इस यात्रा वृत्तान्त को शुरू से पढने के लिये यहां क्लिक करें । पांच तारीख थी और साल था यही अपना दो हजार बारह। रात हो गई थी, अन्धेरा भी हो गया था और मेरे साथ थे विधान चन्द्र उपाध्याय । हम दोनों चमोली में थे। जोशीमठ से आये थे, कल दिल्ली के लिये चल देना था। आज रात हम कर्णप्रयाग में रुकने की सोचकर आये थे लेकिन चमोली तक तो आ गये, आगे के लिये खूब जोर लगाया लेकिन असफल रहे। हमें यहां एक तीसरा और मिल गया, देहरादून जाना था उसे। वो भी आज कर्णप्रयाग में ही रुकना चाहता था। हम सब मिलकर किसी ट्रक को हाथ देते, वो नहीं रुकता। बस इसी तरह हाथ देते देते दोस्ती हो गई। आखिरकार तय हुआ कि चमोली में ही रुक लेते हैं। सामने ही एक होटल था, उसमें पांच सौ का कमरा साढे चार सौ तक आ गया। लेकिन तीन में से दो ठहरे एक नम्बर के कंजूस। तीसरे को भी कंजूस बनना पडा। पास में ही बद्रीनाथ-केदारनाथ मन्दिर समिति का एक रेस्ट हाउस था, उसमें गये तो पता चला कि आजकल यहां मरम्मत चल रही है। आने वाले सीजन की तैयारियां चल रही हैं। इसलिये कोई कमरा नहीं मिलेगा।
नीरज मुसाफिर का यात्रा ब्लॉग