Skip to main content

लद्दाख साइकिल यात्रा- ग्यारहवां दिन- पांग से शो-कार मोड

इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें
14 जून 2013
सुबह साढे सात बजे आंख खुली। दोनों होटल संचालिकाओं ने जुले कहकर नये प्रभात की शुभकामनाएं दीं। अब मैं ‘जुले-जुले’ की धरती पर हूं। हर व्यक्ति एक दूसरे को जुले जुले कहने में लगा है। झारखण्डी मजदूर भी मौका मिलते ही जुले कहते हैं। विदेशी आते हैं भारत घूमने। हवाई अड्डे पर उतरते ही उन्हें सबसे पहले नमस्ते कहना सीखना होता है। लद्दाख में नमस्ते किसी काम का नहीं, यहां जुले का शासन है। सोचते होंगे बडा अजीब देश है, हजार किलोमीटर चले नहीं, अभिवादन का तरीका बदल गया। नमस्ते सीखा था इतनी मेहनत से, एक झटके में बेकार हो गया।
साइकिल पर जब सामान बांध रहा था तो स्पीति वाले तीर्थ यात्री मिले। उनमें से एक का नाम रणजीत सिंह है। बौद्ध नाम कुछ और है। उनके पिता पंजाबी थी, तो रणजीत नाम रख दिया। गांव में सभी रणजीत के ही नाम से जानते हैं, सभी कागज-पत्र रणजीत सिंह के हैं। बौद्ध नाम किसी को नहीं पता। पिन घाटी स्थित अपने गांव शगनम में ट्रैकिंग कराते हैं। न्यौता दिया कि कभी पिन-पार्वती पास या भाभा पास ट्रैक करना हो, तो अवश्य मिलना। भला नीचे का आदमी पिन-पार्वती या भाभा पास करने पहले शगनम क्यों जायेगा? सभी लोग मणिकर्ण या किन्नौर से ट्रैक शुरू करते हैं व मुद में खत्म करते हैं। उल्टा रिवाज कौन शुरू करना चाहेगा?
नौ बजे पांग से चल पडा। पांग 4486 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। आज का लक्ष्य 52 किलोमीटर दूर 4800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित डेबरिंग पहुंच जाने का है ताकि कल तंगलंग-ला पार कर सकूं।
...
इस यात्रा के अनुभवों पर आधारित मेरी एक किताब प्रकाशित हुई है - ‘पैडल पैडल’। आपको इस यात्रा का संपूर्ण और रोचक वृत्तांत इस किताब में ही पढ़ने को मिलेगा।
आप अमेजन से इसे खरीद सकते हैं।



पांग से आगे कुछ चढाई है।

चढाई से दिखता पांग



धूप निकली हो तो लद्दाख की कई पहाडियां स्वर्णिम हो जाती हैं।

मोरे मैदान









यह चित्र मेरे लैपटॉप का स्क्रीन सेवर है।





यह है भेड चराने वाले लद्दाखी घुमन्तू गडरियों का ठिकाना

आज आखिरी पन्द्रह किलोमीटर के आसपास ऐसी सडक पर चलना पडा।

ऐसा रंग संयोजन केवल लद्दाख में ही सम्भव है।


शो-कार मोड



अगला भाग: शो-कार (Tso Kar) झील

मनाली-लेह-श्रीनगर साइकिल यात्रा
1. साइकिल यात्रा का आगाज
2. लद्दाख साइकिल यात्रा- पहला दिन- दिल्ली से प्रस्थान
3. लद्दाख साइकिल यात्रा- दूसरा दिन- मनाली से गुलाबा
4. लद्दाख साइकिल यात्रा- तीसरा दिन- गुलाबा से मढी
5. लद्दाख साइकिल यात्रा- चौथा दिन- मढी से गोंदला
6. लद्दाख साइकिल यात्रा- पांचवां दिन- गोंदला से गेमूर
7. लद्दाख साइकिल यात्रा- छठा दिन- गेमूर से जिंगजिंगबार
8. लद्दाख साइकिल यात्रा- सातवां दिन- जिंगजिंगबार से सरचू
9. लद्दाख साइकिल यात्रा- आठवां दिन- सरचू से नकी-ला
10. लद्दाख साइकिल यात्रा- नौवां दिन- नकी-ला से व्हिस्की नाला
11. लद्दाख साइकिल यात्रा- दसवां दिन- व्हिस्की नाले से पांग
12. लद्दाख साइकिल यात्रा- ग्यारहवां दिन- पांग से शो-कार मोड
13. शो-कार (Tso Kar) झील
14. लद्दाख साइकिल यात्रा- बारहवां दिन- शो-कार मोड से तंगलंगला
15. लद्दाख साइकिल यात्रा- तेरहवां दिन- तंगलंगला से उप्शी
16. लद्दाख साइकिल यात्रा- चौदहवां दिन- उप्शी से लेह
17. लद्दाख साइकिल यात्रा- पन्द्रहवां दिन- लेह से ससपोल
18. लद्दाख साइकिल यात्रा- सोलहवां दिन- ससपोल से फोतूला
19. लद्दाख साइकिल यात्रा- सत्रहवां दिन- फोतूला से मुलबेक
20. लद्दाख साइकिल यात्रा- अठारहवां दिन- मुलबेक से शम्शा
21. लद्दाख साइकिल यात्रा- उन्नीसवां दिन- शम्शा से मटायन
22. लद्दाख साइकिल यात्रा- बीसवां दिन- मटायन से श्रीनगर
23. लद्दाख साइकिल यात्रा- इक्कीसवां दिन- श्रीनगर से दिल्ली
24. लद्दाख साइकिल यात्रा के तकनीकी पहलू




Comments

  1. आपको अंग्रेजी नहीं आती तो अंग्रेज को ही थोडा जाट भाषा सिख देते। फोटो हमेशा की तरह शानदार। उस इलाके की खूबसूरती को आपने बहुत अच्छे से कैमरे में कैद किया है. बधाई

    ReplyDelete
  2. सही कहा...
    रंग संयोजन देखना हो तो बस लद्दाख ही है, ऐसा लगता है बस बात कर देखते ह इराहो....
    अद्भुत जगह है....

    ReplyDelete
  3. इससे अच्छा है शो-कार देख आऊं।

    DEKH AAYE THO HUME BHI DIKHA DETE..
    PHOTO UPLOAD KARNE ME 2 MINUTE HE LAGTE..

    UNCHAII AUR UTRAAI KI MATHEMATICAL SAMEEKSHA ME ULJHA DIYA IS BAAR THO..

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपकी बात का रिप्लाई जरूर करना पडेगा।
      क्या आपको लगता है कि मैं शो-कार देखने गया और यहां वर्णन नहीं करूंगा? वर्णन होगा और बहुत शानदार होगा। अगली पोस्ट का इन्तजार करो बस।
      और हां, फोटो अपलोड करने में दो मिनट नहीं आधा घण्टा लगता है। मेरी मेहनत की इतनी सस्ती कीमत मत लगाओ। :)

      Delete
    2. DARNE K LIYE DHANYAWAAD!!

      Are nahi aisa nahi.. mujhe laga ki jheel ko skip ker diya post me.. AApki mehtant k tho hum kayal hain neerajji.. Her post k sath aur hote jaate hain.. keemat lagane jaisa tho nahi kaha..

      parson ka intejaar rahega bhaiji..

      Delete
  4. मैंने कहा- न्यू कहदे बेरा ना

    Je ke hove hai..

    ReplyDelete
    Replies
    1. “बेरा ना” माने पता नहीं।
      “न्यू कहदे बेरा ना” यानी उससे बोल कि पता नहीं।

      Delete
    2. जै ऐक नई बोली सिखने मिली मन्ने थारे से छोरो ..
      वर्ना जै बोली का मन्ने “बेरा ना”..

      Delete
  5. अंगरेजी जाणते तो यहां बोनट खोलकै खडे होत्ते?
    हा .. हा .. हा

    - Anilkv

    ReplyDelete
  6. वाह, आनंद आरहा है, शुभकामनाएं.

    रामराम.

    ReplyDelete
  7. इतना बड़ा मैदान देख कहीं किसी को नगर बसाने की समक्ष न लग जाये।

    ReplyDelete
  8. वह जाने की इच्छा और बढ गई ....

    ReplyDelete
  9. shaandaar photo, maza aa gya Neeraj bhai
    बल्ले बल्ले हिमांक
    तेरा नही मुक़ाबला ?

    ReplyDelete
  10. Neeraj ji ram-ram.bahut sunder photo aur aapke bech -bech me jaato wali bahsa ka pryog isileya toh aap great ho.

    ReplyDelete
  11. Shayad agar tum Saridiyo mein yahan jaate to aur bhi sunder photo dekhne ko milte...

    ReplyDelete
  12. इस सड़क को मैंने फिल्म 'जब तक है जान '.में देखा है जहाँ मोटर साइकिल पर शाहरुख जाता है और बेक ग्राउंड में गाना बजता है ..

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

46 रेलवे स्टेशन हैं दिल्ली में

एक बार मैं गोरखपुर से लखनऊ जा रहा था। ट्रेन थी वैशाली एक्सप्रेस, जनरल डिब्बा। जाहिर है कि ज्यादातर यात्री बिहारी ही थे। उतनी भीड नहीं थी, जितनी अक्सर होती है। मैं ऊपर वाली बर्थ पर बैठ गया। नीचे कुछ यात्री बैठे थे जो दिल्ली जा रहे थे। ये लोग मजदूर थे और दिल्ली एयरपोर्ट के आसपास काम करते थे। इनके साथ कुछ ऐसे भी थे, जो दिल्ली जाकर मजदूर कम्पनी में नये नये भर्ती होने वाले थे। तभी एक ने पूछा कि दिल्ली में कितने रेलवे स्टेशन हैं। दूसरे ने कहा कि एक। तीसरा बोला कि नहीं, तीन हैं, नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली और निजामुद्दीन। तभी चौथे की आवाज आई कि सराय रोहिल्ला भी तो है। यह बात करीब चार साढे चार साल पुरानी है, उस समय आनन्द विहार की पहचान नहीं थी। आनन्द विहार टर्मिनल तो बाद में बना। उनकी गिनती किसी तरह पांच तक पहुंच गई। इस गिनती को मैं आगे बढा सकता था लेकिन आदतन चुप रहा।

जिम कार्बेट की हिंदी किताबें

इन पुस्तकों का परिचय यह है कि इन्हें जिम कार्बेट ने लिखा है। और जिम कार्बेट का परिचय देने की अक्ल मुझमें नहीं। उनकी तारीफ करने में मैं असमर्थ हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि उनकी तारीफ करने में कहीं कोई भूल-चूक न हो जाए। जो भी शब्द उनके लिये प्रयुक्त करूंगा, वे अपर्याप्त होंगे। बस, यह समझ लीजिए कि लिखते समय वे आपके सामने अपना कलेजा निकालकर रख देते हैं। आप उनका लेखन नहीं, सीधे हृदय पढ़ते हैं। लेखन में तो भूल-चूक हो जाती है, हृदय में कोई भूल-चूक नहीं हो सकती। आप उनकी किताबें पढ़िए। कोई भी किताब। वे बचपन से ही जंगलों में रहे हैं। आदमी से ज्यादा जानवरों को जानते थे। उनकी भाषा-बोली समझते थे। कोई जानवर या पक्षी बोल रहा है तो क्या कह रहा है, चल रहा है तो क्या कह रहा है; वे सब समझते थे। वे नरभक्षी तेंदुए से आतंकित जंगल में खुले में एक पेड़ के नीचे सो जाते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि इस पेड़ पर लंगूर हैं और जब तक लंगूर चुप रहेंगे, इसका अर्थ होगा कि तेंदुआ आसपास कहीं नहीं है। कभी वे जंगल में भैंसों के एक खुले बाड़े में भैंसों के बीच में ही सो जाते, कि अगर नरभक्षी आएगा तो भैंसे अपने-आप जगा देंगी।

ट्रेन में बाइक कैसे बुक करें?

अक्सर हमें ट्रेनों में बाइक की बुकिंग करने की आवश्यकता पड़ती है। इस बार मुझे भी पड़ी तो कुछ जानकारियाँ इंटरनेट के माध्यम से जुटायीं। पता चला कि टंकी एकदम खाली होनी चाहिये और बाइक पैक होनी चाहिये - अंग्रेजी में ‘गनी बैग’ कहते हैं और हिंदी में टाट। तो तमाम तरह की परेशानियों के बाद आज आख़िरकार मैं भी अपनी बाइक ट्रेन में बुक करने में सफल रहा। अपना अनुभव और जानकारी आपको भी शेयर कर रहा हूँ। हमारे सामने मुख्य परेशानी यही होती है कि हमें चीजों की जानकारी नहीं होती। ट्रेनों में दो तरह से बाइक बुक की जा सकती है: लगेज के तौर पर और पार्सल के तौर पर। पहले बात करते हैं लगेज के तौर पर बाइक बुक करने का क्या प्रोसीजर है। इसमें आपके पास ट्रेन का आरक्षित टिकट होना चाहिये। यदि आपने रेलवे काउंटर से टिकट लिया है, तब तो वेटिंग टिकट भी चल जायेगा। और अगर आपके पास ऑनलाइन टिकट है, तब या तो कन्फर्म टिकट होना चाहिये या आर.ए.सी.। यानी जब आप स्वयं यात्रा कर रहे हों, और बाइक भी उसी ट्रेन में ले जाना चाहते हों, तो आरक्षित टिकट तो होना ही चाहिये। इसके अलावा बाइक की आर.सी. व आपका कोई पहचान-पत्र भी ज़रूरी है। मतलब