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Showing posts from February, 2016

हर्षिल-गंगोत्री यात्रा (शिवराज सिंह)

रेलवे में सीनियर इंजीनियर शिवराज सिंह जी ने अपनी हर्षिल और गंगोत्री यात्रा का वर्णन भेजा है। हो सकता है कि यह वृत्तान्त आपको छोटा लगे लेकिन शिवराज जी ने पहली बार लिखा है, इसलिये उनका यह प्रयास सराहनीय है। मेरा नाम शिवराज सिंह है। उत्तर प्रदेश के शामली जिले से हूँ। शिक्षा-दीक्षा मुजफ्फरनगर के डीएवी कालेज व गाँधी पॉलीटेक्निक में हुई। वर्तमान मे उत्तर रेलवे के जगाधरी वर्कशॉप में सीनियर सेक्शन इंजीनियर के पद पर कार्यरत हूँ। बचपन से ही घूमने फिरने का शौक रहा है। रेलवे मे काम करते समय घूमने का काफ़ी मौका मिलता है। यात्रा ब्लॉग पढ़ने की शुरुआत आपके ब्लॉग से की। मजा आया क्योंकि अपनी जानी-पहचानी भाषा में लिखा था। पहले कभी लिखने के विषय में नही सोचा, परन्तु आपके ब्लॉग को पढ़कर कोशिश कर रहा हूँ। जून 2015 मे गंगोत्री घूमने गया था। साथ मे बेटा व तीन नौजवान भानजे भी थे। शुरुआत मे केवल मसूरी तक जाने का प्रोग्राम था, परंतु वहाँ की भीड़-भाड़ मे मजा नही आया औऱ एक भानजे ने जो कि नियमित रूप से उत्तराखण्ड के पहाडी इलाकों मे घूमता रहता है, हर्षिल का जिक्र किया जिसके विषय मे नेट पर पढ़ा था कि वहाँ पर राजक

जबलपुर से इटारसी पैसेंजर ट्रेन यात्रा

27 नवम्बर 2015 ट्रेन नम्बर 51190... इलाहाबाद से आती है और इटारसी तक जाती है। इलाहाबाद से यह गाडी शाम सात बजे चलती है और अगली सुबह 06:10 बजे जबलपुर आ जाती है। मैंने पांच बजे का अलार्म लगा लिया था। अलार्म बजा और मैं उठ भी गया। देखा कि अभी ट्रेन कटनी ही पहुंची है यानी एक घण्टा लेट चल रही है तो फिर से छह बजे का अलार्म लगाकर सो गया। फिर छह बजे उठा, ट्रेन सिहोरा रोड के आसपास थी। अब मुझे भी और लेट होने की आवश्यकता नहीं थी। नहाकर डोरमेट्री छोड दी। बाहर इलेक्ट्रॉनिक सूचना-पट्ट बता रहा था कि यह ट्रेन प्लेटफार्म नम्बर एक पर आयेगी। मैंने टिकट लिया और प्लेटफार्म एक पर कटनी साइड में आखिर में बैठ गया।

जम्मू यात्रा - 2016 (सुनील गायकवाड)

मित्र सुनील गायकवाड ने अपनी जम्मू यात्रा का संक्षिप्त विवरण ‘मुसाफिर हूं यारों’ में प्रकाशन के लिये भेजा है। सुनील जी पुणे के रहने वाले हैं। हिन्दी में अक्सर नहीं लिखते। उनकी फेसबुक पर भी मराठी ही मिलती है। गैर-हिन्दी भाषी होने के बावजूद भी आपने इतना बडा यात्रा-विवरण हिन्दी में लिखा है, इसके लिये आप शाबाशी के पात्र हैं। आपने हालांकि बहुत सारी गलतियां कर रखी थीं, जिन्हें दूर करके आपका वृत्तान्त प्रकाशित किया जा रहा है। “मंज़िल तो मिल ही जायेगी भटकते हुए ही सही, गुमराह तो वो हैं जो घर से निकले ही नहीं।” नमस्कार मित्रों, मेरा नाम सुनील गायकवाड़ है। मैं पुणे, महाराष्ट्र का रहने वाला हूं। सोमनाथ, गिरनार पर्वत, सूरत, लखनऊ, कोलकाता, भुवनेश्वर, जगन्नाथ पुरी, सूर्य मंदिर, चेन्नई, तिरुपति, कन्याकुमारी, अमृतसर, गोल्डन टेम्पल, वाघा बॉर्डर; इन स्थानों पर घूम कर आया हूं। अप्रैल 2015 में लेह-लद्दाख यात्रा के बारे में जानकारी के लिए गूगल पर सर्च कर रहा था, तो "मुसाफिर हूँ यारों" - लद्दाख साइकिल यात्रा का आगाज - ये ब्लॉग मिल गया। जब मैंने पूरा ब्लॉग देख लिया तो समझ में आया कि मेरे हाथ में

सतपुडा नैरो गेज में आखिरी बार-2

25 नवम्बर 2015 आज का लक्ष्य था नागपुर और नागभीड के बीच नैरोगेज ट्रेन में यात्रा करना। यह हालांकि सतपुडा नैरोगेज तो नहीं कही जा सकती लेकिन दक्षिण-पूर्व-मध्य रेलवे की नागपुर डिवीजन की एक प्रमुख नैरोगेज लाइन है, इसलिये लगे हाथों इस पर भी यात्रा करने की योजना बन गई। यह लाइन फिलहाल गेज परिवर्तन के लिये बन्द नहीं हो रही। नागपुर से नागभीड तक दिनभर में तीन ट्रेनें चलती हैं - सुबह, दोपहर और शाम को। शाम वाली ट्रेन मेरे किसी काम की नहीं थी क्योंकि इसे नागभीड तक पहुंचने में अन्धेरा हो जाना था और अन्धेरे में मैं इस तरह की यात्राएं नहीं किया करता। इसलिये दो ही विकल्प मेरे पास थे - सुबह वाली ट्रेन पकडूं या दोपहर वाली। काफी सोच-विचार के बाद तय किया कि दोपहर वाली पकडूंगा। तब तक एक चक्कर रामटेक का भी लगा आऊंगा। रामटेक के लिये एक अलग ब्रॉडगेज लाइन है जो केवल रामटेक तक ही जाती है। आज नहीं तो कभी न कभी इस लाइन पर जाना ही था। आज चला जाऊंगा तो भविष्य में नहीं जाना पडेगा। सुबह पांच बजकर चालीस मिनट पर नागपुर से ट्रेन नम्बर 58810 चलती है रामटेक के लिये। मैं टिकट लेकर समय से पहले ही प्लेटफार्म नम्बर चार पर पहु

सतपुडा नैरो गेज पर आखिरी बार- छिन्दवाडा से नागपुर

   24 नवम्बर 2015    ट्रेन नम्बर 58845 पहले भारत की सबसे लम्बी नैरो गेज की ट्रेन हुआ करती थी - जबलपुर से नागपुर तक। यह एकमात्र ऐसी नैरो गेज की ट्रेन थी जिसमें शयनयान भी था। आरक्षण भी होता था। नैरो गेज में शयनयान का डिजाइन कैसा होता होगा - यह जानने की बडी इच्छा थी। कैसे लेटते होंगे उस छोटी सी ट्रेन में पैर फैलाकर? अब जबकि पिछले कुछ समय से जबलपुर से नैनपुर वाली लाइन बन्द है तो यह ट्रेन नैनपुर से नागपुर के बीच चलाई जाने लगी। नैनपुर से चलकर सुबह आठ बजे यह छिन्दवाडा आती है और फिर नागपुर की ओर चल देती है। मैंने इसमें सीटिंग का आरक्षण करा रखा था ताकि इसके आधार पर नागपुर में डोरमेट्री ऑनलाइन बुक कर सकूं।    स्टेशन के बाहर बायें हाथ की तरफ कुछ दुकानें हैं। सुबह वहां गर्मागरम जलेबी, समोसे और पोहा मिला। चाय के साथ सब खा लिया - नाश्ता भी हो गया और लंच भी। बाकी कोई कसर रह जायेगी तो रास्ते में खाते-पीते रहेंगे।

सतपुडा नैरो गेज में आखिरी यात्रा-1

   नवम्बर 2015 के पहले सप्ताह में जब पता चला कि सतपुडा नैरो गेज हमेशा के लिये बन्द होने जा रही है तो मन बेचैन हो गया। बेचैन इसलिये हो गया कि इस रेल नेटवर्क के काफी हिस्से पर मैंने अभी तक यात्रा नहीं की थी। लगभग पांच साल पहले मार्च 2011 में मैंने छिन्दवाडा से नैनपुर और बालाघाट से जबलपुर तक की यात्रा की थी। छिन्दवाडा से नागपुर और नैनपुर से मण्डला फोर्ट की लाइन अभी भी मेरी अनदेखी बची हुई थी। अब जब यह बन्द होने लगी तो अपने स्तर पर कुछ खोजबीन और की तो पाया कि यह लाइन असल में 31 अक्टूबर 2015 को ही बन्द हो जानी थी लेकिन इसे एक महीने तक के लिये बढा दिया गया है। एक महीने तक बढाने का अर्थ था कि मेरे लिये इसमें यात्रा करने का आखिरी मौका आखिरी सांसें गिन रहा है। 16 नवम्बर को दिल्ली से निकलने की योजना बन गई। कानपुर में रहने वाले मित्र आनन्द शेखावत को पता चला तो वे भी चलने को राजी हो गये। सभी आवश्यक आरक्षण और रिटायरिंग रूम की भी बुकिंग हो गई।    लेकिन जब 16 नवम्बर को नई दिल्ली केरल एक्सप्रेस पकडने गया तो छठ के कारण अन्दर से बाहर तक बिल्कुल ठसाठस भरे नई दिल्ली मेट्रो स्टेशन में ऐसा फंसा कि केरल एक्

नागटिब्बा ट्रैक-2

27 दिसम्बर 2015    सुबह उठे। बल्कि उठे क्या, पूरी रात ढंग से सो ही नहीं सके। स्थानीय लडकों ने शोर-शराबा और आपस में गाली-गलौच मचाये रखी। वे बस ऐसे ही मुंह उठाकर इधर आ गये थे। जैसे-जैसे रात बीतती गई, ठण्ड भी बढती गई। उनके पास न ओढने को कुछ था और न ही बिछाने को। वे ठण्ड से नहीं सो सके, हम शोर-शराबे से नहीं सो सके। हमने उन्हें परांठे और एक कम्बल दे दिया था। नहीं तो क्या पता वे हमारे साथ भी गाली-गलौच करने लगते। रात में पता नहीं किस समय उन्होंने अपनी बनाई झौंपडी भी जला दी।    अभी तक मैं यही मानता आ रहा था कि पन्तवाडी से आने वाला रास्ता भी यहीं आकर मिलता है। हिमाचल वालों से भी मैंने यही कहा कि मेरी जानकारी के अनुसार पन्तवाडी वाला रास्ता आकर मिलता है, इसलिये हमें अपने टैंट आदि आगे नागटिब्बा तक ले जाने की आवश्यकता नहीं है। खाली हाथ जायेंगे और वापस यहां आकर सामान उठाकर नीचे पन्तवाडी चले जायेंगे। इसलिये पहले हिमाचल वालों ने और बाद में मैंने पन्तवाडी की तरफ उतरती पगडण्डी ढूंढी, लेकिन कोई पगडण्डी नहीं मिली। एक हल्की सी पगडण्डी धार के नीचे की तरफ अवश्य जा रही थी, लेकिन यह पन्तवाडी वाला रास्ता नहीं ह