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फुकताल गोम्पा की ओर

इस यात्रा-वृत्तान्त को आरम्भ से पढने के लिये यहां क्लिक करें
सुबह आठ बजे आंख खुली। आज हम जमकर सोये। रात ही तय हो गया था कि आज क्या करना है। तय ये हुआ था कि आज एक आदमी विधान और प्रकाश जी का सामान लेकर पुरने जायेगा। मैं अपना सामान अपने साथ ही रखूंगा। वे दोनों खाली हाथ फुकताल गोम्पा जायेंगे और शाम को पुरने में सामान ले लेंगे। चा से पुरने लगभग दो किलोमीटर है। सारा ढलान है, फिर भी उस आदमी ने सामान के आठ सौ रुपये मांगे। मजबूरी थी इसलिये देने पडे। साथ ही उसे यह भी बता दिया कि पुरने जाकर घोडे या खच्चर का इंतजाम करके रखना। हमें उनकी सख्त आवश्यकता थी।
पिछली पोस्ट में बताया था कि पुरने में सारप में एक नदी और आकर मिलती है। यह नदी शिंगो-ला से आती है, इसलिये चलिये इसे सुविधा के लिये शिंगो नदी कह देते हैं। सारप नदी बारालाचा-ला से निकलती है और सरचू होते हुए लम्बा चक्कर लगाकर यहां तक आती है। हमें शिंगो-ला जाने के लिये पुरने में सारप को छोड देना है और अपना सफर शिंगो नदी के साथ साथ तय करना है। लेकिन पुरने से पांच किलोमीटर दूर सारप नदी की घाटी में अदभुत फुकताल गोम्पा है। हम फुकताल गोम्पा को अवश्य देखना चाहते थे। उसके लिये सबसे प्रचलित और सुविधाजनक रास्ता पुरने से जाता है। उधर हम पुरने नहीं पहुंचे थे, उससे कुछ पहले चा में थे। गोम्पा का एक रास्ता चा से भी जाता है। चा वाला रास्ता सारप नदी के इस तरफ से है तो पुरने वाला उस तरफ से। हम इस तरफ से फुकताल जायेंगे और उस तरफ वाले रास्ते से होते हुए पुरने चले जायेंगे। पुरने में हमें सामान भी मिल जायेगा और घोडे भी। अच्छा हां, हम इस बात को भूल ही गये थे कि कल हमने एक घोडे वाले से भी बात की थी और उसे पुरने मिलने को कहा था। अब वह हमें पुरने में ढूंढ रहा होगा। चलिये, उसका किस्सा बाद में बताऊंगा।

चा से भी फुकताल उतना ही दूर है जितना पुरने से यानी पांच किलोमीटर। पहले मामूली सी चढाई है, फिर उतराई है। कहीं कहीं तो बडी तेज उतराई है। हम यह देखकर हैरान थे कि प्रकाश जी अभी भी उसी रफ्तार से चल रहे थे, जिससे वे कल चले थे। यानी बिल्कुल नगण्य; चींटी से भी कम। हालांकि आज उनके पास पन्द्रह किलो का बैग नहीं था। पानी की एक बोतल और मोबाइल, बस। विधान भी पन्द्रह किलो से आजाद हो गया था, इसका असर साफ दिख रहा था। वह तेजी से चल रहा था और फोटो भी खींच रहा था। चा गांव बडी खुली जगह पर बसा है। इससे दो किलोमीटर दूर जब हम उच्चतम बिन्दु पर होते हैं तो दूर-दूर का शानदार नजारा दिखता है। लद्दाख-जांस्कर के वे रंग-बिरंगे पहाड और नीला आसमान जिसके लिये विधान यहां आया था; वो भी।
...
इस यात्रा के अनुभवों पर आधारित मेरी एक किताब प्रकाशित हुई है - ‘सुनो लद्दाख !’ आपको इस यात्रा का संपूर्ण और रोचक वृत्तांत इस किताब में ही पढ़ने को मिलेगा।
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चा गांव






चा गांव

पुरने गांव


चा से फुकताल जाने वाली पगडण्डी













फुकताल गोम्पा की स्थिति। नक्शे को छोटा व बडा करके भी देखा जा सकता है।




अगला भाग: अदभुत फुकताल गोम्पा

पदुम दारचा ट्रेक
1. जांस्कर यात्रा- दिल्ली से कारगिल
2. खूबसूरत सूरू घाटी
3. जांस्कर यात्रा- रांगडुम से अनमो
4. पदुम दारचा ट्रेक- अनमो से चा
5. फुकताल गोम्पा की ओर
6. अदभुत फुकताल गोम्पा
7. पदुम दारचा ट्रेक- पुरने से तेंगजे
8. पदुम दारचा ट्रेक- तेंगजे से करग्याक और गोम्बोरंजन
9. गोम्बोरंजन से शिंगो-ला पार
10. शिंगो-ला से दिल्ली वापस
11. जांस्कर यात्रा का कुल खर्च




Comments

  1. ''मैं और विधान एक किलोमीटर दूर दिख रहे गोम्पा को देखने चल दिये जबकि प्रकाश जी वहीं बैठे रह गये। उनका साथ देने को एक फ्रांसीसी लडकी बिल्कुल मरणासन्न हालत में कुर्सी पर रखी थी।''
    पढकर मज़ा आ गया. अब असली नज़ारे दिखने लगे हैं.नंगे पहाड़ लद्दाख की पहचान हैं. लगे रहिये अगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा.

    नए टेम्पलेट में फॉण्ट साइज़ छोटा हो गया है और ब्लॉग से चारो तरफ काफी खली जगह छुट रही है फॉण्ट पहले जितना बड़ा रहता और किनारे का गैप भरा होता तो अच्छा होता. बाकि सब ठीक है.

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    1. धन्यवाद चन्द्रेश भाई, अभी आपके सुझाव के अनुसार बदलाव किया है। अब बताना।

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  2. मार्मिक वर्णन तथा मोहक चित्रण. नए कलेवर में ब्लॉग और भी निखर रहा है. नए वर्ष की शुभकामनाओं के साथ।

    मुकेश.....

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  3. blog ka background pehle jaisa rakhe..words dark rakhein......pehle jaisa badhiya nahi aa raha he.....thanks..ANURAG

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    1. अनुराग जी, बैकग्राउंड तो पहले जैसा ही है। शब्द पूरे काले हैं। साइज भी ठीक ही है। और ज्यादा डार्क का अर्थ है कि मुझे इन्हें बोल्ड करना होगा। लेकिन बोल्ड नहीं करूंगा। नया टैम्पलेट है, इतना परिवर्तन तो बनता है।

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  4. प्रकाश जी की भी नईया पार लगा ही दि आपने..
    आपने एक ग्रुप लिडर का काम बहुत अच्छे ढंग से किया..

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  5. Bade size me photo dekhan bada accha lag raha.. shaandaar photos hai..
    Wo Bhu-skhalan ki photo dhoondh raha tha nahi mili...

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    1. उसकी वीडियो बनाई थी लेकिन कुछ तकनीकी असफलता के कारण मैं उसमें से फोटो नहीं लिकाल पाया।

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  6. Bhai comment likh ker jub publish karte hain tho google account login karna padta hai aur comment gayab ho jata hai.
    Pehle bhi maine bataya tha, Kya upaay hai.

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    1. पता नहीं क्या मामला है? मैंने टिप्पणी पर कोई प्रतिबन्ध नहीं लगा रखा है। कोई भी टिप्पणी कर सकता है यहां तक कि बेनामी भी। गूगल एकाउंट के लिये नहीं कहना चाहिये लेकिन... सही में... नहीं बता सकता कुछ।

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  7. kya baat hai sir ji, ads dikh rae apke blog par..mujhe khushi hai kyuki money bhi jaruri hai :) sirf shauk se pet nae bhrta ..khud ka anubhav hai

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    1. बिल्कुल सही कह रहे हो सर जी... सिर्फ शौक से पेट नहीं भरता।

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  8. बढ़िया जानकारी और अदभूत फोटो।

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  9. Bahut badhiya yatra chal rahi hai Neeraj bhai.photo bhi bahut khubsurat hain,par sath hi darr bhi lag raha hai ki aisi durgam jagah par pahunch jaate ho aap bhi.

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    1. हां शर्मा जी... मजा आता है ऐसी जगहों पर।

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  10. बहुत ही रोचक व मजेदार वर्णन !
    :-)

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  11. भाई वो नदी शिंगो ला नहीं है ये है Lungnak (Lingti-Tsarap) River.

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    1. शिंगो-ला से जो नदी निकलती है, मुझे उसका नाम नहीं पता। यह मैंने इस पोस्ट में भी लिखा है। चलिये, उसका नाम लुगनक नदी ही सही। धन्यवाद आपका।

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  12. jat ji... iss yatra me kul kitna kharch aaya ???

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    1. मेरा दिल्ली से दिल्ली तक खर्च लगभग 15000 रुपये आया। उसके बारे में आगे विस्तार से बताऊंगा।

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  13. नीरज भाई
    ऐसे शानदार फोटो देखकर अपना भी दिल मचल जाता है..
    बहुत बढ़िया.!

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  14. yuhin kat jaayega safar saath chalne se..............................................................
    happy new year neerajji
    lage raho

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  15. अद्भुत .. सचमुच एक अलग दुनिया . अलग रंग अलग ढंग . अनजानी सी और विस्मयकारी . ... पहाड़ों का ऐसा रंग पहली बार देखा है .छायांकन बहुत खूबसूरत है .

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  16. नीरज भाई,
    फोटो ग्राफ्स बहुत सुन्दर , यात्रा वृतांत पढ़ कर मजा आ गया।

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  17. Jab bhi aap k blog ko padhta hu jindgi me ek naya-pan aa jata h aur jindgi rangin lagne lgti h :-) Dhanyavad

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