Skip to main content

वो बाघ नहीं, तेन्दुआ था

अभी मैं एक किताब पढ़ रहा था- "रुद्रप्रयाग का आदमखोर बाघ"। यह जिम कार्बेट द्वारा लिखित पुस्तक The Man-eating Leopard of Rudraprayag का हिंदी अनुवाद है। इस किताब में अनुवादक ने Leopard का हिंदी अनुवाद 'बाघ' किया है। जबकि तस्वीर तेन्दुए की लगा रखी है। पूरी किताब में अनुवादक ने बाघ ही लिखा है। इसमें दो चित्र और भी हैं जिसमे कार्बेट साहब मृत आदमखोर तेन्दुए के पास बैठे हैं। तस्वीर देखने पर साफ़ पता चलता है कि रुद्रप्रयाग में 1918 से 1926 तक जबरदस्त 'नरसंहार' करने वाला वो आदमखोर बाघ नहीं था, बल्कि तेन्दुआ था।
...
असल में बात ये है कि हमें आज तक इन जानवरों की पहचान नहीं है। बिल्ली परिवार के बड़े सदस्यों में शेर, बाघ, चीता व तेन्दुआ आते हैं। शेर की पहचान तो उसकी गर्दन पर चारों और लम्बे-लम्बे बालों से हो जाती है। अब बचे बाघ, चीता व तेन्दुआ। वैसे भारत भूमि से चीता तो गायब हो ही चुका है। बाघ व तेन्दुआ काफी संख्या में हैं। आज का 'रिसर्च' इन्ही के बारे में है।

...
बाघ के पूरे शरीर पर काली-काली धारियां होती हैं। चीते व तेंदुए के शरीर पर चित्तियाँ होती हैं। बाघ बड़े व भारी शरीर अनुपात का मालिक है जबकि चीते व तेंदुए हलके व छोटे शरीर अनुपात वाले होते हैं। तीसरी बात, बाघ पेड़ पर नहीं चढ़ सकता जबकि चीता व तेंदुआ दोनों पेड़ पर चढ़ सकते हैं। अगर इन लक्षणों को देखें तो बाघ की भी पहचान हो गयी है। अब मामला चीते व तेंदुए का रह गया है।
...
तेंदुए एक बड़ी बिल्ली से लेकर गाय की लम्बाई तक के होते हैं। चीते व तेंदुए में सबसे बड़ा फर्क है कि चीते की आँखों के कोनों से नीचे मूंछों तक नाक के दोनों तरफ काली लकीर होती है। ऐसा लगता है कि जैसे चीता रो रहा हो। और आंसुओं से यह निशान बन गया हो। जबकि तेंदुए के यह नहीं होता। इसके अलावा चीते व तेंदुए में और भी फर्क हैं जो इस समय मुझे नहीं पता।
...
मैं अंग्रेजी में बिलकुल जीरो के करीब हूँ। फिर भी इतना पक्का पता है कि शेर को LION कहते हैं, बाघ को TIGER कहते हैं, तेंदुए को PANTHER व LEOPARD कहते हैं और चीते को कहते हैं- CHEETAH.
...
अब आते हैं किताब पर। इसमें कार्बेट साहब ने कई जगह उस आदमखोर के पेड़ पर चढ़ने का जिक्र किया है- इसका मतलब ये है कि वो बाघ तो बिलकुल भी नहीं था, क्योंकि बाघ पेड़ पर चढ़ ही नहीं सकता। पूरे हिमालय में बाघ व तेंदुए पाए जाते हैं, इसलिए स्थानीय बोलचाल में आम लोग दोनों को ही बाघ कह देते हैं। जिम साहब ने तो बिलकुल सही लिखा है लेकिन अनुवादक ने अच्छे खासे निर्दोष बाघ को नरभक्षी बना दिया। और हाँ, अभी ताऊ पत्रिका- 37 में विनीता यशस्वी ने भी रुद्रप्रयाग के बारे में लिखा है। उन्होंने भी इसे बाघ ही लिखा है जो कि बिलकुल गलत है। तो अब से इस किताब का नाम होना चाहिए- रुद्रप्रयाग का आदमखोर तेंदुआ।
(किताब का हिन्दी संस्करण। ऊपर तो लिखा है- बाघ और चित्र है तेंदुए का)

(जिम कार्बेट मरे हुए आदमखोर तेंदुए के साथ)


(बाघ)

(शेर)

(तेन्दुआ)

(चीता)
(बाद के चारों चित्र गूगल से सर्च करके उठाये गए हैं। मकसद केवल इतना है कि इन सभी जानवरों की ठीक से पहचान हो सके। किसी को दिक्कत हो तो हटा दूँगा)
पुस्तक के अनुवादक: राकेश थपलियाल
प्रकाशक: नटराज पब्लिकेशन, देहरादून।
मूल्य: हार्ड बैक (150 रूपये)
पेपर बैक: पता नहीं।

Comments

  1. इस रहस्य को उजागर करने के लिए,
    आभार!

    ReplyDelete
  2. इस अनुवाद के बारे में जानकारी देने के लिए आभार। हां बाघ की जगह तेंदुआ ही होना चाहिए था। वन्य बिड़ालों के सही नाम के बारे में मैंने अपने ब्लोग कुदरतनामा में भी विस्तार से लिखा है -

    जंगली बिड़ाल

    लेकिन आपके लेख में एक कमी रह गई। आपने यह नहीं बताया कि पुस्तक का प्रकाशक कौन है, उसका मूल्य कितना है, तथा अनुवाद किस स्तर का है।

    यदि ये जानकारियां भी होतीं, तो यदि कोई इस पुस्तक को खरीदना चाहे, तो उसे सुविधा होती।

    संभव हो तो पोस्ट में यह जानकारी भी जोड़ दें, या अगले पोस्ट में यह जानकारी दे दें।

    मुझे लगता है कि अनुवादक को इस बात से धोखा हुआ है कि जिम कोर्बेट ने मैनईटिंग टाइगर्स ऑफ कुमाऊं नाम की एक अधिक प्रसिद्ध किताब भी लिखी है, जिसमें उन्होंने आदमखोर बाघों की चर्चा की है। अनुवादक के ध्यान में यह किताब रही होगी और उसने तेंदुए की जगह बाघ लिख दिया।

    जो भी हो, यदि अनुवाद अच्छा हुआ हो, तो यह हिंदी शिकार साहित्य में एक महत्वपूर्ण इजाफा माना जाएगा।

    पुस्तक के अगले संस्करण में बाघ को सुधारकर तेंदुआ किया जा सकता है।

    ReplyDelete
  3. इस तरफ़ ध्यान दिलाने के लिये आप बधाई के पात्र हैं और आप सिर्फ़ घुमक्कड ही नहि बल्कि पैनी नजर भी वन्य जीवन पर रखते हैं.

    रामराम.

    ReplyDelete
  4. हां और आपकी वन्य जीवन पर जानकारी भी अच्छी है. उस रोज बंदर और लंगूर का फ़र्क भी आपने ही समझाया था.:)

    रामराम.

    ReplyDelete
  5. वो अनुवाद करने वाला मेरे जैसा रहा होगा जी। चलो किताबों का सदुपयोग शुरु हो गया। लगे रहिए जमे रहिए जी।

    ReplyDelete
  6. तेंदुए और चीते में सबसे बड़ा फर्क ये होता है नीरज कि चीते के धब्बे बिलकुल स्याह होते हैं जबकि तेंदुए के चित्र में देखो उसके धब्बों के बीच खाली जगह साफ़ दिख रही है ! तेंदुआ हमेशा इंसानी आबादी के निकट रहना पसंद करता है . ये मुम्बई के फिल्म सिटी इलाके में भी हैं और दिल्ली के निकट मानेसर के जंगलों में भी . हरियाणा में कलेसर का जंगल इनके लिए जाना जाता है जो हिमाचल के सिरमौर ज़िले से लगता है ! गाँव वाले इन्हें बाघ ही कहते हैं सो शायद इस लिए ऐसा लिखा गया , मगर हाँ बिल्ली परिवार का शास्त्रीय अध्ययन कहता है कि बाघ धारीदार होता है और इसे शेर भी कहते हैं , बालों वाला होता है बब्बर -शेर .! तेंदुआ सारे भारत में मिलता है !

    ReplyDelete
  7. बहुत सुंदर लगा आप का लेख, बहुत अच्छी जानकारी दी आप ने
    धन्यवाद

    ReplyDelete
  8. हिन्दी पट्टी ऐसा ही गोबर करती आयी है -आपका विवरण बहुत सही -चित्र के साथ ! बहुत बहुत आभार !

    ReplyDelete
  9. @ बालसुब्रमन्यम जी,
    मैं जल्दी ही प्रकाशक और अनुवादक का नाम इसमें जोड़ दूंगा. धन्यवाद.

    @मनीष जी,
    ये चित्र तो केवल अंदाजा लगाने के लिए हैं. ऊपर किताब के कवर पेज पर जो चित्र है वो भी तेन्दुए का ही है. लेकिन उसमे धब्बे बिलकुल स्याह दिख रहे हैं.

    @ अरविन्द जी,
    असल में अनुवादक गढ़वाली ही है. पहाड़ पर आम बोलचाल में बाघ और तेन्दुए दोनों को बाघ ही बोला जाता है, इसलिए उन्होंने ऐसा लिख दिया.
    हिंदी पट्टी को "गोबर" कहना सही नहीं है. हम और आप भी तो हिंदी पट्टी ही हैं.

    ReplyDelete
  10. @Arvind Mishra

    श्रीमान आप खुद हिंदी की खाकर हिंदी वालों को गोबर कह रहे हैं? जरा सोच समझकर कहा किजिये। आपका लिहाज कर रहे हैं वर्ना हम भी कुछ कह सकते हैं।

    ReplyDelete
  11. Neeraj bhai this is a pic. taken from the front. Rest of the body of an adult leopard has space between spotted circles . I saw one on the roadside near Gulmarg(J&K) and this feature is standard everywhere.

    ReplyDelete
  12. हमारे लिए भी ये जानकारी बिल्कुल नवीन है!!
    बहुत बढिया चित्रमयी पोस्ट्!
    आभार्!

    ReplyDelete
  13. भाई मज़ेदार बात तो यह है कि यह अंतर हमारे यहाँ स्कूल के सभी बच्चों को पता है क्योंकि वे नियमित ज़ू जाते है जहाँ हर पिंजरे के आगे इन प्राणियों की नेमप्लेट लगी है } यह गलती तो बड़े लोग करते हैं ।

    ReplyDelete
  14. अगली बार तेंदुआ दिखेगा तो नीरज आपकी याद जरूर आएगी। :)
    शुक्रिया इस जानकारी के लिए !

    ReplyDelete
  15. Sir, Phir ye Guldar kya hota hai.
    Thanks.

    ReplyDelete
  16. इसमें गलती नहीं है
    पहाड़ में तेंदुए को बाघ और बाघ को शेर बोला जाता है
    इसलिए ट्रांसलेटर ने ऐसा लिखा है
    उन्हें तेंदुआ लिखना चाहिए था

    ReplyDelete
  17. You need to make a correction in your article. Among all, only Leopard can climb up on the tree comfortably. Not cheetah.
    Lion and Tiger they face much difficulty to climb on the trees.

    ReplyDelete
  18. काठगोदाम रेलवे स्टेशन पर मैने 3 पुस्तकें खरीदी थी
    1कुमाऊं के नरभक्षी
    2 रुद्रपयाग का आदमखोर
    3 जंगल की कहानी
    वास्तव में ये तीनो पुस्तकें जिम कॉर्बेट की पुस्तकों के हिंदी अनुवाद थे।
    सभी पुस्तकों को पढ़ने के बाद मैंने कौतुहलवश नेट पर इसके बारे में सर्च किया तो पाया कि
    रुद्रपयाग का आदमखोर #बाघ# नही #तेंदुआ# था। उसके लिए अंग्रेजी शब्द #लेपर्ड# प्रयुक्त था, और चित्र में भी कॉर्बेट का शिकार तेंदुआ है।
    दूसरा आश्चर्य तब हुआ जब मैं कुमाऊं के नरभक्षी के शेर के बारे में पाया कि वो #शेर# शब्द #बाघ# के लिए प्रयुक्त हुआ है।वैसे इन त्रुटियों के बावजूद किताबें बहुत रोचक हैं।
    मुझे उत्तराखंड की नई जगहों जैसे, चुका बीच, लध्या वैली, कालाढूंगी के बारे में जानने को मिला।
    और किताब पढकर ये भी सुखद आश्चर्य हुआ कि 1935 में हमारी वन्य सम्पदा इतनी समृद्ध थी कि #नैनीताल#जैसे शहर से मात्र 1 किमी की दूरी पर #बाघ# विचरण करते थे। उनका स्थानीय निवासियों से मुठभेड़ का कोई विवरण नही है। सिवाय इक्का दुक्का मामले , जैसे-नैनिताल के पास एक बाघ एक चरवाहे की भैसों का रास्ता रोककर खड़ा हो गया, दूसरे मामले में उल्लेख तब है जब बाघ ने साइकिल से जा रहे पोस्टमैन का रास्ता काटा।
    अद्भुत वन्य जीवन।
    और 2018 में हम पाते है कि शेर पूरी दुनिया मे केवल 2 जगह ही बचे हैं- अफ्रीका और भारत
    भारत मे भी केवल 300 के आस पास वो भी केवल गुजरात के गिर में
    बाघ- ये वास्तव में थोड़े बहुत इसलिए बच गए क्योंकि इनके वीएएस स्थान मनुष्य के बहुत अनुकूल नही थे, जैसे- नेपाल की तराई, सुंदरवन डेल्टा , यहां विपरीत परिस्थिति के कारण बाघ बच गए
    तेंदुआ- पेंथेरा परिवार के 4 सदस्यों में तेंदुआ ही है जो अनुकूलन क्षमता और पेड़ पर चढ़ने की कुशलता के कारण बहुतायत में हैं
    चीता- पेंथेरा परिवार का बहुत दुर्भाग्यशाली सदस्य , उसका वास आखिर मैदानों में जो था, और मैदानों में खेत बनने थे, सो सबसे पहले समाप्त होने वाले जीव में चीता ही रह। वर्तमान में भारत मे चीता की जनसंख्या शून्य है, क्योंकि मैदानों को विश्व की दूसरी सबसे बड़ी जनसँख्या का भरण पोषण जो करना है इसलिए चीता का अस्तित्व नगण्य है।

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

46 रेलवे स्टेशन हैं दिल्ली में

एक बार मैं गोरखपुर से लखनऊ जा रहा था। ट्रेन थी वैशाली एक्सप्रेस, जनरल डिब्बा। जाहिर है कि ज्यादातर यात्री बिहारी ही थे। उतनी भीड नहीं थी, जितनी अक्सर होती है। मैं ऊपर वाली बर्थ पर बैठ गया। नीचे कुछ यात्री बैठे थे जो दिल्ली जा रहे थे। ये लोग मजदूर थे और दिल्ली एयरपोर्ट के आसपास काम करते थे। इनके साथ कुछ ऐसे भी थे, जो दिल्ली जाकर मजदूर कम्पनी में नये नये भर्ती होने वाले थे। तभी एक ने पूछा कि दिल्ली में कितने रेलवे स्टेशन हैं। दूसरे ने कहा कि एक। तीसरा बोला कि नहीं, तीन हैं, नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली और निजामुद्दीन। तभी चौथे की आवाज आई कि सराय रोहिल्ला भी तो है। यह बात करीब चार साढे चार साल पुरानी है, उस समय आनन्द विहार की पहचान नहीं थी। आनन्द विहार टर्मिनल तो बाद में बना। उनकी गिनती किसी तरह पांच तक पहुंच गई। इस गिनती को मैं आगे बढा सकता था लेकिन आदतन चुप रहा।

जिम कार्बेट की हिंदी किताबें

इन पुस्तकों का परिचय यह है कि इन्हें जिम कार्बेट ने लिखा है। और जिम कार्बेट का परिचय देने की अक्ल मुझमें नहीं। उनकी तारीफ करने में मैं असमर्थ हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि उनकी तारीफ करने में कहीं कोई भूल-चूक न हो जाए। जो भी शब्द उनके लिये प्रयुक्त करूंगा, वे अपर्याप्त होंगे। बस, यह समझ लीजिए कि लिखते समय वे आपके सामने अपना कलेजा निकालकर रख देते हैं। आप उनका लेखन नहीं, सीधे हृदय पढ़ते हैं। लेखन में तो भूल-चूक हो जाती है, हृदय में कोई भूल-चूक नहीं हो सकती। आप उनकी किताबें पढ़िए। कोई भी किताब। वे बचपन से ही जंगलों में रहे हैं। आदमी से ज्यादा जानवरों को जानते थे। उनकी भाषा-बोली समझते थे। कोई जानवर या पक्षी बोल रहा है तो क्या कह रहा है, चल रहा है तो क्या कह रहा है; वे सब समझते थे। वे नरभक्षी तेंदुए से आतंकित जंगल में खुले में एक पेड़ के नीचे सो जाते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि इस पेड़ पर लंगूर हैं और जब तक लंगूर चुप रहेंगे, इसका अर्थ होगा कि तेंदुआ आसपास कहीं नहीं है। कभी वे जंगल में भैंसों के एक खुले बाड़े में भैंसों के बीच में ही सो जाते, कि अगर नरभक्षी आएगा तो भैंसे अपने-आप जगा देंगी।

ट्रेन में बाइक कैसे बुक करें?

अक्सर हमें ट्रेनों में बाइक की बुकिंग करने की आवश्यकता पड़ती है। इस बार मुझे भी पड़ी तो कुछ जानकारियाँ इंटरनेट के माध्यम से जुटायीं। पता चला कि टंकी एकदम खाली होनी चाहिये और बाइक पैक होनी चाहिये - अंग्रेजी में ‘गनी बैग’ कहते हैं और हिंदी में टाट। तो तमाम तरह की परेशानियों के बाद आज आख़िरकार मैं भी अपनी बाइक ट्रेन में बुक करने में सफल रहा। अपना अनुभव और जानकारी आपको भी शेयर कर रहा हूँ। हमारे सामने मुख्य परेशानी यही होती है कि हमें चीजों की जानकारी नहीं होती। ट्रेनों में दो तरह से बाइक बुक की जा सकती है: लगेज के तौर पर और पार्सल के तौर पर। पहले बात करते हैं लगेज के तौर पर बाइक बुक करने का क्या प्रोसीजर है। इसमें आपके पास ट्रेन का आरक्षित टिकट होना चाहिये। यदि आपने रेलवे काउंटर से टिकट लिया है, तब तो वेटिंग टिकट भी चल जायेगा। और अगर आपके पास ऑनलाइन टिकट है, तब या तो कन्फर्म टिकट होना चाहिये या आर.ए.सी.। यानी जब आप स्वयं यात्रा कर रहे हों, और बाइक भी उसी ट्रेन में ले जाना चाहते हों, तो आरक्षित टिकट तो होना ही चाहिये। इसके अलावा बाइक की आर.सी. व आपका कोई पहचान-पत्र भी ज़रूरी है। मतलब