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Showing posts from June, 2010

मैं जंगल में भटक गया

इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें । कुल्लू के पास बिजली महादेव का मन्दिर है। यहां से पूरा कुल्लू शहर और भून्तर साफ-साफ दिखाई देते हैं। जाने का एकमात्र रास्ता कुल्लू से ही है। लेकिन मैने इरादा किया भून्तर की तरफ से उतरने का। उतरने लगा तो कुछ चरवाहे मिले। उन्होने रास्ता बता दिया। उनके बताये रास्ते पर चलते हुए कुछ दूर जाने पर नीचे उतरती सीढियां मिलीं। सामने बहुत दूर पार्वती नदी दिख रही थी और मणिकर्ण जाने वाली सडक भी। सडक पर चलती हुईं कारें, बसें बहुत नन्ही-नन्ही दिख रही थीं। शाम के पांच बजे के आसपास का टाइम था। मैने अपना लक्ष्य रखा दो घण्टे में यानी सात बजे तक नीचे नदी तक उतरने का। पहाडों का जो थोडा बहुत अनुभव था, उससे अन्दाजा लगाया कि दो घण्टे में नदी तक उतरना बहुत मुश्किल काम है। इसीलिये चलने की स्पीड भी बढा दी।

कुल्लू के चरवाहे और मलाना

इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें । बिजली महादेव ऐसी जगह पर है जहां से ब्यास घाटी और पार्वती घाटी दूर-दूर तक दिखाई देती है। कुल्लू और भून्तर भी दिखते हैं। यहां आने का एकमात्र रास्ता कुल्लू से ही है। मैं भी कुल्लू की तरफ से ही गया था लेकिन वापस कुल्लू की तरफ से नहीं लौटा। इरादा था कि भून्तर की तरफ से लौटूंगा। हालांकि इस तरफ कोई रास्ता नहीं है। जब मैं भून्तर की तरफ नीचे उतरने लगा तो कुछ दूर दो चरवाहे और कुछ गायें-भैंसें दिखीं। सोचा कि ये चरवाहे कुछ ना कुछ सहायता तो कर ही देंगे। अगर इन्होंने मना कर दिया तो बिजली महादेव अभी ज्यादा दूर भी नहीं है, वापस कुल्लू चला जाऊंगा। मैने इनसे पूछा कि भाई, इधर से कोई भून्तर जाने का रास्ता है? “रास्ता तो नहीं है, लेकिन नीचे उतरते चले जाओगे तो पहुंच जाओगे।”

बिजली महादेव

इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें । पिछले दिनों आपने पढा कि मैं कुल्लू चला गया । फिर कुल्लू से बिजली महादेव । आज बिजली महादेव का पौराणिक वर्णन पढेंगे, जो मन्दिर के पास ही लिखा हुआ है। “श्री भगवान शिव के सर्वोत्तम तपस्थान (मथान) 7874 फुट की ऊंचाई पर है। श्री सदा शिव इस स्थान पर तप योग समाधि द्वारा युग-युगान्तरों से विराजमान हैं। सृष्टि में वृष्टि को अंकित करता हुआ यह स्थान बिजली महादेव जालन्धर असुर के वध से सम्बन्धित है। दूसरे नाम से इसे कुलान्त पीठ भी कहा गया है। सात परोली भेखल के अन्दर भोले नाथ दुष्टान्त भावी, मदन कथा से नांढे ग्वाले द्वारा सम्बन्धित है। यहां हर वर्ष आकाशीय बिजली गिरती है। कभी ध्वजा पर तो कभी शिवलिंग पर बिजली गिरती है। जब पृथ्वी पर भारी संकट आन पडता है तो भगवान शंकर जी जीवों का उद्धार करने के लिये पृथ्वी पर पडे भारी संकट को अपने ऊपर बिजली प्रारूप द्वारा सहन करते हैं। जिस से बिजली महादेव यहां विराजमान हैं।”

कुल्लू से बिजली महादेव

इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें । 5 जून, 2010, शनिवार। सुबह लगभग दस-ग्यारह बजे कुल्लू पहुंच गया। बस अड्डे से ब्यास के उस तरफ वाला पहाड बहुत ही आकर्षित कर रहा था। उसी पर कहीं बिजली महादेव है। बस अड्डे पर घूम ही रहा था कि ढाबे वालों ने घेर लिया कि साहब, आ जाओ। परांठे खाओ, चाय पीयो। इधर अपनी भी कमजोरी है आलू के परांठे, समोसे, ब्रेड पकौडे; या तो चाय के साथ या फिर फैण्टा-मरिण्डा के साथ। पेल दिये दो परांठे चाय के साथ। खा-पीकर आगे के लिये तैयार हुए। बिजली महादेव का ही इरादा था। हिमाचल में मुझे यही एक बात सबसे अच्छी लगती है कि जिन रास्तों पर बस जा सकती है, बस नियमित अन्तराल पर जाती है। यही मामला बिजली महादेव का भी है। सामने दो-तीन बस वाले मनाली-मनाली चिल्ला रहे थे। और सभी में सवारियां भी भरी पडी थीं। एक से पूछा कि भाई, बिजली महादेव के लिये कोई बस मिलेगी भी या नहीं। बोला कि अभी दस मिनट पहले पौने बारह बजे निकली है। अब तो तीन घण्टे बाद पौने तीन बजे ही आयेगी। उसने मुझे टैक्सी करने की सलाह दे डाली। अब इधर हम टैक्सी से दूर ही दूर रहते हैं। जिस काम को बस बीस रुपये मे

मैं कुल्लू चला गया

बहुत दिन हो गये थे कहीं बाहर गये हुए। कभी अप्रैल में यमुनोत्री गया था। दो महीने होने को थे। इस बार सोचा कि हिमालय में नहीं जायेंगे, चलो राजस्थान चलते हैं। माउण्ट आबू तय हो गया, सात जून का वापसी का आरक्षण भी करा लिया। लेकिन चार जून आते-आते दिल्ली में पारा 47 डिग्री को पार कर गया। गर्मी से होश ठिकाने लग गये। राजस्थान में तो 51 पार चला गया था। ऐसे में राजस्थान में घूमना आनन्ददायक नहीं कहा जा सकता। आरक्षण कैंसिल करा दिया। अब फिर से हिमाचल या उत्तराखण्ड। गर्मी है, तो कहीं नदी घाटी में जाऊंगा। उत्तराखण्ड में उत्तरकाशी या चमोली से पहले सही नहीं लगा। यानी दिन भर का जाना और दिन भर का आना। फिर घूमने को बचेगा ही क्या। आखिरकार तय हुआ हिमाचल में मणिकर्ण। मणिकर्ण पार्वती घाटी में स्थित है। कुल्लू-मनाली जाते समय कुल्लू से जरा सा पहले भून्तर पडता है। भून्तर से ही मणिकर्ण के लिये रास्ता जाता है और यही से पार्वती घाटी शुरू हो जाती है। यहां ब्यास-पार्वती संगम भी है।

रेल एडवेंचर- अलवर से आगरा

हां तो, पिछली बार आपने पढा कि मैं रेवाडी से अलवर पहुंच गया। अलवर से बांदीकुई जाना था। ट्रेन थी मथुरा-बांदीकुई पैसेंजर। वैसे तो मुझे कोई काम-धाम नहीं था, लेकिन रेल एडवेंचर का आनन्द लेना था। मेरा तरीका यही है कि किसी भी रूट पर सुबह के समय किसी भी पैसेंजर ट्रेन में बैठ जाओ, वो हर एक स्टेशन पर रुकती है, स्टेशन का नाम लिख लेता हूं, ऊंचाई भी लिख लेता हूं, फोटो भी खींच लेता हूं। हर बार किसी नये रूट पर ही जाता हूं। आज रेवाडी-बांदीकुई रूट पर निकला था। अलवर तक तो पहुंच गया था, अब आगे जाना है।