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डायरी के पन्ने- 17

चेतावनी: ‘डायरी के पन्ने’ मेरे निजी और अन्तरंग विचार हैं। कृपया इन्हें न पढें। इन्हें पढने से आपकी धार्मिक और सामाजिक भावनाएं आहत हो सकती हैं।
1 नवम्बर 2013, शुक्रवार
1. वही हुआ जिसका अन्देशा था। नजला हो गया और तबियत अचानक गिर गई। शाम तक नाक बढिया तरह बहने लगी और बुखार भी चढ गया। बुखार के लिये दवाई लेनी पडी। अगले दिन ठीक हो गया। नाक भी और बुखार भी। लेकिन अभी भी खांसने पर कभी कभार बलगम आ जाता है। यह ठीक हो गया तो ठीक, नहीं तो भविष्य में जल्दी ही जोरदार खांसी होने वाली है।
2 नवम्बर 2013, शनिवार
1. पी. एस. तिवारी साहब से चैटिंग हुई। वे आजकल आइसलैण्ड में कार्यरत हैं। कहने लगे कि जल्दी ही उनका स्थानान्तरण होने वाला है। पता नहीं कौन सा देश मिलेगा। चार देशों के नाम भी बताये जिनमें एक यूरोपीय देश भी शामिल है। उन्हें वही यूरोपीय देश पसन्द है। कहा कि अगर उन्हें अपनी पसन्द का वही देश मिल गया तो वे मेरी उस देश की यात्रा का पूरा खर्च उठायेंगे। यहां तक कि भारत से आने जाने का भारी भरकम हवाई खर्च भी। मैंने अविलम्ब शुभकामना दे दी। वैसे मुझे कोई वजह नहीं दिखती कि उन्हें उनकी पसन्द का देश न मिले। वे जहां भी काम करते हैं, काफी वरिष्ठ हैं। इस नाते भी उनके सीनियरों का दायित्व बनता है कि उन्हें उनके ही पसन्द के स्थान पर भेजा जाये।
मैंने अभी तक पासपोर्ट नहीं बनवाया है। अगर कभी पासपोर्ट बनवाऊंगा तो उसका पहला प्रयोग यूरोप में होगा। राज भाटिया साहब जर्मनी में हैं, तिवारी जी अभी तक यूरोपीय थे, अब भी यूरोपीय ही बने रहेंगे।
3 नवम्बर 2013, रविवार
1. आज दीवाली है। हमारे गांव में यह त्यौहार एक दिन पहले मनाया जाता है, लिहाजा वहां गोवर्धन पूजा है। मैं कभी भी दीवाली पर छुट्टी नहीं लेता हूं, लेकिन समय निकालकर गोवर्धन पूजा पर गांव चला जाया करता था, इस बार नहीं गया।
नाइट ड्यूटी थी। जिस तरह मेट्रो कभी नहीं रुकती, उसी तरह हमारा काम भी कभी नहीं रुकता, ज्यादातर काम रात को होता है। लेकिन दीवाली की रात को काम करना बेहद मुश्किल होता है। दिल्ली में चारों तरफ धुआं ही धुआं हो जाता है। आंखों में जलन होती है, खुजली होने लगती है, सांस की भी समस्या होती है। संजय यादव की भी नाइट ड्यूटी थी। वे आये तो साथ खील बताशे भी लेते आये। गौरतलब है कि संजय बहुत कंजूस है। दूसरों के हाथ से छीनकर खा जाना तो जानते हैं, लेकिन कभी अपने हाथ से खिलाना नहीं जानते। मैंने बाकी सहकर्मियों से कहा कि आज दीवाली पर आपको बेहद दुर्लभ चीज खाने को मिलेगी। सभी उत्सुक थे कि पता नहीं क्या दुर्लभ चीज है। जब उनके सामने खील बताशे रखे गये तो सारी उत्सुकता फुर्र हो गई- ओहो, तो यह थी दुर्लभ चीज? मैंने कहा कि हां, ये कोई साधारण खील बताशे नहीं हैं, ये संजय के यहां से आये हैं। सभी ने एक सुर में कहा- हां, फिर तो वाकई दुर्लभ हैं।
4 नवम्बर 2013, सोमवार
1. दीवाली पर एक प्रतिज्ञा की कि अब के बाद रोजाना व्यायाम किया करूंगा। मैं कभी भी व्यायाम नहीं करता हूं। खाता हूं और पडा रहता हूं। मोटा होने लगा हूं और पेट भी बाहर निकलने लगा है। इस बार हर की दून यात्रा में बडी समस्या हुई थी। भारी बैग था कमर पर लेकिन मैं इसे ढोने में लगभग असमर्थ हो गया था। इसका कारण व्यायाम न करना ही था। आज प्रतिज्ञा की कि रोजाना 15 किलोमीटर साइकिल चलाया करूंगा।
सुबह साढे सात बजे निकल पडा। बिल्कुल खाली सडक। गांधीनगर से लक्ष्मीनगर तक जाना और आना तय हुआ। गीता कालोनी से आगे जब एक फ्लाईओवर पर चढना था, तो यह सोचकर कि इसमें ज्यादा जोर लगाने पडेंगे, नीचे से साइकिल निकालने की सोची। लेकिन नीचे धोखा मिला। यह एक यू-टर्न था। मैं चलता ही गया। यू-टर्न पर वापस शास्त्री पार्क की तरफ मुड गया। तभी बायें यमुना पार करने के लिये सडक जाती दिखी। फट से इसी पर हो लिया। राजघाट बाईपास से होता हुआ विकास मार्ग पकड लिया और पुनः लक्ष्मी नगर की ओर चलने लगा। यमुना पार करके पहले ही मोड से बायें मुडकर अपनी शास्त्री पार्क की सडक ले ली।
जब लौटा तो बुरी तरह हांफ रहा था। पचास मिनट हो गये थे साइकिल चलाते हुए। कहीं उतरा भी नहीं था। स्पीड भी अच्छी ही रही। सोचा था कि निकला तो 15 किलोमीटर के लिये था, आज पहले ही दिन 25 किलोमीटर से कम नहीं चलाई है। जब दूरी देखी तो बुरी तरह निराशा हाथ लगी- मात्र 17 किलोमीटर।
5 नवम्बर 2013, मंगलवार
1. सर्दी अचानक बढ गई। गर्म पानी से नहाना तो पिछले महीने ही शुरू कर दिया था, अब गर्म कपडे भी निकल गये। पंखा बन्द हो गया, हालांकि अभी रजाई नहीं निकाली है।
7 नवम्बर 2013, गुरुवार
1. धीरज का फोन आया। उसे किसी परीक्षा के सिलसिले में नागपुर जाना है। परीक्षा 17 नवम्बर को है। मेरा काम था जाने और आने का आरक्षण कराना। आरक्षण मिलना मुश्किल अवश्य था लेकिन बात बन गई। दिल्ली से नागपुर जाना तिरुक्कुरल एक्सप्रेस से हो गया, कन्फर्म बर्थ मिल गई। आने की बात नहीं बनी। हालांकि नागपुर से शुरू होकर कोई भी ट्रेन दिल्ली नहीं आती, सभी ट्रेनें पीछे से ही आती हैं। इसलिये नागपुर का कोटा कम होता है। गोण्डवाना, छत्तीसगढ जैसी नजदीक से शुरू होने वाली गाडियां भी भरकर चल रही हैं। इटारसी से जबलपुर एक्सप्रेस में पक्की बर्थ मिल जायेगी लेकिन नागपुर से इटारसी 300 किलोमीटर की दूरी जनरल डिब्बे में तय कराना मैंने उचित नहीं समझा। आखिरकार पातालकोट एक्सप्रेस काम आ गयी। यह छिन्दवाडा से चलती है। इस गाडी से मैंने आमला से आरक्षण करा दिया, पक्की बर्थ मिल गई। आमला नागपुर से ज्यादा दूर नहीं है। आसानी से पहुंचा जा सकता है।
8 नवम्बर 2013, शुक्रवार
1. आज लगातार दूसरी प्रातःकालीन ड्यूटी है। इस ड्यूटी को मैं मनहूस ड्यूटी कहता हूं। एक तो सुबह सवेरे अधकच्ची नींद से उस समय उठो जब रातभर की सबसे गहरी नींद आ रही हो। यही एक कारण है कि मैं इसे पसन्द नहीं करता। अलार्म भरता हूं लेकिन कब बजता है और मैं कब इसे बन्द कर देता हूं, मुझे पता भी नहीं चलता। बडा मुश्किल काम है समय पर उठना।
लेकिन आवश्यकता आविष्कार की जननी है। रात दस बजते ही सो जाता हूं। और खूब पानी पीकर सोता हूं। सुबह पांच साढे पांच बजे तक यह सारा पानी बाहर निकलने को दबाव डालता है, इसलिये न चाहते हुए भी उठना पडता है। ये लगातार चार ड्यूटी थीं, दो निपट गईं, दो बाकी हैं। हे भगवान!
2. जब आईटीओ के पास दो मित्राओं से मिलकर लौट रहा था तो लोहे के पुल के बराबर में मेला लगा दिखा। निःसन्देह यह छठ का मेला था। यमुना किनारे कई स्थानों पर छठ पूजा के लिये दिल्ली सरकार द्वारा घाट बनाये जाते हैं। सोच लिया कि कुछ देर बाद कैमरा लेकर आऊंगा और फोटो खींचूंगा। मैं कभी भी लोहे के पुल के नीचे यमुना किनारे नहीं गया हूं। आकांक्षा थी कि नीचे से खडे होकर ऊपर चलती ट्रेन का अच्छा फोटो आयेगा।
छठ पर्व बिहार व पूर्वी उत्तर प्रदेश का पर्व है, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में यह नहीं मनाया जाता, दिल्ली में भी नहीं। लेकिन बिहारियों की महती संख्या के कारण सरकार को इसे मनाने का इन्तजाम करना पडता है।
टीवी खोल बैठा। कलर्स पर कपिल वाला कार्यक्रम आ रहा था- मुझे यह अच्छा लगता है, हास्य कार्यक्रम है, फूहडपन भी नहीं होता। इसमें इतना रम गया कि समय का पता ही नहीं चला। पता भी तब चला जब सूरज ढल चुका था और अन्धेरा होना बाकी था। संजय यादव को साथ लिया और यमुना तट पर चल पडे। यह पर्व सूर्यास्त के ही नाम होता है, इसलिये सारी भीड जा चुकी थी। फिर भी मेले में काफी चहल-पहल थी। कुछ फोटो भी खींचे लेकिन जिस मकसद से आया था, वह पूरा नहीं हुआ। वापस लौटते हुए संजय यादव ने बताया –‘‘छठ पर शिशुओं से सांकेतिक भीख मंगाने का एक रिवाज है। सांकेतिक रूप से चादर फैलाकर उस पर शिशु को बैठा दिया जाता है और भीख मांगी जाती है। सभी इस रिवाज को जानते हैं, तो कोई फल तो कोई पैसे दे देता है। मुझे भी इस रिवाज से गुजरना पडा लेकिन तब तक मैं कुछ बडा हो गया था और जानता था कि भीख मांगना अच्छा काम नहीं है। परिजनों ने खूब समझाया कि बेटा, यह मात्र सांकेतिक है, लेकिन बालबुद्धि कहां मानने वाली थी?”
3. मेट्रो क्वार्टरों में ही मदर डेयरी भी है। छोटी सी दुकान है। दुकान मालिक का नाम है कहरसिंह। बागपत में एक गांव है मिलक, वहीं का रहने वाला है। जाट है, मेरी उसकी खूब बनती है। मोबाइल में उसका नाम कहरसिंह मिल्क लिखा हुआ है। यानी कहरसिंह दूधवाला। हमारी जुबान पर मिल्क भी मिलक ही आता है। खैर, आज उसकी दुकान में घुस गया। पांच रुपये वाली नमकीन छाछ पीने में आनन्द आ जाता है।
जब उसने कमर पर कैमरा टंगा देखा तो मैंने कथा सुनाई- “मैं अभी छठ वाले मेले में गया था। आज के दिन बिहारियों में भीख मांगने का रिवाज है- सांकेतिक रूप से। मैं भी बैठ गया एक जगह पालथी मारकर और यह कैमरा लेकर। लोगों ने पैसे दिये। ये देख, दस दस के पांच नोट मिले।” उसने इस रिवाज की एक से पुष्टि की और मेरी बात पर यकीन कर लिया। मैंने बताया कि मैं लेट हो गया था, अगर पहले पहुंच गया होता तो आज कम से कम पांच सौ रुपये होते जेब में।
इसी दुकान पर आज दूध बेचा। कहरसिंह से कह दिया कि तू बैठ, अगर कोई टॉफी या आइसक्रीम मांगने आये तो तू देगा, दूध की जिम्मेदारी मेरी। गल्ले पर दोनों का अधिकार था। दूध के पैसे मैं काटूंगा, बाकी के पैसे वो। लेकिन मुझे फुल क्रीम और टोण्ड दूध ही नहीं संभाला जा सका। कोई टोण्ड मांगता तो मैं उसे फुल क्रीम पकडा देता, फुल क्रीम मांगता तो टोण्ड। सत्रह की जगह बाईस रुपये काट लेता और बाईस की जगह सत्रह। आखिर में कहना ही पडा- भाई कहर, दूध को भी तू ही सम्भाल। मुझसे तो ये दो तरह के दूध ही नहीं सम्भाले जा रहे, तू पता नहीं कैसे ये कम से कम सौ सामान सम्भाल लेता है?
4. हस्तिनापुर साइकिल यात्रा रद्द कर दी। एक तो ठण्ड बहुत बढ गई है, फिर माहौल भी खराब है। रोज दंगे हो रहे हैं। इस बार गंगा स्नान पर भी इन दंगों का साया पड सकता है। रास्ते में किठौर है जो मुस्लिम प्रधान है। जहां भी हिन्दु प्रधान और मुस्लिम प्रधान की भेंट होगी, टकराव भी होने की सम्भावना है। मेरठ भी स्वयं एक दंगा सम्भावित स्थान है। तो साइकिल यात्रा रद्द। अब ट्रेन यात्रा करूंगा- इलाहाबाद से मुगलसराय तथा वाराणसी से लखनऊ पैसेंजर ट्रेन यात्रा। पन्द्रह नवम्बर की सुबह गढमुक्तेश्वर पहुंच जाना है, जहां कुछ धार्मिक कार्य करने हैं। सोलह को भी पूरे दिन वहीं रुकूंगा। सत्रह को वापस लौट आऊंगा। छुट्टियां पास हो गई हैं।
10 नवम्बर 2013, रविवार
1. आज चिडियाघर देखने गया। साथ में विपिन और धीरज भी थे। इसकी कथा और फोटो अलग से लिखे हैं।
2. पिछले दिनों विपिन के साथ ऋषिकेश में गंगा किनारे कैम्पिंग करने की योजना बनी थी। चूंकि उस समय हम दो ही तैयार थे, इसलिये आना-जाना ट्रेन से तय हुआ। आरक्षण भी हो गये। अब यात्रा में भरत भी जायेगा तो कार से चलने की योजना बनने लगी है। झांसी से विनय कुमार भी आ रहे हैं। उन्होंने भी आरक्षण करा लिया है। जब हमारी कार की योजना पर मोहर लग जायेगी तो उन्हें भी ट्रेन का आरक्षण रद्द कराने के लिये कहा जायेगा। वे भी दिल्ली से ही साथ चल पडेंगे तो खर्च का भार हम पर कुछ कम हो जायेगा।
11 नवम्बर 2013, सोमवार
1. आगामी यात्रा में एक परिवर्तन किया। नौचन्दी एक्सप्रेस से 14 नवम्बर को लखनऊ से गढमुक्तेश्वर आना रद्द कर दिया। इसकी बजाय अब 15 तारीख को लखनऊ से बरेली तक पैसेंजर ट्रेन यात्रा करूंगा और बरेली से गढमुक्तेश्वर के लिये बरेली-दिल्ली पैसेंजर में आरक्षण करा लिया है। 15 की आधी रात को एक बजे ब्रजघाट उतरूंगा। उसके बाद 16 की सुबह मेला स्थल जाऊंगा।
2. एक नया सर्कुलर आया। मेट्रो में एक ‘एडवेंचर क्लब’ व ‘सांस्कृतिक क्लब’ बनाने की योजना है। कुल आठ तरह की एडवेंचर गतिविधियां हैं जिनकी सदस्यता के लिये इच्छुक सदस्य आवेदन कर सकते हैं। ये आठ हैं- पर्वतारोहण, रिवर राफ्टिंग, बोटिंग, स्कीइंग, डाइविंग, स्नोर्कलिंग, पैराग्लाइडिंग और फोटोग्राफी। ये आठ श्रेणियां देखकर मुझे निराशा हुआ। इनमें वो गतिविधि शामिल नहीं है जिसके बिना पर्वतारोहण और स्कीइंग अधूरे हैं। वह सबसे सस्ती भी है- ट्रेकिंग। लग रहा है जिसने भी इस क्लब की स्थापना की पहल की है, उसे ट्रेकिंग और पर्वतारोहण का फर्क नहीं पता। दिल्ली मेट्रो भारत के नवीनतम उपक्रमों में से एक है। ऐसे उपक्रमों से यह उम्मीद नहीं की जाती कि वह अपने कर्मचारियों को पर्वतारोहण करायेगा। कोई मामूली काम नहीं है पर्वतारोहण। बडा भारी भरकम और खर्चीला खतरनाक काम है यह। जहां ट्रेकर थककर चूर हो जाता है या वापस लौट पडता है, वहां से आगे पर्वतारोही का काम शुरू होता है। साइकिलिंग की कमी भी खल रही है।
अक्सर मेट्रो कर्मचारी यात्राओं पर जाते रहते हैं जिनके लिये उन्हें सब्सिडी मिलती है। मुझे पांच साल होने को हैं, हमेशा मनाली, शिमला, मसूरी और नैनीताल की ही यात्राएं होती देखी हैं। मैंने कभी भी इन यात्राओं के लिये आवेदन नहीं किया। ऐसे में यह क्लब शिमला-मसूरी-फोबिया से बाहर निकल सकेगा, मुझे सन्देह है।
खैर, मैं पर्वतारोहण और फोटोग्राफी के लिये आवेदन करूंगा। देखते हैं कि किस चोटी पर चढने का मौका मिलेगा। अच्छी मजाक है!
12 नवम्बर 2013, मंगलवार
1. एक ट्रेन यात्रा शुरू हो गई। नीलांचल एक्सप्रेस से दिल्ली से कानपुर पहुंचा। कानपुर में प्रदीप शर्मा साहब से भेंट हुई। शाम को रायबरेली पैसेंजर से रायबरेली और फिर गंगा गोमती से इलाहाबाद पहुंच गया। इलाहाबाद में 150 रुपये का एक नन्हा सा कमरा लिया। इस पूरी यात्रा की कथा बाद में विस्तार से प्रकाशित करूंगा।

13 नवम्बर 2013, बुधवार
1. इलाहाबाद से मुगलसराय पैसेंजर पकडी। अपने पैसेंजर नक्शे में मुगलसराय भी जुड गया और भविष्य में बिहार में पैसेंजर नेटवर्क को बढाने की पृष्ठभूमि भी तैयार हो गई। रास्ते में चन्द्रेश कुमार भी मिले अपने दो मित्रों के साथ। साथ ही साथ मुगलसराय से वाराणसी की पैसेंजर यात्रा भी कर ली। रात को वाराणसी स्टेशन पर डोरमेटरी में 100 रुपये में रुका।
2. कल जब रायबरेली में था तो वहीं अन्धेरा हो गया था। ठण्ड भी लगी। आधी रात को इलाहाबाद पहुंचकर और ज्यादा ठण्ड लगने लगी। हालांकि मेरे पास पर्याप्त कपडे थे लेकिन इस ठण्ड ने मुझे एक बात पर सोचने को मजबूर कर दिया। दो दिन बाद जब आधी रात को गढमुक्तेश्वर स्टेशन पर उतरूंगा, तो वहां पता नहीं सिर ढकने को छत मिले या न मिले, कैसी मिले। कुल मिलाकर रात खराब होने वाली बात है। लखनऊ के बाद की यात्रा में तीसरी बार परिवर्तन करना पडा। 15 को लखनऊ-बरेली पैसेंजर यात्रा रद्द कर दी और साथ ही साथ बरेली-गढमुक्तेश्वर आरक्षण भी रद्द हो गया। नई योजना बनी कि लखनऊ से सहारनपुर पैसेंजर पकडी जाये और मुरादाबाद उतरकर फिर गढमुक्तेश्वर जाया जाये। सहारनपुर पैसेंजर में कल की कई शायिकाएं खाली हैं, एक को आरक्षित कर दिया। मुरादाबाद के बाद ट्रेन मिलेगी तो ठीक, नहीं तो बस से चला जाऊंगा।



यमुना किनारे




डायरी के पन्ने-16 | डायरी के पन्ने-18




Comments

  1. नीरज जी,

    बस इतनी कम फोटो....

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  2. Europe ghumke aaoge to aap International Ghumakkad ho jaoge, hamari shubhkamnaye hamesha aapke sath hai

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  3. २४ नबंबर की ट्रिप रद्द होने का दुख है लेकिन कोई रास्ता नहीं था, आपका फोन आया तो बहुत अच्छा लगा ,फेसबुक पे जल्दी बापस लौटूंगा , अब अगला कोई प्रोग्राम बनाइये ,

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46 रेलवे स्टेशन हैं दिल्ली में

एक बार मैं गोरखपुर से लखनऊ जा रहा था। ट्रेन थी वैशाली एक्सप्रेस, जनरल डिब्बा। जाहिर है कि ज्यादातर यात्री बिहारी ही थे। उतनी भीड नहीं थी, जितनी अक्सर होती है। मैं ऊपर वाली बर्थ पर बैठ गया। नीचे कुछ यात्री बैठे थे जो दिल्ली जा रहे थे। ये लोग मजदूर थे और दिल्ली एयरपोर्ट के आसपास काम करते थे। इनके साथ कुछ ऐसे भी थे, जो दिल्ली जाकर मजदूर कम्पनी में नये नये भर्ती होने वाले थे। तभी एक ने पूछा कि दिल्ली में कितने रेलवे स्टेशन हैं। दूसरे ने कहा कि एक। तीसरा बोला कि नहीं, तीन हैं, नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली और निजामुद्दीन। तभी चौथे की आवाज आई कि सराय रोहिल्ला भी तो है। यह बात करीब चार साढे चार साल पुरानी है, उस समय आनन्द विहार की पहचान नहीं थी। आनन्द विहार टर्मिनल तो बाद में बना। उनकी गिनती किसी तरह पांच तक पहुंच गई। इस गिनती को मैं आगे बढा सकता था लेकिन आदतन चुप रहा।

जिम कार्बेट की हिंदी किताबें

इन पुस्तकों का परिचय यह है कि इन्हें जिम कार्बेट ने लिखा है। और जिम कार्बेट का परिचय देने की अक्ल मुझमें नहीं। उनकी तारीफ करने में मैं असमर्थ हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि उनकी तारीफ करने में कहीं कोई भूल-चूक न हो जाए। जो भी शब्द उनके लिये प्रयुक्त करूंगा, वे अपर्याप्त होंगे। बस, यह समझ लीजिए कि लिखते समय वे आपके सामने अपना कलेजा निकालकर रख देते हैं। आप उनका लेखन नहीं, सीधे हृदय पढ़ते हैं। लेखन में तो भूल-चूक हो जाती है, हृदय में कोई भूल-चूक नहीं हो सकती। आप उनकी किताबें पढ़िए। कोई भी किताब। वे बचपन से ही जंगलों में रहे हैं। आदमी से ज्यादा जानवरों को जानते थे। उनकी भाषा-बोली समझते थे। कोई जानवर या पक्षी बोल रहा है तो क्या कह रहा है, चल रहा है तो क्या कह रहा है; वे सब समझते थे। वे नरभक्षी तेंदुए से आतंकित जंगल में खुले में एक पेड़ के नीचे सो जाते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि इस पेड़ पर लंगूर हैं और जब तक लंगूर चुप रहेंगे, इसका अर्थ होगा कि तेंदुआ आसपास कहीं नहीं है। कभी वे जंगल में भैंसों के एक खुले बाड़े में भैंसों के बीच में ही सो जाते, कि अगर नरभक्षी आएगा तो भैंसे अपने-आप जगा देंगी।

ट्रेन में बाइक कैसे बुक करें?

अक्सर हमें ट्रेनों में बाइक की बुकिंग करने की आवश्यकता पड़ती है। इस बार मुझे भी पड़ी तो कुछ जानकारियाँ इंटरनेट के माध्यम से जुटायीं। पता चला कि टंकी एकदम खाली होनी चाहिये और बाइक पैक होनी चाहिये - अंग्रेजी में ‘गनी बैग’ कहते हैं और हिंदी में टाट। तो तमाम तरह की परेशानियों के बाद आज आख़िरकार मैं भी अपनी बाइक ट्रेन में बुक करने में सफल रहा। अपना अनुभव और जानकारी आपको भी शेयर कर रहा हूँ। हमारे सामने मुख्य परेशानी यही होती है कि हमें चीजों की जानकारी नहीं होती। ट्रेनों में दो तरह से बाइक बुक की जा सकती है: लगेज के तौर पर और पार्सल के तौर पर। पहले बात करते हैं लगेज के तौर पर बाइक बुक करने का क्या प्रोसीजर है। इसमें आपके पास ट्रेन का आरक्षित टिकट होना चाहिये। यदि आपने रेलवे काउंटर से टिकट लिया है, तब तो वेटिंग टिकट भी चल जायेगा। और अगर आपके पास ऑनलाइन टिकट है, तब या तो कन्फर्म टिकट होना चाहिये या आर.ए.सी.। यानी जब आप स्वयं यात्रा कर रहे हों, और बाइक भी उसी ट्रेन में ले जाना चाहते हों, तो आरक्षित टिकट तो होना ही चाहिये। इसके अलावा बाइक की आर.सी. व आपका कोई पहचान-पत्र भी ज़रूरी है। मतलब