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श्रीखण्ड महादेव के दर्शन

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तारीख थी 20 जुलाई 2011 और दिन था बुधवार। आज हमें श्रीखण्ड महादेव के दर्शन करके वापस लौटना था। पार्वती बाग में दो परांठे खाकर हम आगे चल पडे। इस यात्रा को चार मुख्य भागों में बांटा जा सकता है- जांव से बराटी नाले तक करीब पांच किलोमीटर तक बिल्कुल साधारण सीधा रास्ता जो खेतों और आखिर में घने जंगल से होकर नदी के साथ साथ जाता है, बराटी नाले से काली घाटी तक करीब आठ किलोमीटर की एकदम सीधी चढाई जो घने जंगल से होकर है आखिर के करीब डेढ किलोमीटर छोडकर, काली घाटी से पार्वती बाग तक करीब सोलह किलोमीटर जो कहीं चढाई कहीं उतराई वाला है और चारों ओर हरी मखमली घास से होकर जाता है, पार्वती बाग से श्रीखण्ड तक जो करीब छह किलोमीटर का है पूरा रास्ता चढाई वाला है और बडे बडे पत्थरों से भरा है।
पार्वती बाग से निकलते ही घास भी अपना साथ छोड देती है, बस रह जाते हैं पत्थर। अच्छा हां, पूरी यात्रा में जांव से ही रास्ते भर में रंग बिरंगे निशान बना रखे हैं कि इधर से जाना है। अगर कहीं दो रास्ते निकल रहे हैं और कन्फ्यूजन की स्थिति बन रही है तो सही रास्ते पर तो तीर का निशान लगा रखा है और गलत रास्ते पर क्रॉस का। फिर भी पार्वती बाग तक तो पगडण्डी है कोई दिक्कत नहीं आती। यहां से आगे पत्थर शुरू हो जाते हैं। इनपर पगडण्डी नहीं बन सकती। इसलिये ये निशान बडे मायने रखते हैं। निशानों के अनुसार पत्थरों पर पैर रखकर निकलते जाना होता है।
यहां से शुरू होता है इस यात्रा का कठिनतम भाग। पहली परीक्षा तो शुरू में ही डण्डीधार की चढाई में हो जाती है। जो लोग डण्डीधार से निकल जाते हैं उनके लिये उससे भी बडी परीक्षा अब शुरू होती है। बायें सीधे खडे ऊंचे ऊंचे पहाड और दाहिने दूर तक जाता ढलान। यहां नीचे से ऊपर तक पत्थर ही पत्थर हैं। अगर ऊपर से कोई एक पत्थर गिर जाता है तो वो जल्दी ही गोली की स्पीड पकड लेता है और तडातड- तडातड जैसी बडी भयंकर आवाज करता हुआ नीचे लुढकना शुरू कर देता है। साथ ही अपने साथ दो चार पत्थरों को भी ले आता है। स्पीड इतनी होती है कि कभी कभी तो बडा पत्थर भी लुढकता लुढकता टूट टूटकर टुकडे टुकडे हो जाता है। अब जब यह पत्थर वर्षा नीचे से गुजर रहे लोगों पर होगी तो क्या होगा। नैन सरोवर तक मैंने भी दो बार ऐसे पत्थर लुढकते खुद देखे हैं। वो तो अच्छा था कि भीडभाड नहीं होती यहां और तडातड तडातड की आवाज आते ही नीचे वाले लोग चौकस हो जाते हैं और अपने को सुरक्षित कर लेते हैं लेकिन फिर भी यह रास्ता जानलेवा तो है ही।
यहां पर भी लोगों ने शॉर्ट कट बना रखे हैं। ऊपर जहां से अक्सर पत्थर गिरते रहते हैं, कुछ लोग सीधे वही चढ जाते हैं। ऐसा करने से हालांकि दो घण्टे तो बचते होंगे लेकिन जान हाथ पर रखकर ही जाते होंगे वे लोग। जब मैंने उधर सिर उठाकर देखा कि चीटियों से भी नन्हे लोग दिख रहे थे, मैंने तो सीधे चलने में ही भलाई समझी। कुछ पत्थर उनकी वजह से भी गिर जाते हैं। और लोग बाग मरते भी होंगे- पक्की बात है।
पार्वती बाग से हल्की चढाई और करीब दो किलोमीटर के बाद आता है नैन सरोवर। छोटा सा बर्फ से घिरा हुआ सरोवर। पानी भी लगभग जमा हुआ था। यहां मुझे सन्दीप और विपिन बैठे मिले। ये पार्वती बाग से मुझसे करीब आधे घण्टे पहले निकल चुके थे जबकि मैं नाश्ता करता रह गया था। मेरे नैन सरोवर पहुंचते ही सन्दीप बोला कि यहां अब ज्यादा आराम मत करो, वापस भी आना है, चलो। और वो चल पडा। मैंने कहा कि भाई, आगे पानी नहीं मिलेगा। अपनी बोतल का मैं इस्तेमाल नहीं करने दूंगा। ऐसा करो कि मेरे पास पन्नियां हैं, यहां से पानी भरकर ले चलो। बोतल केवल मेरे ही पास थी। सन्दीप ने कहा कि नहीं, हम बिना पानी के काम चला लेंगे। विपिन पन्नी लेने की सोच रहा था कि सन्दीप ने मना कर दिया। और वो चला गया।
विपिन मेरे बैग से पानी की बोतल निकालकर ले गया और नैन सरोवर से भरकर ले आया। उसने बोतल बैग में वापस रखी और वो भी चला गया। मैं अकेला रह गया। शरीर में कहीं भी ना तो दर्द था ना ही अकडन। चलते समय सांस भी नहीं फूल रही थी। लेकिन यहां नैन सरोवर पर आकर जब मैं अकेला रह गया तो मानसिक सन्तुलन गडबड होने लगा, बुद्धि उल्टी होने लगी। अभी तक सन्दीप जहां हीरो लग रहा था वही अब विलेन लगने लगा। सोचने लगा कि सुबह उठने से लेकर सन्दीप ने कहीं भी मेरा साथ नहीं दिया। अब जबकि रास्ता जानलेवा है, बन्दा अपना शक्ति प्रदर्शन करने आगे आगे चला गया। किस बात का शक्ति प्रदर्शन? श्रीखण्ड पहले पहुंचकर वो क्या सिद्ध करना चाहता है, क्या दिखाना चाहता है? ठीक है, उसमें मेरे मुकाबले स्टेमिना ज्यादा है, मुझसे तेज चल सकता है लेकिन क्या मेरे धीरे चलने की वजह से वो इस तरह छोड देगा?
यहां नैन सरोवर पर उस समय काफी तेज धूप निकली हुई थी। चलते हुए जब कहीं थक जाता हूं तो कभी भी बैठकर आराम नहीं करता हूं, बल्कि खडे खडे ही सुस्ता लेता हूं। लेकिन अब मैं नैन सरोवर के किनारे एक पत्थर पर बैठा हुआ था। इस जगह की ऊंचाई मेरे अन्दाजे से करीब 4200 मीटर होगी। आगे श्रीखण्ड की ओर देखने पर सिवाय पत्थरों के और उनपर आते जाते लोगों के कुछ नहीं दिख रहा था। यहां से सीधी चढाई भी शुरू होती है। अब मेरा मन आगे जाने का बिल्कुल नहीं कर रहा था। सोचने लगा कि आगे जाने की हिम्मत नहीं है। थोडी देर यहीं बैठकर सुस्ताता हूं, फिर वापस चला जाऊंगा। मेरे बसकी बात नहीं है आगे जाना। श्रीखण्ड जाकर मुझे धार्मिक पूजा पाठ तो करने नहीं हैं, मान लेता हूं कि नैन सरोवर देखने ही आया था। वापस भीमद्वारी जाकर जहां सन्दीप और विपिन ने अपना सारा सामान छोड रखा है, दुकान वाले से बता दूंगा कि वे दोनों शाम को जब आये तो उनसे बता देना कि नीरज वापस चला गया है। अब वो तुम्हे दिल्ली में ही मिलेगा।
क्या मानता है सन्दीप अपने आप को? ठीक है कि रास्ता लम्बा है, और शाम तक हर हाल में वापस भी लौटना है तो क्या अपने साथ वालों के साथ चलना भी जरूरी नहीं। जब तक साथी पीछे है, क्या तुम दर्शन करके वापस जा सकोगे। अगर साथी एक दिन लेट होता है तो तुम्हे भी एक दिन लेट होना ही पडेगा। करेरी झील की यात्रा याद आ गई जब करेरी गांव से पहले गप्पू जी दो किलोमीटर की चढाई चढने में बिल्कुल असमर्थ हो गये थे। अन्धेरा होने लगा था और हमें करेरी गांव में पहुंचकर रहने के लिये भी ढूंढ मचानी थी। गांव देहात में अन्धेरा हो जाने पर रुकने की दिक्कत होती है। गप्पू ने मुझसे खूब कहा कि तू आगे चला जा और कहीं रुकने का इंतजाम कर लेना। लेकिन मैंने गप्पू को वही छोड देना ठीक नहीं समझा। ठीक यही घटना आज फिर दोहराई जा रही थी। लेकिन आज मैं खुद गप्पू के रोल में था।
पूरे दिमाग में नकारात्मकता हावी थी। सन्दीप के जाने के पौने घण्टे बाद मैं वापस जाने के लिये उठा। नैन सरोवर का आखिरी फोटो खींचा। तभी कानों में किसी की आवाज पडी- "भोले बाबा ने यहां तक ठीकठाक पहुंचा दिया तो आगे भी पहुंचायेंगे।" बस तभी कदम मुड गये और श्रीखण्ड की ओर चल पडे- "भोले बाबा ने यहां तक पहुंचाया है तो आगे भी पहुंचायेंगे।" हां, इतना बदलाव जरूर हो गया था कि अब मैं ना तो सन्दीप के बारे में सोच रहा था ना ही मुझे उसकी फिक्र थी। लक्ष्य था बस श्रीखण्ड।
नैन सरोवर से आगे का रास्ता पूरी यात्रा का सबसे ज्यादा खतरनाक और जानलेवा रास्ता है। केवल चट्टाने और उनसे भी ज्यादा पत्थर। कहीं कहीं बर्फ भी। यहां ऑक्सीजन की कमी साफ महसूस होती है। जबरदस्त सुस्ती छाती है। मेरे पास बिस्कुट के दो पैकेट थे। श्रीखण्ड तक पहुंचते पहुंचते वे दोनों पैकेट खत्म हो गये। जहां भी रुक जाता, वहां से उठने को बिल्कुल भी मन नहीं करता। दो बार तो मैं लेट भी गया और नींद भी ले ली। कई बार तो लगता कि आगे चढने का रास्ता ही नहीं है, चढूंगा कैसे? लेकिन धीरे धीरे सब फतह। अगर लगातार सौ मीटर भी चल लिये तो खुश हो जाता था कि बहुत चल लिया अब रुकना चाहिये।
धीरे धीरे भीम बही तक पहुंच गया। यह जगह श्रीखण्ड से करीब एक किलोमीटर पहले है। यहां बडी बडी चट्टाने हैं और ताज्जुब की बात ये है कि इन्हें देखकर लगता है कि किसी ने इन्हें काटकर करीने से लगा रखा है। साथ ही चट्टानों पर एक नियमित पैटर्न में छोटे छोटे गड्ढे भी हैं। कहा जाता है कि यह कारनामा महाबली भीम का है। वह इनपर अपना कुछ हिसाब किताब लिखा करते थे, इसीलिये इन्हें भीम बही कहते हैं। यहीं मुझे सन्दीप और विपिन वापस आते मिले। मुझे देखते ही सन्दीप बोला कि -"हम एक घण्टे से तेरी बाट देख रहे थे। जब तू नहीं आया तो हमने मान लिया कि तू वापस चला गया है। आ, वापस चल, अभी तुझे एक घण्टा और लग जायेगा। फिर कब तू वापस नीचे पहुंचेगा?" सन्दीप एक ऊर्जावान इंसान है। उसके मुंह से ‘वापस चल’ जैसी नकारात्मक बात सुनकर दिल को झटका लगा।
मैंने कहा -“जब तुमने ये सोच लिया था कि नीरज वापस चला गया है और अब आपको पता चलता है कि वो धीरे धीरे अपनी मंजिल की तरफ बढ रहा है तो आपको उसका हौंसला बढाना चाहिये या हौंसला तोडना चाहिये।" सन्दीप ने इस बात का जवाब नहीं दिया और कहा -“मेरी बात मान ले। वापस चल। तुझसे कितना कहा था कि अपने इस भारी बैग को वही छोड दे जहां हमने छोड रखे हैं। लेकिन तू तो बडा जिद्दी है। भुगत नतीजा, इसी की वजह से तू इतना धीरे धीरे चल रहा है।" मैंने बिना श्रीखण्ड पहुंचे वापस जाने से मना कर दिया। और श्रीखण्ड था भी कितना- मात्र एक किलोमीटर और यह एक किलोमीटर चढाई भी नहीं थी। मेरा इरादा जानकर सन्दीप ने कहा -“ठीक है। तू नहीं मानता तो ठीक है। हम तुझे भीमद्वारी के उसी टेण्ट में मिलेंगे। रात नौ बजे तक पहुंचने की कोशिश करना।" तभी मेरे दिमाग में आया कि सन्दीप पहाड पर ऊपर चढने के मुकाबले नीचे उतरने में बिल्कुल खत्म है। और वापसी में सारा रास्ता भयानक उतराई का है तो मैं भीमद्वारी तक इन्हें पकड सकता हूं -“ऐसा मत कहो। देखना मैं तुम्हे भीमद्वारी वाले तम्बू में बैठा मिलूंगा।" तभी विपिन ने कहा- “भाई, थोडा बहुत अमृत हो तो देना।" उसका इशारा पानी की तरफ था। नैन सरोवर से जो बोतल भरकर मैं चला था वो थोडी ही देर में खाली हो गई थी। फिर इसमें बर्फ भर ली थी। अब बर्फ पिघलने से तो रही लेकिन जब भी प्यास लगती थी तो एकाध घूंट पानी मिल ही जाता था। मैंने उसे बोतल दी और कहा कि देखले अगर एकाध घूंट पानी निकल जाये। हालांकि सन्दीप ने उसे पानी पीने से रोका भी था लेकिन विपिन नहीं माना। रोका इसलिये था कि मैंने नैन सरोवर पर ही कह दिया था कि यहां से पानी ले चलो, मैं अपनी बोतल नहीं दूंगा।
श्रीखण्ड महादेव से जरा सा पहले ही करीब सौ मीटर तक बर्फ थी। इसे पार करके निकलना था। मुझे कोई दिक्कत नहीं हुई और थोडी देर में मैं उस शिला के सामने खडा था जिसके दर्शन करने मैं यहां आया था। करीब 72 फीट ऊंची चट्टान है यह। इसे शिवलिंग मानकर इसकी पूजा की जाती है। बराबर में ही एक चट्टान इस तरह की है जिसके तीन किनारे निकले हुए हैं, इसे शिव का त्रिशूल माना जाता है। बहुर दूर एक बहुत नुकीली चोटी दिखती है जिसे शिव का पुत्र कार्तिकेय माना जाता है। मुझे यहां ना तो पूजा पाठ करना था ना ही ज्यादा देर रुकना था। बस पांच-चार फोटो खींचे और वापस चल पडा। वापस चलते ही तेज बारिश शुरू हो गई। बारिश का इंतजाम मेरे पास था ही- रेनकोट। बारिश के साथ साथ बर्फ भी गिरनी शुरू हो गई थी लेकिन ना तो बारिश ना ही बर्फ ज्यादा देर पडी। इस बारिश का यह नतीजा यह हुआ कि रास्ते के पत्थर गीले होने के साथ साथ रपटीले भी हो गये।
कुल मिलाकर मैं पांच बजे तक वापस नैन सरोवर पहुंच गया। नैन सरोवर से श्रीखण्ड की दूरी को तय करने में मुझे 6 घण्टे लगे थे जबकि वापसी में इसे मैंने मात्र पौने दो घण्टे में पार कर लिया। मैं ही जानता हूं कि उस समय मेरी स्पीड क्या थी। लेकिन दिमाग में बस एक ही बात घूम रही थी कि हर हाल में सन्दीप और विपिन से पहले टेण्ट में पहुंचना है क्योंकि मैंने उनसे जोश जोश में कह दिया था कि तुम्हें टैण्ट में मिलूंगा। जान जाये पर वचन ना जाये। और हुआ भी ऐसा ही। पार्वती बाग में दोनों बैठे मिल गये। मैगी खा रहे थे। फिर तो उनसे पहले भीमद्वारी वाले टैण्ट में पहुंचना औपचारिकता थी।
आज की यात्रा मेरे लिये शारीरिक ना होकर मानसिक यात्रा थी। शरीर में थकावट तो थी ही नहीं। कई बार मन में आया कि छोड, वापस चल। लेकिन हर बार कदम बढते गये और आखिरकार मंजिल पर पहुंच गया। सन्दीप के बारे में जितनी भी धारणाएं बनी, वापस आकर सब खत्म। एकदम नॉर्मल। 5200 मीटर से भी ज्यादा ऊंचाई पर है श्रीखण्ड। इससे पहले मैं कभी इतनी ऊंचाई पर नहीं चढा था।

नीचे छोटा सा नैन सरोवर

यह है वो पार्वती बाग से नैन सरोवर तक पथरीला रास्ता जहां ऊपर से पत्थर गिरते रहते हैं। गौर से देखा जाये तो आने-जाने वाले लोग भी दिखते हैं।

नैन सरोवर


नैन सरोवर के किनारे सन्दीप

नैन सरोवर से आगे का मार्ग। लाल गोले में कोई जाता या आता भी दिख रहा है।

नैन सरोवर के किनारे वापस जाने के बारे में सोच-विचार

और आखिरकार श्रीखण्ड की तरफ चल ही पडे।



भयानक सुस्ती छाती है और लेटने को मन करता है। मेरा नहीं, सभी का।






वो रहा श्रीखण्ड महादेव। अभी दिख तो नजदीक ही रहा है जबकि यहां से वहां तक पहुंचने में कम से कम तीन घण्टे लगेंगे।


यह कोई शॉर्ट कट नहीं है बल्कि ‘हाइवे’ है। लाल पीले निशान दिख रहे हैं ना, तो समझो कि ‘हाइवे’ ही है।

बारिश में यहां क्या हाल होता होगा। फिर भी लोग जाते हैं और यात्रा होती रहती है।

भीमबही। ऐसे कितनी ही चट्टानें पडी हैं यहां।

और सभी सलीके से तह की हुई। है ना आश्चर्य की बात।


आखिर में करीब सौ मीटर तक बर्फ है। वापस लौटते समय इस पर चलने वाले करीब सभी लोग जरूर फिसलते हैं। अति सावधानी से चलने के बावजूद मैं भी फिसल गया था। सन्दीप के अनुसार एक बूढा आदमी तो फिसलकर बस ‘पाताल’ लोक में चला ही गया था कि बर्फ से बाहर निकली एक छोटी सी चट्टान के सहारे रुक गया।

जय हो श्रीखण्ड महादेव की। साथ में त्रिशूल।



दूर जो नुकीली चोटी दिख रही है, उसे कार्तिकेय माना जाता है। वहां तक कोई नहीं जाता।














यह है टैण्ट वाले का हिसाब। हम इसके यहां दो रात रुके थे। रुकना, खाना, पीना सबकुछ तीन आदमियों का मिलाकर 1030 रुपये बैठे थे।

अगला भाग: श्रीखण्ड यात्रा- भीमद्वारी से रामपुर


श्रीखण्ड महादेव यात्रा
1. श्रीखण्ड महादेव यात्रा
2. श्रीखण्ड यात्रा- नारकण्डा से जांव तक
3. श्रीखण्ड महादेव यात्रा- जांव से थाचडू
4. श्रीखण्ड महादेव यात्रा- थाचडू से भीमद्वार
5. श्रीखण्ड महादेव यात्रा- भीमद्वार से पार्वती बाग
6. श्रीखण्ड महादेव के दर्शन
7. श्रीखण्ड यात्रा- भीमद्वारी से रामपुर
8. श्रीखण्ड से वापसी एक अनोखे स्टाइल में
9. पिंजौर गार्डन
10. सेरोलसर झील और जलोडी जोत
11. जलोडी जोत के पास है रघुपुर किला
12. चकराता में टाइगर फाल
13. कालसी में अशोक का शिलालेख
14. गुरुद्वारा श्री पांवटा साहिब
15. श्रीखण्ड यात्रा- तैयारी और सावधानी

Comments

  1. बहुत अच्छी यात्रा प्रस्तुति है!
    रक्षाबन्धन के पुनीत पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएँ!

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  2. हो गया श्रीखण्ड फ़तेह हमसे पहले,
    वापस भी उतर आये,
    पहाड में कभी भी जानलेवा जिद नहीं करनी चाहिए,
    एक बार हम सात लोग ऐसी ही किसी दुर्गम जगह जा रहे थे,
    एक साथी जो चलने में हिम्मत हार गया था,
    हम जबरदस्ती उसे आगे ले कर गये,
    लेकिन नतीजा वापसी में उसे सब ने मिलकर कंधों पर ढोया था,
    वो भी चार किलोमीटर तक,
    वो तो तुम्हारी उतराई की शताब्दी वाली रफ़्तार थी, जो तुम अंधेरा होने से पहले आ गये थे,
    नहीं तो उन दुर्गम पहाडों में फ़ंसने वालों से पूछॊं कि क्या बीतती है।
    पहाड में कभी भी पहलवान ना बनो।

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  3. "क्या मानता है सन्दीप अपने आप को? ठीक है कि रास्ता लम्बा है, और शाम तक हर हाल में वापस भी लौटना है तो क्या अपने साथ वालों के साथ चलना भी जरूरी नहीं। जब तक साथी पीछे है, क्या तुम दर्शन करके वापस जा सकोगे। अगर साथी एक दिन लेट होता है तो तुम्हे भी एक दिन लेट होना ही पडेगा। करेरी झील की यात्रा याद आ गई जब करेरी गांव से पहले गप्पू जी दो किलोमीटर की चढाई चढने में बिल्कुल असमर्थ हो गये थे। अन्धेरा होने लगा था और हमें करेरी गांव में पहुंचकर रहने के लिये भी ढूंढ मचानी थी।"

    आप जब थक कर चूर हो जाते हो और तन-मन को तोड़ देने वाली चढ़ाई से सामान होता है तो आप के साथी का मानसिक और भावनात्मक संबल ही आपको चढ़ने के लिए जरूरी उर्जा देता है. शक्ति प्रदर्शन इसमें नहीं है कि, आप अकेले कितनी तेजी से चढ़ रहे हैं, बल्कि इसमें है की आप दूसरों के साथ कितन सहयोग करते हुए चढ़ रहे हैं. हम साथ इसी लीये ढूँढते हैं. मान लीजिये आप की या आपके साथी की तबियत ख़राब हो गई या कोई मुसीबत आ गई तो मिल कर सामना किया जा सकता है. नीरज ने करेरी की चढ़ाई में मेरा साथ दिया और आगे भी देना चाहिए यही सच्ची घुमक्कड़ी है वरना साथ जाने का कोई मतलब ही नहीं है.

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  4. "दूर जो नुकीली चोटी दिख रही है, उसे कार्तिकेय माना जाता है। वहां तक कोई नहीं जाता।"
    अब आप चंडाल चौकड़ी उसे भी फतह कर आओ......

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  5. बहुत खूब कहा गप्पू जी......
    १००% सहमत....

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  6. नीरज भाई श्रीखंड यात्रा आपने फतह कर ली उसके लिए बहुत -बहुत बधाई बहुत ही खतरनाक रास्ते है भाई आपने हौंसला नहीं तोडा बहुत अच्छा किया वरना हम जैसा तो वंही से वापिस आ जाता पर इतना जरुर कहुगां जब साथ -साथ गए है तो सफ़र में भी साथ -साथ चलना चाहिए था ...

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  7. नीरज भाई बहुत सुंदर लगी आप की यह यात्रा, फ़ोटू भी बहुत सुंदर लगे, यात्रा रोमांच से भरी हे, क्योकि हम तो यहां अकसर ऎसी बर्फ़ मे आते जाते हे.लेकिन यहां बहुत सहुलियत होती हे, जब कि जहां आप गये वहां सिर्फ़ भगवान के सहारे ही आगे जाना हे.

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  8. हर हर महादेव!
    दर्शन कर हम भी धन्य हुए!
    आभार!

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  9. अनुपम यात्रा, हर पल रोमांच से भरी।

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  10. पढ़ते-देखते तीर्थ लाभ सा आनंद.

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  11. नीरज जाट की जय हो...ऐसी लोमहर्षक यात्रा करना हर किसी के बस नहीं है...आप तीनो महान हैं....

    नीरज

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  12. खतरनाक यात्रा ! पढ़ा भी नही जा रहा हैं और देखा भी नही जा रहा है ..?????? होश गुम ????

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  13. This comment has been removed by the author.

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  14. जय हो बाबा श्री खंड महादेव जी की...... नीरज जी इस कठिन यात्रा को पढकर हम भी धन्य हो गए. वाकई में ये कठिनतम यात्राओ में सबसे कठिन यात्रा हैं........लेख के लिए धन्यवाद...............

    हमने भी अपनी यात्रा अगला भाग प्रकाशित कर दिया हैं....
    माउन्ट आबू : अरावली पर्वत माला का एक खूबसूरत हिल स्टेशन .........2

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  15. दुर्गम यात्राओं में साथियों के साथ इसलिए जाते हैं कि वक्त जरुरत पर काम आए। सभी को एक साथ निर्णय करके सहमति से चलना चाहिए।

    इस बात को तो मैं भी मानुंगा कि तुम्हे अकेला छोड़ कर बाकी साथियों ने ठीक नहीं किया। उन्हे तु्म्हारे साथ ही जाना चाहिए था।

    चलो इसी बहाने एक परीक्षा तुमने पास ली। :)

    बाकी तो सब ठीक रहा, बढिया यात्रा कर ली। इस कठिन यात्रा को सलामती के साथ पुरी करने के लिए बधाई और शुभकामनाएं।

    जय भोले बाबा की।
    राम राम

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  16. जय हो महाराज...इससे ज्यादा क्या कहें.

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  17. कमाल के घुमक्कड़ हो गुरु. मैंने तो तुम्हारे यात्रा वृत्तान्त खूब पढ़े. लगता है जैसे खुद वहां घूम रहे हों. सचिन भारत रत्न के लायक नहीं है. इस विषय पर तार्किक एवं दिमाग खोलने वाला आलेख पढ़े. http://sachin-why-bharat-ratna.blogspot.com

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  18. jat is great==== jagbir kataria 9871240876

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  19. Thanks, aap logo ke karan hum darshan kar paye.

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  20. Request he aap logo se ki jagah ki details or photos thoda zyada liyjiye, hum mehsus karte he ki hum ghar par bhaite wahan par ghum rahe hain. Aap khush raho

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  21. श्रीखंड महादेव , श्रीखंड महादेव और श्रीखंड महादेव . बस सुबह शाम यही दिल दिमाग में छाया हुआ है. सुबह उठते ही श्रीखंड महादेव, ऑफिस पहुचते ही श्रीखंड महादेव , घर आते ही श्रीखंड महादेव . लैपटॉप खोला की श्रीखंड महादेव. अब कुछ और नहीं सूज रहा है. इसलिए यहाँ भी चला आया ................

    पहली बात तो आप चारो को मेरा साष्टांग नमस्कार. क्या बढ़िया यात्रा है. वाह क्या कहना. और क्या लिखा है. वाह मैं तो आपका मुरीद हो गया हूँ नीरज जी. मेरे पास तो शब्द है ही नहीं आप बहादुर घुमक्कड और रोमांचक जाटो और पंडितो के बारे में तारीफ़ करने के लिए. मैं तो सोच ही नहीं पाता की एक एक क्षण आपने किस प्रकार काटा होगा . मैंने गिरनार की यात्रा की थी लेकिन उसमे सीढिया थी. करीब साडे चार घंटे बाद फ़तेह प्राप्त की और अपने को तीस मार खान समज बैठा था. लेकिन माफ करना यहाँ की अगर आधी यात्रा भी हो जाए तो मैं समज लूँगा की यात्रा पूरी हो गयी मेरी.

    आपको मेरी आत्मा से आभार की आपने मुझे इस पवित्र स्थल के दर्शन कराए .धन्यवाद धन्यवाद धन्यवाद......................

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  22. Har Har Mahadev..
    apne hame itnii achi mansik yatra karai.. bahut bahut dhanyawd.
    ye to dharti pe swarg hai...

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  23. आपकी सारी यात्राओ में यह मुझे बहुत ही रोमांचक यात्रा लगी .. पहाड़ो की गहराईयों से रोंगटे खड़े हो गये , बहुत बढ़िया पूरा वृतांत पढ़ा तो जैसे मेरी भी यात्रा हो गयी ...

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  24. Jab sath-sath gaye the to sath-2 hi rehna chahiya tha, nahi to saath-2 jane ka koi arth hi nahi hai.
    Thanks.

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इन पुस्तकों का परिचय यह है कि इन्हें जिम कार्बेट ने लिखा है। और जिम कार्बेट का परिचय देने की अक्ल मुझमें नहीं। उनकी तारीफ करने में मैं असमर्थ हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि उनकी तारीफ करने में कहीं कोई भूल-चूक न हो जाए। जो भी शब्द उनके लिये प्रयुक्त करूंगा, वे अपर्याप्त होंगे। बस, यह समझ लीजिए कि लिखते समय वे आपके सामने अपना कलेजा निकालकर रख देते हैं। आप उनका लेखन नहीं, सीधे हृदय पढ़ते हैं। लेखन में तो भूल-चूक हो जाती है, हृदय में कोई भूल-चूक नहीं हो सकती। आप उनकी किताबें पढ़िए। कोई भी किताब। वे बचपन से ही जंगलों में रहे हैं। आदमी से ज्यादा जानवरों को जानते थे। उनकी भाषा-बोली समझते थे। कोई जानवर या पक्षी बोल रहा है तो क्या कह रहा है, चल रहा है तो क्या कह रहा है; वे सब समझते थे। वे नरभक्षी तेंदुए से आतंकित जंगल में खुले में एक पेड़ के नीचे सो जाते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि इस पेड़ पर लंगूर हैं और जब तक लंगूर चुप रहेंगे, इसका अर्थ होगा कि तेंदुआ आसपास कहीं नहीं है। कभी वे जंगल में भैंसों के एक खुले बाड़े में भैंसों के बीच में ही सो जाते, कि अगर नरभक्षी आएगा तो भैंसे अपने-आप जगा देंगी।

ट्रेन में बाइक कैसे बुक करें?

अक्सर हमें ट्रेनों में बाइक की बुकिंग करने की आवश्यकता पड़ती है। इस बार मुझे भी पड़ी तो कुछ जानकारियाँ इंटरनेट के माध्यम से जुटायीं। पता चला कि टंकी एकदम खाली होनी चाहिये और बाइक पैक होनी चाहिये - अंग्रेजी में ‘गनी बैग’ कहते हैं और हिंदी में टाट। तो तमाम तरह की परेशानियों के बाद आज आख़िरकार मैं भी अपनी बाइक ट्रेन में बुक करने में सफल रहा। अपना अनुभव और जानकारी आपको भी शेयर कर रहा हूँ। हमारे सामने मुख्य परेशानी यही होती है कि हमें चीजों की जानकारी नहीं होती। ट्रेनों में दो तरह से बाइक बुक की जा सकती है: लगेज के तौर पर और पार्सल के तौर पर। पहले बात करते हैं लगेज के तौर पर बाइक बुक करने का क्या प्रोसीजर है। इसमें आपके पास ट्रेन का आरक्षित टिकट होना चाहिये। यदि आपने रेलवे काउंटर से टिकट लिया है, तब तो वेटिंग टिकट भी चल जायेगा। और अगर आपके पास ऑनलाइन टिकट है, तब या तो कन्फर्म टिकट होना चाहिये या आर.ए.सी.। यानी जब आप स्वयं यात्रा कर रहे हों, और बाइक भी उसी ट्रेन में ले जाना चाहते हों, तो आरक्षित टिकट तो होना ही चाहिये। इसके अलावा बाइक की आर.सी. व आपका कोई पहचान-पत्र भी ज़रूरी है। मतलब