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रात जब सोये थे तो मसूरी घूमने की बात सोचकर सोये थे। सुबह पता चला कि गन हिल जाने वाली रोपवे मेण्टेनेंस के कारण बन्द है, तो हमारे मित्र महोदय का मूड खराब हो गया। हालांकि मैंने बता दिया था कि गन हिल जाने के लिये एक डेढ किलोमीटर पैदल चलना पडता है लेकिन वे रोपवे का आनन्द लेना चाहते थे और कल से ही इसके बारे में रोमांचित और उत्साहित हो रहे थे।
अब जब मूड खराब हो गया तो साहब बोले कि मसूरी में अब और नहीं घूमना बल्कि धनोल्टी चलते हैं। अच्छा हां, एक बात तो रह ही गई। दिल्ली से चलते समय उन्होंने मुझसे जब मसूरी यात्रा पर चलने का आग्रह किया तो मैंने उनके सामने एक शर्त रखी कि मुझे सुरकण्डा देवी मन्दिर जरूर जाना है। असल में एक तो यह शक्तिपीठ है, और उससे भी बडी बात ये है कि मैंने इसकी कठिन चढाई के चर्चे सुने हैं, यहां तक कि सन्दीप भाई भी इसकी कठिन चढाई का जिक्र करते हैं। तो यहां जाने की बडी इच्छा थी। मेरी यह शर्त तुरन्त मान ली गई। इससे मुझे एक फायदा और भी होने वाला था कि इसी बहाने धनोल्टी भी घूम लेंगे।
जब मसूरी से मन उचट गया तो साहब धनोल्टी की तरफ चल पडे। मैंने पहले भी बताया था कि मसूरी से लेकर धनोल्टी और आगे चम्बा तक एक पहाडी धार है जिसकी ऊंचाई 2000 से 2500 मीटर तक है। इस धार के नीचे यानी दक्षिण में देहरादून की घाटी है जबकि आगे उत्तर में भी ज्यादा ऊंचाई नहीं है। एक तरह से यह धार एक पट्टी का काम करती है जिसकी लम्बाई करीब 50 किलोमीटर है और चौडाई मुश्किल से एक किलोमीटर। इतनी ऊंचाई पर सेब जैसे फल बडी आसानी से हो जाते हैं तो इस पट्टी को फल पट्टी भी कहते हैं और सेब का उत्पादन यहां बहुत होता है।
और सडक भी धार के ऊपर ही बनी है। कभी कभी तो सडक के दोनों तरफ दूर तक जाते ढलान भी दिखते हैं, गंगा घाटी भी दिखती है और गढवाल हिमालय की बर्फीली चोटियां भी दिखती हैं- बद्रीनाथ, चौखम्भा, केदारनाथ, गंगोत्री, बन्दरपूंछ आदि चोटियां। नन्दादेवी का भी कुछ हिस्सा दिखाई दे जाता है। गौर से देखें तो हिमाचल में किन्नौर की चोटियां भी दिखती हैं। मुझे पूरा यकीन है कि किन्नर कैलाश भी दिखता होगा। मुझे इनमें से चौखम्भा की ही पहचान है, उसी के आधार पर मैंने बाकी चोटियों का अन्दाजा लगाया है।
खैर, धनोल्टी पहुंचे। मुख्य बाजार से एक किलोमीटर पहले एक गांव में रुक गये। चाय पीने लगे। पता चला कि चायवाला ही अपने घर में होमस्टे की सुविधा दे रहा है और वो भी चार सौ रुपये में। मैंने मित्र साहब से काफी कहा कि भाई यहां धनोल्टी में चार सौ से कम की उम्मीद मत करना, लेकिन कार बाहर सडक पर ही खडी करनी पडेगी, इस बात को सुनकर साहब राजी नहीं थे।
अब मैंने चायवाले से अपने काम की बात पूछी- ये बताओ कि यहां कोई ऐसी जगह है कि शाम तक पैदल चलते रहें और वापस आकर थककर सो जायें। बोला कि सुरकण्डा चले जाओ।... अरे नहीं यार, वहां तो कल जायेंगे, आज के लिये बता... तो एक काम करो कि सामने तपोवन है, वहां चले जाओ। असल में सामने एक पहाडी दिखाई पड रही थी, इसपर कोई पेड नहीं था। इसी को तपोवन कहा जाता है। मुझे इस तपोवन की कथा पता नहीं चली।
पैदल चलने का नाम सुनकर मित्र साहब फिर खदक पडे। बोले कि आगे मेन बाजार में चलते हैं। सौ मीटर ही आगे गये कि इको पार्क दिख पडा। मैंने रिक्वेस्ट करके गाडी एक तरफ रुकवाई और इको पार्क में जा घुसे। बडों का दस रुपये और बच्चों का पांच रुपये का टिकट लगता है। ऑफ सीजन होने के कारण कोई पर्यटक नहीं था। हमारे अलावा एकाध और थे बस।
और वाकई इको पार्क में मजा आ गया। पता चला कि मेन बाजार के पास भी एक इको पार्क है- अम्बर के नाम से। तय हुआ कि यहां से निकलकर तपोवन जायेंगे, तब शाम तक अम्बर इको पार्क में ही पडे रहेंगे।
तपोवन की तरफ चल पडे। यह करीब दो ढाई किलोमीटर का पैदल रास्ता है। इधर से एक चोटी दिखती है, रास्ता चोटी के दूसरी तरफ से है। शुरूआत में छोटे-छोटे पत्थर हैं, उसके बाद बढिया रास्ता है। मित्र साहब इन पत्थरों पर चलते ही डर गये। बोले कि यार ये तो बडे जानलेवा हैं, अगर जरा सा भी डिसबैलेंस हो गये तो गये काम से। मैंने उन्हें समझाया कि अभी आपके लिये यह नई चीज है, इन पर कोई नहीं गिरता और गिरेगा भी तो बस वहीं का वहीं गिर पडेगा, नीचे लुढकता लुढकता कभी नहीं जायेगा। काफी बहसबाजी हुई। आखिर में उन्होंने अपनी घरवाली और साले को वापस भेज दिया। और ऊपर जाकर उन्हें जो शान्ति मिली, इसके बारे में वापस आकर उन्होंने बाकियों से कहा- तुम लोग आराम से जा सकते थे, पत्थरों की छोटी-छोटी गिट्टियां बस थोडा आगे और थीं। और वहां क्या नजारा था, वाह वाह।
फिर पहुंचे धनोल्टी मेन बाजार। और क्या जगह है धनोल्टी भी- शुरू हुआ और खत्म। कोई भीड नहीं। कोई वाहन नहीं। हां, मसूरी-चम्बा के बीच दिनभर में काफी सारी बसें चलती हैं। ये सभी धनोल्टी होकर ही जाती हैं।
अम्बर इको पार्क धनोल्टी मेन बाजार मे बिल्कुल पास ही है। यह पहले वाले पार्क के मुकाबले ज्यादा बडा है। यहां मनोरंजन के साधन भी ज्यादा हैं। कुल मिलाकर मस्त जगह है।
शाम को वहीं एक होटल में 500-500 के दो कमरे लिये और पडकर सो गये।
मसूरी-धनोल्टी रोड
मसूरी-धनोल्टी रोड
मसूरी-धनोल्टी रोड
धनोल्टी इको पार्क

अम्बर इको पार्क में बर्मा ब्रिज क्रॉसिंग


अम्बर इको पार्क के अन्दर
धनोल्टी इको पार्क से दिखती तपोवन चोटी
तपोवन से नीचे का नजारा
तपोवन से हिमालय (लेंस पर जमे धूल के कणों को मत देखना)
तपोवन जाने का रास्ता
अगला भाग: सुरकण्डा देवी
मसूरी धनोल्टी यात्रा
1. शाकुम्भरी देवी शक्तिपीठ
2. सहस्त्रधारा और शिव मन्दिर
3. मसूरी झील और केम्प्टी फाल
4. धनोल्टी यात्रा
5. सुरकण्डा देवी
मैंने पहली बार धनौल्टी 1999 में देखी थी उस समय ये इको-पिको पार्क नहीं था, एकदम साफ़ सुधरा इलाका था उसके बाद से कई यात्रा यहाँ की हो चुकी है, तीन बार सुरकन्डा माता के मंन्दिर के दर्शन भी प्राप्त हो चुके है।
ReplyDeleteचलिये रोपवे टूटने का कुछ तो लाभ हुआ।
ReplyDeleteनीरज जी,
ReplyDeleteपहाडों पर दूरी को किलोमीटर में ना नापकर ऊँचाई में नापें तो चढाई का अंदाजा ज्यादा सही लगाया जा सकता है.
बहुत सुन्दर चित्र, आभार!
ReplyDeleteजय जाट, खड़ी कर दे खाट, लगा दे वाट :)
ReplyDeleteमस्त चित्रण ।क्या बात है वाह ।
ReplyDeleteजाटों वाला काम नहीं करना ...किसी की वाट नहीं लगानी चौधरी !
ReplyDeleteघुमक्कड़ी जिंदाबाद !
आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 12-12-2011 को सोमवारीय चर्चा मंच पर भी होगी। सूचनार्थ
ReplyDeleteमसूरी से चंबा (!) बड़ा बेढब सा रूट है ! कभी सुना नहीं कि चंबा या मसूरी से लोग मसूरी या चंबा आते जाते हों... हां ये सकता है कि इस रूट पर पर्यटक घुमाए जाते हों...
ReplyDeleteमसूरी से हरिद्वार जाते हुए धनोल्टी से गुजरा था. इको पार्क देखा मगर रुक न सका. हाँ वहाँ चाय हमने भी पी थी. काफी खूबसूरत जगह है ये.
ReplyDeleteJAI HO....
ReplyDelete@ काजल कुमार जी,
ReplyDeleteयह चम्बा हिमाचल वाला चम्बा नहीं है बल्कि उत्तराखण्ड में भी एक चम्बा है। मसूरी-चम्बा रोड करीब 50 किलोमीटर लम्बी है और इसी के बीच में है धनोल्टी।