Skip to main content

भारत में नैरो गेज

भारत में ज्यादातर रेल लाइन ब्रॉड गेज में है। जो नहीं हैं, उन्हे भी ब्रॉड गेज में बदला जा रहा है। जो नई लाइनें बन रही हैं, वे भी ब्रॉड गेज में ही हैं। धीरे-धीरे मीटर गेज की सभी लाइनों को ब्रॉड में बदल दिया जायेगा। जैसे कि अभी पिछले साल रेवाडी-रींगस-फुलेरा लाइन को पूरा कर दिया है। इस पर चेतक एक्सप्रेस दोबारा दौडने लगी है। रेवाडी-सादुलपुर-बीकानेर लाइन पर भी गेज परिवर्तन का काम पूरा हो चुका है।

बची नैरो गेज। यह लाइन ज्यादातर पहाडी क्षेत्रों में है। जैसे कि कालका-शिमला, कांगडा रेल, दार्जिलिंग रेल, ऊटी वाली लाइन (यह मीटर गेज है), धौलपुर-मोहरी, ग्वालियर-श्योपुर, सतपुडा लाइन (जबलपुर-नागपुर व आस-पास) आदि। इनमें से कई तो विश्व विरासत बन चुकी हैं, कुछ बनने को तैयार हैं। इसलिये इनके गेज परिवर्तन का तो सवाल ही नहीं उठता।
आपने अभी तक हमारे यहाँ कालका-शिमलाकांगडा रेल की सवारी का ही आनन्द उठाया है। इस साल आपको नैरो गेज वाली दूसरी लाइनों की भी सवारी करायी जायेगी। अभी तक जो लाइनें मेरी हिटलिस्ट में हैं, वे हैं-
(1) ग्वालियर-श्योपुर,
(2) धौलपुर-मोहरी,
(3) जबलपुर-नागपुर,
(4) रायपुर-धमतरी

Comments

  1. जबलपुर जाओ तो भेड़ाघाट घूम लेना और वहाँ के ब्लॉगर्स से तो मिल ही लेना....हम न भी हों तो अहसास तो रहेगा ही. :)

    ReplyDelete
  2. मुसाफिर जी,

    इतने दिनों तक गायब रहने के बाद इतनी छोटी सी पोस्ट से काम नहीं चलने वाला. एक बोन्स पोस्ट का इंतजार रहेगा.

    नैरोगेज का प्रोग्राम जब भी बने तो बतान जरूर.

    प्रयास

    ReplyDelete
  3. बहुत दिन बाद आपका आलेख पढने को मिला .. जल्‍दी जल्‍दी पोस्‍ट डालिए !!

    ReplyDelete
  4. नीरज जी एक ख़ास नैरो गेज़ लाईन को तो आप भूल ही गए...वो है नेरल से माथेरान तक की. तीन घंटे की यात्रा इस गाडी से करने में जो मज़ा आता है उसको बयां शब्दों में नहीं किया जा सकता. हालाँकि इस मौसम में यहाँ के पहाड़ भूरे रंग के सूखे नज़र आते हैं लेकिन जैसे जैसे आप ऊपर जाते हैं हरियाली बढ़ जाती है. माथेरान देश का एकमात्र हिल स्टेशन है जहाँ वाहनों का प्रवेश वर्जित है. लगभग चार की.मी.पहले ही आपको अपना वाहन पार्क करना पढता है और फिर पैदल या खच्चर पर ही चलना पड़ता है. याद रहे नेरल मेरे घर से मात्र तीस की.मी. की दूरी पर ही है...हा हा हा हा हा...
    नीरज

    ReplyDelete
  5. आज पोस्ट भी नैरो गेज ही है
    बहुत व्यस्त हो गये हो जी

    प्रणाम

    ReplyDelete
  6. बहुत सुंदर जानकारी दी आप ने, कभी आये तो हम भी नीरज जी से मिलने इस नैरो गेज से ही जायेगे,अब जल मिलना होगा आप सब से

    ReplyDelete
  7. बहुत बढिया जानकारी मिली.

    रामराम.

    ReplyDelete
  8. लखनऊ-बरेली-टनकपुर
    लखनऊ-लालकुआँ
    टनकपुर - कासगंज
    नैरोगेज
    को तो भूल ही गये आप!

    ReplyDelete
    Replies
    1. roopchand ji...ye tracks narrow gauge naa hokar..meter gauge hain...1 meter not 0.7 meter...
      recheck ur sources of info..

      Delete
    2. Sahi Kaha Brother Ye Sare Metre Gauge Track HAi.

      Delete
  9. बहुत दिन बाद आपका आलेख पढने को मिला .. जल्‍दी जल्‍दी पोस्‍ट डालिए !!

    ReplyDelete
  10. brother OOTY wali line bhi narrow gauge nahi hai...ye bhi Meter Gauge hai jo Narrow gauge se jyda broad hai...1 meter...
    recheck ur soure of info..

    ReplyDelete
    Replies
    1. @ electro,
      आप सही कह रहे हो। मैंने इस गलती को सुधार लिया है। धन्यवाद।

      Delete

Post a Comment

Popular posts from this blog

46 रेलवे स्टेशन हैं दिल्ली में

एक बार मैं गोरखपुर से लखनऊ जा रहा था। ट्रेन थी वैशाली एक्सप्रेस, जनरल डिब्बा। जाहिर है कि ज्यादातर यात्री बिहारी ही थे। उतनी भीड नहीं थी, जितनी अक्सर होती है। मैं ऊपर वाली बर्थ पर बैठ गया। नीचे कुछ यात्री बैठे थे जो दिल्ली जा रहे थे। ये लोग मजदूर थे और दिल्ली एयरपोर्ट के आसपास काम करते थे। इनके साथ कुछ ऐसे भी थे, जो दिल्ली जाकर मजदूर कम्पनी में नये नये भर्ती होने वाले थे। तभी एक ने पूछा कि दिल्ली में कितने रेलवे स्टेशन हैं। दूसरे ने कहा कि एक। तीसरा बोला कि नहीं, तीन हैं, नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली और निजामुद्दीन। तभी चौथे की आवाज आई कि सराय रोहिल्ला भी तो है। यह बात करीब चार साढे चार साल पुरानी है, उस समय आनन्द विहार की पहचान नहीं थी। आनन्द विहार टर्मिनल तो बाद में बना। उनकी गिनती किसी तरह पांच तक पहुंच गई। इस गिनती को मैं आगे बढा सकता था लेकिन आदतन चुप रहा।

जिम कार्बेट की हिंदी किताबें

इन पुस्तकों का परिचय यह है कि इन्हें जिम कार्बेट ने लिखा है। और जिम कार्बेट का परिचय देने की अक्ल मुझमें नहीं। उनकी तारीफ करने में मैं असमर्थ हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि उनकी तारीफ करने में कहीं कोई भूल-चूक न हो जाए। जो भी शब्द उनके लिये प्रयुक्त करूंगा, वे अपर्याप्त होंगे। बस, यह समझ लीजिए कि लिखते समय वे आपके सामने अपना कलेजा निकालकर रख देते हैं। आप उनका लेखन नहीं, सीधे हृदय पढ़ते हैं। लेखन में तो भूल-चूक हो जाती है, हृदय में कोई भूल-चूक नहीं हो सकती। आप उनकी किताबें पढ़िए। कोई भी किताब। वे बचपन से ही जंगलों में रहे हैं। आदमी से ज्यादा जानवरों को जानते थे। उनकी भाषा-बोली समझते थे। कोई जानवर या पक्षी बोल रहा है तो क्या कह रहा है, चल रहा है तो क्या कह रहा है; वे सब समझते थे। वे नरभक्षी तेंदुए से आतंकित जंगल में खुले में एक पेड़ के नीचे सो जाते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि इस पेड़ पर लंगूर हैं और जब तक लंगूर चुप रहेंगे, इसका अर्थ होगा कि तेंदुआ आसपास कहीं नहीं है। कभी वे जंगल में भैंसों के एक खुले बाड़े में भैंसों के बीच में ही सो जाते, कि अगर नरभक्षी आएगा तो भैंसे अपने-आप जगा देंगी।

ट्रेन में बाइक कैसे बुक करें?

अक्सर हमें ट्रेनों में बाइक की बुकिंग करने की आवश्यकता पड़ती है। इस बार मुझे भी पड़ी तो कुछ जानकारियाँ इंटरनेट के माध्यम से जुटायीं। पता चला कि टंकी एकदम खाली होनी चाहिये और बाइक पैक होनी चाहिये - अंग्रेजी में ‘गनी बैग’ कहते हैं और हिंदी में टाट। तो तमाम तरह की परेशानियों के बाद आज आख़िरकार मैं भी अपनी बाइक ट्रेन में बुक करने में सफल रहा। अपना अनुभव और जानकारी आपको भी शेयर कर रहा हूँ। हमारे सामने मुख्य परेशानी यही होती है कि हमें चीजों की जानकारी नहीं होती। ट्रेनों में दो तरह से बाइक बुक की जा सकती है: लगेज के तौर पर और पार्सल के तौर पर। पहले बात करते हैं लगेज के तौर पर बाइक बुक करने का क्या प्रोसीजर है। इसमें आपके पास ट्रेन का आरक्षित टिकट होना चाहिये। यदि आपने रेलवे काउंटर से टिकट लिया है, तब तो वेटिंग टिकट भी चल जायेगा। और अगर आपके पास ऑनलाइन टिकट है, तब या तो कन्फर्म टिकट होना चाहिये या आर.ए.सी.। यानी जब आप स्वयं यात्रा कर रहे हों, और बाइक भी उसी ट्रेन में ले जाना चाहते हों, तो आरक्षित टिकट तो होना ही चाहिये। इसके अलावा बाइक की आर.सी. व आपका कोई पहचान-पत्र भी ज़रूरी है। मतलब