Skip to main content

गुरुद्वारा श्री पांवटा साहिब (PAONTA SAHIB)

22 जुलाई 2011 की शाम को हम चारों- मैं, सन्दीप पंवार, नितिन और विपिन पांवटा साहिब (पौण्टा साहिब) में थे। पांवटा साहिब हिमाचल प्रदेश में सिरमौर (नाहन) जिले में यमुना के किनारे स्थित है।
इतिहास गुरुद्वारा श्री पांवटा साहिब
यमुना दरिया के तट पर यह वो पवित्र स्थान है जहां कलगीधर पातशाह गुरू गोविन्द सिंह जी ने नाहन रियासत में आने के बाद तुरन्त सारे क्षेत्र को देखकर नया नगर बसाने का फैसला किया और यही अपने ठहरने के लिये पहला कैम्प (14 अप्रैल 1685) लगाया। फिर इस रमणीक और अतीव सुन्दर कुदरती स्थान पर अपने लिये जिले जैसी एक इमारत बनाई। यही से ही पांवटा साहिब की नींव रखी और इसका नामकरण किया। गुरू महाराज के निवास स्थान के सामने की तरफ दीवान स्थान बनवाया, जहां रोजाना सुबह आसां-दी-वार का कीर्तन, कथा और गुरमत का विचार होता। गुरू महाराज खुद साढे चार साल संगतों को आध्यात्मिक ज्ञान बख्शीश करते रहे। इस स्थान पर गुरुद्वारे का नाम गुरुद्वारा हरिमन्दिर साहिब प्रचलित हो गया। यहां गुरू गोविन्द सिंह जी के ऐतिहासिक शस्त्र और अन्य निशानियां भी संभाली हुई थीं जो बाद में छिपा ली गईं पर कुछ निशानियां अभी तक मौजूद हैं। साहिब बाबा अजीत सिंह का जन्मस्थान भी है। होले महल्ले का त्यौहार मार्च के महीने में धूमधाम से मनाया जाता है।
कवि दरबार स्थान
गुरुद्वारा हरिमन्दिर साहिब की पिछली तरफ की ढलान में दरिया के तट पर दूसरी तरफ की पहाडी से नजर आता यह ऐतिहासिक कवि दरबार है जहां कलगीधर पातशाह के 52 दरबारी कवि, कवि दरबार आयोजित करते थे। यह पहाड की ढलान पर विशाल खुला क्षेत्र है जहां कलगीधर पादशाह खुद बैठकर वाणी की सृजना किया करते थे। दसम पादशाह ने ज्यादातर वाणी विशेषकर जापु साहिब, सवैये, पातशाही दसवीं और चण्डी दी वार की रचना इस स्थान पर ही बैठ कर की। प्राचीन साहित्य का अनुवाद और ज्ञान भरी लिखतें सरल भाषा में बदलने का काम भी लेखकों से करवाया।
गुरूजी ने यहां कवियों की विनती पर यमुना को शान्त होकर जाने के लिये कहा, यमुना आज भी गुरुजी का हुक्म मानती हुई शान्ति से गुजर रही है।
गुरुद्वारा दस्तार स्थान
इस पवित्र स्थान की सारे संसार में एक विशेष महानता है। यहां बैठकर गुरू गोविन्द सिंह जी अपनी दस्तार (पगडी) सजाते थे एवं सुन्दर दस्तार सजाने वालों को देखकर प्रसन्न होते थे। क्योंकि आप जी इस स्थान पर बैठकर एक सम्पूर्ण एवं आदर्श इंसान बनाने की तैयारी कर रहे थे। पीर बुद्धूशाह को यहां ही गुरू साहिब ने पवित्र केसां सहित कंघा और सिरोपा बख्शीश किया।











यमुना नदी


यमुना नदी








लंगर छककर हम चारों हाल में सोने के लिये चले गये। हिसाब लगाया गया कि यहां से सहारनपुर के रास्ते दिल्ली पास है जबकि अम्बाला के रास्ते दूर। मैं पिछले दो दिनों से लगातार बाइक पर बैठे बैठे बहुत ज्यादा तंग आ गया था। मैंने घोषणा की कि भाई, चाहे सहारनपुर के रास्ते जाओ या अम्बाला के रास्ते; सहारनपुर या अम्बाला में मैं उतर जाऊंगा और आगे की यात्रा ट्रेन से करूंगा। हां, एक बात और कि यहां से एक रास्ता यमुनानगर होते हुए पीपली तक भी जाता है। पीपली कुरुक्षेत्र के बहुत पास है और नेशनल हाइवे नम्बर 1 पर चौराहा है। यह अम्बाला वाले रास्ते के मुकाबले बहुत पास पडता है लेकिन सन्दीप भाई को इस रास्ते की कोई जानकारी ही नहीं थी। फिर यह भी शक था कि पता नहीं रास्ता कैसा हो।
सुबह हमें पांवटा साहिब से चलकर दिल्ली तक ही जाना था। दो बजे से मेरी ड्यूटी थी। फिर भी अपनी बाइक होते हुए हम आराम से उठकर जा सकते थे। सन्दीप भाई ने कहा कि सुबह चार बजे यहां से चल पडेंगे। मैंने विरोध किया। मैंने छह बजे का प्रस्ताव रखा। साढे पांच बजे उठना और छह बजे तक निकल लेना। यह प्रस्ताव ना मानने पर मैंने धमकी दी कि तुम चले जाना, मैं बस से आ जाऊंगा। आखिरकार मेरा यह प्रस्ताव मान लिया गया।
जब नींद पूरे चरम पर थी, तभी सन्दीप भाई की आवाज कान में पडी- ओये, उठ जा, चलना नहीं है क्या? मैंने सोचा कि साढे पांच बज गये लेकिन आदत से मजबूर दूसरी तरफ करवट ली और फिर सोने लगा। फिर आवाज आई- अरे ओये, उठ जा। टाइम हो गया। चल चलते हैं। मैंने पूछा कि क्या टाइम हो गया। बोले कि चार बज गये। मैंने सोचा कि मजाक कर रहे हैं। मोबाइल निकाला, देखा कि साढे तीन बजे हैं। एक बार तो यकीन नहीं हुआ कि साढे पांच बजे तय करने के बाद साढे तीन बजे ही क्यों उठा दिया गया। पूछा कि बात तो साढे पांच की हुई थी, फिर साढे तीन बजे ही क्यों उठा दिया? बोले कि तू नींद का फूफा है। अभी से उठाना शुरू करूंगा, तब साढे पांच तक उठेगा। और हंसने लगे। यह सुनते ही दिमाग में आग लग गई। पारा सातवें आसमान पर जा चढा। तो अपने मजे के लिये तुमने मेरी दो घण्टे की नींद बर्बाद कर दी। चलो, उठो, अभी चलो। ओये, नितिन, ओये विपिन। उठ रे उठ चल। और वे भी दोनों ऐसे निकले कि आवाज लगते ही उठ गये।
चार बजे हमने पांवटा साहिब छोड दिया। उस समय मुझे सन्दीप भाई दुनिया में सबसे नीच व्यक्ति लग रहे थे। लोगबाग अपने मजे के लिये दूसरों की परवाह क्यों नहीं करते? उनके इस व्यवहार से मैं आज तक आहत हूं। इंसान से भरोसा उठ गया है। परम हितैषी शुभचिन्तक से भरोसा उठ गया है। लोगबाग कहते हैं कि कभी भी अकेले नहीं जाना चाहिये, किसी के साथ ही जाना चाहिये। अब मैं कहता हूं कि घुमक्कडी अकेले ही हो सकती है। जहां हमारे ऊपर किसी का पंजा ना हो, हम कहीं भी जाने के लिये, कुछ भी करने के लिये स्वतन्त्र हों, तभी घुमक्कडी का असली मजा है। आह! क्या आनन्द आता है सुबह को तसल्ली से पूरी नींद लेने के बाद उठने में!
खैर, यमुना पार करते ही उत्तराखण्ड में घुसते ही सहारनपुर रोड पकड ली। यहां भी जब तक उत्तराखण्ड में रहे, सडक चकाचक रही। उत्तर प्रदेश में जाते ही फिर से वही गड्ढों वाली सडक। हां, यह थी दिल्ली-यमुनोत्री रोड। सहारनपुर पहुंचकर मैंने अपने श्रीखण्ड के सहयात्रियों को अलविदा कहा। वैसे तो विपिन भी मेरी ही तरह बाइक पर बैठ-बैठकर परेशान हो गया था। इसलिये वो भी ट्रेन से जाना चाहता था। लेकिन दूसरी बात यह भी थी कि पूरे सफर में मेरी और विपिन की कुछ खास बनी नहीं। फिर मैं ठहरा जनरल का टिकट लेकर स्लीपर में चढने वाला, ऐसे में विपिन को दिक्कत हो सकती थी। वे तीनों चले गये शामली होते हुए दिल्ली।
साथियों को अलविदा कहकर एक दर्जन केले खाये गये। टम्पू पकडकर तुरन्त टपरी स्टेशन गया क्योंकि मुझे पता था कि कलिंग उत्कल एक्सप्रेस (18478) आने वाली है। यह गाडी सहारनपुर नहीं जाती बल्कि इसे बाइपास करती हुई टपरी पहुंचती है। नींद पूरे जोर की आ ही रही थी। जनरल का टिकट लेकर एक खाली पडी ऊपरी स्लीपर बर्थ पर बैग रख दिया। लेकिन जब सुबह की शुरूआत ही खराब हुई हो तो आगे दिनभर का कहना ही क्या। नीचे बैठकर जूते उतार रहा था कि टीटी आ गया। मुझे कुछ बोलने का मौका दिये बिना उसने टिकट मांगा। अगर उसके मांगने से पहले मैं ही पूछता कि कोई खाली बर्थ है क्या तो वो बिना नोकझोक किये किराये में अन्तर की राशि लेकर सीट दे देता। अब इसमें पेनल्टी भी जुड गई। मैं उस समय भयानक नींद में था, अन्यथा सौ-पचास रुपये देकर आराम से बात बन जाती। तुरन्त पेनल्टी देकर बिना कुछ कहे-सुने पीछा छुडा और सीट पर पसर गया।
ठीक गाजियाबाद जाकर आंख खुली। यह गाडी गाजियाबाद से हजरत निजामुद्दीन की तरफ चली जाती है जबकि मुझे शाहदरा जाना था। उत्कल एक्सप्रेस को छोडकर लोकल ईएमयू पकडी और बारह बजे तक शाहदरा।

अगला भाग: श्रीखण्ड यात्रा- तैयारी और सावधानी


श्रीखण्ड महादेव यात्रा
1. श्रीखण्ड महादेव यात्रा
2. श्रीखण्ड यात्रा- नारकण्डा से जांव तक
3. श्रीखण्ड महादेव यात्रा- जांव से थाचडू
4. श्रीखण्ड महादेव यात्रा- थाचडू से भीमद्वार
5. श्रीखण्ड महादेव यात्रा- भीमद्वार से पार्वती बाग
6. श्रीखण्ड महादेव के दर्शन
7. श्रीखण्ड यात्रा- भीमद्वारी से रामपुर
8. श्रीखण्ड से वापसी एक अनोखे स्टाइल में
9. पिंजौर गार्डन
10. सेरोलसर झील और जलोडी जोत
11. जलोडी जोत के पास है रघुपुर किला
12. चकराता में टाइगर फाल
13. कालसी में अशोक का शिलालेख
14. गुरुद्वारा श्री पांवटा साहिब
15. श्रीखण्ड यात्रा- तैयारी और सावधानी

Comments

  1. आलसी महाराज की जय हो।
    मैंने पहले ही कह दिया था कि मैं प्रत्येक सफ़र में पहले व आखिरी दिन बहुत जल्द यात्रा शुरु करूँगा, बाकि दिन अपना समय 6 बजे का होता है जो नीरज ने कभी 7 कभी आठ 8 कर दिया था।

    ReplyDelete
  2. सुहाना रहा पूरा सफर.

    ReplyDelete
  3. छोटी छोटी चीज़ों को ऐसे लिख देते हो की "अच्छा लगता है" ;)

    ReplyDelete
  4. वाहे गुरु, यमुना बची रहे।

    ReplyDelete
  5. सुन्दर वृत्तांत. गुरुद्वारा श्री पांवटा साहिब के बारे में जानकार अच्छा लगा. लंगर का खाना हमें बहुत भाता है.

    ReplyDelete
  6. आपकी यात्रा का हर चित्र सर्वोत्तम होता है

    ReplyDelete
  7. घुमक्कडी दोनों ही जिंदाबाद.

    ReplyDelete
  8. वाह! पौंटा साहेब की याद ताज़ा हो आई .....वहाँ का लंगर छोले पूरी क्या बात हैं ? दोस्तों में कहा -सुना चलता हैं नीरज ...संदीप को माफ़ कर देना ...

    ReplyDelete
  9. आपकी यात्रा का हर चित्र सर्वोत्तम होता है| धन्यवाद|

    ReplyDelete
  10. पुरी यात्रा पढकर मजा आया । आप यात्रा करते रहो , हम पढकर यात्रा का आनंद उठाते रहे एसी प्रभुचरण मेँ प्रार्थना ।त्रा करते रहो , हम पढकर यात्रा का आनंद उठाते रहे एसी प्रभुचरण मेँ प्रार्थना ।

    ReplyDelete
  11. Nauk -jhok ke beech phir bhi aap dono ki acchi yatra rahi.

    ReplyDelete
  12. Nauk-jhok ke beech aakhir yatra puri ho hi gayi. Es yatra se mujhe to ak sabak mila h ki dupahiya wahan pr piche bathkar kabhi bhi lambi yatra nahi karni chahiye.

    ReplyDelete
  13. aap yamunanagar se hokar jaate to aapko kaafi accha road milta bilkul saaf aur jaldi be paunch jaate

    ReplyDelete
  14. तुम्हारी लिखने की शैली फाडू है जाट देवता।
    जिसकी समझदानी घोडु जैसी भी क्यों ना हो आसानी से घुसड़ जाती है तुम्हारी लिखी बातें ।
    अपने संस्मरण सभी ऐ।साँझा करने के लिए साधुवाद।

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

46 रेलवे स्टेशन हैं दिल्ली में

एक बार मैं गोरखपुर से लखनऊ जा रहा था। ट्रेन थी वैशाली एक्सप्रेस, जनरल डिब्बा। जाहिर है कि ज्यादातर यात्री बिहारी ही थे। उतनी भीड नहीं थी, जितनी अक्सर होती है। मैं ऊपर वाली बर्थ पर बैठ गया। नीचे कुछ यात्री बैठे थे जो दिल्ली जा रहे थे। ये लोग मजदूर थे और दिल्ली एयरपोर्ट के आसपास काम करते थे। इनके साथ कुछ ऐसे भी थे, जो दिल्ली जाकर मजदूर कम्पनी में नये नये भर्ती होने वाले थे। तभी एक ने पूछा कि दिल्ली में कितने रेलवे स्टेशन हैं। दूसरे ने कहा कि एक। तीसरा बोला कि नहीं, तीन हैं, नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली और निजामुद्दीन। तभी चौथे की आवाज आई कि सराय रोहिल्ला भी तो है। यह बात करीब चार साढे चार साल पुरानी है, उस समय आनन्द विहार की पहचान नहीं थी। आनन्द विहार टर्मिनल तो बाद में बना। उनकी गिनती किसी तरह पांच तक पहुंच गई। इस गिनती को मैं आगे बढा सकता था लेकिन आदतन चुप रहा।

जिम कार्बेट की हिंदी किताबें

इन पुस्तकों का परिचय यह है कि इन्हें जिम कार्बेट ने लिखा है। और जिम कार्बेट का परिचय देने की अक्ल मुझमें नहीं। उनकी तारीफ करने में मैं असमर्थ हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि उनकी तारीफ करने में कहीं कोई भूल-चूक न हो जाए। जो भी शब्द उनके लिये प्रयुक्त करूंगा, वे अपर्याप्त होंगे। बस, यह समझ लीजिए कि लिखते समय वे आपके सामने अपना कलेजा निकालकर रख देते हैं। आप उनका लेखन नहीं, सीधे हृदय पढ़ते हैं। लेखन में तो भूल-चूक हो जाती है, हृदय में कोई भूल-चूक नहीं हो सकती। आप उनकी किताबें पढ़िए। कोई भी किताब। वे बचपन से ही जंगलों में रहे हैं। आदमी से ज्यादा जानवरों को जानते थे। उनकी भाषा-बोली समझते थे। कोई जानवर या पक्षी बोल रहा है तो क्या कह रहा है, चल रहा है तो क्या कह रहा है; वे सब समझते थे। वे नरभक्षी तेंदुए से आतंकित जंगल में खुले में एक पेड़ के नीचे सो जाते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि इस पेड़ पर लंगूर हैं और जब तक लंगूर चुप रहेंगे, इसका अर्थ होगा कि तेंदुआ आसपास कहीं नहीं है। कभी वे जंगल में भैंसों के एक खुले बाड़े में भैंसों के बीच में ही सो जाते, कि अगर नरभक्षी आएगा तो भैंसे अपने-आप जगा देंगी।

ट्रेन में बाइक कैसे बुक करें?

अक्सर हमें ट्रेनों में बाइक की बुकिंग करने की आवश्यकता पड़ती है। इस बार मुझे भी पड़ी तो कुछ जानकारियाँ इंटरनेट के माध्यम से जुटायीं। पता चला कि टंकी एकदम खाली होनी चाहिये और बाइक पैक होनी चाहिये - अंग्रेजी में ‘गनी बैग’ कहते हैं और हिंदी में टाट। तो तमाम तरह की परेशानियों के बाद आज आख़िरकार मैं भी अपनी बाइक ट्रेन में बुक करने में सफल रहा। अपना अनुभव और जानकारी आपको भी शेयर कर रहा हूँ। हमारे सामने मुख्य परेशानी यही होती है कि हमें चीजों की जानकारी नहीं होती। ट्रेनों में दो तरह से बाइक बुक की जा सकती है: लगेज के तौर पर और पार्सल के तौर पर। पहले बात करते हैं लगेज के तौर पर बाइक बुक करने का क्या प्रोसीजर है। इसमें आपके पास ट्रेन का आरक्षित टिकट होना चाहिये। यदि आपने रेलवे काउंटर से टिकट लिया है, तब तो वेटिंग टिकट भी चल जायेगा। और अगर आपके पास ऑनलाइन टिकट है, तब या तो कन्फर्म टिकट होना चाहिये या आर.ए.सी.। यानी जब आप स्वयं यात्रा कर रहे हों, और बाइक भी उसी ट्रेन में ले जाना चाहते हों, तो आरक्षित टिकट तो होना ही चाहिये। इसके अलावा बाइक की आर.सी. व आपका कोई पहचान-पत्र भी ज़रूरी है। मतलब