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तीन धर्मों की त्रिवेणी – रिवालसर झील

हिमाचल प्रदेश के मण्डी जिले में मण्डी से लगभग 25 किलोमीटर दूर एक झील है – रिवालसर झील। यह चारों ओर पहाडों से घिरी एक छोटी सी खूबसूरत झील है। इसकी हिन्दुओं, सिक्खों और बौद्धों के लिये बडी ही महिमा है। महिमा बाद में सुनायेंगे, पहले वहां पहुंचने का इन्तजाम कर लें। भारत की राजधानी है नई दिल्ली। यहां से लगभग 250 किलोमीटर दूर एक खूबसूरत शहर है – हरियाणा-पंजाब की राजधानी भी है यह – चण्डीगढ। इसे हिमाचल का प्रवेश द्वार भी कह सकते हैं। यहां से शिमला, कांगडा और मनाली की बसें तो जाते ही मिल जाती हैं। मनाली वाले रास्ते पर स्थित है प्रसिद्ध नगर मण्डी। मण्डी से कुछ पहले नेर चौक पडता है। मण्डी और नेर चौक दोनों जगहों से ही रिवालसर की बसें बडी आसानी से मिल जाती हैं। इसका एक नाम पद्मसम्भव भी है।



कहते हैं कि बौद्धों के महान तान्त्रिक और गुरू पद्मसम्भव यहां से तिब्बत गये थे। यहां के एक गोम्पा में उनकी मूर्ति है। इस मन्दिर का बाहरी हिस्सा तिब्बती शैली में बना है। एक और किस्सा यह है कि गुरू पद्मसम्भव साधना के लिये यहां आये थे। तत्कालीन मण्डी नरेश की पुत्री उनकी शिष्या बनी और बाद में पत्नी भी। राजा ने इसे अपमान समझा और पद्मसम्भव को जला देने का हुक्म दे दिया। लेकिन आग की लपटें जलरूप में बदल कर झील बन गयी। इसी झील का नाम हुआ पद्मसम्भव।

रिवालसर का एक सम्बन्ध लोमश ऋषि से भी जुडा है। उन्हे एक तपस्या स्थल की खोज थी, जो उन्हे यहां मिला। झील के किनारे ही उनका मन्दिर है। साथ में एक शिवालय और कृष्ण मन्दिर भी है। सिक्ख धर्म से भी इसका महत्व जुडा हुआ है। सिक्खों के दसवें गुरू गोविन्द सिंह हिमाचल प्रवास के दौरान 1758 में यहां आये थे। उन्होनें मुगल सम्राट औरंगजेब से टक्कर लेने के लिये और जीतने के लिये गुरू पद्मसम्भव से आशिर्वाद लिया था। मैं इस यात्रा में उस ऐतिहासिक गुरुद्वारे में नहीं जा सका।

मैने चण्डीगढ से रात को बारह बजे मण्डी डिपो की बस पकडी। उसने केवल साढे चार घण्टे में ही मुझे मण्डी में फेंक दिया। पूरा मण्डी सोया पडा था। सुबह-सुबह की ठण्ड थी, इसलिये चादर ओढनी पडी। सामने ही एक चायवाले की दुकान खुली थी, लगातार दो कप चाय पी। वहीं बैठे बैठे सात बजा दिये। अब इरादा था पराशर झील जाने का। वहां जाने के लिये थोडा बहुत पैदल भी चलना पडता है। पता चला कि कटौला जाने वाली पहली बस ग्यारह बजे मिलेगी। कटौला पराशर का बेस कैम्प है। तभी एक सरदारजी ‘रिवालसर, रिवालसर’ चिल्लाते हुए अपनी बस को ले जाने लगे। अपन भी चढ लिये उसी में।

रिवालसर में शान्ति पसरी हुई थी। तिब्बती लोग कुछ तो अपनी दुकानें खोल रहे थे, कुछ झील की परिक्रमा कर रहे थे। बाकी की कहानी चित्रों की जुबानी:



जय लोमश


लोमश मन्दिर के सामने ही शिवालय


रिवालसर झील

गुरू पद्मसम्भव



गोम्पा का प्रवेश द्वार

गोम्पा में बंधा एक घण्टा (कौन बजाता होगा इसे)

श्रद्धालु इन कटोरियों में पानी भर रहे हैं। मैने इस बाबा से पूछा भी था कि यह मामला क्या है। लेकिन इन्हे मेरी भाषा समझ ही नहीं आयी।

उनमें घी के विशालकाय कटोरे हैं। लगातार ‘दिये’ जलते रहते हैं।

मणी, इन्हे पुण्य पाने के लिये घुमाया जाता है। इनमें मन्त्र भरे हुए हैं, एक चक्कर घुमाने पर सभी मन्त्रों का एक बार जाप करने के बराबर पुण्य मिलना माना जाता है।


यहां इस गोम्पा का पूरा इतिहास लिखा है। लेकिन इस बोर्ड के सामने एक कार खडी थी, इसलिये सामने से इसका फोटू नहीं ले पाया।

अगर आपको मालूम है तो कृपया बतायें कि ये क्या हैं।

झील की परिक्रमा करता हुआ

साफ स्वच्छ पानी में शानदार प्रतिबिम्ब

कुत्ते को बिस्कुट खिलाता एक बौद्ध भिक्षु

रिवालसर का प्राकृतिक सौन्दर्य

Comments

  1. कम से कम बता दिया करो ऐसी धार्मिक जगहों पे जाने से पहले तो और अच्छा रहेगा . ये इलाका चमत्कारी गुरु लोगों का है उन्हें मैं भी प्रणाम करता हूँ .सही है ...श्रद्धा का मामला है वैसे कोई ज़्यादा सुन्दर भी नहीं है ये जगह . पाराशर जाते तो और बात थी . वहां भी एक बौद्ध पगोडा है छोटा सा . खैर...तुम्हारी इस जानकारी से जनता लाभान्वित होगी इसमें कोई शक़ नहीं . नेक काम कर रहे हो बन्धु .

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  2. कम से कम बता दिया करो ऐसी धार्मिक जगहों पे जाने से पहले तो और अच्छा रहेगा . ये इलाका चमत्कारी गुरु लोगों का है उन्हें मैं भी प्रणाम करता हूँ .सही है ...श्रद्धा का मामला है वैसे कोई ज़्यादा सुन्दर भी नहीं है ये जगह . पाराशर जाते तो और बात थी . वहां भी एक बौद्ध पगोडा है छोटा सा . खैर...तुम्हारी इस जानकारी से जनता लाभान्वित होगी इसमें कोई शक़ नहीं . नेक काम कर रहे हो बन्धु .

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  3. प्रातःकाल ही त्रिवेणी के दर्शन हो गए. गुरु पद्मसंभव शिव जी जैसे लग रहे हैं. घंटा तो गजब का है. बिलकुल ऐसे ही एक घंटा भीमाशंकर (ज्योतिर्लिंग) में भी लटका हुआ है.

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  4. ऐसी सब जगहों पर सिर्फ आप और आप ही पहुँच सकते हो, प्रभु...धन्य भये जो आप ब्लॉग लिखने लगे वरना तो इस जीवन में इनके बारे में जान भी न पाते.

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  5. घुमक्कडी जिंदाबाद

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  6. हिन्दी ब्लाग जगत के लिये बडी ही अच्छी खबर है कि मुसाफिर जी अब हफ्ते में तीन पोस्ट प्रकाशित करेंगे.

    फोटो बहुत ही शानदार आई हैं.

    प्रयास

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  7. प्रातःकाल ही त्रिवेणी के दर्शन हो गए.

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  8. उड़न तश्तरी समीर लाल जी की बातों से सौ टका सहमत...घुमक्कडी में आप सबके गुरु हो...जय गुरुदेव...
    नीरज

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  9. नीरज भैया आप तो असली इंडिया को खोज खोज कर हमें दिखा रहे हो . क्या बात है पापा तो आपके ब्लॉग को दुसरो को पढने को कहते है , किसी को कही जाना होता है तो उससे आप के ब्लॉग के बारे में बताते है और कहते है की अगर मुसाफिर वहां गया है तो उसकी रिपोर्टिंग देख लो , तब वहां जाओ .
    आप को incredible india का ब्रांड एम्बस्दर होना चिहिए . लेह -लदाख की मेरी आरजू कब पुरी करोगे

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  10. बाबा मुझे तो तुम भी पिछले जन्म के साधू ही लगते हो, जो मस्त मोला की तहह जिधर दिल हुआ निकल लिये... बहुत सुंदर लगी यह जगह ओर चित्र सभी बहुत अच्छॆ लगे.
    धन्यवाद

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  11. बहुत सुन्दर पोस्ट!
    घुमक्कडी वास्तव में जिन्दाबाद नीरज जाट जी!

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  12. भाई नीरज,
    पंचों की राय हमारी भी राय। मस्त घुमक्कड़ हो यार। सच में बहुत आनंद आता है तुम्हारी पोस्ट पढ़कर। माधव का आईडिया बिल्कुल सही है, BRAND AMBASSADOR of incredible INDIA.

    लगे रहो।

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  13. सुन्दर चित्र, रोचक विवरण ।

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  14. कभी समय मिला, तो चक्कर अवश्य लगाया जाएगा।

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  15. वाह मजा आ गया...!!! अच्छे चित्र है...

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  16. नीरज भाई बहुत बढ़िया पोस्ट पता नहीं था हमारे इतने पास इतने रमणीक स्थल है
    चित्र में छोटी छोटी नावे जैसी चीजे क्या थी कृपया बताये ।

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  17. नीरज भाई चित्र मे जो फलिया है वो भूत वृक्ष की है. अंग्रेजी नाम Oroxylum indicum है. सुंदर विवरन

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  18. Bike se jaana jyada better hai, badiya yatra

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