Skip to main content

जोशीमठ यात्रा- देवप्रयाग और रुद्रप्रयाग

एक दिन विधान चन्द्र उपाध्याय का फोन आया कि नीरज, पांच और छह अप्रैल की छुट्टी है, कहीं चलते हैं। हालांकि मैं कुछ ही दिन पहले आगरा-सातताल-कार्बेट फाल का चक्कर लगाकर आया था, इसलिये इतनी जल्दी जाने की कोई योजना नहीं थी, लेकिन फिर भी विधान को हां कह दी। वे मार्च के आखिरी दिन थे और गर्मी काफी होने लगी थी। इतना तो तय था कि हिमालय में ही जाना है। विधान ने सन्दीप भाई को भी मना लिया था और चलने से पहले विपिन भी तैयार हो गया।
सन्दीप के बारे में बताने की कोई जरुरत ही नहीं है। विपिन मेरे और सन्दीप के साथ पिछले साल श्रीखण्ड महादेव गया था और पैदल चलने में माहिर है। हमारी यात्रा अप्रैल के शुरूआती दिनों में होनी थी, इसलिये ट्रैकिंग की कोई उम्मीद नहीं थी क्योंकि इस बार बरफ काफी मात्रा में पडी थी और अप्रैल के शुरू में उसके पिघलने की कोई उम्मीद नहीं होती। हिमालय के ऊंचे इलाकों में ट्रैकिंग की असली शुरूआत मई से मानी जाती है। आखिरकार तय हुआ कि जोशीमठ चला जाये। अगर हिसाब बन गया तो बन्द बद्रीनाथ को भी देख आयेंगे। जबकि विधान का विचार नेपाल जाने का था। नेपाल की योजना इसलिये नहीं बन पाई कि हमारे पास चार दिन थे और उसमें काठमांडू जाना नहीं हो पा रहा था। जा तो सकते थे लेकिन मजेदारी नहीं थी।
विधान को जयपुर से आना था। उधर मेरी मजबूरी होती है कि मैं हमेशा सुबह को ही निकलता हूं, नाइट ड्यूटी करके। इससे विधान को फायदा था, जबकि बाकी को नुकसान था। विधान जयपुर से शाम को चलकर सुबह तक दिल्ली आ सकता था और उसने किया भी ऐसा ही। विपिन को भी सुबह सवेरे मेरे पास आना था। सन्दीप भाई ने जाने से दो दिन पहले मना कर दिया। उनकी माताजी की तबियत खराब थी। ... और जब विधान रात को दस बजे जयपुर से हरिद्वार जाने वाली बस में बैठ गया और मैंने अपनी ड्यूटी शुरू कर दी तो विपिन का सन्देश आया कि वो नहीं जायेगा। विपिन के ना जाने से हमारी योजना को झटका लगा क्योंकि हम क्वारी पास को पार करने की सोच रहे थे। क्वारी पास के लिये 3700 मीटर की ऊंचाई को लांघना पडता है। और उस ऊंचाई पर हमें काफी बरफ की उम्मीद थी, परमिट का भी पंगा होता है और हमें गाइड भी लेना पडता। फिर विपिन पहले भी क्वारी पास के नजदीक तक जा चुका था और उसे रास्ता मालूम था। फिर विपिन जन्मजात गढवाली भी है, तो गढवाली बोली भी जानता होगा। इसका भी हमें फायदा मिलता। विपिन के ना जाने से कुल मिलाकर नुकसान ही हुआ।
अब हुआ ये कि विधान ने जयपुर से सीधे हरिद्वार की बस पकडी। हममें तय हुआ कि दोनों अलग-अलग बसों में बैठकर अलग-अलग समय पर हरिद्वार पहुंचेंगे। मुझे सुबह सात बजे दिल्ली से निकलना था और बारह बजे तक हरिद्वार पहुंचने की उम्मीद थी। उधर विधान को नौ बजे तक हरिद्वार पहुंच जाना था।
मैं हमेशा मोहन नगर से हरिद्वार की बस पकडता हूं। इसका फायदा ये होता है कि मेरे पच्चीस रुपये बच जाते हैं। दिलशाद गार्डन यानी दिल्ली-यूपी के बॉर्डर तक तो मेट्रो है, मुझे अपनी जेब से कुछ नहीं देना पडता। बॉर्डर से मोहन नगर तक टम्पू चलते हैं, बसें भी चलती हैं। टम्पू वाले आज की तारीख में आठ रुपये लेते हैं जबकि बस पांच रुपये में मान जाती है। दिल्ली से यूपी में प्रवेश करने पर बसों का कुछ टैक्स का मामला है, इसलिये इस पन्द्रह किलोमीटर के तीस रुपये ले लेते हैं। मोहन नगर से हमें इन्हीं तीस रुपयों के मुक्ति मिल जाती है। और रही बात सीट की तो सुबह उसकी भी दिक्कत नहीं होती। मोहन नगर से अपनी पसन्द की सीटें आराम से मिल जाती हैं। सुबह सुबह कौन जाता है हरिद्वार? जिसे भी हरिद्वार जाना होता है, वो रात को ही बस पकडता है और सुबह सवेरे वहां जा पहुंचता है।
विधान ने एक गडबड कर दी कि उसने राजस्थान रोडवेज की बजाय प्राइवेट बस पकडी। प्राइवेट बसों में यात्रा करने के अपने फायदे होते हैं और सबसे बडा फायदा यही है कि स्लीपर बस हो तो सोना भी हो जाता है। हालांकि रोडवेज की बसें भी काफी आरामदायक होती हैं। प्राइवेट बस को पुरकाजी से निकलते ही उत्तराखण्ड बॉर्डर पर रोक दिया गया। उसके पास उत्तराखण्ड में प्रवेश करने का परमिट नहीं था। घण्टे भर तक वहां खडे रहे, जब उसके बाद अगली प्राइवेट बस आई तो सब सवारियां उससे हरिद्वार गईं। जबकि मैं उत्तराखण्ड रोडवेज की बस में था, इसलिये ऐसी कोई दिक्कत नहीं आनी थी।
जब मैं रुडकी पहुंचने वाला था, विधान का फोन आया। बता रहा था कि वो हरिद्वार पहुंच गया है। मैंने उसे टम्पू पकडकर ऋषिकुल चौराहे पर पहुंचने को कहा। घण्टे भर बाद जब मैं ऋषिकुल चौराहे पर पहुंचा तो विधान मुझे वहां मिल गया। ऋषिकुल चौराहा हरिद्वार बस अड्डे से करीब दो किलोमीटर पहले है और सभी बसें वहीं से निकलकर आती हैं, चाहे दिल्ली जाना हो या ऊपर पहाड पर। हरिद्वार बस अड्डे तक जाने और दोबारा उसी चौराहे पर आने का करीब आधा पौना घण्टा बच जाता है। अगर हमें ऋषिकेश जाना हो तो बेहतर यही है कि ऋषिकुल चौराहे पर उतरा जाये। जब तक दिल्ली से आने वाली बस हरिद्वार के बस अड्डे तक पहुंचेगी, तब तक हम दूसरी बस पकडकर हरिद्वार से बाहर निकल चुके होते हैं।
इसके अलावा ऋषिकुल चौराहे के बराबर में ही एक प्राइवेट बस अड्डा भी है। असल में यह पार्किंग है जहां प्राइवेट बसें खडी रहती हैं। तो विधान ने यहां पहुंचते ही सोचा कि यही मुख्य बस अड्डा है और वो यहीं उतर गया था। यहां उतरकर उसने मुझे फोन किया, मैंने बताया कि ऋषिकुल पहुंचो। उसने पता किया कि ऋषिकुल जाना है तब उसे पता चला कि वो तो पहले से ही ऋषिकुल पर है।
खैर, घण्टे भर में यानी करीब दो बजे के करीब हम ऋषिकेश में थे। यहां से श्रीनगर की बस पकडी और देवप्रयाग जा पहुंचे। हमें इन चार दिनों में कोई ट्रैकिंग नहीं करनी थी, इसलिये तय हुआ कि पांचों प्रयाग देखेंगे। सबसे पहला प्रयाग देवप्रयाग है। यहां बद्रीनाथ से आती अलकनन्दा और गंगोत्री से आती भागीरथी का संगम होता है। इसके बाद ये दोनों नदियां मिलकर गंगा कहलाती हैं। मैं पहले भी देवप्रयाग आ चुका था, आज फिर से आना अच्छा लगा। विधान ने यहां डुबकी लगाने की सोची लेकिन पानी सीढियों से नीचे बह रहा था और बहाव बेहद तेज था इसलिये लोटे से नहाना पडा, डुबकी लगाने की हसरत मन में ही रह गई।
देवप्रयाग से श्रीनगर जाने के लिये एक जीप में बैठ गये। श्रीनगर जाने पर पता चला कि यह जीप आगे रुद्रप्रयाग भी जायेगी तो इसी में बैठे रहे और अंधेरा होने तक रुद्रप्रयाग पहुंच गये। यहां आज बारिश हुई थी और बिजली के खम्भे टूट जाने के कारण बिजली नहीं थी। आठ बजे का टाइम था और रुद्रप्रयाग शहर घरों में जा घुसा था। यहीं 200 रुपये का एक कमरा लिया गया। कमरे में तीन बेड थे और मजे की बात ये थी कि तीनों के पाये नहीं थे। तीनों बेड कनस्तरों पर टिके थे और करवट लेते समय बजते थे।
अगले दिन सुबह उठकर सबसे पहले हमने एक काम किया और वो ये कि संगम देख आये। यहां अलकनन्दा में केदारनाथ से आती मंदाकिनी मिलती है। मैं पहले भी दो बार रुद्रप्रयाग से गुजर चुका हूं लेकिन कभी संगम नहीं देखा। संगम का फोटो खींचने के लिये हमें रुद्रप्रयाग में केदारनाथ से आती मंदाकिनी को एक झूले पुल से पार करके दूसरी तरफ बसे एक गांव में जाना पडा।
आज के लिये बहुत हो गया। बाकी अगले प्रयागों पर अगली बार घुमायेंगे।

देवप्रयाग में भागीरथी पर बना एक झूला पुल
देवप्रयाग में भागीरथी का भयानक प्रवाह

भागीरथी पर बने उसी झूले पुल पर अंगूर भोज

देवप्रयाग में विधान चन्द्र

देवप्रयाग में अलकनंदा

देवप्रयाग में जाटराम

मैं तीन साल पहले भी देवप्रयाग गया था। यह फोटो तीन साल पुराना है।

देवप्रयाग। इस फोटो को देखकर अपने एक बनारसी मित्र बोल उठे कि अरे, ये क्या!!! इन लोगों ने घर कहां पर टांग रखे हैं? ये पहाड बडे कच्चे होते हैं और बारिश में आराम से घुलकर बह जाते हैं और भूकम्प में क्या हाल होता है इनका? यहां तो बिजली-पानी की भी दूर-दूर तक उम्मीद नहीं है। मैंने बताया कि ऐसा नहीं है। यह काफी बडा कस्बा है और उत्तराखण्ड के विकसित कस्बों में माना जाता है। बिजली-पानी के साथ-साथ सबकुछ सुविधा यहां है। यहां हर साल खूब बारिश भी होती है और भूकम्प भी आता रहता है और अब तो रेल भी आने वाली है। उन्हें मेरी बात पर यकीन नहीं हुआ तो मैंने उन्हें यहां घूमकर आने की सलाह दी। और मुझे पूरा यकीन है कि वे जिन्दगी भर यहां नहीं जायेंगे।

जाटराम रुद्रप्रयाग में

रुद्रप्रयाग में एक झूला पुल से नीचे बह रही अलकनन्दा को देखता विधान

विधान सूमो मुद्रा में- वाकई जच रहा है।

रुद्रप्रयाग में बद्रीनाथ से आने वाली अलकनन्दा और केदारनाथ से आने वाली मंदाकिनी का संगम होता है।

रुद्रप्रयाग

रुद्रप्रयाग में जाटराम

रुद्रप्रयाग से जब केदारनाथ की तरफ जाते हैं तो सडक मार्ग पर यह सुरंग आती है। इस सुरंग को पार करके सडक अलकनन्दा घाटी से मंदाकिनी घाटी में प्रवेश कर जाती है।

विधान एक शानदार घुमक्कड है।

और यह है रुद्रप्रयाग में नारद शिला
अगला भाग: जोशीमठ यात्रा- कर्णप्रयाग और नंदप्रयाग

जोशीमठ यात्रा वृत्तान्त
1. जोशीमठ यात्रा- देवप्रयाग और रुद्रप्रयाग
2. जोशीमठ यात्रा- कर्णप्रयाग और नंदप्रयाग
3. जोशीमठ से औली पैदल यात्रा
4. औली और गोरसों बुग्याल
5. औली से जोशीमठ
6. कल्पेश्वर यानी पांचवां केदार
7. जोशीमठ यात्रा- चमोली से वापस दिल्ली

Comments

  1. नीरज जी वाकई आप से बड़ा घुमक्कड़ मैंने नहीं देखा, पहले आदि शंकराचार्य, फिर राहुल संस्क्रितायण, अब आप, देव प्रयाग बहुत ही सुंदर और पवित्र स्थान हैं, मेरे मामा जी यंहा रहते थे, मैं २ महीने उनके पास रहा हूँ, सारे दिन संगम के किनारे बैठे रहते थे, उठने का भी मन नहीं करता था, और फिर बद्री-केदार जाते हुए बार बार दर्शन होते ही रहते हैं. ये गप्पू जी से पहली बार मिलना हुआ हैं, इनका सुमो के स्टाइल में फोटो बहुत अच्छा हैं. , आपका योग करते हुए फोटो अच्छा हैं. आपकी बद्रीनाथ यात्रा की प्रतीक्षा रहेगी.

    ReplyDelete
  2. देवप्रयाग - जोशीमठ,बदरीनाथ की यात्रा कई बार की है पर हमेशा कार से, नीचे बहती अलकनंदा का तीव्र प्रवाह और उसका स्वर दिल दहला देने वाला होता है,इतनी पवित्र और निर्मल प्रकृति जितनी इस इलाके में है मैंने दुनिया में और कहीं नहीं देखि.एक तरफ पहाड़ों से बहते छोटे छोटे झरने का अप्रितम दृश्य और दूसरी ओर कहीं किसी पत्थर या चट्टान के उढककर सड़क पर गिरने का हर पल भय.गज़ब की रोमांचक यात्रा हुआ करती थी.आभार आपने एक बार फिर बहुत कुछ याद करा दिया.

    ReplyDelete
  3. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  4. तस्वीरों के लिये आभार
    आपको आपकी परंपरागत शर्ट के बजाय नई टी-शर्ट में देखकर अच्छा लगा :)

    प्रणाम

    ReplyDelete
  5. neeraj babu,jiska intejar rahta ho wo to aapne likh diya,ham to bahut pahle wahan jaa chuke hai,aapne dubara sair karwa diya.thanks

    ReplyDelete
  6. गप्पू जी विधान भाई का बिना कपडॆ का फ़ोटो भी यानि असली सूमो की वेशभूषा में भी एक फ़ोटो भी हो जाये।

    ReplyDelete
  7. रुद्रप्रयाग पहुंच गये। यहां आज बारिश हुई थी और बिजली के खम्भे टूट जाने के कारण बिजली नहीं थी। आठ बजे का टाइम था और रुद्रप्रयाग शहर घरों में जा घुसा था। यहीं 200 रुपये का एक कमरा लिया गया। कमरे में तीन बेड थे और मजे की बात ये थी कि तीनों के पाये नहीं थे। तीनों बेड कनस्तरों पर टिके थे और करवट लेते समय बजते थे।


    सही कह रहे हो भाई, बड़ी मुश्किल से निकली रात!!

    ReplyDelete
  8. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
    Replies
    1. "के" नहीं दिखाई दे रहा है !!

      Delete
  9. Neeraj bhai kya baat hai bahut jamte ho jab bhee ghummakdi pe nikalte ho ummed karta hoon ki aapki yatra aanand mayi rahi hogi...

    ReplyDelete
  10. नीरज भाई, हमेशा की तरह सुंदर प्रस्तुति और सुंदर चित्र. अचानक ना जा पाने की वजह से मुझे भी अच्छा नहीं लगा. कुआंरी पास अभी भी हिट लिस्ट में है, अगली बार प्रोग्राम बने तो जरुर बताना. एक सुझाव, अगर रुद्रप्रयाग में कोटेश्वर महादेव का गुफा वाला मंदिर नहीं देखा तो अगली बार जरुर देखें, बेहतरीन जगह है भीड़ भाड़ से बहुत दूर.

    ReplyDelete
  11. बहुत ही मन मोहक जगह हैं ...बार -बार जाने को मन करता हैं ..और बार -बार गाने को मन करता हैं ..".बार -बार देखो हजार बार देखो ...." हा हा हा हा ..क्या बात हैं नीरज इस बार शर्ट नहीं दिख रही हैं ?

    ReplyDelete
  12. प्रिय नीरज भाई, सदा की तरह आपकी पोस्ट जानकारी से परिपूर्ण एवं मनोरंजक है. आगे का वृतांत जानने को उत्सुक हूँ. शीघ्र पोस्ट करें.

    शैलेन्द्र

    ReplyDelete
  13. neeraj bhai tusi great ho - mera bhi bahut man karta hai aap jaise ke sath aise hi ghoomo - par majboori hai - aur aap ek great photographer bhi ho - aap ki kuch photo copy kar ke rakh li hai - hope you dont mind

    ReplyDelete
  14. meray dost ghoomkidi aachi baat hai ghoomkidi may jeevan darshan ka yarth semej atta hai samaj ko kuch detay raho or aapanay liye kuch samaj se latay raho.

    sant parkash

    ReplyDelete
    Replies
    1. yaar neeraj bhai, me aapa fan (pankha nahi) ho gayaa hu, bade maje lekar aapki yatraa ka varnan padh raha hu aur family ke aur logo ko bhi link bhej raha hu ki vah bhi ise pade aur kam se kam ghar bethe hi ghummakkad ban jaaye, me bhi abhi 1 mahine pahle chaardhaam yatraa kar ke (pahli baar) aaya hu.shayad age me , me aap se double hu yaane ki crossing 62 years, but trekking ki bahut ichha hote huve bhi koi permit nahi karega, isliye tumhari yatraa ka varnan padh kar anand le leta hu, bahut badiyaa ,....... abhi aur bahut kuch padhna hai tumhari yatrao ke baare me ..I am completing yr chardhaam yatra first.

      Delete
  15. Baat sahi hai, abhi abhi durghatna jo Uttarakhand me ghati usme kafi saare makan beh gaye

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

46 रेलवे स्टेशन हैं दिल्ली में

एक बार मैं गोरखपुर से लखनऊ जा रहा था। ट्रेन थी वैशाली एक्सप्रेस, जनरल डिब्बा। जाहिर है कि ज्यादातर यात्री बिहारी ही थे। उतनी भीड नहीं थी, जितनी अक्सर होती है। मैं ऊपर वाली बर्थ पर बैठ गया। नीचे कुछ यात्री बैठे थे जो दिल्ली जा रहे थे। ये लोग मजदूर थे और दिल्ली एयरपोर्ट के आसपास काम करते थे। इनके साथ कुछ ऐसे भी थे, जो दिल्ली जाकर मजदूर कम्पनी में नये नये भर्ती होने वाले थे। तभी एक ने पूछा कि दिल्ली में कितने रेलवे स्टेशन हैं। दूसरे ने कहा कि एक। तीसरा बोला कि नहीं, तीन हैं, नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली और निजामुद्दीन। तभी चौथे की आवाज आई कि सराय रोहिल्ला भी तो है। यह बात करीब चार साढे चार साल पुरानी है, उस समय आनन्द विहार की पहचान नहीं थी। आनन्द विहार टर्मिनल तो बाद में बना। उनकी गिनती किसी तरह पांच तक पहुंच गई। इस गिनती को मैं आगे बढा सकता था लेकिन आदतन चुप रहा।

जिम कार्बेट की हिंदी किताबें

इन पुस्तकों का परिचय यह है कि इन्हें जिम कार्बेट ने लिखा है। और जिम कार्बेट का परिचय देने की अक्ल मुझमें नहीं। उनकी तारीफ करने में मैं असमर्थ हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि उनकी तारीफ करने में कहीं कोई भूल-चूक न हो जाए। जो भी शब्द उनके लिये प्रयुक्त करूंगा, वे अपर्याप्त होंगे। बस, यह समझ लीजिए कि लिखते समय वे आपके सामने अपना कलेजा निकालकर रख देते हैं। आप उनका लेखन नहीं, सीधे हृदय पढ़ते हैं। लेखन में तो भूल-चूक हो जाती है, हृदय में कोई भूल-चूक नहीं हो सकती। आप उनकी किताबें पढ़िए। कोई भी किताब। वे बचपन से ही जंगलों में रहे हैं। आदमी से ज्यादा जानवरों को जानते थे। उनकी भाषा-बोली समझते थे। कोई जानवर या पक्षी बोल रहा है तो क्या कह रहा है, चल रहा है तो क्या कह रहा है; वे सब समझते थे। वे नरभक्षी तेंदुए से आतंकित जंगल में खुले में एक पेड़ के नीचे सो जाते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि इस पेड़ पर लंगूर हैं और जब तक लंगूर चुप रहेंगे, इसका अर्थ होगा कि तेंदुआ आसपास कहीं नहीं है। कभी वे जंगल में भैंसों के एक खुले बाड़े में भैंसों के बीच में ही सो जाते, कि अगर नरभक्षी आएगा तो भैंसे अपने-आप जगा देंगी।

ट्रेन में बाइक कैसे बुक करें?

अक्सर हमें ट्रेनों में बाइक की बुकिंग करने की आवश्यकता पड़ती है। इस बार मुझे भी पड़ी तो कुछ जानकारियाँ इंटरनेट के माध्यम से जुटायीं। पता चला कि टंकी एकदम खाली होनी चाहिये और बाइक पैक होनी चाहिये - अंग्रेजी में ‘गनी बैग’ कहते हैं और हिंदी में टाट। तो तमाम तरह की परेशानियों के बाद आज आख़िरकार मैं भी अपनी बाइक ट्रेन में बुक करने में सफल रहा। अपना अनुभव और जानकारी आपको भी शेयर कर रहा हूँ। हमारे सामने मुख्य परेशानी यही होती है कि हमें चीजों की जानकारी नहीं होती। ट्रेनों में दो तरह से बाइक बुक की जा सकती है: लगेज के तौर पर और पार्सल के तौर पर। पहले बात करते हैं लगेज के तौर पर बाइक बुक करने का क्या प्रोसीजर है। इसमें आपके पास ट्रेन का आरक्षित टिकट होना चाहिये। यदि आपने रेलवे काउंटर से टिकट लिया है, तब तो वेटिंग टिकट भी चल जायेगा। और अगर आपके पास ऑनलाइन टिकट है, तब या तो कन्फर्म टिकट होना चाहिये या आर.ए.सी.। यानी जब आप स्वयं यात्रा कर रहे हों, और बाइक भी उसी ट्रेन में ले जाना चाहते हों, तो आरक्षित टिकट तो होना ही चाहिये। इसके अलावा बाइक की आर.सी. व आपका कोई पहचान-पत्र भी ज़रूरी है। मतलब