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चोपता से दिल्ली बाइक यात्रा

3 नवंबर 2016
सुबह नौ बजे जब मैं कमरे से बाहर निकला और बाइक के पास गया तो होश उड़ गये। इसकी और अन्य बाइकों की सीटों पर पाला जमा हुआ था। मतलब बर्फ़ की एक परत जमी थी। हाथ से नहीं हटी, नाखून से भी नहीं खुरची जा सकी। बमुश्किल लकड़ी व टूटे हुए प्लास्टिक के एक टुकड़े से इसे हटाया। पास में ही कुछ बंगाली ऊपर तुंगनाथ जाने की तैयारी कर रहे थे। आठ-दस साल का एक लड़का मेरे पास आया - ‘क्या यह बर्फ़ है?’ मैंने कहा - ‘हाँ।’ सुनते ही उसने बाकी बच्चों को बुला लिया - इधर आओ सभी, बर्फ़ देखो।
मुझे इसी बात का डर था। मैं शाम के समय ही चोपता आना चाहता था और शाम के समय ही यहाँ से जाना चाहता था। कल तुंगनाथ से लौटने में विलंब हो गया था, तो यहीं रुकना पड़ा। अब रास्ते में ब्लैक आइस मिलेगी। मुझे बड़ा डर लगता है ब्लैक आइस से।



केवल चाय पीकर दस बजे यहाँ से अपने वापसी के सफ़र पर चल दिये।
चोपता 2900 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है और यहाँ से हिमालयी नज़ारा बड़ा शानदार दिखता है, बशर्ते मौसम साफ़ हो। अब मौसम एकदम साफ़ था, इसलिये चौखंबा समेत कई चोटियाँ दिख रही थीं और इस बाइक यात्रा को आनंदमय बना रही थीं।
कई जगह अंधेरे कोनों में ब्लैक आइस की संभवना दिखी। ब्लैक आइस बाइक या कार चलाते हुए दिखायी नहीं देती, लेकिन सर्दियों में ऐसे कोनों में जहाँ धूप नहीं पहुँचती, वहाँ पाला जम जाता है और इस पर बाइक आसानी से फिसल जाती है। जहाँ भी ऐसा होने की संभावना दिखी, वहाँ सड़क पर गीलापन था। यही ब्लैक आइस की निशानी है। ऐसी जगहों पर बाइक यथासंभव सीधी निकाली, बिना मोड़े हुए।
वैसे तो सड़क अच्छी बनी है, लेकिन जहाँ भी कहीं छोटे-मोटे गड्ढे मिलते, बाइक चलाते समय उनका पता ही नहीं चलता। रुककर जाँच की तो पाया कि अगले पहिये में हवा बिलकुल भी नहीं है और पिछले में भी कम है। ट्यूबलेस होने के कारण अगला पहिया मामूली-सा ही दब रहा था और हवा न होने का पता भी नहीं चल रहा था। निशा बड़ी खुश थी कि पिछले पहिये में कम हवा है और उसे झटके नहीं लग रहे।
ऊखीमठ से नीचे सड़क पर बड़ी चहल-पहल थी। स्कूली बच्चे पंक्तियाँ बनाये खड़े थे। लोग नये कपड़ों में थे। असल में चार दिन पहले केदारनाथ के कपाट बंद हुए थे। आज उनकी डोली अपने शीतकालीन निवास ऊखीमठ आयेगी, इसलिये स्वागत के लिये सब खड़े थे। हमारा भी मन था डोली देखने का। फिर सोचा कि आयेगी तो सड़क मार्ग से ही, आगे रास्ते में देख लेंगे। कुंड पहुँच गये, लेकिन डोली का कहीं नामोनिशान नहीं। पता चला कि वह सड़क मार्ग की बजाय छोटे मैदल मार्ग से चली गयी है। फिर हम वापस ऊखीमठ नहीं गये।
इसी दौरान पुलिस की कई गाड़ियाँ केदारनाथ की तरफ़ से आयीं और रुद्रप्रयाग की तरफ़ चली गयीं। इन्हीं में एक गाड़ी में उमा भारती बैठी थीं। कुंड़ में उस समय एकमात्र महिला निशा ही थी, उमा भारती ने उसे देखकर हाथ हिलाया और तेजी से आगे निकल गयीं। निशा बड़ी देर तक खुश रही।
असल में कपाट बंद होने के दिन से लेकर ही उमा भारती केदारनाथ में ही थीं। हो सकता है कि आज वे गुप्तकाशी या पीछे कहीं रुकी हों। पुलिस का एकमात्र हेलीकॉप्टर जो उमा को लेकर जाने वाला था, किसी आपातस्थिति की वजह से नहीं आ सका, इसलिये उन्हें सड़क मार्ग से जाना पड़ा।
भीरी में हवा भरवाई तो पता चला कि अगले पहिये में पंचर है। आसानी से पंचर लग गया। आगे चंद्रापुरी में संकरे पुल और तंग बाज़ार के कारण बड़ी देर तक जाम में खड़े रहे। इसके बाद अच्छी और चौड़ी सड़क मिल जाती है।
रुद्रप्रयाग के अंदर से जायें या बाईपास से - यह दुविधा बड़ी देर तक रही। लेकिन हमें भूख लग रही थी और हम समोसे या पकौड़ियाँ खाना चाहते थे, इसलिये रुद्रप्रयाग शहर से होकर ही गये। भरपेट खाना खाते तो नींद आती और अभी हमें बहुत दूरी तय करनी है। कम से कम हरिद्वार तो पहुँचना ही है, ताकि कल दोपहर तक दिल्ली पहुँचकर दो बजे ड्यूटी कर सकूँ।
दो-दो समोसे खाकर आगे चल दिये। चार बजे सीधे कीर्तिनगर रुके अलकनंदा के पुल पर।
पाँच बजे जब फिर से भूख लगने लगी तो देवप्रयाग के पास एक होटल में चाय और चिप्स ले लिये। भरपेट खाने का खतरा हम अभी नहीं उठा सकते थे। यहाँ किसी न्यूज चैनल पर कोई डिबेट चल रही थी और प्रत्येक डिबेट की तरह शोर मच रहा था, आरोप-प्रत्यारोप हो रहे थे और आख़िर में बिना किसी नतीजे के यह ख़त्म भी हो जायेगी। लेकिन इससे दुकान के सारे कर्मचारी चाय बनाना भूलकर और पैसे लेना भूलकर एकजुट होकर बैठे थे और कांग्रेस की आलोचना कर रहे थे।
उस समय तक नोटबंदी नहीं हुई थी, इसलिये डिबेट का मुद्दा कुछ और ही था।
शिवपुरी तक पहुँचते-पहुँचते सात बज गये और अंधेरा हो गया। मैं अंधेरे में बाइक चलाना पसंद नहीं करता, लेकिन कल दिल्ली पहुँचने की बाध्यता देखकर हरिद्वार तक अंधेरे में चलना पड़ा।
सामने से कोई ट्रक आ रहा है या कार - यह उसकी लाइट देखकर ही पता चल जाता। अगर ड्राइवर हमें आता देखकर अपनी हैडलाइट डाउन कर ले, तो वह ट्रक होता और अगर हमारे बार-बार डाउन करने का इशारा करने के बावज़ूद भी डाउन न करे तो वह कार होती। इन कारों के कारण हमें कई बार रुकना भी पड़ जाता। पहाड़ी घुमाव पर चौंध के कारण पता ही नहीं चलता कि आगे सड़क कहाँ है।
रात में बाइक चलाने का एक फायदा तो होता है - होर्न नहीं बजाना पड़ता। सबकुछ हैड़लाइट ही कर देती है और होर्न से भी ज्यादा प्रभावकारी तरीके से।
रात नौ बजे शांतिकुंज पहुँचे। पास में ही एक ढाबे में खाना खा लिया था। यहाँ कमरे फ्री में मिल जाते हैं, बस आपको कहना होता है - दर्शनों के लिये आये हैं। किसके दर्शन - कोई नहीं पूछता। फार्म के पीछे बहुत सारी हिदायतें लिखी थीं, जिनमें से एक यह भी थी - यहाँ कमरे फ्री अवश्य हैं, लेकिन इसे धर्मशाला मत समझना।
और वास्तव में सुबह तक हमारी हालत यह हो गयी कि हमने कभी भी शांतिकुंज न आने का इरादा कर लिया। इस संस्था में हमारी कोई श्रद्धा नहीं है। इसी साल जनवरी में हम जब नागटिब्बा से लौट रहे थे, तो पहली बार यहाँ रुके थे। शांत माहौल अच्छा लगा था, लेकिन आज सबकुछ उलट था। ज्यादा श्रद्धालु आने के कारण हमें एक हॉल में एक अन्य परिवार के साथ समायोजित किया गया। सुबह तीन बजे जब नींद चरम पर थी, शांतिकुंज अशांतिकुंज बन गया और लाउडस्पीकर पर विकट आवाज में भजन और मंत्र बजने लगे। हमारे बराबर में सोया परिवार भी पक्का श्रद्धालु था और उन्होंने भी अपने मोबाइल में पूरी वॉल्यूम में भजन बजा दिये। कमरे में लाइटें जला दीं और खुसर-पुसर करने की बजाय आपस में पूरी जोर जोर से बातें करने लगे। भोजपुरी भाषी थे। इन्हें टोकने का अर्थ था वाद-विवाद और हम ऐसा नहीं करना चाहते थे।
आख़िरकार साढ़े चार बजे हम भी उठ गये। रजाई-गद्दे जमा करवाये और पाँच बजे यहाँ से चल दिये। सीधे पहुँचे हर की पैड़ी। इस समय भीड़ का सवाल ही नहीं था। लेकिन चहल-पहल थी और पंड़ों ने अपने आसन जमा लिये थे। माँगने वाले गंगा सेवा समिति के लोग भी मुस्तैदी से जुट गये थे। हर की पैड़ी क्षेत्र में प्रवेश करने से पहले ही वे खड़े थे और प्रत्येक यात्री को टोक रहे थे। एक अनजान यात्री ने तो पूछा भी - क्या यहाँ आने के लिये पर्ची कटानी पड़ती है? कर्मचारी ने कहा - नहीं, लेकिन जो भी आपकी श्रद्धा हो, दे दो। यात्री किंकर्तव्यविमूढ़ हो गये। उन्हें कुछ समझ नहीं आया। तब हमने उन्हें समझाया - कोई पर्ची नहीं कटती। ये माँगने वाले लोग हैं। इनकी बातों पर ध्यान मत दो और हर की पैड़ी का आनंद लो।
पानी तो उतना ठंड़ा नहीं था, लेकिन वातावरण बहुत ठंड़ा था। हम दोनों ने सुबह-सुबह गंगा स्नान कर लिया।
रेलवे स्टेशन के सामने एक दुकान पर चाय-पराँठे खाकर दिल्ली की तरफ़ दौड़ लगा दी। बारह बजे दिल्ली पहुँच गये।


बाइक की सीट पर जमा पाला

चोपता







चंद्रापुरी में जाम

स्वारघाट हमारे उत्तराखंड़ में भी है।

हर की पैड़ी




खर्च
31 अक्टूबर 2016
मेरठ - 750 पेट्रोल (69.05 रुपये प्रति लीटर)
बहसूमा - 5 हवा
नजीबाबाद पार - 30 मूँगफली
दुगड्डा - 20 चेन की मरम्मत
गुमखाल - 80 (2 राजमा चावल, 1 अंडा भुज्जी)
ज्वाल्पा देवी - 20 चाय
पौड़ी - 200 कमरा
पौड़ी - 20 चाय
कुल - 1125 रुपये

1 नवंबर 2016
पौड़ी - 50 (2 चाय, 2 पराँठे)
नारकोटी - 120 (2 थाली भरपेट भोजन)
कुंड़ - 20 (2 चाय)
सारी - 45 (4 चाय, 1 चिप्स)
कुल - 235 रुपये

2 नवंबर 2016
तुंगनाथ - 50 (2 चाय, बिस्कुट, नमकीन)
कुल - 50 रुपये

3 नवंबर 2016
चोपता - 1800 (2 रात का कमरा, डिनर, ब्रेकफास्ट)
कुंड़ - 40 (2 चाय, 2 ब्रेड़ पकौड़े)
भीरी - 80 पंचर
अगस्त्यमुनि - 770 पेट्रोल (71.74 रुपये प्रति लीटर)
रुद्रप्रयाग - 80 (2 चाय, 4 समोसे, 1 दही)
देवप्रयाग - 45 (2 चाय, चिप्स)
हरिद्वार - 145 डिनर
कुल - 2960 रुपये

4 नवंबर 2016
शांतिकुंज - 20 रजाई
हरिद्वार - 60 (2 चाय, 2 पराँठे)
मुज़फ़्फ़रनगर - 130 (2 चाय, 1 प्लेट मिक्स पकौड़ी)
मोदीनगर - 50 सिंघाड़े
कुल 260 रुपये

इस यात्रा का कुल खर्च - 4630 रुपये (2 व्यक्ति - निशा और मैं)







1. बाइक यात्रा: मेरठ-लैंसडौन-पौड़ी
2. खिर्सू के नज़ारे
3. देवरिया ताल
4. तुंगनाथ और चंद्रशिला की यात्रा
5. चोपता से दिल्ली बाइक यात्रा





Comments

  1. Niraj,yaar tumse kabhi kbhi jalan hone lagti hai,uttarakhand ke destination delhi se najdik hain,jab man pade bike uthao aur nikal pado,khair bahut achcha yatra vritant padhkar maza aa gaya,achchi awam sukhad yatra ki badhai dost.

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    1. धन्यवाद सर जी, ऐसे ही जलते रहिये और उत्साहवर्धन करते रहिये...

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  2. Neeraj bhoot acha laga pad kar ,god bless both of you sada kush raho

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  3. कुंड़ में उस समय एकमात्र महिला निशा ही थी, उमा भारती ने उसे देखकर हाथ हिलाया और तेजी से आगे निकल गयीं।

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    यह जानकारी और कहाँ मिलेगी ?... इस जानकारी वजह से तो तुम्हारा ब्लॉग अलग है।

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  4. Bahut khub..aisa laga aapke saath hum bhi yatra kar rahe hai.

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  5. नीरज जी पहाड़ पर ऊंचाइ नापने के यंत्र को क्या कहते है ?कहां मिलेगा? क्या कीमत है ?

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    1. किसी भी मोबाइल(स्मार्टफोन) के जीपीएस पे आप ऊंचाई देख सकते हैं और ये काफी हद तक सटीक भी होता है।

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  6. पहले खिर्सू के नज़ारे
    और ये है चोपता के नज़ारे

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  7. Kya esi yatra 100cc bike se ho sakti he

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    1. हाँ जी, बड़े आराम से हो जायेगी...

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अक्सर हमें ट्रेनों में बाइक की बुकिंग करने की आवश्यकता पड़ती है। इस बार मुझे भी पड़ी तो कुछ जानकारियाँ इंटरनेट के माध्यम से जुटायीं। पता चला कि टंकी एकदम खाली होनी चाहिये और बाइक पैक होनी चाहिये - अंग्रेजी में ‘गनी बैग’ कहते हैं और हिंदी में टाट। तो तमाम तरह की परेशानियों के बाद आज आख़िरकार मैं भी अपनी बाइक ट्रेन में बुक करने में सफल रहा। अपना अनुभव और जानकारी आपको भी शेयर कर रहा हूँ। हमारे सामने मुख्य परेशानी यही होती है कि हमें चीजों की जानकारी नहीं होती। ट्रेनों में दो तरह से बाइक बुक की जा सकती है: लगेज के तौर पर और पार्सल के तौर पर। पहले बात करते हैं लगेज के तौर पर बाइक बुक करने का क्या प्रोसीजर है। इसमें आपके पास ट्रेन का आरक्षित टिकट होना चाहिये। यदि आपने रेलवे काउंटर से टिकट लिया है, तब तो वेटिंग टिकट भी चल जायेगा। और अगर आपके पास ऑनलाइन टिकट है, तब या तो कन्फर्म टिकट होना चाहिये या आर.ए.सी.। यानी जब आप स्वयं यात्रा कर रहे हों, और बाइक भी उसी ट्रेन में ले जाना चाहते हों, तो आरक्षित टिकट तो होना ही चाहिये। इसके अलावा बाइक की आर.सी. व आपका कोई पहचान-पत्र भी ज़रूरी है। मतलब