Skip to main content

Posts

Showing posts from December, 2011

2011 की घुमक्कडी का लेखा-जोखा

2011 चला गया। यह एक ऐसा साल था जिसमें अपनी घुमक्कडी खूब परवान चढी। जहां एक तरफ ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क के बर्फीले पहाडों में जाना हुआ, वहीं समुद्र तट भी पहली बार इसी साल में देखा गया। भारत का सबसे बडा शहर कोलकाता देखा तो नैरो गेज पर चलनी वाली गाडियों में भी सफर किया गया। आज पेश है पूरे सालभर की घुमक्कडी पर एक नजर: 1. कुमाऊं यात्रा: 20 से 24 फरवरी तक अतुल के साथ यह यात्रा की गई। जनवरी की ठण्ड में रजाई से बाहर निकलने का मन बिल्कुल नहीं करता, लेकिन जैसे ही फरवरी में रजाई का मोह कम होने लगता है तो सर्दियों भर जमकर सोया घुमक्कडी कीडा भी जागने लगता है। इस यात्रा में अतुल के रूप में एक सदाबहार घुमक्कड भी मिला। इस यात्रा में कुमाऊं के एक गांव भागादेवली के साथ रानीखेत , कौसानी और बैजनाथ की यात्रा की गई। बाद में अतुल पिण्डारी ग्लेशियर की यात्रा पर भी साथ गया था।

सुरकण्डा देवी

इस यात्रा वृत्तान्त को आरम्भ से पढने के लिये यहां क्लिक करें । सुरकण्डा देवी गढवाल में बहुत प्रसिद्ध शक्तिपीठ है। इसकी दूर-दूर तक मान्यता है। मसूरी-चम्बा के बीच में धनोल्टी है। यह चम्बा वो हिमाचल वाला चम्बा नहीं है बल्कि उत्तराखण्ड में भी एक चम्बा है। यह हिमाचल वाले की तरह जिला तो नहीं है लेकिन काफी बडा कस्बा है। चम्बा ऋषिकेश-टिहरी रोड पर पडता है।  धनोल्टी से छह किलोमीटर दूर कद्दूखाल नाम की एक जगह है जहां से सुरकण्डा देवी के लिये रास्ता जाता है। दो किलोमीटर पैदल चलना पडता है। पक्का रास्ता बना है और खच्चर भी मिल जाते हैं। मेरे लिये इस जगह का आकर्षण दूसरी वजह से था। वो यह कि मुझे बताया जाता था कि यहां जाने के लिये हालांकि पैदल का रास्ता कम ही है लेकिन चढाई बडी भयानक है। जब सन्दीप भाई ने भी इस चढाई की भयानकता पर मोहर लगा दी तो लगने लगा कि वाकई कुछ तो है।

धनोल्टी यात्रा

इस यात्रा वृत्तान्त को आरम्भ से पढने के लिये यहां क्लिक करें । रात जब सोये थे तो मसूरी घूमने की बात सोचकर सोये थे। सुबह पता चला कि गन हिल जाने वाली रोपवे मेण्टेनेंस के कारण बन्द है, तो हमारे मित्र महोदय का मूड खराब हो गया। हालांकि मैंने बता दिया था कि गन हिल जाने के लिये एक डेढ किलोमीटर पैदल चलना पडता है लेकिन वे रोपवे का आनन्द लेना चाहते थे और कल से ही इसके बारे में रोमांचित और उत्साहित हो रहे थे। अब जब मूड खराब हो गया तो साहब बोले कि मसूरी में अब और नहीं घूमना बल्कि धनोल्टी चलते हैं। अच्छा हां, एक बात तो रह ही गई। दिल्ली से चलते समय उन्होंने मुझसे जब मसूरी यात्रा पर चलने का आग्रह किया तो मैंने उनके सामने एक शर्त रखी कि मुझे सुरकण्डा देवी मन्दिर जरूर जाना है। असल में एक तो यह शक्तिपीठ है, और उससे भी बडी बात ये है कि मैंने इसकी कठिन चढाई के चर्चे सुने हैं, यहां तक कि सन्दीप भाई भी इसकी कठिन चढाई का जिक्र करते हैं। तो यहां जाने की बडी इच्छा थी। मेरी यह शर्त तुरन्त मान ली गई। इससे मुझे एक फायदा और भी होने वाला था कि इसी बहाने धनोल्टी भी घूम लेंगे।

मसूरी झील और केम्पटी फाल

इस यात्रा वृत्तान्त को आरम्भ से पढने के लिये यहां क्लिक करें । मन्दिर से निकलकर फिर मसूरी की तरफ चल पडे। रास्ते में एक जगह सडक के बराबर में ही गाडियां खडी दिखीं। तभी निगाह पडी- मसूरी झील। गाडी हमने भी साइड में लगा दी। यह एक कृत्रिम झील है जहां पैडल बोट का मजा लिया जा सकता है। हमने भी लिया। लेना पडता है अगर परिवार में हैं तो। जो होता मैं अकेला तो इस झील की तरफ देखता भी नहीं। और हां, एक बात बडी हास्यास्पद लगती है जब कोई फोटोग्राफर जिद करता है कि गढवाली ड्रेस में फोटो खिंचवा लो। पता नहीं क्या-क्या पहनाकर ‘शिकार’ को ऊपर से नीचे तक लाद दिया जाता है और दो घडे देकर ‘पनघट’ के किनारे बैठा दिया जाता है। एक घडा हाथ में और दूसरा सिर पर। कसम खाकर कह रहा हूं कि मैं गढवाल में काफी घूमा हूं, और ज्यादातर घुमक्कडी देहात में ही की है, लेकिन कभी भी ऐसी ड्रेस नहीं देखी। यहां तक कि कुमाऊं और हिमाचल में भी नहीं। और हां, एक घडा सिर पर रखकर दूसरा हाथ में लेकर तो पहाड पर चल ही नहीं सकते। अगर घडे की जगह घास या लकडी का गट्ठर होता तो कुछ बात बनती।