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भारत परिक्रमा- तीसरा दिन- पश्चिमी बंगाल और असोम

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आज का दिन बेहद शानदार रहा। कल की सारी थकान मिट गई। आंख खुली छह बजे के आसपास। पता नहीं कि गाडी कहां है। मोबाइल ने जैसे ही नेटवर्क पकडा तो सबसे पहले गूगल मैप खोलकर देखा कि ट्रेन कहां है। ट्रेन कटिहार से आगे निकल चुकी थी लेकिन यह क्या????
इसे सीधे बारसोई की तरफ निकलना था जबकि यह जा रही है मालदा वाले रूट पर। तो क्या लम्बा चक्कर काटकर बारसोई जायेगी? हां जी, यह लम्बा चक्कर काटकर बारसोई गई। असल में यहां एक त्रिकोण बनता है। कटिहार, बारसोई और स्टेशन ‘क’ (नाम ध्यान नहीं- कटिहार मालदा रूट पर है)। कटिहार- न्यू जलपाईगुडी के बीच में बारसोई है। मेरे हिसाब से ट्रेन को सीधे बारसोई जाना था लेकिन यह पहले ‘क’ जायेगी, फिर वहां से मुडकर बारसोई यानी लम्बा चक्कर काटकर।
एक बार फिर से सो गया। अबकी आंख खुली रंगापानी पहुंचकर- न्यू जलपाईगुडी से बिल्कुल पहले। ट्रेन रुकी हुई थी। करीब आधे घण्टे तक ट्रेन यहां खडी रही। इसके बाद न्यू जलपाईगुडी पहुंची। यह एनजेपी के नाम से ज्यादा जाना जाता है।
आज का रोमांच एनजेपी के बाद शुरू हुआ। जैसे ही गाडी सिलीगुडी की तरफ मुडती दिखाई पडी, मैं खुशी से झूम उठा। एनजेपी से आगे अलीपुरद्वार जाने के दो रास्ते हैं- एक कूचबिहार होते हुए, दूसरा न्यू माल होते हुए। न्यू माल वाला रास्ता थोडा घूमकर है, जबकि कूचबिहार वाला रास्ता बिल्कुल सीधा है। बडी बात ये है कि न्यू माल वाले रास्ते पर इसका कोई ठहराव नहीं है। फिर भी न्यू माल से इसे निकालना मेरे लिये ताज्जुब की बात भी थी और खुशी की बात भी।
एनजेपी से सिलीगुडी जंक्शन तक छोटी लाइन भी साथ साथ चलती है- दार्जीलिंग वाली लाइन। बीच में सिलीगुडी टाउन भी पडता है। एनजेपी से सिलीगुडी जंक्शन करीब सात आठ किलोमीटर है, लेकिन पूरा इलाका है बेहद घनी बसावट वाला। एक समय सिलीगुडी भारत का एकमात्र ऐसा स्टेशन था जहां तीनों गेज की ट्रेनें आती थीं- ब्रॉड गेज, मीटर गेज और नैरो गेज। अब मीटर गेज की लाइन बडी बन गई है। शायद अभी भी मीटर गेज की एक लाइन है- सिलीगुडी से बागडोगरा तक।
सिलीगुडी से न्यू माल की तरफ मुडते ही पहाड भी नजदीक आने लगे। दिखने तो वे एनजेपी से पहले ही लगे थे। आगे एक राष्ट्रीय पार्क शुरू हो जाता है, नाम ध्यान नहीं है। शायद महानन्दा नेशनल पार्क है। जगह जगह लोको पायलटों के लिये चेतावनी भी लिखी है कि हाथियों से सावधान रहें। यह चेतावनी ड्राइवरों की सुरक्षा के लिये नहीं, बल्कि हाथियों की सुरक्षा के लिये है। रास्ते में तीस्ता नदी भी पडी, जो बेहद शानदार रूप में बहती दिख रही थी।
मैंने इस रूट के बारे में पहले भी सुन रखा है। और जब अप्रत्याशित रूप से ट्रेन इसी पर चल पडी तो खुश होना बनता ही है। चाय बागान, धान के खेत और उनसे भी ज्यादा जंगल, बैकग्राउण्ड में पहाड इस रूट को अद्वितीय बनाते हैं। भूटान भी यहां से ज्यादा दूर नहीं हैं। रास्ते में हासीमारा स्टेशन है जहां से भूटान जाने का रास्ता भी है। और हां, इस रूट से उत्तर की तरफ जो पहाडियां दिखती हैं, वे भूटान की पहाडियां ही हैं। पश्चिमी बंगाल के इस इलाके को दूआर कहते हैं। अलीपुर दुआर ऐसा ही एक दुआर है। हालांकि इसे हिन्दी में अलीपुरद्वार लिखा जाता है। 
ट्रेन अलीपुरद्वार जंक्शन पर रुकी। हालांकि यहां इसका कोई ठहराव नहीं है, लेकिन गाडी मौका मिलते ही लगभग हर स्टेशन पर रुकती आ रही थी, तो भला यहां क्यों ना रुकती? यह तो फिर भी बडा स्टेशन है। पन्द्रह मिनट में फिर चल पडी।
और कब असोम आ गया, पता भी नहीं चला। एक स्टेशन था कामाख्यागुडी, उससे ही मैंने और बाकी यात्रियों ने अन्दाजा लगा लिया कि असोम शुरू हो गया है। एक असोम का कोकराझार जिला है, जहां पिछले कई सप्ताहों से दंगा मचा हुआ है और कर्फ्यू भी लगा हुआ है। तसल्ली की बात ये है कि दंगाईयों ने अभी तक ट्रेनों को निशाना नहीं बनाया। एक जगह उजडा और जला हुआ एक गांव भी दिखा। शायद दंगाईयों ने ही उसे उजाडा होगा। गांव में कोई भी नजर नहीं आया। हालांकि उससे अगले गांव में कुछ फोर्स जरूर थी।
फकीराग्राम जंक्शन पर गाडी करीब दस मिनट तक खडी रही, बिना ठहराव के। इससे अगला स्टेशन कोकराझार है। पूरी उम्मीद थी कि ट्रेन कोकराझार पर जरूर रुकेगी लेकिन फकीराग्राम के बाद ऐसी स्पीड पकडी कि सीधी न्यू बोंगईगांव जाकर ही रुकी। कोकराझार का इतना खौफ!
नई दिल्ली से न्यू बोंगईगांव तक आ गये। कभी नहीं लगा कि मैं सम्पर्क क्रान्ति एक्सप्रेस में हूं। छोटे बडे हर स्टेशन पर रुकती आ रही थी। इसी का नतीजा रहा कि नई दिल्ली से चलते समय यह पौने पांच घण्टे लेट थी, और न्यू बोंगईगांव में साढे नौ घण्टे। सम्पर्क क्रान्ति की अगर कोई परिभाषा पूछे तो उत्तर है कि ये वे गाडियां होती हैं जो दूसरे राज्यों में तो रुकने से आनाकानी करती हैं, और अपने राज्य के हर बडे स्टेशन पर रुकती है। अक्सर सम्पर्क क्रान्तियां ट्रेनें भारत की राजधानी से बाकी राज्यों के मुख्य शहरों तक जाती हैं। जैसे कि तमिनलाडु सम्पर्क क्रान्ति मदुरई तक, आन्ध्र प्रदेश सम्पर्क क्रान्ति तिरुपति तक, बिहार सम्पर्क क्रान्ति दरभंगा तक, उत्तर सम्पर्क क्रान्ति ऊधमपुर तक। इनकी खास बात है कि ये अपने राज्य की बडी इज्जत करती हैं और दूसरे राज्यों की नहीं। जैसे कि दक्षिण की ओर जाने वाली सम्पर्क क्रान्तियां नई दिल्ली या निजामुद्दीन से चलकर सीधे झांसी रुकती हैं, उसके बाद भोपाल, फिर नागपुर, इसी तरह उत्तर प्रदेश सम्पर्क क्रान्ति मध्य प्रदेश से होकर लम्बी यात्रा करती है, लेकिन एमपी में रुकती नहीं है। और दूसरी सम्पर्क क्रान्तियों को क्यों देखें? पूर्वोत्तर सम्पर्क क्रान्ति को ही ले लो। नई दिल्ली के बाद कानपुर, इलाहाबाद और उसके बाद सीधे कटिहार; ना मुगलसराय, ना पटना, ना बरौनी।
लेकिन इसका राग जरा उल्टा था। दूसरे राज्यों में तो जी भरकर रुकी लेकिन जब अपना राज्य आया तो सम्पर्क क्रान्ति बन गई। फकीराग्राम के बाद न्यू बोंगईगांव, उसके बाद ग्वालपाडा टाउन; और पूरी तेजी से चली जा रही है। अभी भी भागी जा रही है। मैं इसके अन्दर ही बैठा हूं और इसके हिलते रहने से लिखने में परेशानी हो रही है। अब लग रहा है कि वाकई सम्पर्क क्रान्ति में बैठे हैं।
या फिर कोकराझार का खौफ है?
न्यू बोंगईगांव के बाद जैसे ही गाडी ग्वालपाडा टाउन की तरफ मुडी तो फिर से पहाड शुरू हो गये। थोडी देर चलने पर ब्रह्मपुत्र भी आ गई। क्या नदी है!!
नहीं, ब्रह्मपुत्र नदी नहीं है बल्कि नद है। भारत में सैंकडों नदियां बहती हैं लेकिन तीन नद भी हैं। जानते हैं कि ये तीन नद कौन कौन से हैं? मैं जानता हूं- सिन्धु, ब्रह्मपुत्र और सोन। सोन अमरकण्टक से निकलता है। अमरकण्टक से नर्मदा भी निकलती है। कहते हैं कि नर्मदा और सोन प्रेमी थे। एक दिन नर्मदा ने सोन को किसी और के साथ देख लिया। तभी से नर्मदा ने सोन को छोड दिया। नर्मदा तो गुजरात की तरफ चल दी और सोन चल दिया बिहार में गंगा से मिलने। अमरकण्टक पर्वत पर कुछ ही दूरी पर दोनों का उदगम है।
बात चल रही थी ब्रह्मपुत्र की। इसकी टक्कर की मैंने आज तक महानदी देखी है, वो भी कटक में। लेकिन कटक में महानदी और असोम में ब्रह्मपुत्र की कोई तुलना हो सकती है भला? कटक में तो यह मान लो कि महानदी समुद्र में मिल ही जाती है। डेल्टा क्षेत्र है, डेल्टा में तो नन्ही नन्ही नदियां भी बडी बडी बन जाती हैं। लेकिन असोम में ब्रह्मपुत्र के साथ ऐसा नहीं है। पूरा सागर दिखता है ब्रह्मपुत्र नद।
ब्रह्मपुत्र के ऊपर रेल का पुल और रेल के पुल के ऊपर सडक का पुल। दोनों साथ साथ ब्रह्मपुत्र को पार करते हैं।
ब्रह्मपुत्र पार करके दक्षिण की तरफ पहाडियां दिखने लगती हैं। उनमें कुछ मेघालय की पहाडियां भी हैं। ये पहाडियां रेलवे लाइन के उत्तर में नहीं दिखती, जबकि दक्षिण में इनकी भरमार है। और ये गुवाहाटी तक चली जाती हैं।
आज कुछ लोगों से बातचीत हुई। मैं समोसे खा रहा था। पडोस के एक लडके से पूछा तो उसने कहा कि नहीं, मेरा फास्ट है। मैंने पूछा कि जन्माष्टमी का या शुक्रवार का? बोला कि रमजान का। अच्छा, तो रोजों को अंग्रेजी में फास्ट कहते हैं। यह बात तो पहली बार पता चली। वैसे वो मुल्लाजी त्रिपुरा के करीमगंज का रहने वाला है और दिल्ली स्थित जामिया मिलिया इस्लामिया से एमए कर रहा है। एमए वाले बन्दे से गलत अंग्रेजी की उम्मीद नहीं कर सकते। मेरे तो दिमाग में अच्छी तरह घुस गया है कि व्रत और रोजे अंग्रेजी में एक समान हैं। हिन्दू मुस्लिम एकता हो या ना हो लेकिन व्रत और रोजों की एकता का उदाहरण उस असोम में मिला जिसमें कोकराझार है।
एक बन्दा और था, बल्कि वे कई थे। मध्य प्रदेश के सागर जिले के। गुवाहाटी में उनमें से एक का बहनोई और बहन हैं, तो वे सब मिलने जा रहे थे। उनसे भी जान पहचान सी हो गई थी। ग्वालपाडा के बाद जब ट्रेन खुद को सुपरफास्ट सिद्ध कर रही थी, तो उनमें से एक ने मुझसे पूछा कि पतली पिन का चार्जर है क्या? मेरे पास था और मैंने दे दिया। उस समय मैंने अपना लैपटॉप चार्जिंग पर लगा रखा था। उन्होंने कहा कि यार, तुम्हारे लैप्पी को आधा घण्टा हो गया है। मैं इशारा समझ गया और तुरन्त कहा कि भाई, उसे हटाकर तू लगा ले और जब तेरा काम खत्म हो जाये तो उसे फिर से लगा देना।
थोडी देर बाद उनमें से एक अपना झोला लाया और बोला कि आ जाओ भाई सारे के सारे, गुंजे खत्म करवाओ। ‘भाई सारे’ में मैं भी आ गया। उसने झोले का मुंह खोलकर मेरे सामने सरका दिया कि ले, उठा ले। मैंने उठाया और खाया। भूख भी लग रही थी, मजा आ गया। अच्छा हां, ये बताओ कि ट्रेन में पैण्ट्री थी यानी रसोई थी, तो मैं भूखा क्यों था? लॉजिक वाला सवाल है।
क्योंकि ट्रेन दस घण्टे लेट चल रही थी और पैण्ट्री वालों का सारा राशन खत्म हो गया था। अब तो वे पानी पिलाने और चांय-चांय करने भी नहीं आ रहे थे।
तो सबके साथ मैं भी शुरू हो गया गुंजे खाने में। उसकी मां ने बांधकर दिये थे। ढाई किलो से कम नहीं थे। हमारी चपर-चपर सुनकर ऊपर वाली बर्थ पर सो रहा एक गोरखा किस्म का बन्दा उठा और बोला कि मुझे भी दो। हां, बिल्कुल यही कहा कि मुझे भी दो। तीन-चार उसने भी खाये।
मेरे इस प्रसंग को सुनाने का मतलब यह नहीं है कि जो कोई खाने को टोके, खा लो। बे-मतलब के ठगे जाओगे, यहां तक कि मारे भी जा सकते हो। ट्रेनों में इस तरह किसी अजनबी से खाना नुकसान की बात होती है। लेकिन जो मुझ जैसे फालतू हैं, वे खा सकते हैं। शायद गोरखा भी फालतू ही था।
मां कामाख्या प्रतीक्षा करती रह गईं। उन्होंने बहुत दिनों से बुलावा भेज रखा। मैंने पहले नॉर्थ ईस्ट से आरक्षण कराया लेकिन कामाख्या ने सन्देश दिया कि वत्स, मार्जिन कम है। ट्रेन बदल। मैंने पूर्वोत्तर सम्पर्क क्रान्ति ले ली। सोचा कि दो चार घण्टे लेट हो जायेगी तो भी मां के दर्शन कर लूंगा। मां ने कहा कि अब ठीक है, आ जा।
लेकिन ट्रेन पहुंची दस घण्टे लेट। अब कामाख्या के यहां जाने का सवाल ही नहीं। इंसान कहेंगे कि मां ने बुलाया ही नहीं था, जबकि मैं कहूंगा कि मां ने बुलाया था लेकिन ट्रेन लेट हो जाने के कारण नहीं जा पाया। मुकरने का गुण इंसानों में होता हैं, देवताओं में नहीं। अब मां मुकर नहीं सकती कि नहीं बुलाया था। मैंने समझाया कि इस बार ट्रेन की वजह से नहीं आया, अगली बार कोशिश करूंगा। मां मान गई।
उधर कृष्ण जी के कान खडे हो गये। बोले कि भाई, दो घण्टे हैं तेरे पास, मेरे यहां आ जा। गुवाहाटी में स्टेशन से पन्द्रह मिनट की दूरी पर इस्कॉन वालों का मन्दिर है, यानी कृष्णजी का मन्दिर है। आज जन्माष्टमी थी, तो सोचा कि कन्हैया तो सही कह रहा है, चले जाते हैं। जाकर देखा तो इतनी लम्बी लाइन, इतनी लम्बी लाइन कि होश उड गये। मैंने कन्हैया से कहा कि भाई, हालत देख रहा है क्या बाहर की? या अन्दर से दिखाई नहीं दे रहा। बोले कि हालत अभी अभी खराब होनी शुरू हुई हैं। जब मैंने तुझे बुलाया था, तब ऐसा नहीं था। तू एक काम कर। वापस चला जा, कहीं ऐसा ना हो कि यहां भी ‘बेगनासताल’ हो जाये।
मैं वापस स्टेशन पर आ गया। अन्दर घुसते ही चार्जिंग पॉइण्ट दिखाई दिये, काफी सारे थे, ज्यादातर खाली। सोचा कि लैपटॉप भी, मोबाइल भी, कैमरा भी; सब चार्ज कर दूं। इस चक्कर में एक जरूरी काम भूल गया- नहाना। पूरे दो दिन से ज्यादा हो गये नहाये हुए।
लीडो इण्टरसिटी आई और अपन उसमें हो लिये।



ट्रेन से भारत परिक्रमा यात्रा
1. भारत परिक्रमा- पहला दिन
2. भारत परिक्रमा- दूसरा दिन- दिल्ली से प्रस्थान
3. भारत परिक्रमा- तीसरा दिन- पश्चिमी बंगाल और असोम
4. भारत परिक्रमा- लीडो- भारत का सबसे पूर्वी स्टेशन
5. भारत परिक्रमा- पांचवां दिन- असोम और नागालैण्ड
6. भारत परिक्रमा- छठा दिन- पश्चिमी बंगाल व ओडिशा
7. भारत परिक्रमा- सातवां दिन- आन्ध्र प्रदेश व तमिलनाडु
8. भारत परिक्रमा- आठवां दिन- कन्याकुमारी
9. भारत परिक्रमा- नौवां दिन- केरल व कर्नाटक
10. भारत परिक्रमा- दसवां दिन- बोरीवली नेशनल पार्क
11. भारत परिक्रमा- ग्यारहवां दिन- गुजरात
12. भारत परिक्रमा- बारहवां दिन- गुजरात और राजस्थान
13. भारत परिक्रमा- तेरहवां दिन- पंजाब व जम्मू कश्मीर
14. भारत परिक्रमा- आखिरी दिन

Comments

  1. लाजवाब, बेहतरीन, आनंददायक चित्र.

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  2. यात्रा मस्त और चित्र जबरदस्त|
    नहाना भूलना तो अच्छे से याद रहता है :)

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  3. सब हरा हरा, सब भरा भरा,
    कुछ पानी से, कुछ भावों से।

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  4. सोन नद अमरकंटक से नहीं, सोनकुंड पेंड्रा से निकली है। इस पर मेरी एक पोस्ट है।

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  5. श्री नीरज जी मोबाइल लैपटॉप कैमरा चार्ज करना ज्यादा जरूरी होता है ... नहाना तो कभी भी हो जायेगा . फोटो में तो तरो ताजा लग रहो हो . राजा भात खावा - अच्छा है

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  6. बहुत सुंदर जगह घूमने का शुक्रिया ...तुम्हारा तो नाम हो गया अब तो तुम भी कोलम्बस से कम नहीं हो ..:)

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  7. देख कर लगा रहा है कि यात्रा बेहद शानदार रही। वापस आने पर यात्रा के बारे में पूछ भी नहीं पाया माफ कर देना। मित्र फोन खराब हो गया और सिम भी बेकार हो गया है, इसलिए धन्यवाद नहीं कह पाया। नया नंबर लेने की सोच रहा हूं। कैमरे के फोटो में शार्पनेस तो है लेकिन ब्लर हैं। कुछ सेटिंग का चक्कर लग रहा है। इसका आइएसओ कम कर लो और फोकल प्वाइंट बढ़ा लो। फेसबुक पर नया नंबर भेज दूंगा।

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जिम कार्बेट की हिंदी किताबें

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ट्रेन में बाइक कैसे बुक करें?

अक्सर हमें ट्रेनों में बाइक की बुकिंग करने की आवश्यकता पड़ती है। इस बार मुझे भी पड़ी तो कुछ जानकारियाँ इंटरनेट के माध्यम से जुटायीं। पता चला कि टंकी एकदम खाली होनी चाहिये और बाइक पैक होनी चाहिये - अंग्रेजी में ‘गनी बैग’ कहते हैं और हिंदी में टाट। तो तमाम तरह की परेशानियों के बाद आज आख़िरकार मैं भी अपनी बाइक ट्रेन में बुक करने में सफल रहा। अपना अनुभव और जानकारी आपको भी शेयर कर रहा हूँ। हमारे सामने मुख्य परेशानी यही होती है कि हमें चीजों की जानकारी नहीं होती। ट्रेनों में दो तरह से बाइक बुक की जा सकती है: लगेज के तौर पर और पार्सल के तौर पर। पहले बात करते हैं लगेज के तौर पर बाइक बुक करने का क्या प्रोसीजर है। इसमें आपके पास ट्रेन का आरक्षित टिकट होना चाहिये। यदि आपने रेलवे काउंटर से टिकट लिया है, तब तो वेटिंग टिकट भी चल जायेगा। और अगर आपके पास ऑनलाइन टिकट है, तब या तो कन्फर्म टिकट होना चाहिये या आर.ए.सी.। यानी जब आप स्वयं यात्रा कर रहे हों, और बाइक भी उसी ट्रेन में ले जाना चाहते हों, तो आरक्षित टिकट तो होना ही चाहिये। इसके अलावा बाइक की आर.सी. व आपका कोई पहचान-पत्र भी ज़रूरी है। मतलब