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चलूँ, बुलावा आया है

पुरानी दिल्ली के स्टेशन से रात को नौ बजे एक ट्रेन चलती है- जम्मू के लिए (4033 जम्मू मेल)। शुरूआती दिमाग तो रोहित ने ही लगाया था। दिवाली पर ही कह दिया था कि दिसम्बर में वैष्णों देवी चलेंगे। तभी मैंने एकदम रिजर्वेशन करा लिया कि कहीं रोहित बाद में मना ना कर दे। हमने इस लपेटे में रामबाबू को भी ले लिया। साल ख़त्म होते-होते रोहित कहने लगा कि यार, जितनी उम्मीद थी उतनी छुट्टियाँ नहीं मिली। रोहित की मनाही सुन-सुनकर रामबाबू भी नाटने की तैयारी करने लगा।
खैर, लाख डंडे करने पर दोनों इस शर्त पर राजी हो गए कि वैष्णों देवी के दर्शन करते ही तुरंत वापस आ जायेंगे। नहीं तो हमारा चार दिन बाद 30 दिसम्बर को वापसी का टिकट था। 26 दिसम्बर को हमें दिल्ली से जाना था। अच्छा, मैं इन दोनों का ज़रा सा चरित्र-चित्रण कर दूं। हम तीनों ने साथ साथ ही पढ़ाई पूरी की है। आजकल रोहित तो है ग्रेटर नोएडा में होण्डा सीएल कम्पनी में और रामबाबू है गुडगाँव में मारूति कम्पनी में। तीसरे की तो बताने की जरुरत ही नहीं है। उसे तो ऐसी बीमारी लग गयी है कि हाल-फिलहाल लाइलाज ही है। बेटा, जब वा आवेगी ना, लम्बी चोटी वाली, या बेमारी तो तभी ठीक होवेगी। ससुरे को घूमने की खाज है।

जहाँ रोहित लगता है कि दो हड्डी का इंसान है, वही रामबाबू बिना दिमाग वाला है। मुझे नहीं लगता कि उसमे 2 kb से ज्यादा दिमाग होगा। तभी तो, मैं और रोहित खड़े थे ट्रेन के पास प्लेटफार्म पर और वो खड़ा था लाइन में- प्लेटफ़ॉर्म टिकट लेने के लिए; जैसे कि हमारा रिश्तेदार है, हमें विदा करने आया है। खैर, ट्रेन चलने से पांच मिनट पहले वो आ गया। आज हम महीनों बाद मिले थे। हो गए शुरू एक-दूसरे की टांग खिंचाई करने।
प्राइवेट कर्मचारियों का यहीं सबसे बुरा काम है कि हर समय वे काम के दबाव की वजह से रोते रहेंगे और ये भी कहेंगे कि हमारी कम्पनी फलाने फील्ड में नंबर वन है। बस, रोहित व रामबाबू हो गए शुरू कि हमारी होण्डा ऐसा मॉडल निकाल रही है, हमारी मारूति ऐसा मॉडल निकाल रही है। फिर एक कहने लगा कि हमारी कम्पनी मुझे 'जपैन' भेज रही है। दूसरा कहाँ चुप रहने वाला था, तुरंत ही मेंढकी की तरह सुर मिलाया कि हाँ, मेरी वाली भी मुझे भेज रही है। इधर मुझे डर है कि अगर ये 'जपैन' चले गए तो अपनी हिन्दी तो भूल जायेंगे, बाद में चिंग चूं चिंग चूं करते ही दिखेंगे।
ट्रेन जब नरेला से चल पड़ी तो हरियाणा शुरू हो गया। अब मैंने बोलना शुरू किया। तुरंत ही रोहित भी मेरी तरफ आ मिला। दो जाट मिल गए तो तीसरे नॉन-जाट की हालत खराब तो होनी ही थी। पानी की बोतल खाली करके रामबाबू को देकर सोनीपत स्टेशन पर धक्के दे-देकर उतार दिया कि जा, बोतल भरके ला। लेकिन उस बिना 'मेमोरी' वाले को पानी ही नहीं मिला। फिर गन्नौर से मैं बोतल भरके लाया। रोहित घर से आलू के परांठे लाया था। परांठे खाए, चाय-चाय वालों से लेकर चाय पी, पानी पिया और पानीपत से पहले ही लम्बी तानकर सो गए।
(दो जाट- नीरज और रोहित)
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(एक होंडा वाला रोहित और दूसरा मारुती वाला रामबाबू)
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(मूंगफली खा रहा हूँ, कोई ऐसी वैसी चीज नहीं)
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वैष्णों देवी यात्रा श्रंखला
1. चलूं, बुलावा आया है
2. वैष्णों देवी यात्रा
3. जम्मू से कटरा
4. माता वैष्णों देवी दर्शन
5. शिव का स्थान है- शिवखोडी
6. जम्मू- ऊधमपुर रेल लाइन

Comments

  1. जारी रहो...आगे की कथा बांचो!!

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  2. बहुत सुंदर कथा. आगे का इंतजार है.

    रामराम.

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  3. बढिया है घूमे जाओ,जब तक़ के लम्बी चोटी वाली न आ जाये।

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  4. "जब वा आवेगी ना, लम्बी चोटी वाली, या बेमारी तो तभी ठीक होवेगी।"

    इसा भी हो सकै है के लाम्बी चोटी आली नै पहलां तैए या बीमारी हो या फेर उसनै संक्रमण (थारे गेला रह कै) लाग जा

    राम-राम

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  5. इत्ता बढ़िया घुमक्कड़ रोजनामचा लिखते हो प्यारे कि मेरे जैसा नॉन घुमक्कड़ भी कह उठे - घुमक्कड़ी जिंदाबाद! :)

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  6. आगे की कहानी क्या है ?

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  7. मजेदार भाई, आगे भी लिखो, ओर मेरे आने पर कही घुमने मत जाना

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  8. यात्रा का आगाज़ तो अच्छा है...अंजाम खुदा जाने...
    नीरज

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  9. bhai ek yatra aur karni hai tumhare sath... pichli wali maza na de payi par anubhav aacha tha... magar yaad rakhna ye banda bhi non jaat hai....

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  10. मजेदार भाई, आगे भी लिखो, ओर मेरे आने पर कही घुमने मत जाना

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46 रेलवे स्टेशन हैं दिल्ली में

एक बार मैं गोरखपुर से लखनऊ जा रहा था। ट्रेन थी वैशाली एक्सप्रेस, जनरल डिब्बा। जाहिर है कि ज्यादातर यात्री बिहारी ही थे। उतनी भीड नहीं थी, जितनी अक्सर होती है। मैं ऊपर वाली बर्थ पर बैठ गया। नीचे कुछ यात्री बैठे थे जो दिल्ली जा रहे थे। ये लोग मजदूर थे और दिल्ली एयरपोर्ट के आसपास काम करते थे। इनके साथ कुछ ऐसे भी थे, जो दिल्ली जाकर मजदूर कम्पनी में नये नये भर्ती होने वाले थे। तभी एक ने पूछा कि दिल्ली में कितने रेलवे स्टेशन हैं। दूसरे ने कहा कि एक। तीसरा बोला कि नहीं, तीन हैं, नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली और निजामुद्दीन। तभी चौथे की आवाज आई कि सराय रोहिल्ला भी तो है। यह बात करीब चार साढे चार साल पुरानी है, उस समय आनन्द विहार की पहचान नहीं थी। आनन्द विहार टर्मिनल तो बाद में बना। उनकी गिनती किसी तरह पांच तक पहुंच गई। इस गिनती को मैं आगे बढा सकता था लेकिन आदतन चुप रहा।

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