सुबह फिर सब अलग हो गये।
अगर आप अकेले ही निकले हैं तो रास्ते में कौन मिला, कितनी देर तक साथ रहा, कब अलग हो गया; इसकी कोई फिक्र नहीं होती। लेकिन अगर पहले से ही तय करके चले हैं कि हम इतने मित्र साथ जायेंगे तो आपको हमेशा सभी के साथ रहना पडेगा। अगर अलग ही होना पडे तो तरीका यही है कि बाकायदा सबसे अलविदा कहें, गुडबाय कहें। एक बात और, अगर आप पुस्तक लिख रहे हैं तो आपको तथ्यों का ध्यान रखना होगा। गलत तथ्य पुस्तक में नहीं आने चाहिये। जब ये दारचा में थे तो लिखा कि यहां होटल का मालिक एक तिब्बती परिवार था। ऐसा ही इन्होंने पांग में भी लिखा और आगे भी। जबकि ऐसा नहीं है। लाहौली और लद्दाखी तिब्बतियों जैसे ही दिखते हैं लेकिन ये तिब्बती नहीं होते। सरचू से पहले लाहौली मिलते हैं और उसके बाद लद्दाखी। नेपाली दोनों तरफ मिलते हैं। और आगे बढते हैं। लेह में तो सिन्धु नदी है ही, इन्होंने लामायुरू में भी सिन्धु ही लिखा, मुलबेक में भी, कारगिल में भी, द्रास में भी और सोनमर्ग में भी। यानी इनके अनुसार लेह से श्रीनगर का पूरा रास्ता ‘इण्डस’ यानी सिन्धु के साथ साथ ही चलता है। जबकि ऐसा नहीं है। 434 किलोमीटर के इस रास्ते में लेह से लगभग 60-70 किलोमीटर दूर खालसी में आप सिन्धु को पार करते हैं और हमेशा के लिये उसे छोड देते हैं। फिर आपको कहीं भी सिन्धु नहीं मिलती। हां, जोजी-ला से सिन्ध नदी शुरू होती है जो श्रीनगर तक साथ ही रहती है। जानकारी के अभाव में बहुत से लोग इस सिन्ध को सिन्धु मान बैठते हैं।

7. रेलवे ने एक नया एप्लीकेशन लांच किया- मोबाइल से अनारक्षित टिकट बुक करना। लेकिन यह सुविधा अभी केवल मुम्बई और चेन्नई उपनगरीय यात्रियों के लिये ही है। मैंने इसके बारे में पढा तो देखा कि पांच रुपये का साधारण टिकट लेने की प्रक्रिया बडी उलझाऊ है। यह केवल मोबाइल से ही होगा, कम्प्यूटर से आप ऐसा नहीं कर सकते। इसके बावजूद भी आपको टिकट का प्रिंट लेना पडेगा जो स्टेशनों पर लगी ऑटोमेटिक टिकट वेंडिंग मशीनों से प्राप्त किया जायेगा। पहले मोबाइल में अपना सिर खपाओ, फिर मशीन के पास जाकर टिकट का प्रिंट निकालो। जबकि अगर मशीन ठीक काम कर रही है तो उससे भी कम समय में बिना मोबाइल से बुक किये भी टिकट लिया जाता रहा है।
मुझे इसकी बहुत दिनों से प्रतीक्षा थी। हालांकि अभी यह देश के बेहद छोटे से इलाके में ही लागू है और प्रक्रिया भी जटिल है लेकिन यह एक शुरूआत है। उम्मीद है कि जल्द ही ऐसा पूरे देश में होने वाला है। लेकिन मैं चाहता हूं कि इसे बहुत आसान बना दिया जाये। इतना आसान कि कोई भी आसानी से टिकट प्राप्त कर सकें। आरक्षित टिकटों की तरह एसएमएस से ही काम चल जाये। अभी बहुत से लोग साधारण टिकट इसलिये नहीं लेते कि वे लम्बी-लम्बी लाइनों में खडा नहीं होना चाहते। रेलवे अपने यात्रियों को यात्रा करने के लिये करोडों की सब्सिडी देती है। इस तरह की ऑनलाइन अनारक्षित टिकटिंग में अगर कुछ यात्री थोडी बहुत हेरा-फेरी करके रेलवे को मामूली सा चूना लगा भी देंगे तो भी रेलवे का कोई नुकसान नहीं है।


डायरी के पन्ने-27 | फोटोग्राफी चर्चा-1




Comments

  1. नीरज भाई मानो या ना मानो शादी के बाद घुमक्कड़ी पूर्णरूप से बंद नही तो कुछ कम अवश्य हो जाएगी.!
    ये बात तो लड़की के पिताजी को समझनी चाहिए कि जब सर पे जिम्मेदारी आएगी तो लड़का सुधर भी जायेगा.!
    प्रयास जारी रखो भाई..

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    1. देखेंगे कितनी घुमक्कडी कम होगी। खैर, धन्यवाद आपका।

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    2. aapki ghumakkari band nahi hogi,shart laga sakta hoon..umeed karta hoon jinhone apko samjha hai apke ghumakkari ko bhi samjha hoga..main ye yakeenan bata sakta hoon apki ghumkaari ke bare me...sare ghumakkar ek hi parivar ke hote hai,byaktigat anubhav se bata rahaa hoon.. :-)

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  2. हिन्दू परिवार में मेहमान के लिये क्या बनाया जाये एक बहुत बडा प्रोजैक्ट है... खूब माथा-पच्ची करने के बाद सुंई हमेशा मटर-पनीर पर आकर टिक जाती है...

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  3. Neeraj, Flipkart/Amazon Affiliate Marketing ke baare me padho. Jab adsense laga hi liya hai to Affiiliate bhi laga hi lo.

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    1. पता करता हूं भाई इसके बारे में।

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  4. bhai aap ki saadhi ka laadu ham bhi khayege aur aap bhi ek kitab likh dalo

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  5. Thank you neeraj ji..aapne mere sujhao pe dhyaan diya...its about colors of your blog..You have chosen dark theam..one is dark background..gray..its just my personal opinion.. you should change the background color..ye hi ek negative effects generate ker raha hai..ek baar koi or dark shade try karo..and second point is heading ke liye aapne jo color use kiya hai..bright red..jo ki bahut loud hai..aankho ko chubhta hai..ye gray or red ka combination sahi nahi hai.. again i would like to state ki..its just my personal opinion.

    aapka mitra.

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    1. हे भगवान! फिर से माथापच्ची करनी पडेगी। यही रंग-संयोजन तो पहले भी था। खैर, देखता हूं।

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    2. कुछ परिवर्तन किया है। अब समझ नहीं आता कि और क्या परिवर्तन करूं क्योंकि पिछले छह सालों से यहीं रंग-संयोजन था। फिर भी, अभी भी अगर कोई समस्या है तो अवश्य सूचित करें। अगर यह भी बता सकें कि फलां रंग के स्थान पर फलां रंग प्रयुक्त करो, तो और अच्छा लगेगा। धन्यवाद आपका।

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    3. background mai koi light shade...jaise light blue..waise bhi blue brings positive ..or headings ke liye..go for traditional colors..maybe coral green..ek baar try karo...just suggestion.

      aapka mitra.

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    4. अब देखना। वैसे मुझे भी थोडा सा संशय है कि आप किस बैकग्राउंड की बात कर रहे हैं? ब्लॉग बैकग्राउंड की या सबसे ऊपर हैडर बैकग्राउंड की? मुझे लग रहा है कि आप हैडर बैकग्राउंड की ही बात कर रहे हैं। तो हैडर बैकग्राउंड को हल्का नीला कर दिया है और ‘मुसाफिर हूं यारों’ को गहरा हरा। हल्के नीले के ऊपर कोरल ग्रीन अच्छा नहीं लग रहा था।

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    5. ab ek dum theek hai....infect achanak se sari negativity ab posetivity mai convert ho gayi..ye sara colors ka hi khel tha....

      aapka mitra.

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  6. डायरी के पन्ने लिखना जारी रखे। आप के यात्रा-वृत्तान्त लेख पाठको को सही मार्ग दर्शन कराते हुए आगे बढ़ जाते है जब की डायरी के पन्ने आप के पाठको को आमने सामने चर्चा करते हुए दिल मे बैठ जाते है॥ यह डायरी भी बहुत कुछ सोचने के लिए मजबूर करती है।

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  7. kya kamaal likhate ho yaar ......tussi chhaa gaye.
    'thodi si hawaa chalana tufaan mat khada karna.'
    'beta tu tangega jarur'....
    ha ha ha very nice
    neeraj bhai dulhan wo lana. jo aapke
    bhawnao ko samajh sake ki ghummakari aapke khoon me shamil ho chuki hai aur aap nirudeshya nahi ghumte ho.balki ab duniya ke itne saare log aapse jud chuke hai .jinke liye har 2-3 din me aapke agle blog ka intejaar subah ke paper ke samaan karte hai.yadi ye khurak naa mile to khanaa neeche nai utarata......
    hum paathako ke to aap 'BHARAT KE "INDIANA JONES" BAN CHUKE HO
    GHUMMAKARI ZINDABAAD

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  8. ईब अाया ऊँट पहाड़ के नीचे 👇।😆

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  9. फोटो का ध्यान रखा जाता है।खींचते समय भी ओर भेजते समय भी।
    फोटो का साइज 500 से 700 kb तक का होता है।
    जो फोटो में भेजता हु उसका कोई ना कोई मतलब होता है।मेरे अनुसार अगर किसी को समझ में नहीं अाता तो it's not my fault.
    चलो अागे से सब धयान मे रखा जाएगा।

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    1. सचिन भाई, जो मुझे आपके फोटो से शिकायत थीं, उन्हें आपको बता दिया था जब आप घर आये थे। उम्मीद है कि अब आप उसी के अनुसार फोटो भेजेंगे। धन्यवाद आपका।

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    2. ठीक है नीरज भाई।

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  10. हमें तो उम्मीद ही नहीं पूरा विश्वास है कि शादी के बाद दो दो लोगों के यात्रा वृत्तांत पढ़ने को मिलेंगे....

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    1. दो लोगों के यात्रा-वृत्तान्त तो मुश्किल हैं लेकिन एक ही यात्रा-वृत्तान्त में दो लोग अब आया करेंगे।

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  11. ब्लॉग की थीम बैकग्राउंड हमेशा सफ़ेद होनी चाहिए एक कोरे कैनवास जैसी
    फिर बाद में भले ही इसे रंगों से भर दें
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    बेशक एक पेज पर तीन एड यूनिट हैं ऐडसेंस की लेकिन कोई भी ऑप्टीमाइज़्ड नहीं
    और ...ना ही लिंक एड हैं और ना ही सर्च आप्शन
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    ऊँट को भी तो पहाड़ के नजारे देखने चाहिए
    कब तक रेगिस्तान में टहलता रहेगा

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    1. पाबला जी, मुझे ऑप्टीमाइज्ड, लिंक एड और सर्च ऑप्शन की कोई जानकारी नहीं है। जानकारी होगी तो उन्हें भी लगा दूंगा।

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  12. नीरज भाई आज कोई टिप्पणी नही करूगाँ...

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  13. I've been following this blog for many years now, and have read & really enjoyed all your posts till date.
    Regarding the background color, I would say, this color is much better than the earlier black background.

    Keep up the good work brother, and thanks for all these wonderful posts.
    Thank you.

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    1. earlier black background???? काली बैकग्राउंड कब थी? मुझे तो याद नहीं आता।

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    2. Could be a browser issue, it looked black on Firefox 34.0.2 and earlier versions.
      Anyway, this color combination looks very good.

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  14. ब्लॉक ठीक है फिर भी परेशानी है जहां पहले पूरा पेँज और फोटु दिखाई देते थे ,वहां अब टुकड़ो में सब दिख रहा है वो अच्छा नहीं लग रहा और चारो और विज्ञापनों ने रास्ता जाम कर दिया है बहुत परायापन लग रहा है.… शादी इसी साल होनी है तो कर ले ,पर अब हनीमून के लिए कहा जायेगा क्योकि तेरा तो सारा देश देखा हुआ है ....और कवर पेज यदि सफ़ेद रहे तो ज्यादा अच्छा लगता है। .. क्योकि नीला रंग शनिदेव का है देखना कही शनि पीछे न पड़ जाये हा हा हा हा हा

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    1. टुकडे कहां से दिख गये आपको?
      विज्ञापनों से कमाई हो रही है। बहुत दिन फ्री में प्रसाद बंट गया, आदत खराब हो गई है, जाती जाती ही जायेगी।
      और ये नीला रंग कब से शनिदेव का हो गया? काला तो मैंने भी सुना है।

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  15. घर में जनानी की सख्त आवश्यकता है। पता नहीं यह सन्देश उन्होंने समझा या नहीं।
    इस गंभीर बात पर खूब हंसी आई
    आपकी व्यक्तिगत बातें बहुत रोचक लगती हैं शायद सभी को, मानव स्वभाव ऐसा ही होता है दूसरों की घरेलू बातों में ज्यादा रुचि लेता है
    ब्लॉगपेज का बैकग्राऊंड ज्यादा हल्के रंग में या सफेद हो जाये तो हम पर आभार होगा
    हैडर जहां टाइटल है वहां कोई तस्वीर लगा लो तो चार चांद लग जायेंगे
    जै राम जी की

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    1. धन्यवाद अमित भाई.... अब मैं कोई बैकग्राउंड नहीं बदल रहा। आपको यह भी अच्छा ही लग रहा होगा। सफेद बैकग्राउंड मैंने की थी अभी कल-परसों ही लेकिन मुझे अच्छी नहीं लगी। तुरन्त बदल दी। हैडर में फोटो लगाना अच्छा है लेकिन अब चूंकि वहां विज्ञापन लगा हुआ है तो फोटो लगाने से विज्ञापन की महिमा घट जायेगी।

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  16. नीरज भाई ,नमस्कार नए साल की हार्दिक शुभकामनाए ,आपकी कई पोस्ट पर टिपण्णी नही कर पाया माफी चहाता हू। कुछ कार्यो मे फसा था। खैर ब्लॉग का टैम्पलेट बहुत अच्छा है ,सफ़ेद बैकग्राउंड पर काले फ़ॉन्ट बिलकुल सही दिखाई देते है ,लोग तो कुछ ना कुछ कहेगे ही -आखिर परिवर्तन प्रकृति का नियम है और परिवर्तन जल्दी हज़म नही होता।
    खुशी हुई ये जानकर की ब्लॉग कमाई कर रहा है ,आखिर अगर कुछ कमाई हो तो बुरा क्या है। विज्ञापन लगाने का निर्णय सही है।
    अब कुछ बात शादी की ,वैसे तो शादी दो परिवारो का आपसी निर्णय है लेकिन जहाँ तक हो सके इसका तरीका सामाजिक ही हो तो बहुत अच्छा है। अगर नही तो फिर दूसरा तरीका अपनाना ,जल्द बाजी मत करना ,वैसे आप खुद समझदार है।
    डायरी के पन्ने बंद मत करना इनसे ही तो आपके दिल की बात पता चलती है।

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    1. हां, कोर्ट मैरिज कर ले। कहते ही हो जाती है कोर्ट मैरिज??

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  18. Aap hamesha prakriti ke rango ko khojte khojte yayawar bane firte hain Bhai sahab to court marriage karne se kya aap ke life ke canvass ke panney par shaadi rupi (baarat) rang black & white reh jayega....................... shaadi hogi dhum dham se hogi pura merut dekhega............... lage raho neeraj bhai

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    1. शादी धूम-धाम से... पता है कितना खर्चा होता है धूमधाम में?? आप तो खा-पीकर चले जाओगे, कर्जे के तले मुझे दबना पडेगा।

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    2. Dont worry neeraj bhai 2016 ke pay commission se sab karje se mukti mil jayegi........................ lage raho neeraj bhai

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  19. डायरी के पन्ने लिखना जारी रखे नए साल की हार्दिक शुभकामनाए !!

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  20. नीरज भाई।,
    एक बात समझ लीजिये, आप जैसे समझदार आदमी के पास जीवन में अपने फैसले लेने का पूर्ण अधिकार है ,
    लेकिन जो स्वतंत्रता अभी आपको है , वह शादी के बाद काफी हद तक काम हो जाएगी, जिम्मेदारियों के कारन। हाँ यदि पत्नी आपकी ही तरह सुलझे विचारों की हुई तो कुछ काम बंधन होगा।

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  21. डायरी रोचक और ज्ञानवर्द्धक है। जहाँ तक आपकी निजी जिन्दगी की बात है, रिश्ते समाज का हिस्सा होते हैं। थोङा धैर्य रखें। जब डॉलर के चेक
    आने लगेंगे तो सब कुछ सामान्य हो जायेगा। जल्दबाजी ना करें।

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46 रेलवे स्टेशन हैं दिल्ली में

एक बार मैं गोरखपुर से लखनऊ जा रहा था। ट्रेन थी वैशाली एक्सप्रेस, जनरल डिब्बा। जाहिर है कि ज्यादातर यात्री बिहारी ही थे। उतनी भीड नहीं थी, जितनी अक्सर होती है। मैं ऊपर वाली बर्थ पर बैठ गया। नीचे कुछ यात्री बैठे थे जो दिल्ली जा रहे थे। ये लोग मजदूर थे और दिल्ली एयरपोर्ट के आसपास काम करते थे। इनके साथ कुछ ऐसे भी थे, जो दिल्ली जाकर मजदूर कम्पनी में नये नये भर्ती होने वाले थे। तभी एक ने पूछा कि दिल्ली में कितने रेलवे स्टेशन हैं। दूसरे ने कहा कि एक। तीसरा बोला कि नहीं, तीन हैं, नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली और निजामुद्दीन। तभी चौथे की आवाज आई कि सराय रोहिल्ला भी तो है। यह बात करीब चार साढे चार साल पुरानी है, उस समय आनन्द विहार की पहचान नहीं थी। आनन्द विहार टर्मिनल तो बाद में बना। उनकी गिनती किसी तरह पांच तक पहुंच गई। इस गिनती को मैं आगे बढा सकता था लेकिन आदतन चुप रहा।

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