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Showing posts from June, 2014

आसमानी बिजली के कुछ फोटो

बरसात में जब बिजली चमकती है तो सेकंड के सौवें हिस्से में सबकुछ हो जाता है। पता नहीं लोगबाग इतनी फुर्ती से इनके फोटो कैसे खींच लेते हैं? मैंने भी कोशिश की लेकिन जब तक क्लिक करता, तब तक दो सेकंड बीत जाते। कडकती बिजली के लिये तो दो सेकंड बहुत ज्यादा होते हैं। मुझे हमेशा अन्धेरी रात ही दिखाई देती। इलाज निकला। कैमरे को ट्राइपॉड पर वीडियो मोड में लगाकर छोड दिया और अन्दर जाकर डिनर करने लगा। वापस आया तो करीब बीस मिनट की वीडियो हाथ लग चुकी थी। इसमें बहुत बढिया बिजली कडकती व गिरती भी कैद हो गई। दो-तीन बार ऐसा किया। आखिरकार उन वीडियो से कुछ फोटो हाथ लगे हैं, क्वालिटी बेशक उतनी अच्छी नहीं है लेकिन बिजली अच्छी लग रही है।

चूडधार की जानकारी व नक्शा

चूडधार की यात्रा कथा तो पढ ही ली होगी। ट्रेकिंग पर जाते हुए मैं जीपीएस से कुछ डाटा अपने पास नोट करता हुआ चलता हूं। यह अक्षांस, देशान्तर व ऊंचाई होती है ताकि बाद में इससे दूरी-ऊंचाई नक्शा बनाया जा सके। आज ज्यादा कुछ नहीं है, बस यही डाटा है। अक्षांस व देशान्तर पृथ्वी पर हमारी सटीक स्थिति बताते हैं। मैं हर दस-दस पन्द्रह-पन्द्रह मिनट बाद अपनी स्थिति नोट कर लेता था। अपने पास जीपीएस युक्त साधारण सा मोबाइल है जिसमें मैं अपना यात्रा-पथ रिकार्ड नहीं कर सकता। हर बार रुककर एक कागज पर यह सब नोट करना होता था। इससे पता नहीं चलता कि दो बिन्दुओं के बीच में कितनी दूरी तय की। बाद में गूगल मैप पर देखा तो उसने भी बताने से मना कर दिया। कहने लगा कि जहां सडक बनी है, केवल वहीं की दूरी बताऊंगा। अब गूगल मैप को कैसे समझाऊं कि सडक तो चूडधार के आसपास भी नहीं फटकती। हां, गूगल अर्थ बता सकता है लेकिन अपने नन्हे से लैपटॉप में यह कभी इंस्टाल नहीं हो पाया।

कांगडा रेल यात्रा- जोगिन्दर नगर से ज्वालामुखी रोड तक

इस यात्रा वृत्तान्त को आरम्भ से पढने के लिये यहां क्लिक करें । चला था मिलन ग्लेशियर के लिये, पहुंच गया चूडधार और उसके बाद कमरुनाग। अभी भी मेरे पास एक दिन और शेष था। सुरेन्द्र के पास भी एक दिन था। एक बार तो मन में आया भी कि दिल्ली वापस चलते हैं, एक दिन घर पर ही बिता लेंगे। फिर याद आया कि मैंने अभी तक कांगडा रेलवे पर जोगिन्दर नगर से बैजनाथ पपरोला के बीच यात्रा नहीं की है। तकरीबन पांच साल पहले मैंने इस लाइन पर पठानकोट से बैजनाथ पपरोला तक यात्रा की थी। उस समय मुझे पता नहीं था कि हिमाचल में रात को भी बसें चलती हैं। पता होता तो मैं उसी दिन जोगिन्दर नगर तक नाप डालता। जोगिन्दर नगर को मैं कोई छोटा-मोटा गांव समझता था। रात रुकने के लिये कोई कमरा मिलने में सन्देह था।

कमरुनाग से वापस रोहांडा

इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें । 13 मई 2014, मंगलवार आज हमें कमरुनाग से शिकारी देवी जाना था जिसकी दूरी स्थानीय निवासी 18 किलोमीटर बताते हैं। रास्ता ऊपर पहाडी धार से होकर ही जाता है, तो ज्यादा उतराई-चढाई का सामना नहीं करना पडेगा। आंख खुली तो बाहर टप-टप की आवाज सुनकर पता चल गया कि बारिश हो रही है। हिमालय की ऊंचाईयों पर अक्सर दोपहर बाद मौसम खराब हो जाता है, फिर एक झडी लगती है और उसके बाद मौसम खुल जाता है। सुबह मौसम बिल्कुल साफ-सुथरा मिलता है। लेकिन आज ऐसा नहीं था। मैं सबसे आखिर में उठने वालों में हूं, सचिन ही पहले उठा और बाहर झांक आया। बताया कि बारिश हो रही है। इसका अर्थ है कि पूरी रात बूंदाबांदी होती रही थी और अभी भी खुलना मुश्किल है। ऐसे में हम शिकारी देवी नहीं जा सकते थे क्योंकि सचिन व सुरेन्द्र के पास रेनकोट नहीं थे। फिर वो रास्ता ऊपर धार से होकर ही है जहां मामूली हवा भी बडी तेज व ठण्डी लगती है।

रोहांडा से कमरुनाग

इस यात्रा वृत्तान्त को आरम्भ से पढने के लिये यहां क्लिक करें । 12 मई 2014, सोमवार बताते हैं, पांच हजार साल पहले कोई रतन यक्ष था। उसने भगवान विष्णु को गुरू मानकर स्वयं ही प्रचण्ड युद्धकला सीख ली थी। उसे जब पता चला कि महाभारत का युद्ध होने वाला है, तो उसने भी युद्ध में जाने की ठानी। लेकिन वह चूंकि प्रचण्ड योद्धा था, उसने तय किया कि जो भी पक्ष कमजोर होगा, वह उसकी तरफ से लडेगा। यह बात जब कृष्ण को पता चली तो वह चिन्तित हो उठे क्योंकि इस युद्ध में कौरव ही हारने वाले थे और रतन के कारण इसमें बडी समस्या आ सकती थी। कृष्ण एक साधु का रूप धारण करके उसके पास गये और उसके आने का कारण पूछा। सबकुछ जानने के बाद उन्होंने उसकी परीक्षा लेनी चाही, रतन राजी हो गया। कृष्ण ने कहा कि एक ही तीर से इस पीपल से सभी पत्ते बेध दो। इसी दौरान कृष्ण ने नजर बचाकर कुछ पत्ते अपने पैरों के नीचे छुपा दिये। जब रतन ने सभी पत्ते बेध दिये तो कृष्ण ने देखा कि उनके पैरों के नीचे रखे पत्ते भी बिंधे पडे हैं, तो वे उसकी युद्धकला को मान गये। जब उन्होंने उसके गुरू के बारे में पूछा तो यक्ष ने भगवान विष्णु का नाम लिया। चूंकि कृष्ण स्वयं व

डायरी के पन्ने- 22

ध्यान दें: डायरी के पन्ने यात्रा-वृत्तान्त नहीं हैं। इनसे आपकी धार्मिक और सामाजिक भावनाएं आहत हो सकती हैं। कृपया अपने विवेक से पढें। 1. 2 जून 2014, सोमवार, तेलंगाना राज्य बन गया। मैं नये राज्यों का समर्थक हूं। कुछ राज्य मेरी भी लिस्ट में हैं, जो बनने चाहिये। इनमें सबसे ऊपर है हरित प्रदेश। यूपी के धुर पश्चिम से लेकर धुर पूर्व तक मैं गया हूं, अन्तर साफ दिखाई पडता है। मुरादाबाद से आगरा तक एक लाइन खींचो... ह्म्म्म... चलो, बरेली को भी जोड लेते हैं। रुहेलखण्ड पर एहसान कर देते हैं। तो जी, बरेली से आगरा तक एक लाइन खींचो। इसके पश्चिम का इलाका यानी पश्चिमी उत्तर प्रदेश को हरित प्रदेश कहा जायेगा। यहां नहरों का घना जाल बिछा हुआ है, जमीन उपजाऊ है, समृद्धि भी है। शीघ्र ही यह हरियाणा और पंजाब से टक्कर लेने लगेगा। मुख्य फसल गन्ना है जो समृद्धि की फसल होती है। फिर एक बात और, अक्सर यूपी-बिहार को एक माना जाता है और इनकी संस्कृति भी एक ही मानी जाती है। लेकिन इस हरित प्रदेश की संस्कृति उस यूपी-बिहार वाली संस्कृति से बिल्कुल अलग है। जमीन-आसमान का फर्क है। उस यूपी-बिहार में जहां अपनी जमीन छोडकर पलायन करने

रोहांडा में बारिश

इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें । 11 मई 2014, रविवार सुन्दरनगर में हमें ज्यादा प्रतीक्षा नहीं करनी पडी। करसोग की बस आ गई। यह हमीरपुर से आई थी और यहां पौन घण्टा रुकेगी। बस के स्टाफ को खाना खाना था। ग्यारह बजे बस चल पडी। सुन्दरनगर से रोहांडा लगभग 40 किलोमीटर है। पूरा रास्ता चढाई भरा है। सुन्दरनगर समुद्र तल से जहां 850 मीटर की ऊंचाई पर है, वही रोहांडा 2140 मीटर पर। रोहांडा से ही कमरुनाग का पैदल रास्ता शुरू होता है। वहां से कमरुनाग करीब 6 किलोमीटर दूर है। हमें आज ही कमरुनाग के लिये चल पडना है। रात्रि विश्राम वहीं करेंगे। लेकिन जैसा हम सोचते हैं, अक्सर वैसा नहीं होता। जैसे जैसे रोहांडा की ओर बढते जा रहे थे, मौसम खराब होने लगा और आखिरकार बारिश भी शुरू हो गई। जब दो-ढाई घण्टे बाद रोहांडा पहुंचे, बारिश हो रही थी और तापमान काफी गिर गया था। इतना गिर गया कि बस से उतरते ही तीनों को गर्म कपडे पहनने पड गये।

तराहां से सुन्दरनगर तक- एक रोमांचक यात्रा

इस यात्रा वृत्तान्त को आरम्भ से पढने के लिये यहां क्लिक करें । 10 मई 2014, शनिवार पहले कल की बात बताता हूं। कल शाम जब मैं चूडधार से तराहां आया था तो बहुत थका हुआ था। इसका कारण था कि कल ज्यादातर रास्ता जंगल से तय किया था और मैं अपनी हैसियत से बहुत ज्यादा तेज चला था। नीचे उतरने में पूरे शरीर पर झटके लगते हैं। इसलिये जब रात सोने लगा तो पैर के नाखून से सिर के बाल तक हर अंग दर्द कर रहा था। इस दर्द के कारण रात भर अच्छी नींद भी नहीं आई। रही सही कसर उन पडोसियों ने पूरी कर दी जो उसी कमरे में दूसरे बिस्तरों पर सो रहे थे। उनके खर्राटे इतने जोरदार थे कि कई बार तो रोंगटे खडे हो जाते।

भंगायणी माता मन्दिर, हरिपुरधार

इस यात्रा-वृत्तान्त को आरम्भ से पढने के लिये यहां क्लिक करें । 10 मई 2014 हरिपुरधार के बारे में सबसे पहले दैनिक जागरण के यात्रा पृष्ठ पर पढा था। तभी से यहां जाने की प्रबल इच्छा थी। आज जब मैं तराहां में था और मुझे नोहराधार व कहीं भी जाने के लिये हरिपुरधार होकर ही जाना पडेगा तो वो इच्छा फिर जाग उठी। सोच लिया कि कुछ समय के लिये यहां जरूर उतरूंगा। तराहां से हरिपुरधार की दूरी 21 किलोमीटर है। यहां देखने के लिये मुख्य एक ही स्थान है- भंगायणी माता का मन्दिर जो हरिपुरधार से दो किलोमीटर पहले है। बस ने ठीक मन्दिर के सामने उतार दिया। कुछ और यात्री भी यहां उतरे। कंडक्टर ने मुझे एक रुपया दिया कि ये लो, मेरी तरफ से मन्दिर में चढा देना। इससे पता चलता है कि माता का यहां कितना प्रभाव है।

चूडधार यात्रा- वापसी तराहां के रास्ते

इस यात्रा-वृत्तान्त को आरम्भ से पढने के लिये यहां क्लिक करें । 9 मई 2014, शुक्रवार आज के इस वृत्तान्त का शीर्षक होना चाहिये था- नमाज बख्शवाने गये थे, रोजे गले पड गये। चूडधार शिखर के नीचे जहां मन्दिर और धर्मशाला बने हैं, वहीं एक दुकान में मैं परांठे खाने बैठ गया; आलू के परांठे मिल गये थे। बिल्कुल घटिया परांठे थे। अगर पहले ही पता होता तो एक खाकर ही तौबा कर लेता। जब तक घटियापन का पता चला, तब तक दूसरा परांठा भी बन चुका था। तो बातों ही बातों में मैंने जिक्र कर दिया कि यहां से नीचे जाने के कौन कौन से रास्ते हैं। बोला कि एक तो ‘त्रां’ वाला है और एक ‘स्रां’ वाला। बाद में पता चला कि ये क्रमशः तराहां और सराहां हैं। मेरा स्लीपिंग बैग चूंकि नोहराधार में रखा था, उसे लेना जरूरी था इसलिये मुझे इनमें से तराहां वाला रास्ता चुनना पडा। तराहां से नोहराधार की बसें मिल जाती हैं।

चूडधार यात्रा- 2

इस यात्रा-वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें । 9 मई 2014, शुक्रवार आलू के परांठे खाने की इच्छा थी लेकिन इस समय यहां आलू न होने के कारण यह पूरी न हो सकी। इसलिये सादे परांठों से ही काम चलाना पडा। अभी हवा नहीं चल रही थी और मौसम भी साफ था लेकिन हो सकता है कि कुछ समय बाद हवा भी चलने लगे और मौसम भी बिगडने लगे। निकलने से पहले चेहरे पर थोडी सी क्रीम लगा ली। ट्रैकिंग पोल जो अभी तक बैग में ही था, अब बाहर निकाल लिया। आज मुझे बर्फ में एक लम्बा सफर तय करना है। साढे आठ बजे चल पडा। तीसरी से चूडधार की दूरी छह किलोमीटर है लेकिन खतरनाक रास्ता होने के कारण मैं इसे चार घण्टे में पार कर लेने की सोच रहा था। तीन घण्टे वापस आने में लगेंगे। यानी शाम चार बजे तक यहां लौट आऊंगा। नोहराधार से कल यहां तक आने में पांच घण्टे लगे थे, तीन घण्टे में यहां से नोहराधार जा सकता हूं। इसलिये आज रात को नोहराधार में ही रुकने की कोशिश करूंगा।

डायरी के पन्ने- 21

ध्यान दें: डायरी के पन्ने यात्रा-वृत्तान्त नहीं हैं। इनसे आपकी धार्मिक और सामाजिक भावनाएं आहत हो सकती हैं। कृपया अपने विवेक से पढें। 1. पिछले दिनों घर में पिताजी और धीरज के बीच मतभेद हो गया। दोनों गांव में ही थे। मेरी हर दूसरे-तीसरे दिन फोन पर बात हो जाती थी। पहले भी मतभेद हुए हैं। लेकिन दोनों में से कोई भी मुझे इसकी भनक नहीं लगने देता। इस बार भनक लग गई। पिताजी से पूछा तो उन्होंने नकार दिया कि नहीं, सबकुछ ठीक है। धीरज ने भी ऐसा ही कहा। लेकिन दोनों के लहजे से साफ पता चल रहा था कि कुछ गडबड है। आखिरकार बात सामने आ ही गई।