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Showing posts from October, 2015

पचमढी: चौरागढ यात्रा

   आज हम जल्दी उठे और साढे छह बजे तक कमरा छोड दिया। आज हमें चौरागढ जाना था और वापस आकर दोपहर से पहले पचमढी छोड देना था। कल हम महादेव गये थे, जो कि पचमढी से दस किलोमीटर दूर है। आज भी सबसे पहले महादेव ही गये। रास्ते भर कोई नहीं मिला। लेकिन महादेव जाकर देखा तो हमसे पहले भी कई लोग चौरागढ जाने को तैयार मिले। दुकानें खुली मिलीं और उत्पाती बन्दर भी पूरे मजे में मिले। पार्किंग में बाइकें खडी करने लगे तो दुकान वालों ने कहा कि उधर बाइक खडी मत करो, बन्दर सीट कवर फाड देंगे। यहां हमारे पास खडी कर दो। उनके कहे अनुसार बाइक खडी कीं और उनके ही कहे अनुसार सीटों पर पत्थर रख दिये ताकि बन्दर सीटों पर ज्यादा ध्यान न दें।    पैदल रास्ता यहीं से शुरू हो जाता है हालांकि सडक भी थोडा घूमकर कुछ आगे तक गई है। करीब एक किलोमीटर बाद सडक और पैदल रास्ते मिले हैं। हमें किसी ने नहीं बताया इस बारे में। बाइक वहां तक आसानी से चली जाती हैं और उधर बन्दरों का आतंक भी नहीं है। खैर।

पचमढी: राजेन्द्रगिरी, धूपगढ और महादेव

   अप्सरा विहार से लौटकर हम गये राजेन्द्रगिरी उद्यान। यहां जाने का परमिट नहीं लगता। हमारा गाइड सुमित था ही। राजेन्द्रगिरी जैसा कि नाम से ही पता चल रहा है कि एक ऊंची जगह है। ज्यादा ऊंची नहीं है लेकिन यहां से पचमढी के कई अन्य आकर्षण दिखाई देते हैं। एक तरफ धूपगढ दिखता है तो दूसरी तरफ चौरागढ। राजेन्द्रगिरी में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की एक प्रतिमा है और अच्छा उद्यान भी है।    इसके बाद रुख किया हमने धूपगढ का। यह पचमढी की सबसे ऊंची चोटी है। यहां से सूर्योदय और सूर्यास्त का अच्छा नजारा दिखता है। यहां जाने का परमिट लगता है, जिसे हम सुबह ही ले चुके थे। एक जगह जांच चौकी थी, जहां परमिट चेक किये और रजिस्टर में हमारी एण्ट्री की। सडक ठीक बनी है हालांकि संकरी और ‘बम्पी’ है। पहाडी रास्ता है और चढाई भी। कुछ ही दिन पहले तीज थी और उसके दो दिन बाद शायद नागपंचमी। आदिवासी समाज में नागों का बहुत महत्व होता है और इन्हें पूजा भी जाता है। तब यहां मेला लगा होगा। तभी तो रास्ते भर निर्जनता होने के बावजूद भी मेले के निशान मिलते गये।

पचमढी: पाण्डव गुफा, रजत प्रपात और अप्सरा विहार

20 अगस्त 2015 की रात नौ बजे हम पचमढी पहुंचे। दिल्ली से चलते समय हमने जो योजना बनाई थी, उसके अनुसार हमें पचमढी नहीं आना था इसलिये यहां के बारे में कोई खोजबीन, तैयारी भी नहीं की। मुझे पता था कि यह एक सैनिक छावनी है। हमारे यहां लैंसडाउन और चकराता में भी सैनिक छावनियां हैं। दोनों के अनुभवों से मुझे सन्देह था कि इतनी रात को यहां कोई कमरा मिल जायेगा। लेकिन यहां ऐसा कुछ नहीं हुआ। अच्छी चहल-पहल थी और बाजार भी खुला था। सुमित यहां पहले आ चुका था, इसलिये हमारा मार्गदर्शक वही था। मेरे पास समय की कोई कमी नहीं थी। मेरी बस एक ही इच्छा थी कि वापसी में पातालकोट देखना है। आज हमारे पास बाइक है और पातालकोट यहां से ज्यादा दूर भी नहीं, इसलिये इस मौके को मैं नहीं छोडने वाला था। बाकी रही पचमढी, तो जैसे भी घुमाना है, घुमा।

भोजपुर, मध्य प्रदेश

   अगस्त 2009 में मैं पहली बार मध्य प्रदेश घूमने गया था। सबसे पहले पहुंचा था भीमबेटका । उसी दिन इरादा बना भोजपुर जाने का। भीमबेटका के पास ही है। लेकिन कोई सार्वजनिक वाहन उपलब्ध न होने के कारण आधे रास्ते से वापस लौटना पडा। तब से कसक थी कि भोजपुर जाना है। आज जब बाइक साथ थी और हम उसी सडक पर थे जिससे थोडा सा हटकर भोजपुर है, तो हमारा भोजपुर जाना निश्चित था। भोपाल से थोडा सा आगे भैरोंपुर है। भैरोंपुर से अगर सीधे हाईवे से जायें तो औबेदुल्लागंज 22 किलोमीटर है। लेकिन अगर भोजपुर होते हुए जायें तो यही दूरी 30 किलोमीटर हो जाती है। यह कोई ज्यादा बडा फर्क नहीं है।    सावन का महीना होने के कारण भोजपुर में थोडी चहल-पहल थी अन्यथा बाकी समय यहां सन्नाटा पसरा रहता होगा। बेतवा के किनारे है भोजपुर। राजा भोज के कारण यह नाम पडा। उन्होंने यहां बेतवा पर बांध बनवाये थे और इस शिव मन्दिर का निर्माण करवाया था। किन्हीं कारणों से निर्माण अधूरा रह गया। पूरा हो जाता तो यह बडा ही भव्य मन्दिर होता। इसकी भव्यता का अन्दाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि एक बडे ऊंचे चबूतरे पर मन्दिर बना है और मन्दिर में जो शिवलिंग है वो 5

इन्दौर से पचमढी बाइक यात्रा

21 अगस्त 2015    मुझे छह बजे ही उठा दिया गया, नहीं तो मैं अभी भी खूब सोता। लेकिन जल्दी उठाना भी विवशता थी। आज हमें पचमढी पहुंचना था जो यहां से 400 किलोमीटर से ज्यादा है। रास्ते में देवास से सुमित को अपने साले जी को भी साथ लेना था। सीबीजेड एक्सट्रीम पर मैं और निशा थे जबकि बुलेट पर सुमित और उनकी पत्नी। साले जी की अपनी बाइक होगी। सुमित ने हमें धन्यवाद दिया कि हम दोनों को देखकर ही उनकी पत्नी भी साथ चलने को राजी हुई हैं अन्यथा उनका दोनों का एक साथ केवल इन्दौर-देवास-इन्दौर का ही आना-जाना होता था, कहीं बाहर का नहीं।    तो साढे छह बजे यहां से चल दिये। सुबह-सुबह का समय था, आराम से शहर से पार हो गये। मेन रोड यानी एनएच 3 पर पहुंचे। यह शानदार छह लेन की सडक है। देवास तक हम इसी पर चलेंगे, उसके बाद भोपाल के लिये दूसरी सडक पकड लेंगे।

शीतला माता जलप्रपात, जानापाव पहाडी और पातालपानी

शीतला माता जलप्रपात (विपिन गौड की फेसबुक से अनुमति सहित)    इन्दौर से जब महेश्वर जाते हैं तो रास्ते में मानपुर पडता है। यहां से एक रास्ता शीतला माता के लिये जाता है। यात्रा पर जाने से कुछ ही दिन पहले मैंने विपिन गौड की फेसबुक पर एक झरने का फोटो देखा था। लिखा था शीतला माता जलप्रपात, मानपुर। फोटो मुझे बहुत अच्छा लगा। खोजबीन की तो पता चल गया कि यह इन्दौर के पास है। कुछ ही दिन बाद हम भी उधर ही जाने वाले थे, तो यह जलप्रपात भी हमारी लिस्ट में शामिल हो गया।    मानपुर से शीतला माता का तीन किलोमीटर का रास्ता ज्यादातर अच्छा है। यह एक ग्रामीण सडक है जो बिल्कुल पतली सी है। सडक आखिर में समाप्त हो जाती है। एक दुकान है और कुछ सीढियां नीचे उतरती दिखती हैं। लंगूर आपका स्वागत करते हैं। हमारा तो स्वागत दो भैरवों ने किया- दो कुत्तों ने। बाइक रोकी नहीं और पूंछ हिलाते हुए ऐसे पास आ खडे हुए जैसे कितनी पुरानी दोस्ती हो। यह एक प्रसाद की दुकान थी और इसी के बराबर में पार्किंग वाला भी बैठा रहता है- दस रुपये शुल्क बाइक के। हेलमेट यहीं रख दिये और नीचे जाने लगे।

महेश्वर यात्रा

20 अगस्त 2015    हमें आज इन्दौर नहीं आना था। अभी दो दिन पैसेंजर ट्रेनों में घूमना था और तीसरे दिन यहां आना था लेकिन निशा एक ही दिन में पैसेंजर ट्रेन यात्रा करके थक गई और तब इन्दौर आने का फैसला करना पडा। महेश्वर जाने की योजना तो थी लेकिन साथ ही यह भी योजना थी कि दो दिनों में पैसेंजर यात्रा करते करते हम महेश्वर के बारे में खूब सारी जानकारी जुटा लेंगे, नक्शा देख लेंगे लेकिन अब ऐसा कुछ नहीं हो सका। सुमित के यहां नेट भी बहुत कम चलता है, इसलिये हम रात को और अगले दिन सुबह को भी जानकारी नहीं जुटा पाये। हालांकि सुमित ने महेश्वर के बारे में बहुत कुछ समझा दिया लेकिन फिर भी हो सकता है कि हम महेश्वर के कुछ अत्यावश्यक स्थान देखने से रह गये हों।

घुमक्कड पत्रिका- 2

1. सम्पादकीय 2. लेख A. ब्लॉगिंग: एकल या सामूहिक B. किसी ब्लॉग को कैसे फॉलो करें? 3. यात्रा-वृत्तान्त A. पहाड तो आपके अपने हैं, इन्हें क्यों गन्दा करते हो? (अंशुल ग्रोवर) B. घुमक्कड और घुमक्कडी से साक्षात्कार (डॉ. सुमित शर्मा) 4. ब्लॉग अपडेट