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डायरी के पन्ने- 26

ध्यान दें: डायरी के पन्ने यात्रा-वृत्तान्त नहीं हैं। इनसे आपकी धार्मिक और सामाजिक भावनाएं आहत हो सकती हैं। कृपया अपने विवेक से पढें।

1. आज की शुरूआत करते हैं जितेन्द्र सिंह से। शिमला में रहते हैं। पता नहीं फेसबुक पर हम कब मित्र बन गये। एक दिन अचानक उनके एक फोटो पर निगाह पडी। बडा ही जानदार फोटो था। फिर तो और भी फोटो देखे। एक वेबसाइट भी है। हालांकि हमारी कभी बात नहीं हुई, कभी चैट भी नहीं हुई। फोटो डीएसएलआर से ही खींचे गये हैं, बाद में कुछ एडिटिंग भी हुई है। चाहता हूं कि आप भी अपनी फोटोग्राफी निखारने के लिये उनके फोटो देखें और उनके जैसा कैप्चर करने की कोशिश करें।
इसी तरह एक और फोटोग्राफर हैं तरुण सुहाग। दिल्ली में ही रहते हैं और ज्यादातर वाइल्डलाइफ फोटोग्राफी करते हैं खासकर बर्ड्स फोटोग्राफी।


2. आजकल अरकू-बस्तर यात्रा का प्रकाशन चल रहा है। उसमें एक प्रसंग चल पडा- कटहल का। मैंने हालांकि कभी मीट नहीं खाया है लेकिन बताते हैं कि कटहल की सब्जी मीट जैसी लगती है। और इसी वजह से बहुत से लोग कटहल नहीं खाते। पिछले दिनों कहीं पढा था कि सोयाबीन भी इसीलिये नहीं खानी चाहिये कि यह मीट जैसी लगती है। वहां तो सोयाबीन की और भी बहुत सारी कमियां लिखी थीं।
तो अगर किसी शाक का स्वाद मांस जैसा है तो क्या उसे नहीं खाना चाहिये? और अगर मांस को आलू के स्वाद जैसा पका दिया जाये तो क्या उसे खा लेना चाहिये? कोई मुश्किल नहीं है। शुद्ध शाकाहारी के सामने अगर खूबसूरती से मांस बनाकर रख दिया जाये तो वह बिल्कुल फर्क पता नहीं कर सकेगा।
अपनी ऐसी अवधारणाओं को त्यागिये। अगर आप शाकाहारी हैं और आप किसी सब्जी को इसलिये नहीं खाते कि उसका स्वाद मांस जैसा है तो इस आदत को बदलिये। प्रत्येक सब्जी का आनन्द लीजिये।

3. संगीता पुरी जी जमशेदपुर में रहती हैं और एक ज्योतिषी हैं- गत्यात्मक ज्योतिषी। मैं गत्यात्मक ज्योतिष के बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानता इसलिये इसके बारे में कोई विशेष टिप्पणी नहीं करूंगा। जिस तरह हम सभी जानते हैं कि पृथ्वी का वातावरण सूर्य व चन्द्रमा से प्रत्यक्ष प्रभावित होता है, उसी तरह अन्य दूसरे ग्रहों से भी प्रभावित होता है। गत्यात्मक ज्योतिष में इसी चीज का अध्ययन किया जाता है और भविष्य में घटने वाली घटनाओं का आकलन किया जाता है। इसी तरह का एक आकलन संगीता जी ने किया और बताया कि सूर्य जब धनु राशि में होता है तो सर्वाधिक ठण्ड पडती है। यह ठण्ड कितनी होगी, दूसरे ग्रहों का भी इसमें कुछ योगदान होता है। गौरतलब है कि दिसम्बर शुरू हो चुका है और अभी भी उतनी ठण्ड नहीं है जितनी अमूमन होनी चाहिये।
लेकिन मेरी एक जिज्ञासा और भी है। सूर्य अगर धनु राशि में प्रवेश कर गया तो यह घटना पूरी पृथ्वी के लिये होती है या सिर्फ छोटे से भू-खण्ड के लिये? मान लो उत्तर भारत में सूर्य धनु राशि में है, तो क्या दक्षिण भारत में किसी और राशि में होगा? क्योंकि दक्षिण में सर्दी बिल्कुल नहीं पडती। फिर दक्षिणी गोलार्ध में जायें जैसे कि आस्ट्रेलिया-न्यूजीलैण्ड आदि में, तो वहां तो लू चलती है जनवरी-फरवरी में। खैर, होता होगा कुछ।
दैनिक भास्कर में रविवार को साप्ताहिक भविष्यफल लिखा होता है। इसका संगीता जी के गत्यात्मक ज्योतिष से कुछ भी सम्बन्ध नहीं है। तो मैं देख लेता हूं अपनी राशि का भविष्यफल भी। और ताज्जुब की बात ये है कि इसमें लिखी चार लाइनें ज्यादातर सही होती हैं। जैसे कि पिछले रविवार को वृश्चिक राशि का भविष्यफल था कि इस सप्ताह प्रेमी या प्रेमिका से तकरार होगी और हाथ में चोट लग सकती है। दोनों ही बातें बिल्कुल सही निकलीं। तकरार तो हुई, यह तो होती रहती है। लेकिन हाथ भी चोटिल हुआ। मोटरसाइकिल लेकर गया था नीलकण्ठ और एक जगह सन्तुलन बिगडा और कलाई में कुछ हो गया। यह अभी भी कई दिन बीतने के बाद भी ज्यों का त्यों है। एक विशेष दशा में मोडने पर असह्य दर्द होता है और बायें हाथ से कुछ उठाया भी नहीं जाता। पता नहीं सभी वृश्चिक राशि वालों के हाथ चोटिल हुए या सिर्फ मैं ही निशाना बना।

4. तरुण भाई ने एक पोस्ट में लिखा कि जंजैहली और बंजार के बीच सीधी सडक है। हिमाचल में जंजैहली और बंजार दो अलग-अलग नदी घाटियों में स्थित है और मेरी जानकारी के अनुसार अभी तक इनके बीच कोई सीधा सडक मार्ग नहीं था। तरुण भाई भी ऐसा ही मानते थे। गूगल मैप में भी कोई सडक नहीं दिख रही थी। अब जब तरुण भाई उधर हो आये तो उन्हें पता चल गया कि सडक है। दूसरी घटना, मैं अभी हाल ही में उत्तराखण्ड में लाखामण्डल गया और वहां से चकराता। लाखामण्डल से चकराता के लिये सीधी सडक है जो करीब 60 किलोमीटर की है। लेकिन गूगल मैप पर यह सडक कई जगह पर कटी हुई थी। जिसने भी इसे अपडेट किया होगा, उसने इसे अच्छी तरह जोडा नहीं। जब गूगल मैप में लाखामण्डल और चकराता की दूरी देखने लगा तो यह एक लम्बा चक्कर लगाकर दिखाता था जो 150 किलोमीटर से भी ज्यादा लम्बा होता था। अब जब लाखामण्डल से चलना शुरू किया तो पता चला कि चकराता जाने के लिये यहीं से दो सडकें हैं जो आगे 15-20 किलोमीटर के बाद एक हो जाती हैं। गूगल मैप में दूसरी सडक नहीं दिखाई गई थी।
वापस लौटकर गूगल मैप पर लाखामण्डल को चकराता से अच्छी तरह जोडा। वो दूसरी सडक भी बनाई। तरुण भाई द्वारा बताई जंजैहली-बंजार सडक इसलिये अपडेट नहीं की कि वो इलाका पूरी तरह घोर जंगल वाला है। सैटेलाइट से जंगल के बीच पतली सी सडक अच्छी तरह नहीं दिखती। मैं जो भी अपडेट करता, वो गलत ही होता। गलत अपडेट करने से अच्छा है, अपडेट करो ही मत। कभी मैं उस सडक पर यात्रा करूंगा, तब जीपीएस की सहायता से सटीक सडक को अपडेट कर दूंगा।
गलत अपडेट का एक उदाहरण देता हूं। पिछले दिनों किसी ने पराशर झील जाने के लिये गूगल मैप पर लारजी की तरफ से एक सडक बना दी। जबकि वास्तव में उधर कोई सडक नहीं है। फिर पराशर झील ठहरी बडी प्रसिद्ध जगह। वहां जाने के इच्छुक लोग जब गूगल मैप में रास्ता तलाशते तो उन्हें लारजी वाली सडक दिखती। वर्तमान कटौला वाली सडक लम्बा चक्कर काटकर जाती है और लारजी वाली छोटी पडती है तो गूगल मैप उन्हें लारजी के रास्ते जाने की ही सलाह देता। बेचारे को क्या पता कि उधर सडक ही नहीं है।
मेरे पास भी एक-दो फोन आये, इण्डियामाइक पर भी पढने को मिला कि इस गलत सडक की वजह से बडी अफरातफरी मची पडी है। और आखिरकार मैंने इस सडक को हटा दिया और पगडण्डी का दर्जा दे दिया। अब अगर आप मण्डी से पराशर का रास्ता तलाशोगे तो गूगल मैप कटौला वाला रास्ता ही सुझायेगा, लारजी वाला नहीं। हां, अगर आप पैदल जाना चाहते हैं तो यह लारजी वाला रास्ता सुझायेगा।
अगर आप भी गूगल मैप को अपडेट करते हैं तो गुजारिश है कि कभी भी अन्दाजे से कोई जानकारी मत डालिये। गूगल मैप बहुत ही भरोसेमन्द और आवश्यक चीज है। हम कहीं भी जाते हैं तो जाने से पहले गूगल मैप जरूर खंगालते हैं। कृपया इसकी विश्वसनीयता बनाये रखें।

5. पिछली बार फोटो भेजने को कहा था। केवल अजय सिंह ने कुछ फोटो भेजे। मैं कोई फोटोग्राफी का तकनीकी विशेषज्ञ नहीं हूं। केवल कुछ फोटो पर चर्चा ही करूंगा और यह बताऊंगा कि अगर मैं होता तो उस दृश्य को कैसे फिल्माता। आगे बढने से पहले एक बात और कि हम फोटो इसलिये खींचते हैं कि इसे दूसरों को दिखा सकें। तो कोशिश ऐसी करनी चाहिये कि फोटो दिखाते समय किसी भी तरह के कैप्शन की जरुरत न पडे। फोटो ही सबकुछ कह दे। हमें कुछ भी न कहना पडे। और हां, हो सकता है कि चर्चा में कुछ बातें बुरी भी लग सकती हैं, इसलिये पहले ही क्षमा मांगता हूं।

वही बात जो अभी अभी कही है कि इसमें आप क्या दिखाना चाहते हैं? पानी टपक रहा है, कोई गुफा जैसी बनी हुई है। लेकिन सोचिये कि क्या बिना बताये कोई समझ सकेगा कि यह क्या है? ऐसा लग रहा है कि आप बस जल्दी में थे कि फोटो लो और भाग चलो। तभी तो कई टहनियां भी बीच में आ गई हैं। आपको चाहिये था कि पहले समझते कि क्या खींचना है। फिर ऐसी जगह तलाशते जहां से आपका मनपसन्द चित्र आ सकता था। बिल्कुल सामने से खींचने के बजाय आप दाहिने या बायें भी जा सकते थे। 

यह सोनमर्ग के पास थाजीवास ग्लेशियर है। फोटो अच्छा है लेकिन अगर आप इसके सामने फैले हरे-भरे मैदान को भी थोडा बहुत इसमें शामिल कर लेते तो यह और भी अच्छा बनता। हालांकि उस मैदान का बहुत थोडा सा हिस्सा आपने इसमें शामिल किया है लेकिन वह हरा-भरा न दिखकर लगभग काला दिख रहा है।

इस फोटो के बारे में तो आपको बताना ही पडेगा कि यह क्या है। अन्यथा सारा ध्यान ॐ ही खींचकर ले जायेगा। अमरनाथ यात्रा के भण्डारे का यह फोटो है। यह पता नहीं चल रहा कि यह बडा कडाह है या तवा है। तवा ही ज्यादा समझ में आ रहा है। अब यह तवे पर क्या है? ॐ की बाउण्ड्री पर बादाम रखे हैं जिससे यह खीर लग रही है। लेकिन खीर क्या तवे पर बनाई जाती है? 

यह किसी महल में छत से लटकी बडी सी झालर लग रही है। झालर को आपको फोटो के केन्द्र में लेना था। आपको इसके बिल्कुल नीचे खडे होना था। ज्यामिति का ध्यान रखना था। इससे छत का जो वृत्ताकर भाग है, वह भी बखूबी दिखता।

सही बताऊं तो यह फोटो झाड-झंगाड ही ज्यादा लग रहा है। आप जिस स्थान पर खडे हैं वहां ऊंची चट्टानें हैं, उनके नीचे ये रंग बिरंगे फूल हैं। पता नहीं आपने कैमरा ऊपर उठाकर ऊंची चट्टानों का फोटो लिया है या फूलों का या दोनों का लेकिन वास्तव में असफल हो गये। न चट्टान का कहीं पता चल रहा और न ही फूलों की खूबसूरती दिख रही। 

यह एक प्रभावशाली फोटो है। आपने अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोडी। जो भी कमी लग रही है, वो कैमरे की कमी है। निश्चित ही एक शानदार फोटो है।

डलझील और उसमें तैरता शिकारा। शंकराचार्य पहाडी का प्रतिबिम्ब अच्छा है लेकिन बीच में शिकारे की नोक आ गई है जो नहीं आनी चाहिये थी। प्रतिबिम्ब वाले फोटो में साम्यता का बडा ध्यान रखना होता है। पहली साम्यता कि वास्तविक दृश्य और प्रतिबिम्ब के बीच में जो विभाजक रेखा है वह बिल्कुल क्षैतिज होनी चाहिये। क्षैतिज रेखा तो दिखती है लेकिन एक काल्पनिक ऊर्ध्वाधर रेखा भी होती है जो आपको माननी पडती है। उसके बायें और दाहिने भी सन्तुलन होना चाहिये। इस फोटो में वो सन्तुलन नहीं है। जैसे कि बायीं तरफ आपने शंकराचार्य पहाडी का थोडा सा हिस्सा काट दिया जबकि दाहिनी ओर आप बहुत आगे तक चले गये और होटल की बहुमंजिली इमारत व उससे भी दाहिने एक लाइट दिखा रहे हैं। यह नहीं होना चाहिये था। उतने हिस्से को क्रोप किया जाना चाहिये था।

इस फोटो में नीचे झण्डा व कुछ तार हैं जबकि ऊपर दाहिने कोने में भी एक तार है जो बिल्कुल अवांछित है। आप अपने खडे होने की जगह बदलकर इन्हें हटा सकते थे।

यह शानदार फोटो है। हरी ब्लर पृष्ठभूमि में लाल व पीला फूल निश्चित ही शानदार है। लेकिन इसमें जो सबसे नीचे लाल डंडी वाली हरी पत्ती है जो थोडी सी ही दिख रही है, यह नहीं आनी चाहिये थी। इसे क्रोप कर देना था। 
इस तरह की चर्चाओं के लिये आप भी अपने फोटो भेज सकते हैं। शर्त इतनी है कि फोटो आपने ही खींचा हो, उसका साइज 250 केबी से कम हो और आपका या आपके मित्र, परिजन का व्यक्तिगत फोटो न हो। केवल JPG या JPEG फॉरमेट में हों। फोटो केवल मेरी मेल आईडी पर ही भेजे- neerajjaatji@gmail.com

डायरी के पन्ने-25 | डायरी के पन्ने-27




Comments

  1. नीरज भाई मे कभी आपकी डायरी पर टिप्पणी नही करता क्योकि ये आपके निजी विचार होते है। लेकिन आज टिप्पणी करने को मजबूर हो गया हुँ। आपका फोटो पर टिप्पणी करने का कार्य अत्यधिक प्रशंसा करने योग्य कार्य है। इसके द्वारा फोटोग्राफी सीखने वाले लोगो को बहुत सहायता मिलेगी। कृप्या इस कार्य को जारी रखे।

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    1. विनय जी, निजी विचार तो यात्रा-वृत्तान्त भी होते हैं। ऐसा मत सोचिये कि डायरी है तो टिप्पणी नहीं करनी। टिप्पणी कीजिये, उनसे उत्साहवर्द्धन बढता है।

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  2. धन्यवाद नीरज जी आगे से आपकी बताई गई बातो का ध्यान रखूँगा और ये कोशिश जारी रहेगी.....

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  3. बहुत बढ़िया जानकारी पूरक पोस्ट.....

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  4. नीरज जी नमस्कार ये बताइए कि गूगल मैप को कैसे अपडेट करते है। फोटोग्राफी टिप्स देने के लिए ह्रदयाभार

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    1. सर जी, अगली डायरी में बताऊंगा इस बारे में भी...

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  5. चित्रों पर विशेषज्ञ टिप्पणियाँ अच्छी लगीं!

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    1. पाण्डेय सर, ये विशेषज्ञ टिप्पणियां नहीं है, केवल चर्चा है।

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