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Showing posts from November, 2013

वाराणसी से मुरादाबाद पैसेंजर ट्रेन यात्रा

इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें । यह ट्रेन नम्बर 54255 है जो वाराणसी से लखनऊ जाती है। वाराणसी से लखनऊ के लिये मुख्यतः तीन रूट हैं- इनमें सबसे छोटा सुल्तानपुर वाला है, उसके बाद प्रतापगढ वाला और उसके बाद फैजाबाद वाला। यह ट्रेन प्रतापगढ रूट से जायेगी। वैसे एक ट्रेन कृषक एक्सप्रेस बडा लम्बा चक्कर काटकर गोरखपुर के रास्ते भी लखनऊ जाती है। पांच मिनट विलम्ब से पौने छह बजे गाडी चल पडी। बायें हाथ इलाहाबाद वाली लाइन अलग हो जाती है जबकि दाहिने हाथ सुल्तानपुर वाली डबल व विद्युतीकृत लाइन अलग होती है। स्टेशन से निकलते ही नई दिल्ली से आने वाली काशी विश्वनाथ एक्सप्रेस खडी मिली। शायद इस पैसेंजर के निकलने का इन्तजार कर रही होगी। काशी विश्वनाथ एक घण्टे विलम्ब से चल रही थी।

इलाहाबाद से मुगलसराय पैसेंजर ट्रेन यात्रा

मुझे नये नये रेलमार्गों पर पैसेंजर ट्रेनों में घूमने का शौक है। मेरे लिये ऐसी यात्राएं एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने का साधन नहीं बल्कि साध्य होती हैं। अर्थात रेल यात्रा करना ही लक्ष्य होता है। इस बार मैं इलाहाबाद गया, वाराणसी गया और लखनऊ भी गया लेकिन इन स्थानों के दर्शनीय स्थलों को देखने नहीं बल्कि इनके मध्य में पडने वाली रेलवे लाइनों पर यात्रा करने। मेरी इन पैसेंजर यात्राओं का नेटवर्क बढता जा रहा है और इस कार्य में मुझे अपूर्व आनन्द भी मिलता है। पहले यात्रा करना, फिर घर लौटकर उनका लेखा-जोखा तैयार करना, स्टेशनों की लिस्ट को अपडेट करना, पैसेंजर के नक्शे को अपडेट करना; आहा! अभूतपूर्व आनन्द! इसी तरह मेरा नेटवर्क इलाहाबाद तक तो पहुंच गया लेकिन बहुत कोशिशें कर लीं, उससे आगे नहीं बढ पाया। इसका कारण है कि इलाहाबाद और मुगलसराय के बीच मात्र एक ही पैसेंजर चलती है। इलाहाबाद से यह ट्रेन सुबह सवा सात बजे चलती है और वापसी में रात साढे आठ बजे इलाहाबाद लौटती है। यानी अच्छा खासा उजाला होने पर चलती है और मुगलसराय से अन्धेरे में लौटती है। मुझे ये यात्राएं उजाले में ही करना पसन्द हैं इसलिये एकमात्र चार

डायरी के पन्ने- 17

चेतावनी: ‘डायरी के पन्ने’ मेरे निजी और अन्तरंग विचार हैं। कृपया इन्हें न पढें। इन्हें पढने से आपकी धार्मिक और सामाजिक भावनाएं आहत हो सकती हैं। 1 नवम्बर 2013, शुक्रवार 1. वही हुआ जिसका अन्देशा था। नजला हो गया और तबियत अचानक गिर गई। शाम तक नाक बढिया तरह बहने लगी और बुखार भी चढ गया। बुखार के लिये दवाई लेनी पडी। अगले दिन ठीक हो गया। नाक भी और बुखार भी। लेकिन अभी भी खांसने पर कभी कभार बलगम आ जाता है। यह ठीक हो गया तो ठीक, नहीं तो भविष्य में जल्दी ही जोरदार खांसी होने वाली है।

दिल्ली चिडियाघर

अभी पिछले दिनों चिडियाघर जाना हुआ। दिल्ली घूमने का जिक्र एक दिन मैंने विपिन से कर दिया। वे तुरन्त राजी हो गये। मैंने अविलम्ब चिडियाघर का प्रस्ताव रखा, जिसे उन्होंने मान लिया। रविवार को जाना तय हुआ। शनिवार को धीरज भी गांव से आ गया था। मैं पहले भी यहां आ चुका था लेकिन तब कैमरा नहीं था। इसलिये इस बार आने का मुख्य उद्देश्य फोटो खींचना ही था। दोपहर से लेकर शाम अन्धेरा होने तक का समय हमारे पास था। चालीस रुपये प्रति व्यक्ति टिकट और साथ में मुझे कैमरे का पचास रुपये का टिकट भी लेना पडा। चिडियाघर में खाने की कोई भी वस्तु लाना मना है ताकि दर्शक जानवरों को न खिला दें। सूक्ष्म खान पान के लिये अन्दर इन्तजाम है। मुझे जाने से पहले कुछ जानकारों ने बताया था कि प्रवेश करने के बाद बायीं तरफ मत जाना बल्कि दाहिनी तरफ जाना। कारण? कि बडे बडे जानवर शेर आदि दाहिनी तरफ ही हैं। अगर बायें जायेंगे तो बन्दरों व हिरणों से ही पाला पडेगा, जब तक शेरों तक आयेंगे तो काफी थक चुके होंगे। चूंकि मैं पहले आ चुका था, इसलिये इस बात की जानकारी मुझे भी थी लेकिन मेरा मकसद शेर वगैरा देखना नहीं था। इसलिये प्रवेश करते ही सभी सलाहों को

डायरी के पन्ने - 16

चेतावनी: ‘डायरी के पन्ने’ मेरे निजी और अन्तरंग विचार हैं। कृपया इन्हें न पढें। इन्हें पढने से आपकी धार्मिक और सामाजिक भावनाएं आहत हो सकती हैं। 16 अक्टूबर 2013, बुधवार 1. अभिषेक साहब मिलने आये। वे पिछले सप्ताह भी आने वाले थे लेकिन नहीं आ पाये। फोटो तो ऐसा लगा रखा है कि लगता है जैसे कितने मोटे ताजे हों जबकि ऐसा है नहीं। खैर, आये तो आते ही क्षमा मांगने लगे कि पिछली बार मेरी वजह से आपको परेशानी उठानी पडी। भाभी ने चाय बना दी तो छोटे से प्याले में उन्हें चाय दी। कहने लगे कि चाय कम करो, बहुत ज्यादा है। मैंने कहा कि ज्यादा का आपको पता नहीं है अभी। आज सभी लोग यहां हैं तो आपको जरा सी चाय मिली है, नहीं तो इससे चार गुने बडे कप में पावभर से भी ज्यादा चाय मिलती और आपको पीनी पडती। चुपचाप पी लो, कोई कम-वम नहीं होगी। फिर कहने लगे कि चाय बहुत अच्छी बनी है। चाय थी भी अच्छी, अदरक डालकर बनाई थी। अदरक थोडा ज्यादा हो जाये तो चाय पीने का जो आनन्द आता है, शानदार होता है।