Skip to main content

भंगायणी माता मन्दिर, हरिपुरधार

इस यात्रा-वृत्तान्त को आरम्भ से पढने के लिये यहां क्लिक करें
10 मई 2014
हरिपुरधार के बारे में सबसे पहले दैनिक जागरण के यात्रा पृष्ठ पर पढा था। तभी से यहां जाने की प्रबल इच्छा थी। आज जब मैं तराहां में था और मुझे नोहराधार व कहीं भी जाने के लिये हरिपुरधार होकर ही जाना पडेगा तो वो इच्छा फिर जाग उठी। सोच लिया कि कुछ समय के लिये यहां जरूर उतरूंगा।
तराहां से हरिपुरधार की दूरी 21 किलोमीटर है। यहां देखने के लिये मुख्य एक ही स्थान है- भंगायणी माता का मन्दिर जो हरिपुरधार से दो किलोमीटर पहले है। बस ने ठीक मन्दिर के सामने उतार दिया। कुछ और यात्री भी यहां उतरे। कंडक्टर ने मुझे एक रुपया दिया कि ये लो, मेरी तरफ से मन्दिर में चढा देना। इससे पता चलता है कि माता का यहां कितना प्रभाव है।

बताते हैं कि भंगायणी माता शिरगुल महाराज की बहन है। शिरगुल महाराज अर्थात चूडेश्वर महादेव। मैं कल ही शिरगुल महाराज के दर्शन करके आया हूं, तब नहीं मालूम था कि अगले दिन ही उनकी बहन के भी दर्शन करने होंगे। हिमाचल के देवता हमारे मैदानों के देवताओं से कुछ हटकर हैं। ये मनुष्यों के बीच मनुष्य बनकर रहते हैं। यहां तक कि संवाद भी करते हैं। थोडा गहराई में उतरेंगे तो बडी मजेदार कहानियां व घटनाएं भी सुनने को मिलती हैं।
मुख्य सडक से करीब दो सौ मीटर हटकर मन्दिर की सीढियां शुरू होती हैं। सवा सौ से ऊपर सीढियां हैं। साफ-सफाई जबरदस्त। इस दो सौ मीटर के रास्ते में ज्यादातर तो प्रसाद की दुकानें हैं, कुछ होटल व रेस्टॉरेंट भी हैं।
समुद्र तल से मन्दिर लगभग 2450 मीटर की ऊंचाई पर है। इसके तीन तरफ बल्कि साढे तीन तरफ बडी गहरी घाटियां हैं और दूर-दूर तक गांव, खेत व सडकें दिखाई देती हैं। एक तरफ बल्कि आधी तरफ भी कोई ज्यादा ऊंचा पहाड नहीं है, बस छोटा सा टीला है जिसके पीछे चूडधार शिखर छुप जाता है। मैंने कहीं पढा था कि यहां से चूडधार दिखाई देता है जो गलत है।
मन्दिर और इसके आंगन में भी जबरदस्त सफाई है। कंडक्टर का दिया एक रुपया चढा दिया। प्रसाद भी मिला। एक शादी भी हो रही थी। ठीक-ठाक चहल-पहल थी। स्थानीय व्यक्ति जो शिरगुल महाराज के दर्शन करने जाते हैं, वे भंगायणी माता के भी दर्शन अवश्य करते हैं। कल जो लडके मुझे चूडधार जाते मिले थे, आधी रात को चूडधार पहुंचे होंगे, वे इस रास्ते से इसलिये आये थे ताकि माता के दर्शन भी कर सकें।
और हां, हरिपुरधार लम्बे समय तक नाहन रियासत की राजधानी भी रही है। अब भी यह नाहन जिले में ही है।
मन्दिर से दो किलोमीटर दूर हरिपुरधार बाजार है। ये दो किलोमीटर ज्यादातर पैदल ही तय किये जाते हैं क्योंकि इस मार्ग पर बसों की अति सीमित संख्या ही उपलब्ध है। बाजार से चार दिशाओं में सडकें गई हैं- एक नोहराधार होते हुए सोलन, दूसरी नाहन, तीसरी पूर्व की तरफ उत्तराखण्ड सीमा के पास शिलाई और चौथी यही जिससे मैं आया हूं यानी तराहां, कुपवी और आगे चौपाल की तरफ।
नाहन की एक बस खडी थी। अगर मेरा स्लीपिंग बैग नोहराधार में न होता, मेरे ही साथ होता तो मैं इस नाहन वाली बस में बैठ जाता और आज रेणुका झील देखता। लेकिन पूरी भरी शिलाई-शिमला बस में चढना पडा।
दूरियां: हरिपुरधार शिमला से लगभग 150 किलोमीटर, सोलन से 100 किलोमीटर, नाहन से 90 किलोमीटर, रेणुका से 52 किलोमीटर, पौण्टा साहिब से शिलाई के रास्ते 130 किलोमीटर और रेणुका के रास्ते 95 किलोमीटर दूर है।

मन्दिर जाने का रास्ता। दो सौ मीटर दूर मन्दिर है।


मन्दिर की सीढियां

भंगायणी माता मन्दिर


मन्दिर में एक शादी हो रही थी।




यहां से आसपास का नजारा



सामने हरिपुरधार बाजार है।
अगला भाग: तराहां से सुन्दरनगर तक- एक रोमांचक यात्रा

चूडधार कमरुनाग यात्रा

1. कहां मिलम, कहां झांसी, कहां चूडधार
2. चूडधार यात्रा- 1
3. चूडधार यात्रा- 2
4. चूडधार यात्रा- वापसी तराहां के रास्ते
5. भंगायणी माता मन्दिर, हरिपुरधार
6. तराहां से सुन्दरनगर तक- एक रोमांचक यात्रा
7. रोहांडा में बारिश
8. रोहांडा से कमरुनाग
9. कमरुनाग से वापस रोहांडा
10. कांगडा रेल यात्रा- जोगिन्दर नगर से ज्वालामुखी रोड तक
11.चूडधार की जानकारी व नक्शा




Comments

  1. HARIPUR DHAR K PAAS NAINTATIKKER HAI JO KI BAHUT HI BEAUTIFUL PLACE HAI YAHA PE NAINA DEVI KA MANDIR HAI JHA KI MANYTA HAI JO BHI US MANDIR ME EK BAR DARSHAN KARLE USKI SARI WISHES PURI HO JATI HAI...

    ReplyDelete
  2. नीरज भाई इन यात्राओ पर आप कितने कपडे ले जाते हो.

    ReplyDelete
  3. bahut badhiya laga yatra vivran . foto badhiya lage

    ReplyDelete
  4. Neeraj jee . Your photography has improved tremendously. Camera angles are awesome.

    ReplyDelete
  5. At least three photos are taken from the camera placed on the ground level , if I am not wrong.

    ReplyDelete
  6. पहाड़ो पर तो माता का ही राज्य है --जो नाम नहीं सुने वो नाम यहाँ सुनने को मिलते है --चलो इसी बहाने एक माता के मंदिर के दर्शन हो गए ---

    ReplyDelete
  7. Bhai ji tarahan nahi sarahan plz

    ReplyDelete
    Replies
    1. सर, Sarahan (सराहन) अलग जगह है और Tarahan (तराहां) अलग जगह है... इस ट्रैक के पास तराहां नामक स्थान है...

      Delete

Post a Comment

Popular posts from this blog

46 रेलवे स्टेशन हैं दिल्ली में

एक बार मैं गोरखपुर से लखनऊ जा रहा था। ट्रेन थी वैशाली एक्सप्रेस, जनरल डिब्बा। जाहिर है कि ज्यादातर यात्री बिहारी ही थे। उतनी भीड नहीं थी, जितनी अक्सर होती है। मैं ऊपर वाली बर्थ पर बैठ गया। नीचे कुछ यात्री बैठे थे जो दिल्ली जा रहे थे। ये लोग मजदूर थे और दिल्ली एयरपोर्ट के आसपास काम करते थे। इनके साथ कुछ ऐसे भी थे, जो दिल्ली जाकर मजदूर कम्पनी में नये नये भर्ती होने वाले थे। तभी एक ने पूछा कि दिल्ली में कितने रेलवे स्टेशन हैं। दूसरे ने कहा कि एक। तीसरा बोला कि नहीं, तीन हैं, नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली और निजामुद्दीन। तभी चौथे की आवाज आई कि सराय रोहिल्ला भी तो है। यह बात करीब चार साढे चार साल पुरानी है, उस समय आनन्द विहार की पहचान नहीं थी। आनन्द विहार टर्मिनल तो बाद में बना। उनकी गिनती किसी तरह पांच तक पहुंच गई। इस गिनती को मैं आगे बढा सकता था लेकिन आदतन चुप रहा।

जिम कार्बेट की हिंदी किताबें

इन पुस्तकों का परिचय यह है कि इन्हें जिम कार्बेट ने लिखा है। और जिम कार्बेट का परिचय देने की अक्ल मुझमें नहीं। उनकी तारीफ करने में मैं असमर्थ हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि उनकी तारीफ करने में कहीं कोई भूल-चूक न हो जाए। जो भी शब्द उनके लिये प्रयुक्त करूंगा, वे अपर्याप्त होंगे। बस, यह समझ लीजिए कि लिखते समय वे आपके सामने अपना कलेजा निकालकर रख देते हैं। आप उनका लेखन नहीं, सीधे हृदय पढ़ते हैं। लेखन में तो भूल-चूक हो जाती है, हृदय में कोई भूल-चूक नहीं हो सकती। आप उनकी किताबें पढ़िए। कोई भी किताब। वे बचपन से ही जंगलों में रहे हैं। आदमी से ज्यादा जानवरों को जानते थे। उनकी भाषा-बोली समझते थे। कोई जानवर या पक्षी बोल रहा है तो क्या कह रहा है, चल रहा है तो क्या कह रहा है; वे सब समझते थे। वे नरभक्षी तेंदुए से आतंकित जंगल में खुले में एक पेड़ के नीचे सो जाते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि इस पेड़ पर लंगूर हैं और जब तक लंगूर चुप रहेंगे, इसका अर्थ होगा कि तेंदुआ आसपास कहीं नहीं है। कभी वे जंगल में भैंसों के एक खुले बाड़े में भैंसों के बीच में ही सो जाते, कि अगर नरभक्षी आएगा तो भैंसे अपने-आप जगा देंगी।

ट्रेन में बाइक कैसे बुक करें?

अक्सर हमें ट्रेनों में बाइक की बुकिंग करने की आवश्यकता पड़ती है। इस बार मुझे भी पड़ी तो कुछ जानकारियाँ इंटरनेट के माध्यम से जुटायीं। पता चला कि टंकी एकदम खाली होनी चाहिये और बाइक पैक होनी चाहिये - अंग्रेजी में ‘गनी बैग’ कहते हैं और हिंदी में टाट। तो तमाम तरह की परेशानियों के बाद आज आख़िरकार मैं भी अपनी बाइक ट्रेन में बुक करने में सफल रहा। अपना अनुभव और जानकारी आपको भी शेयर कर रहा हूँ। हमारे सामने मुख्य परेशानी यही होती है कि हमें चीजों की जानकारी नहीं होती। ट्रेनों में दो तरह से बाइक बुक की जा सकती है: लगेज के तौर पर और पार्सल के तौर पर। पहले बात करते हैं लगेज के तौर पर बाइक बुक करने का क्या प्रोसीजर है। इसमें आपके पास ट्रेन का आरक्षित टिकट होना चाहिये। यदि आपने रेलवे काउंटर से टिकट लिया है, तब तो वेटिंग टिकट भी चल जायेगा। और अगर आपके पास ऑनलाइन टिकट है, तब या तो कन्फर्म टिकट होना चाहिये या आर.ए.सी.। यानी जब आप स्वयं यात्रा कर रहे हों, और बाइक भी उसी ट्रेन में ले जाना चाहते हों, तो आरक्षित टिकट तो होना ही चाहिये। इसके अलावा बाइक की आर.सी. व आपका कोई पहचान-पत्र भी ज़रूरी है। मतलब