इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें । आज की शुरूआत एक छोटी सी कहानी से करते हैं। यह एक तान्त्रिक और एक राजकुमारी की कहानी है। तान्त्रिक राजकुमारी पर मोहित था लेकिन वह उसे कोई भाव नहीं देती थी। चूंकि राजकुमारी भी तन्त्र विद्या में पारंगत थी, इसलिये उसे दुष्ट तान्त्रिक की नीयत का पता था। एक बार तान्त्रिक ने राजकुमारी की दासी के हाथों अभिमन्त्रित तेल भिजवाया। तेल की खासियत यह हो गई कि वह जिसके भी सिर पर लगेगा, वो तुरन्त तान्त्रिक के पास चला जायेगा। राजकुमारी पहचान गई कि इसमें तान्त्रिक की करामात है। उसने उस तेल को एक शिला पर फेंक दिया और जवाब में वह शिला तान्त्रिक के पास जाने लगी। बेचारे तान्त्रिक की जान पर बन गई। शिला क्रिकेट की गेंद तो थी नहीं कि तान्त्रिक रास्ते से हट जायेगा और वो सीधी निकल जायेगी। अभिमन्त्रित थी, तो तान्त्रिक कितना भी इधर उधर भागेगा, शिला भी उतना ही इधर उधर पीछा करेगी। जब तान्त्रिक के सारे उपाय निष्क्रिय हो गये, तो उसने श्राप दे दिया। श्राप के परिणामस्वरूप शिला फिर से बावली हो गई और अब वो नगर को ध्वस्त करने लगी। उसी ध्वस्त नगर का नाम है भा