वो किस्सा तो सभी को पता ही है – अरे वो ही, शिवजी-सती-दक्ष वाला। सती ने जब आत्महत्या कर ली, तो शिवजी ने उनकी अन्त्येष्टि तो की नहीं, बल्कि भारत भ्रमण पर ले गये। फिर क्या हुआ, कि विष्णु ने चक्र से सती की ’अन्त्येष्टी’ कर दी। कोई कहता है कि 51 टुकडे किये, कोई कहता है 52 टुकडे किये। हे भगवान! मरने के बाद सती की इतनी दुर्गति!!! जहाँ जहाँ भी ये टुकडे गिरे, वहीं शक्तिपीठ बन गयी। एक जगह पर नाभि भाग गिरा, वो पर्वत की चोटी पर गिरा और पर्वत में छेद करके नीचे नदी तक चला गया। यह नदी और कोई नहीं, भारत-नेपाल की सीमा निर्धारित्री शारदा नदी है। अब पता नहीं कैसे तो लोगों ने उस छेद का पता लगाया और कैसे इसे सती की नाभि सिद्ध करके शक्तिपीठ बना दिया। लेकिन इससे हम जैसी भटकती आत्माओं की मौज बन गयी और भटकने का एक और बहाना मिल गया। इस शक्तिपीठ को कहते हैं पूर्णागिरी। यह उत्तराखण्ड राज्य के कुमाऊं अंचल में चम्पावत जनपद की टनकपुर तहसील के अन्तर्गत आता है। जिस तरह से जम्मू व कटरा पर वैष्णों देवी का रंग छाया है, उसी तरह टनकपुर पर पूर्णागिरी का। आओ, पहले आपको टनकपुर पहुंचा देते हैं-
नीरज मुसाफिर का यात्रा ब्लॉग