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घुमक्कड पत्रिका- 2










1. सम्पादकीय
   ‘घुमक्कड पत्रिका-1’ का प्रकाशन बेहद सफल रहा। इसे मित्रों ने खूब सराहा। यह ब्लॉगिंग की दुनिया में एक नया प्रयोग था। पहले अंक से कई बातें सीखने को मिली। पहली बात तो यही कि इसे अकेले दम पर चलाना बेहद मुश्किल है। इसका मकसद था कि जो मित्र ब्लॉग नहीं लिखते, उन्हें लिखने के लिये प्रेरित करना। जिनका ब्लॉग नहीं है, उन्हें लिखने के लिये स्थान देना ताकि उनकी झिझक समाप्त हो और वे लिखना शुरू करें।
   लेकिन जैसी उम्मीद थी, वैसी भागीदारी नहीं हुई। हालांकि कई मित्रों ने अपने ब्लॉग के बारे में बताया। केवल तीन मित्रों ने फोटो प्रतियोगिता के लिये फोटो भेजे और दो मित्रों ने अपने यात्रा वृत्तान्त भेजे। उधर मेरे लिये भी आजकल लिखना मुश्किल होता जा रहा है, विशेषज्ञ लेखन तो बेहद ही मुश्किल है। अक्सर विशेषज्ञ लेख बडे होते हैं- इतने बडे कि उनकी अलग से एक पोस्ट बनाई जा सकती है। इच्छा थी कि कई विषयों पर लिखूंगा लेकिन अब सब इच्छाएं समाप्त हो गई हैं। ज्यादा विस्तार से ‘अपनी बात’ कॉलम में लिखा है।
   खैर, 1 अक्टूबर को इसका प्रकाशन हो जाना था लेकिन उसी दिन मैं बद्रीनाथ से लौटा। आगामी अंक कब प्रकाशित होगा, कुछ नहीं कहा जा सकता। हालांकि 1 नवम्बर को प्रकाशित करने की कोशिश करूंगा। वास्तव में पत्रिका मुझ अकेले के लिये बडी भारी पड रही है। यदि पत्रिका के अलावा कुछ भी नहीं लिखना हो तो अलग बात है। पूरे यात्रा-वृत्तान्त भी लिखने हैं। मैं पत्रिका में अपने स्वयं के यात्रा-वृत्तान्त नहीं लिख सकता। उनके लिये अलग पोस्ट चाहिये। इसी तरह अन्य कई लेखों के लिये भी जो पत्रिका में छप सकते थे, अलग पोस्ट ही उचित होगी। इसलिये अकेले के लिये पत्रिका संभालना संभव नहीं होगा। यह केवल भागीदारी से ही छप सकती है।
   यात्रा कैलेण्डर कॉलम को बन्द करना पड रहा है। यह एक अच्छा कॉलम था कि सभी को सभी की आगामी यात्राओं की जानकारी मिल सके लेकिन मैं इसे मैनेज नहीं कर पाया, इसलिये बन्द ही कर देना उचित लगा।
   पुनश्च, आप भी अपनी भागीदारी बढाइये। बेशक यात्रा वृत्तान्त मत लिखिये लेखिये घुमक्कड परिचय हो सकता है, पुस्तक परिचय हो सकता है, बाकी भी बहुत कुछ हो सकता है।

2. लेख
A. ब्लॉगिंग: एकल या सामूहिक
   अभी पिछले दिनों एक मित्र से एक बात को लेकर चर्चा हो रही थी कि हमें व्यक्तिगत ब्लॉगिंग करनी चाहिये या सामूहिक ब्लॉगिंग। मैं व्यक्तिगत ब्लॉगिंग का समर्थक हूं और वे मित्र चाहते थे कि कई यात्रा-ब्लॉगर मिलकर सामूहिक तौर पर एक ब्लॉग या वेबसाइट बनाएं।
   सामूहिक यात्रा-ब्लॉगिंग की कई साइटें हैं जिनमें इण्डियामाइक, बीसीएमटूरिंग, डेविल ऑन व्हील्स, घुमक्कड डॉट कॉम आदि हैं। निःसन्देह इसका सबसे बडा फायदा पाठकों को होता है। उन्हें एक ही जगह खूब सारी सामग्री मिल जाती है। लेखकों के लिये फायदा ये है कि उन्हें पाठक नहीं जुटाने पडते। पहले से ही उस साइट के खूब सारे पाठक होते हैं, नया लेखक जब वहां लिखता है तो बिना प्रचार किये उसे भी पढा जाने लगता है।
   लेकिन ऐसी साइटों पर एक लेखक जो लगातार लिखता है... लगातार लिखता है... उसे सिवाय पाठकों के क्या मिलता है? कल अगर वह अपने लेखन के आधार पर कुछ कमाई करना चाहे तो कतई नहीं कर सकता। तब उसे महसूस होगा कि अपना ‘साम्राज्य’ भी होना चाहिये था। वो अभी तक ऐसी साइटों पर नौकरी कर रहा था। दूसरी बात कि पाठक असल में उसे पढने नहीं बल्कि उस साइट को पढने आते हैं। उस साइट पर अगर एक हजार लेखक हैं तो पाठक कितने लेखकों को याद रख सकेगा। सारा ट्रैफिक असल में उस साइट का होता है, उसी में से कुछ थोडा सा हिस्सा लेखक को भी मिल जाता है। लेखक खुश हो जाता है कि मुझे इतने लोगों ने पढा। इसी बीच साइट मालिक अच्छी खासी आमदनी करता जाता है जिसमें से लेखक को कुछ नहीं मिलता।
   इन सब बातों को देखते हुए व्यक्तिगत लेखन जरूरी हो जाता है। अच्छा लिखेंगे तो पहचान बनेगी... वहां भी और यहां भी।
   एक नये लेखक के सामने सबसे बडी समस्या होती है कि उसे पाठक नहीं मिलते। ऐसे में इस तरह की सामूहिक साइटों पर या फोरम पर लिखना अच्छा होता है। पहली बार कोई भी लिखता है तो बडा ही साधारण लिखता है। धीरे धीरे लेखन में धार आती है, विशेषज्ञता आती है। जब लगे कि धार आने लगी है, तब अपना ‘साम्राज्य’ खडा कर लेना चाहिये। इसके बाद भी आप दूसरी जगहों पर लिख सकते हैं। वहां आप अपने लिंक छोड सकते हैं। लेखन में धार होगी, विशेषज्ञता होगी तो पाठक आपके यहां आयेंगे और बार-बार आयेंगे। मैं स्वयं भी कई फोरम पर यदा-कदा लिखता रहता हूं।
   मेरे वे मित्र केवल एक पाठक हैं। उनका अपना कोई ब्लॉग नहीं है। वे एक पाठक की हैसियत से सोच रहे थे और चाह रहे थे कि हम कई हिन्दी यात्रा-ब्लॉगर मिलकर एक जगह लिखें। एक नये लेखक के लिये भी यह बात सुविधापूर्ण हो सकती है कि सभी एक ही जगह लिखें। लेकिन जब आपको लिखते-लिखते एक साल हो जायेगा, दो साल हो जायेंगे, चार साल हो जायेंगे; तब आपको निश्चित ही लगने लगेगा कि अपना ‘साम्राज्य’ भी होना चाहिये था। बहुत से मित्र सोचेंगे कि सामूहिक स्थानों पर लिखने और व्यक्तिगत लेखन न करने से क्या फर्क पडता है लेकिन यदि आप गम्भीरता से लिखते हैं तो एक दिन फर्क जरूर पडेगा। हां, समय काटने के लिये लिखते हैं तो अलग बात है।
   आप लिखना चाहते हैं लेकिन झिझकते हैं कि पता नहीं कौन पढेगा, पढकर क्या कहेगा; तो एक शुरूआत सामूहिक साइटों से जरूर कीजिये। यकीन मानिये, आप कुछ भी लिखेंगे, आपको वाहवाही अवश्य मिलेगी। पहला कदम उठाते ही जो वाहवाही मिलती है, वो बडे काम की होती है। इससे आपको और ज्यादा लिखने का हौंसला मिलता है और फिर कारवां चल पडता है। तब धीरे से अपना साम्राज्य खडा कर लेना अच्छा होता है। कौन जानता है कि बाद में लेखन और ब्लॉगिंग ही कैरियर बन जाये?
   लेखकों की बात तो हो गई, थोडी पाठकों की बात भी कर लेते हैं। निश्चित ही सामूहिक ब्लॉगिंग पाठकों के हित में है क्योंकि उन्हें एक ही जगह कई तरह का स्वाद चखने को मिलता रहता है। लेकिन जिस तरह हर लेखक का एक अलग ढंग और रुचि होती है, उसी तरह हर पाठक की भी अलग रुचि होती है। लेखक जिस तरीके से लिखता है, उसी तरीके के पाठक उसे मिलेंगे। पाठकों को क्या पढना है, वे ढूंढ लेंगे। क्या नहीं पढना है, उसे छोड देंगे। यदि मेरी रुचि साहसिक यात्राओं में है तो मैं तरुण गोयल को पढूंगा, रीतेश गुप्ता को नहीं। प्रसिद्ध पर्यटक स्थलों में अगर मेरी रुचि है तो मैं तरुण गोयल की तरफ देखूंगा भी नहीं, तब रीतेश मेरा पसन्दीदा ब्लॉगर होगा। यकीन मानिये, पाठक अपना ठिकाना ढूंढ लेंगे। अब लेखक के ऊपर यह निर्भर करता है कि वो पाठकों को अपने यहां कितनी देर तक टिकाये रखता है। पाठकों को अपने यहां टिकाये रखने की कुछ तकनीकें होती हैं, गम्भीर लेखक ये सब तकनीकें सीख जाता है।

B. किसी ब्लॉग को कैसे फॉलो करें?
   हमारा एक व्हाट्सएप ग्रुप है जिसमें ज्यादातर यात्रा-लेखक हैं। मजेदार बात ये है कि ज्यादातर लेखकों की शिकायत रहती है कि हमें एक-दूसरे की नई पोस्टों का पता नहीं चलता। नियम बना रखा है कि जब भी किसी की कोई नई पोस्ट आयेगी तो उसे ग्रुप में सूचना देनी पडेगी। कई तो ऐसे भी हैं जो एक-एक को पकड-पकड कर कहते हैं कि उनकी नई पोस्ट आई है, जाकर कमेण्ट करो। किसी ने अगर कमेण्ट नहीं किया तो फिर टोकाटाकी भी होती है कि बाकी सबने कमेण्ट कर दिये, तूने अभी तक कमेण्ट नहीं किया। याद रखिये, जब भी आप कभी कहते हो कि कमेण्ट करो, तो आपका अभिप्रायः केवल यही होता है कि वाहवाही करो। कमेण्ट में अगर आलोचना कर दी तो आपकी खैर नहीं। आजकल चर्चा चल रही है एक मोबाइल एप बनाने की। इसमें जब भी किसी ब्लॉग में नई पोस्ट आयेगी, उसकी सूचना आपके मोबाइल में अपने-आप आ जाया करेगी।
   हो सकता है कि यही समस्या अन्य पाठकों के सामने भी आती हो। आप मुझे पढना चाहते हैं, तरुण को, मनु को, रीतेश को, मनीष को, या किसी को भी; तो आपको हर बार उसका ब्लॉग खोल-खोलकर देखना पडता होगा। आपको आसानी से नई पोस्ट की सूचना मिलती रहे, इसके कई तरीके हैं। एक तरीका है ई-मेल सब्स्क्रिप्शन। ज्यादातर ब्लॉगर इस विकल्प को अवश्य लगाते हैं। आपको एक बार अपनी ई-मेल आईडी रजिस्टर करनी होती है, फिर जब भी उस ब्लॉग पर कोई नई पोस्ट छपेगी, आपकी ई-मेल पर उसकी सूचना स्वतः पहुंच जाया करेगी। दूसरा तरीका है फेसबुक। लगभग सभी ब्लॉगर अपनी नई पोस्ट की सूचना अपने फेसबुक पेज पर अवश्य देते हैं। आप उन्हें फॉलो कीजिये और नई पोस्टों की जानकारी अपने नॉटिफिकेशन में लीजिये।
   एक तीसरा तरीका भी है जिसे हम ब्लॉगर लोग प्रयोग करते हैं। अपने ब्लॉग के डैशबॉर्ड में अपनी पसन्द के ब्लॉग को जोड लीजिये और नई-नई पोस्टों का आनन्द लीजिये। वो तरीका मैं यहां विस्तार से बताना चाहता हूं।    आपकी सभी की जी-मेल पर आईडी तो जरूर ही होगी। blogger.com पर जाइये। अपनी जी-मेल आईडी से लॉग-इन कीजिये। आपका अगर पहले से ही कोई ब्लॉग है तो आपको सबसे ऊपर अपने ब्लॉग का नाम दिखेगा।    उसके नीचे एक चीज दिखेगी- Reading List.


Reading List में एक बटन है- add. इस पर क्लिक करेंगे तो एक बॉक्स खुलेगा।


इसमें Add from URL के सामने अपने पसन्दीदा ब्लॉग का URL कॉपी-पेस्ट करके डाल दीजिये। जैसे कि मेरे ब्लॉग का URL है- neerajjaatji.blogspot.in। फिर Follow बटन पर क्लिक कर दीजिये।


अब आपको ‘मुसाफिर हूं यारों’ की सभी पोस्टें यहां नवीनतम के क्रम में मिलेंगीं। इसमें आप जितने चाहो, उतने ब्लॉग, वेबसाइट जोड सकते हो। जिस ब्लॉग, वेबसाइट पर भी कोई नई पोस्ट आयेगी, इसमें नवीनतम पोस्ट सबसे ऊपर दिखेगी। यह बहुत सारी वेबसाइटों, ब्लॉगों को फॉलो करने का बहुत अच्छा तरीका है। हो सकता है कि ई-मेल सब्स्क्रिप्शन में जो आपको मेल मिली, वो दूसरी बहुत सारी गैर-जरूरी ई-मेलों के बीच में दब गई हो और आपको न दिखी हो। हो सकता है कि फेसबुक आदि पर कोई सूचना आपकी आंखों के सामने न आई हो। लेकिन यहां ऐसा नहीं होगा। यहां तो जब भी आप blogger.com खोलेंगे, लॉग-इन करेंगे; नवीनतम पोस्टें आपकी आंखों के सामने होंगीं।



3. यात्रा-वृत्तान्त
A. पहाड तो आपके अपने हैं, इन्हें क्यों गन्दा करते हो? (अंशुल ग्रोवर)

Title Credits-Tarun Goel's post Meeting an old friend,Indrahar pass.
स्थान:हर्षिल, उत्तराखंड, गंगोत्री के रास्ते में
एक चाय का कुल्हड, बाबा के किस्से और अंतहीन पहाड़ आराम करने के लिए। सब कुछ सही था तब तक जब तक पैरों पर एक नन्ही सी दस्तक नहीं हुई। नीचे झुक कर देखा तो एक छोटी सी बच्ची एकटक निहार रही थी। किसी ने शायद घर से निकाल दिया था। बहुत दुःख हुआ पर पहुंचा दिया उसे जहाँ जाना था। कुछ समय बाद एक और दस्तक हुई तो माथा ठनका, इस बार एक टोपी वाले अंकल थे। आस पास नज़र घुमाई तो मामला समझ आया, एक शिक्षित और संभ्रांत परिवार शायद भूख से बेहाल था तो वो ही पारले-जी और अंकल चिप्स को इस्तेमाल के बाद अपनी कार से बाहर का रास्ता दिखा रहा था। चुपचाप अंकल जी को उठाया, उस गाड़ी के पास से लहराते हुए ले गया और कूड़ेदान तक छोड़ आया। एक नन्ही सी प्यारी सी आवाज भी सुनाई दी कि 'भैया हमारा कूड़ा उठा रहे हैं'। चलो शुक्र है की अब शायद शर्मिंदगी का बोझ पड़ेगा ड्राईवर साहब और उनकी चेतन भगत फैन बीवी पर। सब पहले जैसा हो गया गर्वित सीने के साथ, एक और चाय, बाबा के extra ordinary adventure और फिर, थोड़ी देर बाद...एक और दस्तक........।
चलो गंगोत्री का भ्रमण कर आयें। अच्छा लगा माँ गंगा के साथ अतुल्य समय एकांत में व्यतीत कर के। अच्छे लगे प्रशासन के इंतज़ामात साफ सफाई की दिशा में। अब पहुंचे माँ यमुना के पास, जानकी चट्टी। प्रकृति ने शायद हरियाली का एक बड़ा सा हिस्सा माँ यमुना को दे दिया, क्या नज़ारे थे वो और क्या अविरल बहता शुद्ध नीला जल...वो बचपन की कहानियों वाला..अविस्मरणीय। खैर, अगले दिन सुबह सवेरे शुरु हुई यमुनोत्री धाम की यात्रा। नज़ारे बढ़ते जा रहे थे और साथ में कुछ और भी। क्या....इन्सान की भद्दी मानसिकता! जी हाँ, एनसीसी के लड़के लड़कियां, वो दस तोले की चैन वाले बिजनेसमैन, वो गरीब से दिखने वाले लोकल लोग...वो चाय वाला, वो घोड़े वाला, बिस्कुट खाए - खिलाये, रेपर पहाड़ी की घाटी में, चॉकलेट से लेकर सिगरेट बट, प्लास्टिक कप से चैनी खैनी तक सब घाटी में यमुना को प्रसाद की तरह चढ़ाये जा रहे थे। और घाटियाँ ऐसी की Mountaineers की फौज भी गश खा कर गिर जाए सफाई करने में। मैं बेचारा नन्ही सी जान क्या कुछ कर लेता खून का घूँट पीने के सिवा। मोह भंग हो गया धार्मिकता से, यमुनोत्री पहुँचा तो पंडितो की फौज तैयार थी भूत भविष्य के नाम पर वर्तमान का सर्वस्व छीनने के लिए। दान पात्र में जाने वाले पैसे छीन छीन कर 'आरती की थाली' में चढवाए जा रहे थे (Literally!)। दूसरी तरफ हमारे कुछ (नहीं! लगभग सारे) अंध भक्त माँ यमुना को साड़ियाँ पहना रहे थे, सिन्दूर के साथ प्लास्टिक की पन्नी का तिलक लगा रहे थे। कोई जल को चुल्लू में भरकर वरदान मांग रहा था तो कोई फ्रूटी पिला रहा था। निर्मल जल लाल पीला हो रहा था, पर चलो पाप तो धुल ही रहे थे। मैं क्या करता, सफाई? कब तक? कितने दायरे में? किसके साथ? चुप चाप अपना खुद का गंद समेटता आ रहा था वो ही लेकर वापस चल पड़ा वादा कर के कि एक दिन जरूर वापिस आऊंगा, माँ यमुना तुझे तेरी खोई हुई अस्मत वापिस दिलाने, तुझे वास्तविक में पूज्य बनाने कम से कम तेरे जन्म स्थल में ही सही। लेकिन क्या एक ही दिन का जोश था वो??
कौन है जिम्मेदार, प्रशासन, टूरिस्ट या लोकल लोग? जी मानसिकता
क्या है वजह? जी स्वार्थ
कैसे होगा ठीक? पता नहीं सर, पर मैं, मैं इस अघोर पाप का भागीदार नहीं बनूँगा, गंगा, यमुना और प्रकृति के साथ मेरा दिल का रिश्ता है ना कि सांसारिक बकवास का। क्या हो जायेगा अगर मैं चाय स्टील के गिलास वाली दुकान पर पी लूँगा या अपनी 50 ग्राम की प्लास्टिक अपने बैग में अपने साथ वापिस ऐसी जगह ले आऊंगा जहां कूड़ा निरस्तीकरण की सुविधा हो। पवित्र नदी के जल में साबुन नहीं लगाऊंगा तो काला नहीं पड़ जाऊंगा।। साडी न पहनाने से यमुना नाराज नहीं होगी, दुआएं देगी दुआएं।
शहर तो पहले ही गंदे हैं, पहाड़ों को तो कम से कम मिल जुल कर साफ़ रखवाएं। लोकल बच्चो को प्राकृतिक सम्पदा का महत्त्व समझाना सबसे कारगर तरीका लगा मुझे, क्योंकि वो ही हैं जो या तो हालात को बदतर बनायेंगे या सुधारेंगे। कुछ कार्य मैंने किया "खरसाली" गाँव के बच्चों को टॉफ़ी खिलाने की बजाय खेल खेल में अच्छी बातें सिखाने का किया कुछ आप कीजियेगा।
धन्यवाद







B. घुमक्कड और घुमक्कडी से साक्षात्कार (डॉ. सुमित शर्मा)
दोस्तों मैं इंदौर (म.प्र.) निवासी एक ऐसे घुमक्कड़ के बारे में बात कर रहा हूं, जिसकी घुमक्कड़ी के चर्चे आज पुरे देश की घुमक्कड बिरादरी में है... हर कोई उनके जैसा घूमना चाहता है, उनके जितना घूमना चाहता है... हाँ चाहते तो कई हैं कि इनके जैसा कुछ करें पर यह सब कुछ बहुत आसान भी नहीं है।
खैर... हम उस शख्स की बाते तो कर ही सकते है ना..
मैं बात कर रहा हूं... हमारे अजीज दोस्त और मेरे और शायद आप के भी आदर्श घुमक्कड़ नीरज जाट की..
अब एक दास्तां इनसे पहली मुलाकात की... नहीं मुलाकात नहीं... इसे मैं साक्षात्कार कहूँगा...क्योकि नीरज एक विशिष्ट व्यक्तित्व है...
तो हमारी पहली मुलाकात कच्छ यात्रा के दौरान हुई थी..
मैं और मेरा मित्र बाइक से इंदौर-कच्छ यात्रा कर रहे थे.. 16 जनवरी की शाम के करीब 4 बजे होंगे... हम कच्छ के सफ़ेद रण से वापसी कर रहे थे.. तभी पार्किंग में हमारी मोटरसायकल के पास ही दिल्ली की एक और मोटरसायकल खड़ी मिली... उसकी सीट पर बैग भी बंधा दिखा.. सोचा वाह भाई... एक और जुनूनी बाइकर है यहाँ...
फिर वहाँ से हम लोग कालाडूंगर के लिए रवाना हो गए... कालाडूंगर पहुचे... शाम गहरा रही थी.. सूर्यास्त का समय था.. सबसे पहला काम रूम की व्यवस्था करना था, क्योंकि वहाँ केवल एक ही धर्मशाला थी..
तो मैं और मेरा मित्र गिरधर रूम के लिए धर्मशाला कक्ष में गए और सारी जानकारी लेने लगे... तभी वहाँ एक व्यक्ति और पहुँचा... और कहने लगा...
व्यक्ति-मुझे एक रूम चाहिए..
धर्मशाला मैनेजर- हाँ मिल जाएगा.. आपका नाम ? कहां से आये हैं...
व्यक्ति- दिल्ली से आया हूं.. नाम नीरज जाट है ।
मैनेजर-ठीक है.. 750 का है रूम... चलेगा क्या?
नीरज- वैसे मैं अकेला ही हूं कुछ कम वाला है क्या...?
मैनेजर- हां फिर 350 वाला है?
नीरज- ठीक है। मैं रूम देख लेता हूं..
और वह व्यक्ति मतलब नीरज बाहर जाने लगे.. तभी मैं और मेरा मित्र भी बाहर आये और उस व्यक्ति मतलब नीरज से औपचारिक परिचय करते हुए... 350 वाले रूम को मिलकर लेने का प्रस्ताव रखा... और नीरज ने बेझिझक तुरंत हाँ कह दी..
यही वह पल था जब एक विशिष्ट घुमक्कड़ से साक्षात्कार शुरू हुआ...
सबसे पहले हमने दोनों गाड़ियां पार्क की... नीरज की मोटरसायकल पर मेरी नजर पड़ते ही... मैंने उन्हें बताया... तुम्हारी गाडी तो हमने सफ़ेद रण पर भी देखी थी...
आगे बढ़ते हुए सूर्यास्त देखने जाने लगे..
जहां हम सूर्यास्त देखने के लिए भागदौड़ लगा रहे थे.. वहीं नीरज आराम शांत भाव से आगे बढ़ रहे थे..
सूर्यास्त जल्द भी हो गया... और वहां तेज हवा चलने लगी.. पहले पहले तो मजा आ रहा था.. पर जल्दी ही हम दोनों मालवियों को ठण्ड लगने लगी.. पर नीरज आराम से आनंद ले रहे थे..
नीरज का शांत भाव देख कर गिरधर कहने लगा.. इतना शांत और सीधा जाट पहली बार देखा है..
....
फिर मैंने उनसे पूछा पहली बाइक ट्रिप है..?
वो कहने लगे हाँ..
फिर मैंने बातों बातों में कहा- मुझे तो मोटरसायकल से लद्दाख जाना है... कभी आप गए हो क्या वहाँ..
नीरज- हाँ दो बार गया हूँ... पर मोटरसायकल से नहीं
मैने कहा- तो फिर बस से गए होंगे तब तो..
नीरज- नहीं एक बार ट्रेकिंग करने और एक बार सायकल से...
मैं आश्चर्य भाव से उन्हें देखने लग गया...
इसी पल से उनकी घुमक्कड़ी से भी साक्षात्कार शुरू हुआ.. जोकि अनवरत जारी है...
अब रात गहराना शुरू हो गई थी..
हम तीनों वापस कमरे की और जाने लगे..
मैंने फिर उनसे पूछा- तुम्हे यह जगह पसंद आई या सफ़ेद रण?
नीरज ने कहा- नहीं ऐसा कुछ होता ही नहीं है... कोई भी स्थान या तो अच्छा होता है.. या बहुत ही अच्छा होता है.. बुरा तो कुछ नहीं होता है..
नीरज का जवाब बहुत ही प्रभावी था...
मेरे मन में धारणा बन रही थी कि यह व्यक्ति असाधारण है...
लेकिन इनका व्यवहार बहुत ही साधारण और सरल है..
उनकी ओर मेरा आकर्षण और बढ़ गया..
कमरे तक पहुँचे.. कुछ देर बाद खाना खाया.. और टहलने लगे..
अगले दिन के कार्यक्रम की चर्चा होने पर मैंने कहा मैं तो सुबह 5 बजे उठूँगा.. 6 बजे तक तैयार हो जाऊंगा..
और फिर नीरज से पूछा तुम्हे कितनी देर लगती है तैयार होने में..
नीरज का जवाब फिर से आश्चर्य करने वाला था..
नीरज- आप उठ जाना जब चाहो.. मेरी नींद खुलेगी तब ही उठूँगा... और मै तो तैयार होकर ही सोता हूं.. सुबह उठते ही मुँह धोया और निकल पड़ता हूं..
आगे के कार्यक्रम के लिए नीरज ने प्रस्ताव दिया कि कल से हम लोग साथ में घूमेंगे.. आप भी अकेले हैं.. सभी के लिए ठीक रहेगा...
प्रस्ताव हम दोनों मित्रों को सहर्ष स्वीकार था..
अगली सुबह नीरज की कप्तानी में घुमक्कड़ी शुरू हुई...
हमें कुछ नहीं करना था.. केवल उनके पीछे चलना था.. उन्हें हर रास्ते की.. हर जगह की जानकारी थी.. तो हम दोनों ही निश्चिन्त थे..
मन में सोच लिया था... घुमाओ भाई जहां घूमना चाहो.. कहीं भी घूम लेंगे..
यहाँ से अगले दो दिनों तक साथ ही घूमे...
कहां घूमे इसकी जानकारी उन्होंने कच्छ यात्रा वृत्तान्त में विस्तार से दे रखी..
मेरी नज़र उनकी हर छोटी गतिविधि पर थी..
नीरज रास्ते भर समय , दूरी और खर्च डायरी में लिखते रहे...
उन्हें हर छोटे बड़े सड़क मार्ग और आसपास के भूगोल की अच्छी जानकारी थी...
बाद में ब्लॉग की चर्चा शुरू हुई...
मैंने उनसे पूछा तुम लिखते भी हो क्या...??
नीरज ने धीरे से कहा... हां लिखता हूं... और इतना लिख चुका हूं कि पढ़-पढ के पागल हो जाओगे...
उन्होंने सच कहा था.. इंदौर पहुँच के उनका ब्लॉग देखा.. तो होश उड़ गए.. अगले 2 से 3 महीने उनके ब्लॉग लगातार पढ़े.. सिलसिला अभी तक जारी है..
दो दिनों बाद हमारा वापसी का समय था...
मांडवी से हम तीनों दोस्तों ने वापसी का सफ़र शुरू किया...
भचाऊ पहुँचने पर इस विशिष्ट घुमक्कड़ से फिर मिलेंगे... कह कर अलविदा हो गए...
हम इंदौर के लिए.. और नीरज धौलावीरा के लिए रवाना हो गए...
पिछले दिनों उनकी इंदौर-पचमढ़ी यात्रा के दौरान एक बार फिर से उनके साथ घुमक्कड़ी करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ.. नीरज 6 दिन साथ ही रहे... पर यह समय भी बहुत कम लगा... मन नहीं कर रहा था उन्हें अलविदा कहने का...
और, यह इस तरह घुमक्कड़ और घुमक्कड़ी से साक्षात्कार अब भी अधूरा है।

4. ब्लॉग अपडेट
[यह लिस्ट है उन ब्लॉगों की जिन्होंने मेरे पास अपने ब्लॉग का नाम भेज रखा है। आपको एक बार अपने ब्लॉग का यूआरएल मुझे भेजना होता है, फिर हर महीने उसकी यात्रा-पोस्टों का लिंक यहां प्रकाशित होता रहेगा।]

A. LOOP-WHOLE (तरुण गोयल)- अंग्रेजी में
तरुण गोयल ने सितम्बर में तीन पोस्ट लिखीं। उनका लेखन इतना शानदार है कि मुझ जैसे को भी उनकी लिखी अंग्रेजी ऐसी समझ में आती है जैसे हिन्दी पढ रहे हों।
What Happened at Omasi La?  – उमासी-ला वाला हादसा आपको याद होगा। पिछली बार तरुण गोयल ने इसका जिक्र किया था। आज बताया कि असल में वहां हुआ क्या था।
Five Travel Blogs That will Inspire You - इसमें तरुण भाई ने पांच ऐसे यात्रा-ब्लॉगों और वेबसाइटों का जिक्र किया है जो उन्हें भी पसन्द हैं और उनके अनुसार सभी को पसन्द आयेंगे। संयोग से मेरा ब्लॉग भी इनमें से एक है।
The Pot La Pass (5480 m) Expedition | Great Himalayan Saga Part-2 - यह पोट-ला दर्रे को पार करने के वृत्तान्त के साथ साथ पण्डित जी को श्रद्धांजलि भी है।

B. Kailashi Sushil’s Yatra (सुशील कुमार)- हिन्दी में
सुशील जी की कैलाश मानसरोवर यात्रा का प्रकाशन अभी भी जारी है। पिछले माह उन्होंने कैलाश परिक्रमा की पोस्टें लिखी हैं। चित्र भी शानदार हैं-

C. MY YATRA DIARY (Arti)- अंग्रेजी में
मुम्बई वालों के लिये गणेश चतुर्थी के क्या मायने होते हैं, यह किसी से छुपा नहीं है। आरती जी ने सितम्बर में 16 पोस्ट लिखीं जो उनके छह सालों के ब्लॉगिंग के इतिहास में किसी महीने में सबसे ज्यादा है। इन 16 में से 12 पोस्ट गणेश चतुर्थी पर केन्द्रित हैं। आप भी इनका आनन्द लीजिये:

D. Reflection of Thoughts (Niranjan Welankar)- हिन्दी में
निरंजन जी ने अपनी यह यात्रा कुमाऊं से शुरू की थी और जोशीमठ जाकर, फिर ऋषिकेश जाकर समाप्त की। इस यात्रा का मुख्य आकर्षण है उनका दिसम्बर के महीने में बद्रीनाथ जाने का प्रयास। अपने इस प्रयास में वे काफी सफल भी हुए और कभी जीप से और कभी पैदल बद्रीनाथ से कुछ ही पहले हनुमानचट्टी तक जा पहुंचे। यदि वहां पुलिस वाले उन्हें न रोकते तो वे दिसम्बर में बद्रीनाथ जा पहुंचते।

E. Travel by Nitin- My Experiences (Nitin Gupta)- हिन्दी में 
नितिन ने सितम्बर में कोई पोस्ट नहीं लिखी है। हालांकि 2013 से ब्लॉग लेखन कर रहे हैं लेकिन प्रति माह एक पोस्ट का भी औसत नहीं है। मेरा सुझाव है कि लेखन नियमित करें। आपने पैसेंजर यात्राओं के बारे में भी लिखा है और हिमालयी यात्राओं के बारे में भी। नियमित लिखेंगे तो आपको और ज्यादा और बेहतरीन लिखने की प्रेरणा मिलती रहेगी।

F. Travel India with Mukesh….. (Mukesh Bhalse)- अंग्रेजी में
सितम्बर में मुकेश जी ने एक ही पोस्ट लिखी और वो थी ऋषिकेश के बारे में। हालांकि आपने अपने ब्लॉग से अन्यत्र खूब लिखा है लेकिन आपको भी मेरी वही सलाह है जो अभी नितिन गुप्ता को दी है। अपने ब्लॉग पर लिखिये और नियमित लिखिये।

G. Vijaykumar Bhawari (विजय कुमार भवारी)- मराठी में 
भवारी जी ने बहुत थोडा सा लिखा है। इस साल में केवल दो ही पोस्टें।

H. अथातो घुमक्कड जिज्ञासा (आनन्द भारती)- हिन्दी में 
आनन्द जी ने भी बहुत थोडा सा लिखा है। नियमित लेखन की आवश्यकता है।

I. मुसाफिर चलता चल (musafir chalta chal) (सचिन त्यागी)- हिन्दी में
त्यागी जी ने लेखन में शुरूआत कर दी है और पिछले कुछ महीनों से लगातार अपनी उपस्थिति बनाये हुए हैं। सितम्बर महीने में उन्होंने तीन पोस्टें लिखीं:
चूंकि अब सचिन भाई नियमित लिखने लगे हैं इसलिये गुणवत्ता के लिये कुछ सुझाव देना चाहता हूं। पहला तो यही है कि ‘यह गूगल से लिया गया फोटो है’ जैसी कोई चीज नहीं होती। हम गूगल में कुछ सर्च करते हैं और गूगल हमें हजारों रिजल्ट, साइटें दिखा देता है। अब हमारी इच्छा है कि हम कौन सी साइट के मैटीरियल का अपने लिये प्रयोग करते हैं। इसलिये ‘गूगल से साभार’ न लिखकर उस साइट का लिंक देना चाहिये। दूसरी बात, फोटो के साथ कैप्शन लगाओ। हालांकि आपने प्रत्येक फोटो के नीचे एक-एक लाइनें जरूर लिखी हैं लेकिन तकनीकी रूप से उन्हें कैप्शन नहीं कहते। कैप्शन फोटो का ही हिस्सा होता है। आप पोस्ट लिखते समय जब फोटो पर क्लिक करेंगे तो फोटो सलेक्ट हो जाता है और कई विकल्प आ जाते हैं। उनमें एक विकल्प add caption भी होता है। कैप्शन फोटो के ठीक नीचे बीच में आयेगा, एलाइनमेण्ट की समस्या नहीं आयेगी।

J. मुसाफिर चलता जा..... (योगेन्द्र सारस्वत)- हिन्दी में
योगेन्द्र जी 2012 से लिख रहे हैं और काफी कुछ लिखा है। सितम्बर में उन्होंने तीन पोस्टें लिखीं:
आपको भी मैं एक-दो सुझाव देना चाहता हूं। ब्लॉग जब कम्प्यूटर, लैपटॉप में खोलते हैं तो दोनों तरफ खूब सारा खाली स्थान है। यह बिल्कुल बेकार चला जाता है। आप ब्लॉग के डैशबॉर्ड> टैम्प्लेट में जाकर Customize पर क्लिक करें। इसमें एक विकल्प मिलेगा- adjust widths. यहां आप अपने ब्लॉग की चौडाई बढा सकते हैं। दूसरा सुझाव है गूगल एड पर रजिस्टर करके अपने यहां विज्ञापन लगाइये। आपने आखिरी पोस्ट में बहुत सारे फोटो लगा रखे हैं। बेशक फोटो अच्छे हैं लेकिन कई फोटो गैर-जरूरी भी हैं। आप स्वयं ही समझ जायेंगे कि कौन से फोटो गैर-जरूरी हैं। फोटो कम ही लगाइये लेकिन जितने भी लगायें, वे ऐसे होने चाहिये कि पाठक कहें- वाह। एक बार अपने ही ब्लॉग को एक अनजान पाठक बनकर पढिये, आपको बहुत सारी कमियां दिखेंगी। उन्हें तुरन्त दूर कीजिये। जब आपका ब्लॉग चौडा हो जायेगा तो फोटो का आकार भी बढाया जा सकता है। फोटो अच्छे लगेंगे।

K. सफ़र हैं सुहाना (रीतेश गुप्ता)- हिन्दी में 
रीतेश गुप्ता ब्लॉगिंग की दुनिया में किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। वे पिछले कई सालों से लगातार लिख रहे हैं हालांकि सितम्बर में कोई पोस्ट नहीं लिखी। आप ब्लॉगिंग के प्रत्येक तकनीकी पहलू से परिचित हैं और गूगल एड भी लगा रखे हैं। सितम्बर में कोई पोस्ट न आने की कोई वजह रही होगी। उम्मीद है कि आने वाले समय में आप खूब लिखेंगे।
भूल सुधार: रीतेश जी ने सितम्बर में एक पोस्ट लिखी है- गंगटोक से दार्जीलिंग का सफर (Travel to Darjeeling, West Bengal)
[इस कॉलम के लिये आप भी अपने ब्लॉग का लिंक भेज सकते हैं। एक बार लिंक भेजने के बाद आपको फिर कभी लिंक नहीं भेजना है। महीने भर में आप जो भी यात्रा-पोस्ट प्रकाशित करेंगे, उन सबकी सूचना पत्रिका में दी जायेगी।]

5. अपनी बात
   पिछले कुछ समय से मैं कमाई के विकल्पों पर प्रयोग कर रहा हूं। क्राउड फंडिंग, ट्रेकिंग के सामान किराये पर देना, फोटो बेचना, गूगल एड, अमेजन-फ्लिपकार्ट के विज्ञापन आदि। हो सकता है कि आगे और भी प्रयोग करूं। इसका कारण है कि मैं नौकरी छोडकर पूर्णकालिक ब्लॉगिंग और यात्राओं पर ही निर्भर होना चाहता हूं। हालांकि अभी तक कोई भी विकल्प उतना सफल नहीं हुआ है जितना मैंने सोचा था। फिर भी सफलता की गति बढ रही है। साल के शुरू में ट्रैकिंग के सामान खरीदने में जितने पैसे खर्च किये थे, उनकी पूर्ति अभी तक नहीं हुई है लेकिन जिस दर से सितम्बर में सामान किराये पर गया है, उससे लग रहा है कि अगले तीन महीनों में पूर्ति हो जायेगी। पूर्ति होने से ज्यादा तसल्ली इस बात की है कि अब बाजार में कदम बढने लगे हैं।
   नौकरी क्यों छोडूं? बैठे बिठाये पैंतीस चालीस हजार मिल रहे हैं, उन्हें लात क्यों मारूं? इसका कारण है कि नौकरी नौकरी होती है, चाहे सरकारी हो या प्राइवेट। आपका एक बॉस होता है और आप उसके नौकर होते हो। बॉस आपको अपना गुलाम समझता है और मनमानी करना उसका अधिकार होता है। हालांकि बॉस का भी कोई बॉस होता है लेकिन वहां भी यही नियम लागू होता है कि सीनियर मालिक और जूनियर गुलाम। हालांकि सरकारी नौकरी में स्थायित्व ज्यादा होता है। इसे जूनियर भी जानता है और कभी कभी वो बॉस के सामने विद्रोह भी कर देता है। प्राइवेट नौकरी में विद्रोह करने का नतीजा होता है नौकरी समाप्त लेकिन सरकारी में ऐसा नहीं होता। इसके दूरगामी नतीजे होते हैं। हर साल प्रत्येक कर्मचारी की एसीआर भरी जाती है जिसमें उसके चरित्र, काम के प्रति लगन आदि का विवरण होता है। इसे बॉस ही भरता है। यदि आपने विद्रोह कर रखा है तो बॉस इसे कैसा भरेगा, समझ जाइये। इसका नतीजा तुरन्त नहीं निकलता, आगे कभी निकलता है। इसके अलावा आपकी छुट्टियां भी बॉस ही पास करता है। चूंकि उसने कभी मनमानी की थी, उसके बदले में आपने विद्रोह किया था; इसलिये बॉस अब भी मनमानी करेगा। छुट्टियां पास नहीं करेगा। बॉस के पास यह सबसे बडा हथियार होता है। उसके पास छुट्टी पास न करने के सैंकडों बहाने होते है और आप उन्हें चुनौती नहीं दे सकते। फिर अगर आपने हिमाचल जाने के लिये छुट्टियां मांग ली तो बॉस सीधा मना करेगा। हां, बीमारी का झूठा बहाना बना लिया हो या घर में किसी की झूठी मृत्यु करा दी हो तो दो-चार दिन की छुट्टियां मिल जाती हैं।
   मेरा थोडा सा अलग मामला है। शिफ्ट ड्यूटी होती है। अगर मैं छुट्टी ले रहा हूं तो मेरे किसी सहकर्मी को वो शिफ्ट करनी पडेगी। यदि कोई सहकर्मी छुट्टी पर है, तब मुझे छुट्टियां मिलनी मुश्किल होंगी अन्यथा नहीं। मैं ऐसे समय में छुट्टियां लेता हूं जब कोई और छुट्टी न ले रहा हो, इसलिये इनका पास होना आसान हो जाता है। लेकिन बॉस तो बॉस ठहरा। वो बिना किसी वजह के मना कर देता है। फिर उसके सामने हाथ जोडने पडते हैं। कई बार तो ऐसा भी हुआ है कि बॉस अपनी बॉसगिरी दिखाने को कोई काम दे देता है कि जब तक इस काम को नहीं करेगा, तब तक छुट्टी नहीं दूंगा। फिर आनन-फानन में वो काम करना होता है।
   बडी ठेस पहुंचते है उस समय मुझे। मेरी ही छुट्टियां... आपके पास छुट्टी रोकने का कोई बहाना भी नहीं है... केवल मनमानी... और हाथ मुझे जोडने पडते हैं। और केवल इतना ही नहीं है। आपकी आपके बॉस से बिगड जाती है तो बडे बुरे-बुरे नतीजे आने लगते हैं। नौकरी से तो नहीं निकाल सकते। कूटनीति खेली जाती है और आपको फंसाने की चालें चली जाती हैं। बडा चौकस रहना होता है हर समय। भगवान ने मुझे भी कूटनीति की कला सिखा रखी है इसलिये अभी तक तो समय रहते बचता रहा हूं। फिर अकेला बॉस ही आपका घात नहीं करता। अपने ही सहकर्मी जिनकी बॉस से अच्छी बनती है, उनसे भी चौकस रहना होता है। एक बार तो ऐसा हुआ कि मेरा जो सबसे घनिष्ठ सहकर्मी था, जिससे मैं अपनी हर बात बताया करता था, जिस पर आंख मूंदकर मैं भरोसा करता था; वो बॉस का आधिकारिक जासूस निकला, जिसका काम ही मुझ समेत कई अन्यों की जासूसी करना था।
   खैर, यह सिर्फ मेरी ही कहानी नहीं है, हर किसी की यही कहानी है। खुशी इस बात की है कि मेरे बॉस के साथ भी यही हो रहा है। उसमें भी अगर थोडा बहुत स्वाभिमान होगा तो निश्चित ही वो भी नौकरी छोडने की सोच रहा होगा।
   पिछले दिनों मैं कई मित्रों से मिला हूं। एक हैं आनन्द सिंह शेखावत जो कानपुर आईआईटी से पढाई कर रहे हैं। उन्हें नौकरी नहीं करनी है बल्कि टूरिज्म फील्ड में बिजनेस करना है। विश्वास सिंधु ने तो बाकायदा मुझसे कहा भी था कि नौकरी छोड दो और पूर्णकालिक तौर पर पर्यटन क्षेत्र में आ जाओ। अमित माथुर हर सप्ताह चार-चार दिनों के लिये अपनी गाडी में कुछ लोगों को घुमाने ले जाते हैं और अच्छी कमाई कर रहे हैं। ये तीनों वे लोग हैं जो अभी टूरिज्म फील्ड में नये-नये हैं और अपना बिजनेस जमाने में लगे हैं। सचिन गांवकर जो केवल साइकिल चलाता है और वही से मुम्बई में रहते हुए अपना परिवार भी पालता है।
   यदि मैं आज नौकरी छोड दूं तो हम दोनों मियां-बीवी गुजारा कर लेंगे लेकिन हमारे अलावा परिवार में दो प्राणी और भी हैं। धीरज की कहीं नौकरी लग जायेगी तो मैं उन दोनों की चिन्ता से मुक्त हो जाऊंगा। रिस्क भी ले सकूंगा। अभी जेब में पैंतीस हजार हर महीने आ जाते हैं। नौकरी छोडने पर जब ये पैसे नहीं आयेंगे तो हो सकता है कि तब कुछ और भी सोचूं। जरुरत पडने पर ही सोच विकसित होती है।
   एक मित्र ने शिकायत की थी कि मैं अब लेखन से ज्यादा कमाई पर ध्यान देने लगा हूं। इसका जवाब है कि पूर्णकालिक रूप से टूरिज्म क्षेत्र में उतरने से पहले मैं कई प्रयोग करके निश्चिन्त हो जाना चाहता हूं। लेकिन इतना मैं भी जानता हूं कि नौकरी छोडने पर शुरूआत में पैसों की तंगी पड सकती है लेकिन चूंकि मैं अपनी पसन्द का काम करूंगा इसलिये धीरे-धीरे सब ठीक होता चला जायेगा। जितने पैसे अभी ‘गुलामी’ करके मिलते हैं, ‘आजादी’ में उससे ज्यादा पैसे ही मिलेंगे।

6. फोटो प्रतियोगिता
आपको याद होगा कि पिछली बार हमने आपसे एक-एक फोटो भेजने का आग्रह किया था। तीन मित्रों ने फोटो भेजे। इस फोटो का विश्लेषण चार निर्णायकों ने किया- मैंने, पीएस तिवारी, विधान चन्द्र और प्रकाश यादव। सभी ने सभी फोटो को 10-10 में से अंक दिये। उन अंकों को जोडकर फोटुओं को सर्वोत्तम के अनुसार लगाया। मुझे छोडकर बाकी निर्णायकों को नहीं पता था कि ये फोटो किस-किस के हैं। निर्णायकों ने किस-किस फोटो को कितने-कितने अंक दिये, यह मैं नहीं बताऊंगा।
कैप्शन भी लिखना अनिवार्य था लेकिन किसी ने भी कैप्शन नहीं लिखा। इस बार से कैप्शन अनिवार्य नहीं होगा।
चलिये, नतीजों की तरफ बढते हैं:
1. पहला स्थान मिला है कीर्ति मौर्य को:

इस फोटो के बारे में प्रकाश यादव जी का कहना है: ‘फोटो सही है, बस फेसबुक पर क्वालिटी सही नहीं आई।’
तिवारी जी का कहना है- ‘फोटो किसी सस्ते कैमरे से खींची है, पेड की टहनियां विकृत हैं।’
‘फोटो में क्षितिज रखा है, थोडी टेढी है। फोटो राइट साइड झुकी हुई लग रही है। फोटोस्केप से इसको ठीक कर सकते हैं।’

2. दूसरे स्थान पर हैं सचिन:

प्रकाश यादव- ‘फूल ऑवर-एक्सपोज्ड है, इस वजह से पानी की बूंदें क्लियर नहीं आ रही हैं, नहीं तो यह नम्बर एक होता।’
तिवारी जी- ‘फोटो में नॉइज बहुत है। एक फ्री का सुझाव है फोटोस्केप को यूज करके नॉइज कम करो तो फोटो की खूबसूरती और बढ जायेगी।’
‘फूलों की पंखुडियों पर ज्यादा शोखी आ गई।’

3. और तीसरे स्थान पर रहे आशीष मेहता:

प्रकाश यादव- ‘अगर इसे क्रोप करके स्काईलाइन हटा दें, तो ‘आई कैचिंग’ फाल होगा और मैं अपने नम्बर बढा सकता हूं। अभी कुछ अधूरा सा लगता है।’
...
इस प्रतियोगिता के लिये आप अपने खींचे फोटो भेज सकते हैं। नियम इस प्रकार हैं:
1. एक व्यक्ति केवल एक ही फोटो भेज सकता है।
2. फोटो अधिकतम 500 KB साइज का हो। इससे बडा फोटो स्वीकार नहीं किया जायेगा।
3. फोटो भेजने की अन्तिम तिथि 25 अक्टूबर 2015 है। इसके बाद फोटो प्रतियोगिता-2 के लिये आये फोटुओं पर गौर नहीं की जायेगी।
4. इसके लिये किसी इनामी राशि का प्रावधान नहीं है। अगली घुमक्कड पत्रिका में आपके फोटो के आधार पर सर्वोत्तम फोटोग्राफर का चुनाव किया जायेगा और सभी प्रतिभागियों को रैंक दी जायेगी।
5. सभी फोटुओं को अंक देने का कार्य एक निर्णायक समिति करेगी। यदि आप भी समिति के सदस्य होना चाहते हैं, तो इसकी स्वीकृति दें। अगर आप समिति के सदस्य हुए तो आप अपने भेजे फोटो को अंक नहीं दे सकते। आप केवल दूसरे के फोटुओं को ही अंक दे सकते हैं। इन अंकों का औसत निकालकर फोटुओं को रैंक मिलेगी।
6. फोटो neerajjaatji@gmail.com पर या मेरे फेसबुक पेज पर लगायें या मुझे इनबॉक्स करें। किसी भी फोटो में मुझे टैग न करें। टैग वाले फोटुओं पर गौर नहीं की जायेगी। कृपया फोटो भेजते समय ‘घुमक्कड पत्रिका के लिये’ या ‘फोटो प्रतियोगिता के लिये’ अवश्य लिखें। अक्सर फेसबुक और व्हाट्सएप पर बेमतलब के फोटो बहुत आते हैं। इससे मुझे पहचानने में आसानी रहेगी। व्हाट्सएप पर अपना नाम अवश्य लिखें। 

7. लेख भेजने के नियम

1. अपने अप्रकाशित यात्रा-वृत्तान्त (अधिकतम 1000 शब्द, 5 फोटो, प्रत्येक फोटो अधिकतम 500 केबी)) आप भेज सकते हैं। यदि आपने कोई साहसिक यात्रा की है (ट्रेकिंग, साइकिलिंग, दुर्गम इलाकों में मोटरसाइकिल, कार यात्रा) तो आप अधिकतम 5000 शब्द और 10 फोटो, प्रत्येक फोटो अधिकतम 500 केबी तक भेज सकते हैं। यदि साहसिक यात्रा-वृत्तान्त और भी लम्बा हुआ तो उसे दो या अधिक भागों में प्रकाशित करा सकते हैं। यात्रा-वृत्तान्त केवल हिन्दी में ही भेजें।
2. यदि आपका यात्रा-वृत्तान्त इंटरनेट पर पहले आपके ब्लॉग, वेबसाइट या अन्य किसी जगह छप चुका है तो उसे ‘घुमक्कड पत्रिका’ में नहीं प्रकाशित किया जा सकता। आप उसका लिंक भेज सकते हैं, ताकि पाठक सीधे आपके यहां जाकर पढ सकें। ऐसा यात्रा-वृत्तान्त हिन्दी, अंग्रेजी समेत किसी भी भाषा में हो सकता है।
3. फोटोग्राफी और यात्रा-वृत्तान्त लेखन से सम्बन्धित तकनीकी जानकारियां भी आप भेज सकते हैं।
4. यात्राओं से या यात्रा-वृत्तान्त, फोटोग्राफी से सम्बन्धित अपना कोई प्रश्न, जिज्ञासा आदि भेज सकते हैं। समाधान करने का प्रयत्न किया जायेगा।
5. आपके आसपास या आपकी जान-पहचान में कोई ऐसा व्यक्ति हो जिसने घुमक्कडी में कुछ विलक्षण किया हो; आप उसके बारे में, उसके कार्यों के बारे में बता सकते हैं।
6. यात्राओं से सम्बन्धित समाचार आप भेज सकते हैं।
7. आप अपनी सेवाओं जैसे होटल, ट्रैवल एजेंसी; इसकी खासियतों और सुविधाओं के बारे में बता सकते हैं। (इसके बदले आपसे विज्ञापन राशि ली जा सकती है।)
8. आपको जो भी कुछ भेजना है, मेरी ई-मेल आईडी neerajjaatji@gmail.com पर ही भेजें। भेजने की कोई अन्तिम तिथि नहीं है। प्रत्येक महीने की पहली तारीख को ‘घुमक्कड पत्रिका’ प्रकाशित हुआ करेगी। आपका मैटेरियल यथासम्भव प्रकाशित कर दिया जायेगा



Comments

  1. नीरज भाई कमाल करते हो

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  2. धन्यवाद नीरज जी! आपकी पत्रिका में जगह पा कर बहुत सम्मानित महसूस कर रहा हुँ!

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    1. आपका भी धन्यवाद निरंजन जी...

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  3. नीरज भाई तकनीकी सलाह के लिए धन्यवाद।
    आपसे अभी ओर बहुत सी बातों पर बात करनी है,कभी फुर्सत में आपसे मिलने आऊंगा।

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    1. स्वागत है सचिन भाई... आओ कभी भी।

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  4. yatra calendar badhiya tha . chaalu rakhte

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    1. मेरे लिये डाटा जुटाना मुश्किल हो रहा था सर, इसलिये बन्द करना पडा।

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  5. क्या आप नरेंद्र सिंह तोमर अलीपुर मेरठ वालो को जानते हो

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  6. आपकी अपनी बात कॉलम की बाते रुचिपूर्ण लगी। नौकरी छोड़ने का विचार गलत है। वैसे भी आपको इतनी छुट्टिया मिल जाती है तो इतनी अच्छी नौकरी छोड़ने का क्या लाभ बाकि आपकी मर्जी

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    1. नौकरी नौकरी होती है और स्वरोजगार से उसका कोई मुकाबला नहीं।

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  7. नीरज इसमें एक जगह टाइटल क्रेडिट में इंद्रहार वाली पोस्ट का जिक्र है। पर क्यों है समझ नहीं आया? टाइटल inspire होक लिया है या उस पोस्ट को पढ़ के ये पोस्ट लिखी है?

    अपने गेस्ट ऑथर से पूछो तो

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    1. तरुण भाई... मैंने भी शायद आपके यहां ‘पहाड तो आपके अपने हैं’ जैसा कुछ पढा था। शायद उन्होंने भी इसी से प्रेरित होकर यह शीर्षक लिख दिया हो। बाकी मैं पूछकर बताता हूं।

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  8. कई तरीके तकनीकी और ब्लॉग के पहलुओ को सम्मलित ये लेख और भी प्रभावी हो गया है |
    घुमक्कड और घुमक्कडी से साक्षात्कार वाला लेख पसंद आया .....
    आपने मेरे ब्लॉग को शामिल किया इसके लिए शुक्रिया.... पर भाई मेरे सितम्बर में एक नई पोस्ट लिखी है जो प्रकाशित भी है |

    Monday, September 28, 2015
    गंगटोक से दार्जिलिंग का सफ़र (Travel to Darjeeling, West Bengal )
    लिंक ये है
    http://www.safarhaisuhana.com/2015/09/travel-to-darjeeling-west-bengal.html

    धन्यवाद

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    1. आपका बहुत बहुत धन्यवाद रीतेश जी... आपकी सितम्बर की पोस्ट पत्रिका में अपडेट कर दी है।

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  9. नीरज भाई , आपने मेरे ब्लॉग को शामिल किया इसके लिए धन्यबाद ....,एकल या सामूहिक यात्रा के बारे में बहुत ही रोचक जानकारी ।

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  10. शानदार पत्रिका है नीरज जी...एक ही बैठक में आद्योपांत पढ़ गया। आपकी श्रम-साधना प्रणम्य है...

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  11. नीरज,
    काम वही करना चाहिए जिसे करने में आनंद आये| कहते है 'जो चले दुकानदारी तो क्या करे तहसीलदारी' |

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  12. वाह, बहुत रोचक लगी इस बार की घुमक्कड़ पत्रिका. नौकरी छोड़ने से पहले हर एक जोखिम का पूर्वानुमान तथा उनसे उत्पन्न परिस्थितियों से निबटने की सुनियोजित रणनीति पर पुख़्ता कार्य करने की सलाह देता हूँ. मेरे ब्लॉग को पत्रिका में शामिल करने के लिए धन्यवाद.

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46 रेलवे स्टेशन हैं दिल्ली में

एक बार मैं गोरखपुर से लखनऊ जा रहा था। ट्रेन थी वैशाली एक्सप्रेस, जनरल डिब्बा। जाहिर है कि ज्यादातर यात्री बिहारी ही थे। उतनी भीड नहीं थी, जितनी अक्सर होती है। मैं ऊपर वाली बर्थ पर बैठ गया। नीचे कुछ यात्री बैठे थे जो दिल्ली जा रहे थे। ये लोग मजदूर थे और दिल्ली एयरपोर्ट के आसपास काम करते थे। इनके साथ कुछ ऐसे भी थे, जो दिल्ली जाकर मजदूर कम्पनी में नये नये भर्ती होने वाले थे। तभी एक ने पूछा कि दिल्ली में कितने रेलवे स्टेशन हैं। दूसरे ने कहा कि एक। तीसरा बोला कि नहीं, तीन हैं, नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली और निजामुद्दीन। तभी चौथे की आवाज आई कि सराय रोहिल्ला भी तो है। यह बात करीब चार साढे चार साल पुरानी है, उस समय आनन्द विहार की पहचान नहीं थी। आनन्द विहार टर्मिनल तो बाद में बना। उनकी गिनती किसी तरह पांच तक पहुंच गई। इस गिनती को मैं आगे बढा सकता था लेकिन आदतन चुप रहा।

जिम कार्बेट की हिंदी किताबें

इन पुस्तकों का परिचय यह है कि इन्हें जिम कार्बेट ने लिखा है। और जिम कार्बेट का परिचय देने की अक्ल मुझमें नहीं। उनकी तारीफ करने में मैं असमर्थ हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि उनकी तारीफ करने में कहीं कोई भूल-चूक न हो जाए। जो भी शब्द उनके लिये प्रयुक्त करूंगा, वे अपर्याप्त होंगे। बस, यह समझ लीजिए कि लिखते समय वे आपके सामने अपना कलेजा निकालकर रख देते हैं। आप उनका लेखन नहीं, सीधे हृदय पढ़ते हैं। लेखन में तो भूल-चूक हो जाती है, हृदय में कोई भूल-चूक नहीं हो सकती। आप उनकी किताबें पढ़िए। कोई भी किताब। वे बचपन से ही जंगलों में रहे हैं। आदमी से ज्यादा जानवरों को जानते थे। उनकी भाषा-बोली समझते थे। कोई जानवर या पक्षी बोल रहा है तो क्या कह रहा है, चल रहा है तो क्या कह रहा है; वे सब समझते थे। वे नरभक्षी तेंदुए से आतंकित जंगल में खुले में एक पेड़ के नीचे सो जाते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि इस पेड़ पर लंगूर हैं और जब तक लंगूर चुप रहेंगे, इसका अर्थ होगा कि तेंदुआ आसपास कहीं नहीं है। कभी वे जंगल में भैंसों के एक खुले बाड़े में भैंसों के बीच में ही सो जाते, कि अगर नरभक्षी आएगा तो भैंसे अपने-आप जगा देंगी।

ट्रेन में बाइक कैसे बुक करें?

अक्सर हमें ट्रेनों में बाइक की बुकिंग करने की आवश्यकता पड़ती है। इस बार मुझे भी पड़ी तो कुछ जानकारियाँ इंटरनेट के माध्यम से जुटायीं। पता चला कि टंकी एकदम खाली होनी चाहिये और बाइक पैक होनी चाहिये - अंग्रेजी में ‘गनी बैग’ कहते हैं और हिंदी में टाट। तो तमाम तरह की परेशानियों के बाद आज आख़िरकार मैं भी अपनी बाइक ट्रेन में बुक करने में सफल रहा। अपना अनुभव और जानकारी आपको भी शेयर कर रहा हूँ। हमारे सामने मुख्य परेशानी यही होती है कि हमें चीजों की जानकारी नहीं होती। ट्रेनों में दो तरह से बाइक बुक की जा सकती है: लगेज के तौर पर और पार्सल के तौर पर। पहले बात करते हैं लगेज के तौर पर बाइक बुक करने का क्या प्रोसीजर है। इसमें आपके पास ट्रेन का आरक्षित टिकट होना चाहिये। यदि आपने रेलवे काउंटर से टिकट लिया है, तब तो वेटिंग टिकट भी चल जायेगा। और अगर आपके पास ऑनलाइन टिकट है, तब या तो कन्फर्म टिकट होना चाहिये या आर.ए.सी.। यानी जब आप स्वयं यात्रा कर रहे हों, और बाइक भी उसी ट्रेन में ले जाना चाहते हों, तो आरक्षित टिकट तो होना ही चाहिये। इसके अलावा बाइक की आर.सी. व आपका कोई पहचान-पत्र भी ज़रूरी है। मतलब