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Showing posts from April, 2009

मेरठ की शान है नौचन्दी मेला

अप्रैल के महीने में लगने वाला नौचन्दी मेला मेरठ की शान है। इन दिनों यह मेला अपने पूरे शबाब पर है। यह शहर के अंदर नौचन्दी मैदान में लगता है। हर तरफ से आने जाने के साधन सिटी बसें, टम्पू व रिक्शा उपलब्ध हैं। इसकी एक खासियत और है कि यह रात को लगता है। दिन में तो नौचन्दी ग्राउंड सूना पड़ा रहता है। नौचन्दी यानी नव चंडी। इसी नाम से यहाँ एक मंदिर भी है। बगल में ही बाले मियां की मजार है। जहाँ मंदिर में रोजाना भजन-कीर्तन होते हैं वहीं मजार में कव्वाली व कवि सम्मलेन। इसके अलावा एक बड़े मेले में जो कुछ होना चाहिए वो सब यहाँ है। भरपूर मनोरंजन, खाना-खुराक, भीड़-भाड़, सुरक्षा-व्यवस्था सब कुछ।

बैजनाथ मंदिर

इस यात्रा-वृत्तांत को आरंभ से पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक करें । (बैजनाथ पपरोला रेलवे स्टेशन) यह ट्रेन आगे जोगिन्दर नगर तक जाती थी, लेकिन हम बैजनाथ पपरोला स्टेशन पर ही उतर गए। बैजनाथ का जो मंदिर है, वो सामने पहाड़ पर स्थित है। निचले बैजनाथ शहर को पपरोला कहते हैं। यहाँ से मंदिर तक जाने के लिए अनलिमिटेड बसें हैं और पैदल भी ज्यादा दूर नहीं है। बैजनाथ मंदिर की बगल में ही बस अड्डा है।

बैजनाथ यात्रा - काँगड़ा घाटी रेलवे

मुझे राम बाबू चांदनी चौक मेट्रो स्टेशन पर मिला। रात को दस बजे। उसे बुलाया तो था आठ बजे ही, लेकिन गुडगाँव से आते समय धौला कुआँ के पास जाम में फंस गया। खैर, चलो दस बजे ही सही, आ तो गया। एक भारी भरकम बैग भी ले रहा था। पहाड़ की सर्दी से बचने का पूरा इंतजाम था। मैंने पहले ही पठानकोट तक का टिकट ले लिया था। दिल्ली स्टेशन पर पहुंचे। पता चला कि जम्मू जाने वाली पूजा एक्सप्रेस डेढ़ घंटे लेट थी। प्लेटफार्म पर वो ही जबरदस्त भीड़। पौने बारह बजे ट्रेन आई। अजमेर से आती है। ट्रेन में प्लेटफार्म से भी ज्यादा भीड़। लगा कि बैठने-लेटने की तो दूर, खड़े होने को भी जगह नहीं मिलेगी।

एक यादगार रेल यात्रा - नागपुर से दिल्ली

ये भारतीय रेल भी अजीब चीज है। एक तो सबसे ज्यादा लोगों को रोजगार देती है, तो सबसे ज्यादा नौकरियां भी निकालती है। हम भी कई बार इसके झांसे में आये। कहाँ कहाँ जाकर पेपर नहीं दिए? कभी हैदराबाद, कभी नागपुर, कभी गोरखपुर तो कभी चंडीगढ़। इसके पास दो चार तो वैकेंसियाँ होती हैं, हजारों परीक्षार्थियों को बुला लेता है। अपनी अक्ल इतनी तेज है नहीं कि हजारों में से निकल जाएँ। निकलती है तो हमारी फूंक, पेपर को देखते ही। फार्म भी इसलिए भर देते हैं कि कम से कम कहीं जाने का बहाना तो मिलेगा। एक बार बुला लिया जी रेलवे मुंबई वालों ने। पिछले साल नवम्बर की बात है। कुछ दिन पहले यूपी, बिहार वालों की पिटाई हुई थी। तो समझदारी दिखाते हुए रेलवे ने नागपुर में परीक्षा केंद्र बना दिए। हम जा पहुंचे समता एक्सप्रेस (ट्रेन नं। 2808) से। जो रात को दो बजे से पहले ही नागपुर पहुँच जाती है। खैर, ये यात्रा तो कोई ख़ास नहीं रही।