Skip to main content

फोटोग्राफी चर्चा- 2

बडी बेइज्जती हो रही है फोटोग्राफी चर्चा करने में। कारण यही है कि मैं भद्दे तरीके से चर्चा करता हूं। बात तो ठीक है लेकिन करूं भी क्या? हमेशा कहता आया हूं कि आप जो भी फोटो भेजते हो, उसके बारे में चार लाइनें भी लिखकर भेज दिया करो। बहुत सहायता मिलती है इन चार लाइनों से। अन्यथा आपके फोटो पर मैं अपना अन्दाजा ही लगाता रहूंगा और आपको लगेगा कि बेइज्जती हो रही है।
खैर, इस बार एक फोटो आया है चर्चा के लिये। इसे भेजा है सुधाकर मिश्रा जी ने। साथ में लिखा है: “ये चित्र मैंने नैनीताल में डोरोथी सीट के रास्ते से कहीं लिया था। पेडों की लाइन, उसके ऊपर छोटे पहाड और फिर बर्फीली चोटियां मुझे अच्छी लगी थीं। आप अपनी राय दीजिये।”


मिश्रा जी, यह मेरा भी पसन्दीदा स्टाइल है फोटो खींचने का- आसमान को कम से कम लेना। लेकिन पता नहीं मुझे क्यों लग रहा है कि आपने जो बीच में एक चोटी थोडी सी काट दी है, उसे पूरा लेना चाहिये था। अगली बार एक दूसरा प्रयोग भी करके देखना। मैंने आपके ही फोटो में से एक टुकडा क्रॉप करके दिखाया है। नीचे लगा है। यह केवल अन्दाजा लगाने के लिये है। घर या इस तरह की कोई इमारत फोटो में नीचे हो बीच में, उसके ऊपर आप प्राकृतिक दृश्यों को शामिल करते जाओ। बस, कोशिश करना कि आसमान न आने पाये। यह केवल मेरी बताई बात नहीं है। आप स्वयं करके देखना। एक फोटो मेरे बताये अनुसार कि आसमान न आने पाये और एक फोटो में आसमान ले लेना। फिर स्वयं देखना कि कौन सा फोटो ज्यादा अच्छा लग रहा है। फोटोग्राफी प्रयोग करने से ही निखरती है। प्रयोग करते रहो।


फोटोग्राफी में जिज्ञासा भी अहम है। आप दूसरों के फोटो देखिये। आपको अच्छा लगे तो सोचिये कि इसमें ऐसा क्या है जो यह मुझे बहुत अच्छा लग रहा है? समझ में आये तो ठीक; नहीं तो बेहिचक पूछिये। अपना एक उदाहरण देता हूं। अपने फोटोग्राफी के शुरूआती दिनों में जब मैंने पहली बार वो फोटो देखा जिसमें किसी सडक पर रात में सफेद और लाल लकीरें खिंची थीं तो मैं हैरान रह गया कि ऐसा कैसे हो सकता है? गौर से देखा तो पाया कि सडक के बायें हिस्से में लाल लाइनें थीं और दाहिने में सफेद। वो फोटो किसी पुल या फुट ओवर ब्रिज से खींचा गया होगा। मैं भी पहुंच गया एक बार अपना छोटा सा कैमरा लेकर कश्मीरी गेट और चढ गया पुल पर। उसमें ऑटोमैटिक मोड था। क्लिक किया और फोटो खिंच गया। लेकिन यह क्या? सभी गाडियां इसमें दिख रही थीं और वे लाल-सफेद लकीरें नहीं बनी थीं। उस समय मेरी इतनी जान-पहचान भी नहीं थी कि किसी से पूछता। जो भी यार-दोस्त थे, उनके लिये मैं ही बडा फोटोग्राफर था।

फोटो स्त्रोत

फिर एक दिन उससे भी एक धमाकेदार फोटो देखा। वो भी रात के ही समय का था। फोटोग्राफर कहीं घूमने गया था। उसने एक ऐसा फोटो लिया जहां तारों की वर्षा हो रही हो।। इस फोटो ने तो मुझे हिलाकर रख दिया कि ऐसा कैसे हो सकता है? खूब सोचा, खूब विचारा और आखिरकार तय किया कि ऐसा हो ही नहीं सकता। हमारे खींचे फोटो में तो तारे तक नहीं आते और इसके खींचे फोटो में वर्षा हो रही है? जरूर फोटोग्राफर ने फोटो में एडिटिंग की है।

फोटो स्त्रोत

बाद में पता चला कि यह सब शटर स्पीड का खेल है। आज हम थोडी सी चर्चा शटर स्पीड पर ही करेंगे।
जैसा कि आप जानते ही होंगे कि फोटोग्राफी और कुछ नहीं है बल्कि प्रकाश का चित्रण करना है। कुछ ऐसा इंतजाम किया जाता है कि प्रकाश लेंस के माध्यम से होता हुआ पर्दे पर पडता है और उसका चित्रण हो जाता है, यानी इमेज बन जाती है। फोटो खिंच जाता है। ज्यादा देर तक प्रकाश पर्दे पर पडेगा तो फोटो कुछ और होगा; कम देर तक प्रकाश पर्दे पर पडेगा तो फोटो कुछ और होगा। जितनी देर तक प्रकाश पर्दे पर पडता है, उसे ही शटर स्पीड कहते हैं। असल में यह नाम शटर नामक यन्त्र से मिला है। कैमरे में यह एक यन्त्र होता है जो प्रकाश को कैमरे के अन्दर आने की अनुमति देता है। शटर ज्यादा देर तक खुला रहेगा तो ज्यादा प्रकाश पर्दे पर पडेगा; कम देर तक खुलेगा तो कम प्रकाश प्रवेश करेगा। उसका सीधा सीधा असर फोटो पर पडता है।
लेकिन यह शटर स्पीड शब्द मुझे बडा भ्रामक लगता है। भ्रामक इसलिये कि इसमें ‘स्पीड’ है और इसकी गणना सेकण्ड यानी समय में की जाती है। स्पीड और समय एक दूसरे के विरोधी हैं। स्पीड कम होगी तो समय ज्यादा लगेगा और स्पीड ज्यादा होगी तो समय कम लगेगा। एक उदाहरण से इस बात को और स्पष्ट कर देता हूं। मान लो दो फोटो खींचे गये। पहले फोटो में शटर स्पीड 1 सेकण्ड है और दूसरे फोटो में 2 सेकण्ड। इसका अर्थ यह है कि पहले फोटो में हमने शटर को एक सेकण्ड के लिये खुलने दिया और दूसरे फोटो में दो सेकण्ड के लिये। जाहिर है कि पहले फोटो में शटर कम समय के लिये खुला। इसे इस तरह भी कह सकते हैं कि शटर तेजी से खुला, ज्यादा रफ्तार से खुला, ज्यादा स्पीड से खुला। अर्थात पहले फोटो की शटर स्पीड ज्यादा थी अर्थात एक सेकण्ड और दूसरे की कम अर्थात दो सेकण्ड। यही बात मुझे भ्रामक लगती है। इसी भ्रामकता से बचने के लिये शटर स्पीड को यहां मैं शटर टाइम लिखूंगा।
खैर, जो भी हो। अपनी बात आगे बढाते हैं। साधारणतया कैमरों में ऑटो मोड में शटर टाइम 1/100, 1/400 सेकण्ड या कुछ ऐसा ही होता है। अर्थात सेकण्ड के सौवें हिस्से में शटर खुलकर बन्द भी हो जाता है। प्रकाश ज्यादा हो तो यह सेकण्ड के हजारवें हिस्से तक भी पहुंच जाता है। कल्पना कीजिये कि कितनी तेजी से शटर खुलता और बन्द हो जाता है। लेकिन अगर प्रकाश कम हो, रात का समय हो तो इतनी तेजी किसी काम की नहीं है। पर्याप्त प्रकाश पर्दे पर नहीं पडेगा और फोटो काला आयेगा। यानी हमें रात में फोटो खींचने के लिये प्रकाश की मात्रा बढानी पडेगी। यह काम शटर टाइम से किया जाता है। इसे हम एक सेकण्ड कर देंगे, शटर एक सेकण्ड तक खुला रहेगा। दस सेकण्ड कर देंगे तो शटर दस सेकण्ड तक खुला रहेगा। इस दौरान जितना भी प्रकाश अन्दर जायेगा, वो सब चित्रित हो जाता है। लेकिन इसकी शर्त है कि कैमरा हिलना नहीं चाहिये। कैमरा अगर हिल गया तो फोटो ब्लर हो जायेगा। इसलिये कम प्रकाश में फोटो लेने के लिये या तो फ्लैश का इस्तेमाल करना पडेगा या फिर ट्राइपॉड का। फ्लैश से प्रकाश की मात्रा बढ जाती है तो कम शटर टाइम से भी काम चल जाता है।
अभी थोडी देर पहले मैंने जिस तरह के फोटो का जिक्र किया है वे सब ज्यादा शटर टाइम में खींचे गये होते हैं। कैमरे को ट्राइपॉड पर लगाओ; शटर टाइम 30 सेकण्ड, 60 सेकण्ड सेट करो। शटर बटन दबाओ और 30 सेकण्ड, 60 सेकण्ड के लिये पीछे हट जाओ। इस दौरान जो भी कुछ कैमरे के सामने घटित होगा, सब चित्रित होता चला जायेगा। कोई गाडी आयेगी तो उसकी हैड लाइट एक लकीर बनाती हुई चली जायेगी। आतिशबाजी होगी या बिजली कडकेगी तो उसकी पूरी चमक चित्रित हो जायेगी। रात में तारों की वर्षा वाले फोटो लेने के लिये शटर टाइम 10 मिनट या आधा घण्टा तक भी हो सकता है। मेरे कैमरे में अधिकतम 30 सेकण्ड तक के शटर टाइम से ही फोटो लिये जा सकते हैं। डीएसएलआर कैमरों में यह बहुत ज्यादा होती है।

अब एक उदाहरण देता हूं अपने खींचे फोटुओं से:


आप यकीन नहीं करेंगे कि यह फोटो अन्धेरे में जाकर खींचा गया है। मेरे पीछे चांद जरूर निकला था लेकिन उसकी रोशनी इतनी अपर्याप्त थी कि मुझे यहां तक टॉर्च के सहारे आना पडा था। ट्राइपॉड लगाया, उसकी परछाई फोटो में दिख रही है। शटर टाइम 30 सेकण्ड था। जिन मित्रों ने अभी तक ऐसे मामलों में हाथ नहीं लगाया है, उन्हें जानकर और भी हैरानी होगी कि इस दौरान एक आदमी कैमरे के सामने आया और टहलने लगा। तकरीबन पन्द्रह सेकण्ड कैमरे के सामने टहलने के बाद वह चला गया। वह आदमी फोटो में नहीं आया जबकि शटर दब चुका था और फोटो खींचा जा रहा था। ज्यादा शटर टाइम वाले फोटुओं का यही चमत्कार है कि स्थिर वस्तुएं चित्रित हो जाती हैं, गतिशील वस्तुएं चित्रित नहीं होतीं। आप रात के समय भरे बाजार में कैमरा और ट्राइपॉड लेकर चले जाओ। 30 सेकण्ड या उससे भी ज्यादा शटर टाइम सेट करो तो आप पाओगे कि भीड होने के बावजूद भी कोई आदमी फोटो में नहीं आयेगा।


फोटोग्राफी चर्चा - 1




Comments

  1. नीरज भाई,
    फोटोग्राफी ज्ञान के लिए धन्यवाद ! ये ज्ञान ऐसे ही साझा करते रहो, इसी बहाने हमें भी काफ़ी कुछ सीखने को मिल जाएगा ! मेरा विचार एक कैमरा लेने का है, फिलहाल Canon IXUS 220 HS से काम चला रहा हूँ ! नए कैमरे का विचार अभी स्थगित कर दिया है, सोच रहा हूँ पहले कुछ ज्ञान प्राप्त कर लूँ, उसके बाद नया कैमरा लूँगा ! उम्मीद है, कि निकट भविष्य में आपके लेखों में विभिन्न पहलुओं पर चर्चा होगी !

    ReplyDelete
    Replies
    1. चौहान साहब, फोटोग्राफी का ज्ञान पढने से नहीं मिलता बल्कि स्वयं फोटो खींचने से मिलता है। आप कैमरा खरीदिये और स्वयं फोटो खींचिये। ज्ञान स्वतः मिलता रहेगा।

      Delete
    2. तो नीरज भाई ये भी बता दो कौन सा कैमरा लिया जाए ! 20-22 हज़ार रुपए में ! कोई DSLR भी मिल सकता है क्या इतने रुपए में ?

      Delete
  2. दादा मुझे तो लगा था कि इसपे बात ही नहीं होगी :D प्रयोग तो लगातार करते रहना चाहिएI सोचा था की कुछ और फोटो भेजूंगा पर अपने पूर्णविराम लगा दिया :(
    खैर कम से कम जानकारी ही मिलती रहेगीI धन्यवाद

    ReplyDelete
  3. नीरज जी बहुत ही ज्ञानवर्धक जानकारी मिलीं, धन्यवाद। बहुत दिनों से वो लाइट वाले और तारे वाले फोटो के ट्रिक के बारे में जानने की इच्छा थी और आपके इस एक पोस्ट से ही हमें बहुत जानकारी मिल गई , शानदार पोस्ट।

    ReplyDelete
  4. नीरज भाई एक नंबर का पोस्ट लिखा आपने
    ऐसे लेख की लोगो को बहुत जरुरत होती है
    पर इन्टरनेट पर मिलने वाले लेख बड़े कठिन मालूम देते है. अपने जिस तरीके से बताया ;) लाजवाब कर दिया

    ReplyDelete
  5. बहुत सुन्दर नीरज जी, कृपया बताएँ की २०० वी में शटर स्पीड कैसे सेलेक्ट करतें हैं।

    ReplyDelete
  6. वाक़ई क़ाबिले तारीफ़ प्रस्तुति !!
    और हां , शादी मुबारक नीरज भाई।

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

46 रेलवे स्टेशन हैं दिल्ली में

एक बार मैं गोरखपुर से लखनऊ जा रहा था। ट्रेन थी वैशाली एक्सप्रेस, जनरल डिब्बा। जाहिर है कि ज्यादातर यात्री बिहारी ही थे। उतनी भीड नहीं थी, जितनी अक्सर होती है। मैं ऊपर वाली बर्थ पर बैठ गया। नीचे कुछ यात्री बैठे थे जो दिल्ली जा रहे थे। ये लोग मजदूर थे और दिल्ली एयरपोर्ट के आसपास काम करते थे। इनके साथ कुछ ऐसे भी थे, जो दिल्ली जाकर मजदूर कम्पनी में नये नये भर्ती होने वाले थे। तभी एक ने पूछा कि दिल्ली में कितने रेलवे स्टेशन हैं। दूसरे ने कहा कि एक। तीसरा बोला कि नहीं, तीन हैं, नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली और निजामुद्दीन। तभी चौथे की आवाज आई कि सराय रोहिल्ला भी तो है। यह बात करीब चार साढे चार साल पुरानी है, उस समय आनन्द विहार की पहचान नहीं थी। आनन्द विहार टर्मिनल तो बाद में बना। उनकी गिनती किसी तरह पांच तक पहुंच गई। इस गिनती को मैं आगे बढा सकता था लेकिन आदतन चुप रहा।

जिम कार्बेट की हिंदी किताबें

इन पुस्तकों का परिचय यह है कि इन्हें जिम कार्बेट ने लिखा है। और जिम कार्बेट का परिचय देने की अक्ल मुझमें नहीं। उनकी तारीफ करने में मैं असमर्थ हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि उनकी तारीफ करने में कहीं कोई भूल-चूक न हो जाए। जो भी शब्द उनके लिये प्रयुक्त करूंगा, वे अपर्याप्त होंगे। बस, यह समझ लीजिए कि लिखते समय वे आपके सामने अपना कलेजा निकालकर रख देते हैं। आप उनका लेखन नहीं, सीधे हृदय पढ़ते हैं। लेखन में तो भूल-चूक हो जाती है, हृदय में कोई भूल-चूक नहीं हो सकती। आप उनकी किताबें पढ़िए। कोई भी किताब। वे बचपन से ही जंगलों में रहे हैं। आदमी से ज्यादा जानवरों को जानते थे। उनकी भाषा-बोली समझते थे। कोई जानवर या पक्षी बोल रहा है तो क्या कह रहा है, चल रहा है तो क्या कह रहा है; वे सब समझते थे। वे नरभक्षी तेंदुए से आतंकित जंगल में खुले में एक पेड़ के नीचे सो जाते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि इस पेड़ पर लंगूर हैं और जब तक लंगूर चुप रहेंगे, इसका अर्थ होगा कि तेंदुआ आसपास कहीं नहीं है। कभी वे जंगल में भैंसों के एक खुले बाड़े में भैंसों के बीच में ही सो जाते, कि अगर नरभक्षी आएगा तो भैंसे अपने-आप जगा देंगी।

स्टेशन से बस अड्डा कितना दूर है?

आज बात करते हैं कि विभिन्न शहरों में रेलवे स्टेशन और मुख्य बस अड्डे आपस में कितना कितना दूर हैं? आने जाने के साधन कौन कौन से हैं? वगैरा वगैरा। शुरू करते हैं भारत की राजधानी से ही। दिल्ली:- दिल्ली में तीन मुख्य बस अड्डे हैं यानी ISBT- महाराणा प्रताप (कश्मीरी गेट), आनंद विहार और सराय काले खां। कश्मीरी गेट पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के पास है। आनंद विहार में रेलवे स्टेशन भी है लेकिन यहाँ पर एक्सप्रेस ट्रेनें नहीं रुकतीं। हालाँकि अब तो आनंद विहार रेलवे स्टेशन को टर्मिनल बनाया जा चुका है। मेट्रो भी पहुँच चुकी है। सराय काले खां बस अड्डे के बराबर में ही है हज़रत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन। गाजियाबाद: - रेलवे स्टेशन से बस अड्डा तीन चार किलोमीटर दूर है। ऑटो वाले पांच रूपये लेते हैं।