Skip to main content

लद्दाख साइकिल यात्रा- तेरहवां दिन- तंगलंग-ला से उप्शी

इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें
16 जून 2013
सात बजे आवाजें सुनकर आंख खुली। थोडे से खुले दरवाजे से बाहर निगाह गई तो बर्फ दिखाई दी। यानी रात बर्फ पडी है। मजदूरों ने बढा-चढाकर बताया कि बहुत ज्यादा बर्फ गिरी है। मैंने बाहर निकलकर देखा तो पाया कि दो इंच से ज्यादा नहीं है। तंगलंग-ला यहां से ज्यादा दूर नहीं है, इसलिये वहां भी इससे ज्यादा बर्फ की सम्भावना नहीं। पुरानी बर्फ पर चलना मुश्किल भरा होता है, फिसल जाते हैं लेकिन ताजी बर्फ पर ऐसा नहीं है। ज्यादा बर्फ नहीं है तो फिसल नहीं सकते। हां, ज्यादा बर्फ में धंसने का खतरा होता है। यहां तो दो ही इंच बर्फ थी, सडक से तो वो भी खत्म हो गई थी। आने-जाने वाली गाडियों ने उसे कुचलकर खत्म कर दिया था। यह मेरे लिये और भी अच्छा था।
साइकिल पर भी थोडी सी बर्फ थी, उसे झाडकर हटा दिया। सामान बांधा व सवा आठ बजे निकल पडा। खाने-पीने का तो सवाल ही नहीं। पानी की बोतल जरूर भर ली। मेरी एक-एक गतिविधि मजदूरों के लिये तमाशा थी। उठने से लेकर अलविदा कहने तक उनकी भावहीन आंखें मेरे चेहरे व हाथों पर ही जमी रहीं।
सडक पर कीचड हो गई थी। पानी भी जमा हुआ था। साइकिल का पहिया जमे पानी से गुजरता तो पटर-पटर की आवाज आती। लेकिन ज्यादा दूर साइकिल नहीं चला पाया। सांस लेने में परेशानी होने लगी। हालांकि रात 5130 मीटर की ऊंचाई पर सफलतापूर्वक बिताई थी लेकिन फिर भी शरीर का अनुकूलन नहीं हो पाया। ऊपर से भूख। मुझे खाना खाये चौबीस घण्टे हो चुके थे।
...
इस यात्रा के अनुभवों पर आधारित मेरी एक किताब प्रकाशित हुई है - ‘पैडल पैडल’। आपको इस यात्रा का संपूर्ण और रोचक वृत्तांत इस किताब में ही पढ़ने को मिलेगा।
आप अमेजन से इसे खरीद सकते हैं।



बर्फ में खडी साइकिल

पीछे मुडकर देखने पर

तंगलंगला की ओर

उस भेडिये ने मेरा पीछा भी किया, बाद में मेरे रुक जाने पर वो ऊपर पहाडी पर चला गया।



तंगलंगला से नीचे मोरे मैदान की तरफ देखने पर।



सामने तंगलंगला है।

आहा! वो रहा तंगलंगला। इस दर्रे ने पिछले तीन दिनों से जान खा रखी है।

तंगलंगला

तंगलंगला दुनिया का दूसरा सबसे ऊंचा मोटर योग्य दर्रा है। पहले स्थान पर कौन है, इसे तो जानते ही होंगे। खारदूंगला।

तंगलंगला पर सर्वधर्म मन्दिर।



तंगलंगला के दूसरी तरफ का नजारा और नीचे उतरती सडक।




तंगलंगला के उस तरफ एकदम शानदार सडक बनी है।









रूमसे गांव

ग्या गांव।






रूमसे से उप्शी तक पूरा रास्ता ऐसे ही दृश्यों से भरा है।



जहां मानव आबादी है, गांव हैं वहां हरियाली भी मिलती है।



उप्शी में सिन्धु के पहले दर्शन होते हैं।

उप्शी, सिन्धु और मौसम खराब






अगला भाग: लद्दाख साइकिल यात्रा- चौदहवां दिन- उप्शी से लेह

मनाली-लेह-श्रीनगर साइकिल यात्रा
1. साइकिल यात्रा का आगाज
2. लद्दाख साइकिल यात्रा- पहला दिन- दिल्ली से प्रस्थान
3. लद्दाख साइकिल यात्रा- दूसरा दिन- मनाली से गुलाबा
4. लद्दाख साइकिल यात्रा- तीसरा दिन- गुलाबा से मढी
5. लद्दाख साइकिल यात्रा- चौथा दिन- मढी से गोंदला
6. लद्दाख साइकिल यात्रा- पांचवां दिन- गोंदला से गेमूर
7. लद्दाख साइकिल यात्रा- छठा दिन- गेमूर से जिंगजिंगबार
8. लद्दाख साइकिल यात्रा- सातवां दिन- जिंगजिंगबार से सरचू
9. लद्दाख साइकिल यात्रा- आठवां दिन- सरचू से नकी-ला
10. लद्दाख साइकिल यात्रा- नौवां दिन- नकी-ला से व्हिस्की नाला
11. लद्दाख साइकिल यात्रा- दसवां दिन- व्हिस्की नाले से पांग
12. लद्दाख साइकिल यात्रा- ग्यारहवां दिन- पांग से शो-कार मोड
13. शो-कार (Tso Kar) झील
14. लद्दाख साइकिल यात्रा- बारहवां दिन- शो-कार मोड से तंगलंगला
15. लद्दाख साइकिल यात्रा- तेरहवां दिन- तंगलंगला से उप्शी
16. लद्दाख साइकिल यात्रा- चौदहवां दिन- उप्शी से लेह
17. लद्दाख साइकिल यात्रा- पन्द्रहवां दिन- लेह से ससपोल
18. लद्दाख साइकिल यात्रा- सोलहवां दिन- ससपोल से फोतूला
19. लद्दाख साइकिल यात्रा- सत्रहवां दिन- फोतूला से मुलबेक
20. लद्दाख साइकिल यात्रा- अठारहवां दिन- मुलबेक से शम्शा
21. लद्दाख साइकिल यात्रा- उन्नीसवां दिन- शम्शा से मटायन
22. लद्दाख साइकिल यात्रा- बीसवां दिन- मटायन से श्रीनगर
23. लद्दाख साइकिल यात्रा- इक्कीसवां दिन- श्रीनगर से दिल्ली
24. लद्दाख साइकिल यात्रा के तकनीकी पहलू




Comments

  1. ''इतनी जल्‍दी क्‍या है प्‍यारे, देख प्रकृति के नजारे'', सचमुच.

    ReplyDelete
  2. Itne sare photos de kar agli kasar puri kar di, sachmuch badhiya

    ReplyDelete
  3. हमें जल्दी नहीं है। हम आपके कैमरा से सभी प्रकृति के नज़ारे देख रहें हैं। धन्यवाद

    ReplyDelete
  4. अद्भुत है यह जगह, नीरज....

    ReplyDelete
  5. रिकोर्ड तोड़ने के लिए बधाई।
    - Anilkv

    ReplyDelete
  6. बहुत ही बढ़िया वर्णन एवं फोटोज| घूमते रहो..........

    ReplyDelete
  7. YE POST DEKH K THO MERI BOLTI BAND HAI.. SUBAH SE GYARAHVI BAR DEKH RAHA..

    PHOTOS DEKH DEKH K MUN HE NAHI BHAR RAHA.. KYA GAZAB NAZARE HAIN..

    WAAH !!!

    ReplyDelete
  8. ऐसा लगता है की मंगल ग्रह का नज़ारा देख रहे हैं.

    ReplyDelete
  9. पिछली पोस्ट की फोटुओं की कसर इस पोस्ट में पूरी की भाई तूने !! एक बात और इस वीराने में अकेले चलने का साहस भरा काम जो तुमने किया है वो वाकई सराहनीय है !

    ReplyDelete
  10. प्रकृति के अजब रंग,
    सब के सब एक संग।

    ReplyDelete
  11. नीरज ऐसा लगता है आपकी साथ साथ हम भी घुम रहे है और फोटो के बारे मै जितनी तारिफ की जाये उतनी कम है

    ReplyDelete
  12. ''इतनी जल्‍दी क्‍या है प्‍यारे, देख प्रकृति के नजारे'....सचमुच प्रकृति बिखरी पड़ी है और इसे दिखाने वाले की जय हो ...पिछली कड़ी की फोटू की कमी को इस पोस्ट ने धो दिया ...

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

46 रेलवे स्टेशन हैं दिल्ली में

एक बार मैं गोरखपुर से लखनऊ जा रहा था। ट्रेन थी वैशाली एक्सप्रेस, जनरल डिब्बा। जाहिर है कि ज्यादातर यात्री बिहारी ही थे। उतनी भीड नहीं थी, जितनी अक्सर होती है। मैं ऊपर वाली बर्थ पर बैठ गया। नीचे कुछ यात्री बैठे थे जो दिल्ली जा रहे थे। ये लोग मजदूर थे और दिल्ली एयरपोर्ट के आसपास काम करते थे। इनके साथ कुछ ऐसे भी थे, जो दिल्ली जाकर मजदूर कम्पनी में नये नये भर्ती होने वाले थे। तभी एक ने पूछा कि दिल्ली में कितने रेलवे स्टेशन हैं। दूसरे ने कहा कि एक। तीसरा बोला कि नहीं, तीन हैं, नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली और निजामुद्दीन। तभी चौथे की आवाज आई कि सराय रोहिल्ला भी तो है। यह बात करीब चार साढे चार साल पुरानी है, उस समय आनन्द विहार की पहचान नहीं थी। आनन्द विहार टर्मिनल तो बाद में बना। उनकी गिनती किसी तरह पांच तक पहुंच गई। इस गिनती को मैं आगे बढा सकता था लेकिन आदतन चुप रहा।

जिम कार्बेट की हिंदी किताबें

इन पुस्तकों का परिचय यह है कि इन्हें जिम कार्बेट ने लिखा है। और जिम कार्बेट का परिचय देने की अक्ल मुझमें नहीं। उनकी तारीफ करने में मैं असमर्थ हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि उनकी तारीफ करने में कहीं कोई भूल-चूक न हो जाए। जो भी शब्द उनके लिये प्रयुक्त करूंगा, वे अपर्याप्त होंगे। बस, यह समझ लीजिए कि लिखते समय वे आपके सामने अपना कलेजा निकालकर रख देते हैं। आप उनका लेखन नहीं, सीधे हृदय पढ़ते हैं। लेखन में तो भूल-चूक हो जाती है, हृदय में कोई भूल-चूक नहीं हो सकती। आप उनकी किताबें पढ़िए। कोई भी किताब। वे बचपन से ही जंगलों में रहे हैं। आदमी से ज्यादा जानवरों को जानते थे। उनकी भाषा-बोली समझते थे। कोई जानवर या पक्षी बोल रहा है तो क्या कह रहा है, चल रहा है तो क्या कह रहा है; वे सब समझते थे। वे नरभक्षी तेंदुए से आतंकित जंगल में खुले में एक पेड़ के नीचे सो जाते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि इस पेड़ पर लंगूर हैं और जब तक लंगूर चुप रहेंगे, इसका अर्थ होगा कि तेंदुआ आसपास कहीं नहीं है। कभी वे जंगल में भैंसों के एक खुले बाड़े में भैंसों के बीच में ही सो जाते, कि अगर नरभक्षी आएगा तो भैंसे अपने-आप जगा देंगी।

ट्रेन में बाइक कैसे बुक करें?

अक्सर हमें ट्रेनों में बाइक की बुकिंग करने की आवश्यकता पड़ती है। इस बार मुझे भी पड़ी तो कुछ जानकारियाँ इंटरनेट के माध्यम से जुटायीं। पता चला कि टंकी एकदम खाली होनी चाहिये और बाइक पैक होनी चाहिये - अंग्रेजी में ‘गनी बैग’ कहते हैं और हिंदी में टाट। तो तमाम तरह की परेशानियों के बाद आज आख़िरकार मैं भी अपनी बाइक ट्रेन में बुक करने में सफल रहा। अपना अनुभव और जानकारी आपको भी शेयर कर रहा हूँ। हमारे सामने मुख्य परेशानी यही होती है कि हमें चीजों की जानकारी नहीं होती। ट्रेनों में दो तरह से बाइक बुक की जा सकती है: लगेज के तौर पर और पार्सल के तौर पर। पहले बात करते हैं लगेज के तौर पर बाइक बुक करने का क्या प्रोसीजर है। इसमें आपके पास ट्रेन का आरक्षित टिकट होना चाहिये। यदि आपने रेलवे काउंटर से टिकट लिया है, तब तो वेटिंग टिकट भी चल जायेगा। और अगर आपके पास ऑनलाइन टिकट है, तब या तो कन्फर्म टिकट होना चाहिये या आर.ए.सी.। यानी जब आप स्वयं यात्रा कर रहे हों, और बाइक भी उसी ट्रेन में ले जाना चाहते हों, तो आरक्षित टिकट तो होना ही चाहिये। इसके अलावा बाइक की आर.सी. व आपका कोई पहचान-पत्र भी ज़रूरी है। मतलब