इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें । 7 दिसम्बर 2011 की सुबह हम तीनों फुरसत से सोकर उठे। दस बज गये, सूरज सिर पर चढ गया, तब जाकर हम रेस्ट हाउस से बाहर निकले। अच्छा हां, एक बात और है कि यहां तक आने के लिये सडक भी बनी है। मण्डी से कटौला और फिर बागी। बागी से यहां तक 18 किलोमीटर की सडक बनी है। यह सडक रेस्ट हाउस के पास तक आती है। यहां से झील करीब आधा किलोमीटर दूर है, जहां तक जाने के लिये हरेक को पैदल चलना ही पडेगा। एक छोटी सी झील है पराशर। ऊंचाई लगभग 2550 मीटर। सर्दियों में बर्फ भी पडती है। झील की एक खास बात है कि इसमें एक टहला रहता है। यह टहला क्या बला है? बताता हूं। एक छोटा सा द्वीप है। इस द्वीप की भी खास बात है कि यह झील में टहलता रहता है, इसीलिये इसे टहला कहते हैं। आज यहां है तो दो महीने बाद आना, किसी दूसरे कोने में मिलेगा। झील के आसपास कोई पेड नहीं है, चारों तरफ बस हरी-हरी घास ही है जो दिसम्बर में पीली पड जाती है।
नीरज मुसाफिर का यात्रा ब्लॉग