इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें । आखिरकार हम दोनों औली से वापस चल पडे। आज की यह पोस्ट कुछ ज्यादा नहीं है, बल्कि पिछली पोस्ट में बहुत ज्यादा फोटो थे, फिर भी कुछ फोटो बच गये थे तो उस कसर को आज निकाला गया है। गोरसों बुग्याल में हमारी जान पहचान मुम्बई के एक परिवार से हुई। करीब तीन चार घण्टे तक हम साथ साथ रहे। उन्होंने हरिद्वार से ही एक कार बुक कर ली थी और गढवाल में घूम रहे थे। हमें इतनी जानकारी हो जाने के बाद कुछ ज्यादा मतलब उनसे नहीं रह गया था। अब हमें उनकी कार दिख रही थी। हम चाहते थे कि पैदल जाने के बजाय उनकी कार से ही जोशीमठ जायें। उसके लिये जरूरी था उनसे जान-पहचान बढाना ताकि अगर चलते समय वे शिष्टाचारवश भी कहें तो हम तुरन्त उनका पालन करे। हमने तय कर लिया था कि अगर उन्होंने यह ऑफर दिया तो हम इस मौके को किसी भी हालत में हाथ से नहीं जाने देंगे। गलती से भी शिष्टाचर नहीं दिखायेंगे, मना नहीं करेंगे। हम आज ही जोशीमठ से पैदल औली आये थे, गोरसों बुग्याल तक गये थे और थके हुए थे।
नीरज मुसाफिर का यात्रा ब्लॉग