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गुजरात मीटरगेज रेल यात्रा: जेतलसर से ढसा

अंधा क्या माँगे? मुझे ट्रेन में जो बर्थ सबसे ज्यादा पसंद है, वो है अपर बर्थ। आप अपने बैग से कई सामान अपने इर्द गिर्द फैला सकते हैं और चोरी होने व गिरने का डर भी नहीं। मोबाइल को कान के पास रख रकते हैं, कोने में पानी की बोतल, मोबाइल के पास बैटरी बैंक, थोड़ा नीचे कैमरा, केले या अंगूर। यह उन्मुक्तता किसी दूसरी बर्थ पर नहीं मिलती। वरीयता क्रम में इसके बाद मिड़ल बर्थ, लोअर बर्थ, साइड़ अपर और साइड़ लोअर। साइड़ लोअर भले ही पाँचवे नंबर पर हो, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि यह मुझे पाँचवे नंबर पर पसंद है। बल्कि यह बर्थ मुझे सबसे ज्यादा नापसंद है।
और आज जब चार्ट बना तो आर.ए.सी. क्लियर होने के बाद मुझे मिली 39 नंबर की बर्थ - साइड़ लोअर। मैं इस पर जाकर दो अन्य लोगों के बीच जगह बनाता हुआ बैठ गया और इंतज़ार करने लगा कि कोई आये और मुझसे किसी भी बर्थ के बदले बदली कर ले। ज्यादा देर प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी और आठ मुसलमानों के दल के एक सदस्य ने जैसे ही अपनी कहानी सुनानी शुरू की, मैंने तपाक से कहा - “हाँ, बदल लूँगा। कौन-सी बर्थ पर जाना है?” उन्होंने कहा - “22 नंबर पर।” सेकंड का हजारवाँ हिस्सा भी नहीं लगा, गणना करने में कि 22 नंबर वाली बर्थ अपर बर्थ होती है - मेरी पसंद में पहले स्थान पर। उन्होंने मुझे चार बार उसी मीठे गुजराती लहजे में शुकिया कहा, मैंने भी अपने लहजे में दो बार धन्यवाद कह दिया।





और जब सिर के नीचे बैग, उसके पास पानी की बोतल, मोबाईल, अंगूर और चप्पलें अवरोही क्रम में रखकर चादर ओढ़कर लेटा, तो स्वर्गीय आनंद आ गया। मेरी अगर अपर बर्थ ही होती और कोई मुझे बदलने को कहता, तो मैं उन्हें चार बात सुना देता - “सूरज निकलने से पहले तुम्हारा स्टेशन आ जायेगा, तुम्हे सोते-सोते पता भी नहीं चलेगा और तुम ऊपर नीचे सोने के लिए बर्थ बदल रहे हो। आधी रात तक जोड़ तोड़ करके सब आसपास आओगे और फिर उठने की तैयारी कर दोगे।” लेकिन आज उनका प्रस्ताव न नकारने वाला था और न चार बात सुनाने वाला।
यह रात्रिकालीन यात्रा थी अहमदाबाद से जेतलसर तक - सोमनाथ एक्सप्रेस में।
अगले दिन जब रेस्ट हाउस से बाहर निकला तो अचानक सामने खड़ी दक्षिण रेलवे की एक ट्रेन पर निगाह पड़ी। मेरे मुँह से निकल पड़ा - “दक्षिण रेलवे की कौन सी ट्रेन है यह?” एस.एस.ई. साहब ने सुन लिया और बोले - “कोई नहीं, यह ऐसे ही खड़ी है।” इसके जितने भी डिब्बे मुझे दिखे, सब बंद थे और एक भी यात्री नहीं दिख रहा था। मुझे याद आया कि इस मार्ग पर दक्षिण रेलवे की एक ही ट्रेन चलती है - त्रिवेंद्रम वेरावल एक्सप्रेस। लेकिन इसकी टाइमिंग नहीं पता थी। इस ट्रेन में यात्री नहीं हैं, तो इसका मतलब यह सर्विस में नहीं है। तो क्या वेरावल यार्ड में इतनी जगह नहीं है कि इस ट्रेन को उन्होंने यहाँ इतनी दूर भेज दिया? कई सवाल मन में आने लगे। तभी इसकी सीटी सुनायी दी और यह गाड़ी राजकोट की तरफ़ खिसकने लगी। जनरल डिब्बों में कुछ यात्री दिखे और हरी झंड़ी दिखाता गार्ड भी। इसका अर्थ है कि यह ट्रेन सर्विस में है। इंटरनेट पर देखा तो पता चला कि वेरावल से यह सुबह सवेरे चलती है। कुछ यात्री राजकोट से चढ़ेंगे और अहमदाबाद से तो यह पूरी भर ही जानी है।
गार्ड साहब बिहार के औरंगाबाद के रहने वाले थे। एकदम दुबले पतले और दंतपंक्तियाँ भी जीर्ण-शीर्ण। इन्होने बताया कि सोमनाथ से पैसेंजर आएगी, उसके बाद ही यह ट्रेन चलेगी। इन दोनों ट्रेनों की मित्रता है। मित्रता निभाने के लिए इस छोटी ट्रेन को अपने तय समय से ज्यादा रुकना पड़ेगा।
सोमनाथ-राजकोट पैसेंजर 50 मिनट की देरी से आयी। उतनी ही देरी से मीटर गेज की ट्रेन चली। इसे कहते हैं मित्रता। भाईचारा। बड़े भाई और छोटे भाई का भाईचारा। पहले यहाँ सब बराबर था। कोई बड़ा-छोटा नहीं था। सब छोटे ही थे। मीटर गेज। फिर राजकोट से वेरावल का मार्ग ब्रॉड़गेज कर दिया गया। लेकिन यह बड़ा-छोटा ज्यादा दिन नहीं टिकने वाला। जल्दी ही फिर से सब बराबर हो जायेंगे। सब बड़े हो जायेंगे।
वावडी में टिकट बॉक्स गार्ड को दे दिया गया। अब गार्ड साहब टिकट बाँटेंगे। खाखरिया में टिकट बॉक्स वापस कर दिया। वडिया देवली में 155 रुपये के टिकट बिके।
कुंकवाव पहले एक जंक्शन था। यहाँ से तीसरी लाइन के अवशेष केवल गौर करने पर ही दिखायी देते हैं। खेतों के बीच बड़ी-सी पगडंडी जिस पर पत्थरों की भरमार है। अब यह लाइन पुनर्जीवित नहीं होने वाली। राजे-महाराजों ने अपने पैसे ख़र्च कर अपने राज्यों में अच्छा रेल नेटवर्क बना दिया। टिकट महँगे होते थे, इसलिये कोई भी ट्रेन घाटे में नहीं चलती थी। अब आज़ादी के बाद टिकट न केवल सस्ते हो गये, बल्कि सब्सिडी भी दी जाने लगी। नतीज़ा यह हुआ कि ट्रेनें घाटे में चलने लगीं। जिस मार्ग पर सबसे ज्यादा घाटा हो, उस मार्ग को बंद हो जाना पड़ा। गुजरात में ऐसे बहुत-से मार्ग बंद हुए हैं।




हाल्ट स्टेशन तो एक-दो ही हैं। बाकी सब इंटरलोकिंग स्टेशन हैं। इसका मतलब किसी ज़माने में यह लाइन व्यस्त रहती होगी। गेज परिवर्तन हो जायेगा, तो फिर से यह व्यस्त हो जाएगी। शायद इसीलिए रेलवे दिनभर में दो जोड़ी ट्रेनें होने के बावजूद भी इंटरलॉकिंग स्टेशन बरक़रार रखे हुए है।
काली मिट्टी की अधिकता है और कपास बहुत होती है। भूगोल की किताब में पढ़ा करते थे कि फलाँ जगह काली मिट्टी है। वो फलाँ जगह यही है, यह नहीं पता था। और यह प्रश्न ‘इम्पोरटैंट’ होता था। इस कठिन प्रश्न ने भूगोल के पेपर में मेरा बड़ा नुकसान करवाया। पढ़ाई बीस साल की उम्र के बाद शुरू होनी चाहिये। अगर ऐसा होता तो आज मैं आठवीं में होता और बड़ी आसानी से इस काली मिट्टी के प्रश्न में 5 में से 5 नंबर ले आता। और काली मिट्टी में ऐसी कौन-सी चीज होती है जो कपास को पसंद है? अगर इसमें कोई पोषक तत्व ज्यादा होता है तो दूसरी मिट्टी में भी वो तत्व कृत्रिम रूप से बढाकर कपास उगायी जा सकती है।
या काली कलूटी मिट्टी को देखकर गोरी चिट्टी कपास ज्यादा खिलखिलाती है। ज़रूर यही बात है।
भजिया - यह नाम मुझे बड़ा पसंद है और खाने में तो अच्छी लगती ही है। पूरे गुजरात में हल्के फुल्के भोजन के लिए स्टेशनों और बाज़ारों में चौबीस घंटे भजिया मिलती है। ज्यादा सोचने और दिमाग लगाने की ज़रूरत नहीं है। आलू की पकौड़ी कहा जाता है इन्हें हमारे यहाँ। दाल की गोल गोल पकौड़ियाँ, कटी और तली हुई मिर्चें और कच्ची प्याज भी डाल दी जाती है।
खीजड़िया से एक लाइन वेरावल चली जाती है। कुछ ही देर बाद मैं फिर से यहाँ से गुजरूँगा।
ढसा में खाना खा रहा था तो सलाद में कई चीजें बारीक़ कटी हुई थीं - प्याज, गाजर और 'खीरा'। मैंने 'खीरे' का नन्हा-सा टुकड़ा मुँह में डाला तो मुँह खट्टा हो गया। ओह! तो यह कच्चा आम है। कच्चे आम का अचार तो ठीक है, लेकिन सलाद के तौर पर पहली बार खाया। मुझे ज्यादा अच्छा नहीं लगा। ख़राब भी नहीं था।
यह लाइन - मतलब जेतलसर से ढसा तक - जल्दी ही बंद हो जायेगी और इसे ब्रॉड़गेज में बदल दिया जायेगा। काम चालू हो चुका है और ज्यादातर पुल आदि भी बन चुके हैं। फुसफुसाहट है कि इसी साल यह लाइन बंद हो जानी है।












खीजड़िया से वेरावल की ओर जाती लाइन













1. गुजरात मीटरगेज रेल यात्रा: अहमदाबाद से रणुंज
2. गुजरात मीटरगेज रेल यात्रा: जेतलसर से ढसा
3. गिर फोरेस्ट रेलवे: ढसा से वेरावल
4. गुजरात मीटरगेज ट्रेन यात्रा: जूनागढ़ से देलवाड़ा
5. गुजरात मीटरगेज ट्रेन यात्रा: बोटाद से गांधीग्राम
6. आंबलियासन से विजापुर मीटरगेज रेलबस यात्रा



Comments

  1. एक खूब मजेदार पोस्ट। लगता है कि जैतलसर का खूबसूरत भाप क्रेन का फोटो लेना रह गया। एक रोचक नाम वाला स्टेशन है लाठी। तिकोने वाली रेल लाइन फोटो गज़ब कि लग रही है। एक स्टेशन खाखरिया पड़ा होगा जिसका कोड KKK है। तीन अक्षर का एक समान कोड वाला शायद यह एक मात्र ऐसा नाम हो।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद सर...
      तीन समान अक्षर कोड़ वाले और भी स्टेशन हैं... ढोंढा डीह (DDD), गंगागढ़ (GGG), जैजों दोआबा (JJJ), खाखरिया (KKK), मंडपम (MMM), नांगुनेरि (NNN), ववेरा (VVV)।

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    2. कोड वाले समान अक्षर के तो कई स्टेशन हो गए। बहुत बढ़िया।

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    3. vimlesh ji yah neerji hai .... train ka en.pedia hai ...

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  2. बहुत बढ़िया जीवन में ही स्वर्गीय आनंद।

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  3. Ab to aap ko Indian Railway ka brand ambassador bana hi dena chahiye.

    Itni jankari to Prabhu Ji ko bhi nahi hogi jitni aapko hai.

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  4. आपके पोस्ट के मिडिल में जो एडसेंस वाले एड आ रहे हैं, इसके लिए कौन सी सेटिंग का इस्तेमाल किया है?

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    1. यह एड़सेंस कोड़ है... कॉपी पेस्ट करके मैनुअली पोस्ट के बीच में लगा दिया... कोई विशेष सेटिंग नहीं है...

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  5. Dear Neeraj, I am avid fan of your blog and resides in Ahmedabad. In case you are here from & Planning to visit any place then plz let me know would like to board along with you.

    Best Regards & Happy Journey.

    Vikas Soni
    9426781764

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  6. मुझे इन ट्रेन यात्राओं में जो सबसे अच्छा लगता है वो ये कि इन के माध्यम से हम उन जगहों को भी जान पाते हैं जिन्हें और किसी माध्यम से जान पाना शायद असंभव ही होगा ! धन्यवाद नीरज भाई ! भारतीय रेलवे को उत्कृष्ट योगदान देने और उससे परिचित कराने के लिए

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  7. बहुत बढ़िया लेख नीरज भाई ! ग़ज़ब की लेखनी "सेकंड का हजारवाँ हिस्सा भी नहीं लगा, गणना करने में कि 22 नंबर वाली बर्थ अपर बर्थ होती है" !

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  8. खुब बढीया लेखन स्टाइल है निरज भाई और साथफोटोग्राफ़ी भी बहोअच्छी कर लेते हो,खासकर बिस बिस मे काली मिटटी का वृतांत दिया है, सब मिला के पढनेका बहोत आनंद आता, चलते रहीये, और नया नया अनुभव परोसते रहे, और इक बात बताउ मैने भी ढसा से जेतलसर की दो तीन बार रेल की यात्रा की है,वैसे मे खुद सौराष्ट्र का रहेने वाला हूँ, और यह ढसा जेतलसर वाला रुट मेरे गांव से बहोत नजदीक है, मुजे भी आपकी तराह ट्रैन की यात्रा अधिक पसंद है, और कम्फर्टेबल भी होती हैं,

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